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छत्तीसगढ़ : सिलगेर में प्रदर्शन कर रहे आदिवसियों से मिलने जा रहे एक प्रतिनिधिमंडल को पुलिस ने रोका
छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव में लगभग एक महीने से हज़ारों ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं। इन्हीं आंदोलनकारियों से मिलने के लिए जा रही छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को आज पुलिस द्वारा बीजापुर जिले की सीमा पर ही रोक लिया गया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Jun 2021
chhatisgarh

छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव में लगभग एक महीने से हज़ारों ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें जानकारी दिए बिना उनकी ज़मीन पर राज्य सरकार ने सुरक्षाबल के कैंप लगा दिए हैं। प्रदर्शनकारी ग्रामीणों को हटाने के लिए हुई पुलिस की गोलीबारी में तीन ग्रामीणों की मौत हो गई थी, जिसके बाद से आदिवासियों में काफ़ी गुस्सा है। इन्हीं आंदोलनकारियों से मिलने के लिए जा रही छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन(सीबीए) के 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को आज बीजापुर जिले की सीमा पर बंगापाल गांव स्थित नेलसनार थाने में ही चार घंटे तक रोक लिया गया और बीजापुर जिला मुख्यालय तक भी जाने नहीं दिया गया। प्रशासन के इस रवैये के खिलाफ प्रतिनिधिमंडल ने थाने पर एक घंटे तक नारेबाजी की और अवरोध तोड़कर बीजापुर के लिए पैदल मार्च शुरू किया। इस मार्च को भी चार जगह पुलिस ने अवरोध डालकर रोका और अंततः प्रतिनिधिमंडल को वापस रायपुर के लिए रवाना होना पड़ा।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधिमंडल में संयोजक आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम, छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते, एक्टू के प्रदेश महासचिव बृजेन्द्र तिवारी, सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया व इंदु नेताम आदि शामिल थे। नेलसनार से लौटते हुए प्रतिनिधिमंडल ने सिलगेर के आंदोलनरत आदिवासियों के नाम एक पत्र लिखकर एकजुटता व्यक्त की है। बस्तर को पुलिस राज्य में तब्दील किये जाने की कांग्रेस की नीतियों की तीखी निंदा की है और 14 जून के बाद फिर सिलगेर पहुंचने का वादा किया है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से जारी एक बयान में आरोप लगाया गया है कि प्रतिनिधिमंडल को सिलगेर पहुंचने से रोकने के लिए ही उसूर ब्लॉक को कन्टेनमेंट जोन बनाने का नाटक खेला गया है, जबकि राज्य के अन्य जिलों में इससे ज्यादा संक्रमण फैला हुआ है। आंदोलन के नेताओं ने बताया कि पहले तो भैरमगढ़ तहसीलदार ने बीजापुर कलेक्टर का हवाला देते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन लिखित रूप से कोई भी आदेश देने से मना कर दिया। प्रतिनिधिमंडल द्वारा नेलसनार थाने पर नारेबाजी करने के बाद उन्होंने कहा कि बीजापुर जाने से पहले सभी सदस्यों का कोविड टेस्ट किया जाएगा, जिसका सभी ने विरोध किया और कल रात हुए टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाई, जिसे पोर्टल पर भी अपलोड किया गया था। तहसीलदार ने इस टेस्ट रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया, तो सभी ने दोबारा टेस्ट कराने से भी इंकार कर दिया।

इसके बाद प्रतिनिधिमंडल पुलिस के अवरोध को तोड़कर पैदल ही बीजापुर जाने के लिए मार्च करने लगा और वे दो किलोमीटर आगे तक जाने में सफल भी हुए। इस बीच पुलिस ने चार जगहों पर सड़क पर अवरोध खड़ा किया, जिसे लांघने में प्रतिनिधिमंडल सफल रहा। इसी बीच प्रदेश के राज्यपाल से भी संपर्क किया गया। उन्होंने कल प्रतिनिधिमंडल को मिलने की इजाजत दी है। राज्यपाल की इस इजाजत के बाद प्रतिनिधिमंडल ने आगे बढ़ने के बजाए रायपुर लौटना तय किया। कल सीबीए का प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से भेंट करेगा और राज्य शासन के इस रवैये और आदिवासियों के प्रति उसकी नीति के खिलाफ विरोध व्यक्त करेगा और राज्यपाल से हस्तक्षेप करने की मांग करेगा।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का यह मानना है कि लोकतांत्रिक आंदोलनों के साथ इस सरकार को लोकतांत्रिक ढंग से व्यवहार करना चाहिए और उनकी सहमति-असहमति की आवाज को सुनना चाहिए। तभी प्रदेश में लोकतंत्र फल-फूल सकता है। हमारा यह मानना है कि प्रदेश के आदिवासी इलाकों में पांचवीं अनुसूची, पेसा और वनाधिकार कानूनों का पालन होना चाहिए और ग्राम सभा की हर कार्य मे सहमति और सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

आपको बता दें कि  छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव में लगभग महीनेभर से हज़ारों ग्रामीण आंदोलनरत हैं।  ये ग्रामीण, उनको बिना जानकारी दिए उनकी ज़मीन पर सुरक्षाबल के कैंप लगाए जाने के छत्‍तीसगढ़ सरकार के निर्णय का विरोध कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़  स्थति यहाँ तक पहुँच गई कि पुलिस ने इन्हें हटाने के लिए गोलियां चला दी थी जिसमें कथित तौर पर तीन ग्रामीणों की मौत हो गई थी।  सुकमा के सिलगेर गांव में 17 मई को एक कैंप के विरोध में उतरे आदिवासियों पर कथित तौर पर सुरक्षाबलों ने फायरिंग कर दी गई, घटना में तीन ग्रामीणों की जान चली गई और लगभग 18 लोग घायल हुए हैं।

जिसके बाद से आंदोलन और तेज़ हो गया था।  द वायर में छपी खबर के मुताबिक बस्तर पुलिस ने इस संबंध में एक प्रेस नोट जारी कर जानकारी दी है कि 12 मई से शुरू हुए इस आंदोलन में आये ग्रामीणों को समझाकर वापस भेज दिया गया था लेकिन 17 मई को दोबारा बड़ी संख्या में ग्रामीण उग्र होकर हाथों में तीर, धनुष, कुल्हाड़ी व डंडा लेकर कैंप की ओर बढ़ रहे थे।  पुलिस के अनुसार इस दौरान वहां उपस्थित कार्यपालिका मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें समझाइश भी दी गई पर ग्रामीण बेरिकेडिंग  तोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे।  

इसी को लेकर आज यह प्रतिनिधिमंडल आंदोलनकारियों से मिलने जा रहा था।  इससे पहले सोनी सोरी जैसी कार्यकर्ताओं को भी रोका गया था। 

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