NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मोदी सरकार के व्यवसायिक कोयला खनन से 2.8 लाख नौकरियां पैदा होने का दावा काल्पनिक है
दूसरी तरफ़ यह भी माना जा रहा है कि अगर निजी खिलाड़ियों को नीलाम करने की जगह सभी कोयला ब्लॉक कोल इंडिया लिमिटेड को दे दिए होते, तो ज़्यादा नौकरियां पैदा की जा सकती थीं।
अयस्कांत दास
26 Jun 2020
 कोयला खनन
Image Courtesy: mining.com

कोयला खनन में निजी खिलाड़ियों के प्रवेश से निश्चित ही उत्पादन में वृद्धि होगी। लेकिन सत्ताधारी बीजेपी के दावे के उलट, निजी खिलाड़ियों के प्रवेश से खनन क्षेत्र के रोज़गार में वृद्धि होना मुश्किल है।

18 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 41 कोयला ब्लॉकों के लिए द्विस्तरीय इंटरनेट-नीलामी (E-Auctioning) की घोषणा की थी। इस दौरान मोदी ने दावा किया कि इससे लाखों नौकरियां पैदा होंगी और कोयला क्षेत्र को स्थिरता मिलेगी। कोयला क्षेत्र दशकों से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ''कोल इंडिया लिमिटेड (CIL)'' के नियंत्रण में है।

इसके तुरंत बाद गृहमंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ करते हुए इसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह एनडीए सरकार के 'आत्मनिर्भर भारत' बनाने की दिशा में एक कदम है। शाह ने दावा किया कि इस कदम से 2.8 लाख नौकरियां पैदा होंगी और इससे 33,000 करोड़ रुपये का पूंजीगत निवेश आएगा। साथ में राज्य सरकारों के लिए 20,000 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व पैदा होगा।

लेकिन जो लोग ज़मीन पर खनन प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों के साथ काम कर रहे हैं, उनका मानना इससे बिलकुल उलट है। इन लोगों के मुताबिक़ केंद्र सरकार के विश्लेषण में व्यावसायिक खनन प्रोजेक्ट से अपनी आजीविका गंवाने वाले लोगों को शामिल नहीं किया गया। इन लोगों को विस्थापन और जंगल-पानी के स्त्रोतों तक पहुंच पर प्रतिबंध से अपनी आजीविका गंवानी पड़ेगी। जिन कोयला ब्लॉकों को नीलामी के लिए आवंटित किया गया है, उनमें से कई घने जंगलों या संरक्षित क्षेत्र के ''पर्यावरणीय स्तर पर संवेदनशील (ईको सेंसटिव जोन)'' इलाकों में पड़ते हैं।

खनन से प्रभावित और उससे चिंतित लोगों, संस्थानों और समुदायों के मंच ''माइन्स, मिनरल्स एंड पीपल्स'' के अध्यक्ष रेब्बाप्राग्दा रवि के मुताबिक़, ''केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फ़ैसले में उन लोगों की हिस्सेदारी नहीं है, जिनका फ़ैसले से बहुत कुछ दांव पर लगा है। केंद्र सरकार और कॉरपोरेट के अलावा दूसरे लोगों से बात नहीं की गई। संविधान की पांचवी अनुसूची इस बात का प्रावधान करती है कि संबंधित जनजातीय इलाकों में किसी तरह के प्रोजेक्ट के लिए जनजातीय परामर्शदायी समिति को विश्वास में लेना जरूरी होता है। केंद्र सरकार का फ़ैसला इस प्रावधान का उल्लंघन करता है। इसके अलावा पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले इलाकों में ''पंचायत के कानून (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) 1996'' खनन गतिविधियां करने के लिए ग्राम सभा से अनुमति जरूरी होती है। यह वह इलाके होते हैं, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी होती है या फिर आसपास के इलाकों की तुलना में आदिवासियों की आबादी आर्थिक तौर पर कमजोर होती है।''

यह तथ्य है कि बड़ी मात्रा में मशीनरी और ऑटोमेशन (स्वसंचालन) की जरूरत वाली ''ओपन कास्ट माइनिंग'' में ''अंडरग्राउंड माइनिंग'' की तुलना में कम रोज़गार का सृजन होता है। ऊपर से खदान विकसित या चलाने वालों (MDO) का स्थानीय आबादी को नौकरी के मौके उपलब्ध कराने का इतिहास बहुत अच्छा नहीं रहा है। ना ही इन लोगों ने अपनी गतिविधियों के चलते होने पैदा होने वाले पर्यावरणीय मुद्दों पर गंभीर चिंता जताई है। 

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में काम करने वाली कांची कोहली का कहना है ''खाद्य सुरक्षा और आजीविका के नज़रिए से भी इस बात का आंकलन करना जरूरी है कि कितने लोगों की ज़मीन, जंगल और जल तक पहुंच खत्म होगी। बिना इस आंकलन के खनन गतिविधियों से रोज़गार पैदा होने की बात कहना एकतरफा है। एक गंभीर आर्थिक संकट के दौर में खनन गतिविधियों के बढ़ने से कई आजीविकाएं खत्म हो जाएंगी और इलाके में मौजूद खाद्यान्न सुरक्षा ढांचा लंबे अंतराल में नष्ट हो जाएगा। जंगलों को सिर्फ़ खड़े पेड़ों की तरह नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह आजीविका का एक पूरा पर्यावरणीय ढांचा हैं। छत्तीसगढ़ से कई ग्राम सभाओं ने केंद्र को खत लिखकर कहा है कि वे पहले से ही 'आत्मनिर्भर' हैं।''

मौजूदा नीलामी प्रक्रिया के ज़रिए पैदा होने वाली नौकरियों में लोगों को कांट्रेक्ट पर काम पर रखा जाएगा। यह एक ऐसा सिस्टम है, जहां नियोक्ता हाथ से किए जाने वाले कामों के लिए स्थानीय आबादी के सबसे निचले वर्ग के लोगों को नौकरी पर रखता है। केंद्र सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को व्यावसायिक खनन करने की अनुमति देने के विरोध में ''ऑल इंडिया कोल वर्कर्स फेडरेशन'' जुलाई के पहले हफ़्ते में तीन दिन की हड़ताल पर जाएगा। बता दें यह संगठन सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला खनन में लगे देश भर के पचास लाख से ज़्यादा मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करता है। 

फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी डी डी रामनंदन ने न्यूज़क्लिक से कहा, ''यह बहुत बड़ा मिथक है कि नीलामी से 2.8 लाख नौकरियां पैदा होंगी। हमें इन नीलामियों से 35,000 से ज़्यादा नौकरियां पैदा होने की उम्मीद नहीं है। पहले जारी पैमानों के हिसाब से, एक मिलियन टन उत्पादन पर 700 नौकरियों से भी कम रोज़गार था। लेकिन मशीनीकरण, ओपन कास्ट माइनिंग और MDO मॉडल के चलते यह आंकड़ा तेजी से गिरा है।''

फेडरेशन केंद्र सरकार के उस फ़ैसले का भी विरोध किया है, जिसके तहत खनन क्षेत्र में 100 फ़ीसदी विदेशी निवेश को अनुमति दी गई है। ज़्यादा रोज़गार और राजस्व पैदा करने की आड़ में इस फ़ैसले को आगे बढ़ाया गया है। ट्रेड यूनियन के नेताओं के मुताबिक़, व्यावसायिक कोयला खनन से कोल इंडिया लिमिटेड और सिकुड़ जाएगी। यह महारत्न कंपनी लाखों कामग़ारों को रोज़गार देती है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU) के जनरल सेक्रेटरी तपन सेन कहते हैं, ''अगर निजी क्षेत्र के लोगों को बड़ी संख्या में कोयला ब्लॉक का आवंटन किया गया, तो कोल इंडिया लिमिटेड धीरे-धीरे मुनाफ़ा कमाना कम कर देगी और इसके क्रियान्वयन की क्षमता पर भी असर पड़ेगा। यह नीलामी जो 'मेक इन इंडिया' की आड़ में हो रहा है, उससे कोल इंडिया लिमिटेड का देशव्यापी ढांचा ढह जाएगा। मुनाफ़े में आने वाली कमी या ऑपरेशनल नेटवर्क के ढहने से नौकरियां खत्म होंगी। तो आप एक हाथ से जो दे रहे हैं, दूसरे हाथ से उसे ले भी रहे हैं।''

दूसरी तरफ यह भी माना जाता है कि अगर निजी क्षेत्र के लोगों के बजाए CIL को यह कोयला ब्लॉक दे दिए जाते, तो ज़्यादा रोज़गार पैदा हो सकते थे। 

पूंजीवाद के समर्थक और बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का तर्क है कि ''घरेलू कोयले के निर्यात'' में बढ़ोतरी से ''कोयला क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)'' में इज़ाफा होगा और इससे अप्रत्यक्ष नौकरियां बढ़ेंगी। लेकिन निकट भविष्य में कोयले के निर्यात में बढ़ोतरी होना मुश्किल है, क्योंकि ताप विद्युत गृहों के चलते घरेलू मांग बहुत ज़्यादा है। यह ताप विद्युत गृह फिलहाल अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक़, निजी क्षेत्र की नज़र 120 मिलियन टन आयातित कोयले की जगह घरेलू कोयले के उपयोग पर है। इसके अलावा भारतीय कोयले को इसमें राख की मात्रा ज़्यादा होने के चलते अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में बहुत प्राथमिकता नहीं दी जाती।

CIL के पूर्व चेयरमैन पार्थ सारथी भट्टाचार्य ने न्यूज़क्लिक से कहा, ''विदेशी निवेशकों को बैंकर्स और इंवेस्टमेंट बैंकर्स से पैसा इकट्ठा करने में बहुत परेशानी होगी। क्योंकि यह लोग कोयला क्षेत्र में पैसा लगाना नहीं चाहते। इसकी वजह मौसम परिवर्तन, पर्यावरणीय क्षरण और ग्लोबल वार्मिंग से कोयला खनन का संबंध है। वैश्विक खनन कंपनियों के शेयरधारक तापीय कोयला खनन के पर्यावरण पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के चलते इससे बाहर आने का दबाव बना रहे हैं। यह प्रक्रिया पिछले चार-पांच साल में तेज हुई है। यहां तक कि भारत में काम करने वाले विदेशी बैंक भी कोयला खनन की गतिविधियों में पैसा लगाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, क्योंकि ऐसा करने की स्थिति में उन्हें वैश्विक स्तर पर मौजूद अपने अग्रणियों से प्रतिबंधों के साथ कदमताल करने के दबाव को झेलना होगा। इस स्थिति में हमें कोयला क्षेत्र में 100 फ़ीसदी FDI से कोई खास उम्मीद नहीं लगानी चाहिए।''

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

मूल आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Why Modi Government’s Claim of 2.8 Lakh Jobs from Commercial Coal Mining is a Myth

Coal India Limited
FDI in Coal
Coal mining
Private Sector Coal Mining
global warming

Related Stories

जलवायु परिवर्तन के कारण भारत ने गंवाए 259 अरब श्रम घंटे- स्टडी

ग्राउंड रिपोर्ट: देश की सबसे बड़ी कोयला मंडी में छोटी होती जा रही मज़दूरों की ज़िंदगी

हसदेव अरण्य: केते बेसन पर 14 जुलाई को होने वाली जन सुनवाई को टाले जाने की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही है

एक्सक्लूसिव : अडानी पावर राजस्थान ने उपभोक्ताओं की कीमत पर कमाए 2,500 करोड़


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License