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चीन के नेपाल मिशन की बढ़ती लोकप्रियता
प्रधानमंत्री ओली के साथ, सीसीपी प्रतिनिधिमंडल की चली 2 घंटे की लंबी बातचीत में, ओली के हवाले से कहा गया है कि नेपाल और चीन के द्विपक्षीय संबंधों ने हाल के वर्षों में एक नई ऊँचाई को छू लिया है और वे अधिक मज़बूत हुए है।
एम. के. भद्रकुमार
03 Jan 2021
Translated by महेश कुमार
नेपाल

नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली (दाएँ) ने 27 दिसंबर, 2020 को काठमांडू में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतर्राष्ट्रीय विभाग के उपाध्यक्ष गुओ येओझू (दाएँ) ने अगवानी की।

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि नेपाल की स्थिरता में चीन का बहुत बड़ी भूमिका रही है। इसका स्पष्टीकरण इस बात से मिलता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के अंतर्राष्ट्रीय विभाग के उपाध्यक्ष गुओ येओझू के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल काठमांडू की यात्रा कर रहा है।
ऐतिहासिक रूप से, यह बात सही है कि बाहरी शक्तियों ने चीन को अस्थिर करने के लिए नेपाल  की संरध्र झरझरा सीमा का इस्तेमाल कर तिब्बत में गुप्त गतिविधियाँ करने की कोशिश की है। तिब्बत में पिछले कई दशकों में मौलिक रूप से परिवर्तन आया है और यदि विदेशी हस्तक्षेप जारी रहता है, जैसा कि अमेरिका ने तिब्बती नीति और समर्थन के अधिनियम को संशोधित किया है, उसके इस कदम से स्पष्ट है कि यह वाशिंगटन का चीन को अपने अधीन करने की रणनीति है।
 
बीजिंग इस तरह के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा और वह ऐसे मिज़ाज वाले देशों की तलाश कर रहा है जिन्होंने अमेरिकी विकासवाद के कड़वे जहर का अनुभव किया है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सोमवार, यानि 28 दिसंबर, को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ टेलीफ़ोन पर बातचीत इसका साक्षी है कि दोनों देशों के एक-दूसरे के मुख्य हितों के मुद्दों पर प्रतिबद्ध हैं। बैठक के बाद सिन्हुआ में प्रकाशित एक टिप्पणी खुद इसकी गवाह है।
 
सीसीपी प्रतिनिधिमंडल की नेपाल यात्रा की एक बड़ी पृष्ठभूमि है। हालांकि, भारतीय विश्लेषकों के संकीर्ण दृष्टिकोण और शून्यता की मानसिकता के कारण वे इसे समझने की कोशिश नहीं करते हैं। प्रतिनिधिमंडल ने क्षति नियंत्रण करने के लिए काठमांडू की यात्रा की।
 
इस यात्रा से निम्नलिखित तथ्य सामने आएँ हैं: चीन काठमांडू में राजनीतिक और संवैधानिक संकट का लाभ उठाने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ के आसान रास्ते को नकारता है। इसके उलट, नेपाल में सीसीपी प्रतिनिधिमंडल ने चीन के प्रति काफी सम्मान हासिल किया है, क्योंकि सीसीपी प्रतिनिधिमंडल ने गैर-कम्युनिस्ट पार्टियों जैसे नेपाली कांग्रेस, मुख्य विपक्षी पार्टी, सहित विभिन्न राजनीतिक और वैचारिक धाराओं से परामर्श किया है।
 
दरअसल, मंगलवार को हुई बैठक में, प्रतिनिधिमंडल ने अगले साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की होने वाली ऐतिहासिक शताब्दी समारोह में भाग लेने के लिए राष्ट्रपति शी की ओर से सम्मानित अतिथि के रूप में नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को व्यक्तिगत निमंत्रण प्रेषित किया है। यह एक असाधारण भाव प्रदर्शन है।
 
देउबा के सहयोगियों ने निमंत्रण स्वीकार करने की बात कही है और हवाला देते हुए कहा कि नेपाली कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच दशकों भरी दोस्ती बीपी कोइराला के समय से है जो कि पार्टी के संस्थापक नेता थे और नेपाल के प्रीमियर भी थे।
 
भारतीय विश्लेषकों को विचारपूर्वक हो कर इस बात को नोट करना चाहिए कि नेपाली राजनीतिक वर्ग ने सीसीपी प्रतिनिधिमंडल के सदभावना मिशन का स्वागत किया है। यह भारत के नीति निर्माताओं के लिए निर्णायक रूप से सच्चाई और आत्मनिरीक्षण का पल है। आदर्श रूप से, यह सीसीपी प्रतिनिधिमंडल मिशन की जगह योगी आदित्यनाथ या नीतीश कुमार का मिशन हो सकता था। भारत ने नेपाल के साथ अपने महत्वपूर्ण संबंधों को किस तरह कमजोर किया है? ऐसा क्या गलत हुआ? गलती किसकी है? भारत फिर से कैसे इन रिश्तों को एक नया मोड़ दे सकता है?
 
मौलिक रूप से, भारत को अपनी क्षेत्रीय रणनीतियों पर पुनर्विचार करने  की ज़रूरत है। भारत को अपने विकास के लिए एक संतुलित माहौल की ज़रूरत है। अस्थिर और असुरक्षित पड़ोसी देश भारत के हित में नहीं हैं। इसलिए, भारत के लिए क्षेत्रीय स्थिरता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत एक क्षेत्रीय शक्ति बनने की इच्छा तो रखता है. अब, यह आकांक्षा भारत की स्वीकार्यता पर निर्भर करती है, जिसका सीधा संबंध उसकी अच्छी-पड़ोसी नीतियों से है। इसकी सफलता स्वयं को एक आकर्षक तैयार उत्पाद के रूप में पेश करने पर निर्भर करती है.
 
इन सभी तत्वों के बीच मौजूद अंतरसंबंध समझने के लिए, पाकिस्तान की सादृश्यता उपयोगी हो सकती है। पाकिस्तान ने भारत की उन्नति से मनोग्रस्त हो कर कई दशक व्यर्थ कर दिए. वह देश के सुधार के लिए मिले दुर्लभ अवसरों की उपेक्षा और संसाधनों को व्यर्थ करता आया है. उसे प्राथमिकताओं की समझ नहीं है।
 
यहाँ यह कहना उचित होगा कि पागलपन के कारण आत्मकृत घाव हो सकते हैं। काठमांडू में चीनी मिशन का  निष्पक्ष रूप से  आकलन की ज़रूरत है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने बीजिंग में कहा कि काफी “लंबे समय से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए हुए है, जिसने आपसी राजनीतिक विश्वास को बढ़ाने, एक-दूसरे से सीखने-सिखाने, प्रशासन को बढ़ावा देने और पारंपरिक मित्रता को मजबूत करने में काफी सकारात्मक भूमिका निभाई है।"
 
इसके विपरीत, भारत ने प्रपीडन का रास्ता अपनाया, अंततः जिससे भारत एकान्तरित हो गया। नेपाली राजनेताओं को एक दिन दरिद्र विदूषक समझ कर लाड़-प्यार बरसाना और दूसरे दिन उनका कॉलर पकड़कर धमकी देने वाली राजनीति को उद्भासित करता है। नेपाल के लोगों के मन में एक बात बैठ गई है कि हम एक खतरनाक पड़ोसी हैं जिसके इरादे नेक नहीं हैं, जो न तो भरोसेमंद है और बहुत अधिक आत्म-केंद्रित और दोषदर्षी हैं। दुख की बात यह है कि भारत ने नेपाल के अवारणीय पड़ोसी होने के सभी अद्वितीय लाभों के बावजूद ऐसा किया।
 
शेहडेनफ्रूड, जैसा कि जर्मन कहते हैं — किसी और के दुर्भाग्य से आँयदीय आनंद प्राप्ति — अच्छी बात नहीं हो सकती है, चाहे वह किसी व्यक्ति की जीवन या राष्ट्र के के बारे में ही क्यों न हो, विशेष रूप से भारत जैसी प्राचीन सभ्यता के लिए जिसका इतिहास उतना ही शर्मनाक अपमान और दुख के क्षणों से भरा है जितना उसका सफलता, महिमा और विजय का इतिहास है।
 
अब, इसकी भी कोई निश्चिंतता नहीं है कि चीनी मिशन को एक स्थायी सफलता मिलेगी। यह तो समय बताएगा। लेकिन चीनी प्रवक्ता झाओ ने मिशन के बारे में कहा कि: “देश के मित्र और करीबी पड़ोसी के रूप में, हमें उम्मीद है कि नेपाल राष्ट्रीय हितों और बड़ी तस्वीर को ध्यान में रखेगा, ताकि संबंधित पक्ष के बीच आंतरिक मतभेदों को ठीक कर सकें और स्वयं को राजनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध कर सके।" यह नेपाल की स्थिरता पर केंद्रित एक सच्चा आडंबररहित मिशन है।
 
अंतरपार्टी झगड़े जिसमें व्यक्तिवादी झड़पें, उल्टी महत्वाकांक्षाएं और सत्ता के लिए सरासर वासना होने से मध्यस्थता करना कठिन होता है। जब कम्युनिस्ट पार्टी की बात आती है, तो यह बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। चीनी समीक्षकों ने बताया है कि 'विवादों का समाधान जल्द हल होने की संभावना नहीं है', क्योंकि दो प्रमुख धड़ों के नेता के.पी. शर्मा ओली और पुष्पा कमल दहल डिगने को तैयार नहीं है। सबसे निराशाजनक पूर्वानुमान यह है कि नेपाल सिर्फ दो साल के भीतर फिर से राजनीतिक अस्थिरता की ओर जा सकता है।'
 
चीनी समीक्षक इस बात को स्वीकार करते हैं कि 2018 में दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के  विलय (जिसमें चीन ने बड़ी भूमिका निभाई थी) को अभी तक पूरी तरह से परिष्कृत नहीं किया गया है' और इसलिए विभाजन होने की संभावना है, जो निश्चित रूप से नेपाल की राजनीतिक स्थिरता और भविष्य के लिए हानिकारक होगा और खुद कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए भी घातक सिद्ध होगा। इसके साथ ही एक और चुनाव से त्रिशंकु संसद बनने की ही संभावना है, जिसका मतलब होगा कि नेपाल गठबंधन की राजनीति में वापस जा सकता है और वह दल बदली और पुरानी अस्थिरता के युग में लौट सकता है।
 
बीजिंग को झूठी उम्मीद नहीं है। लेकिन रविवार को जब काठमांडू में सीसीपी प्रतिनिधिमंडल कठमण्डू पहुँचा, तभी से मिलने वाली ख़बरें काफी कुछ सकारात्मक संकेत दे रही हैं। चीनी प्रतिनिधिमंडल के साथ 2 घंटे की लंबी बैठक में, प्रधानमंत्री ओली को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि नेपाल और चीन ने हाल के वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों को एक नई ऊंचाई मिली है और वे मज़बूत हुए है, और चीन एक करीबी पड़ोसी और मित्र के रूप में नेपाल का समर्थन कर रहा है।
सभी राजनीतिक वर्णक्रम में इस बात की अत्यधिक प्रशंसा की जा रही है कि नेपाल को चीनी समर्थन और सहायता की जरूरत है। समान रूप से, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के भीतर सीसीपी को लेकर काफी सम्मान हैं और दोनों पक्षों ने उत्कृष्ट संबंधों को सहराया जा रहा है। इस प्रकार, 29 दिसंबर को कम्युनिस्ट नेता माधव कुमार नेपाल की टिप्पणी रुचि के लायक हैं जिसमें उन्होंने कहा कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन को रोका जा सकता है और प्रतिद्वंद्वी गुट ’सब कुछ भूलने के लिए तैयार है’ यदि ओली अपनी गलतियों को स्वीकार कर लेते हैं।
 
यह बता दें कि दहल एक चंचल और अथिर व्यक्तित्व वाले नेता हैं, उनमें नमनशीलता नहीं है। अगर ध्यान दें तो, इस बात की संभावना है कि चीनी मिशन एक आकर्षण है। नेपाली राजनीतिक अभिजात वर्ग के बीच यह सर्वसम्मति है कि देश एक मध्यावधि चुनाव में जा सकता है।
 
नेपाल की अर्थव्यवस्था पिछले दो वर्षों में अपेक्षाकृत रूप से अच्छा कर रही है और यहाँ तक कि महामारी के समय में भी, उसने गति नहीं खोई है। विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है, निर्यात अच्छा कर रहे हैं, प्रेषित धन पर्याप्त है, चालू खाता अब घाटे में नहीं है। नेपाली अभिजात वर्ग के लोग इस बात को भली-भांति जानते हैं कि चीन की सदभावना और निरंतर मदद नेपाल की स्थिति में महत्वपूर्ण अंतर ला सकती है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

China’s Mission to Nepal Gains Traction

China Nepal Relations
Chinese Communist Party Delegation in Nepal
Communist Party in Nepal
K P Sharma Oli
Unification of Communist Parties in Nepal
Madhav Kumar Nepal

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