NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
उत्पीड़न
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
बढ़ती हिंसा व घृणा के ख़िलाफ़ क्यों गायब है विपक्ष की आवाज़?
हिंसा की इन घटनाओं ने संविधान, लोकतंत्र और बहुलतावाद में विश्वास रखने वाले शांतिप्रिय भारतवासियों की चिंता बढ़ा दी है। लोग अपने जान-माल और बच्चों के भविष्य को लेकर सहम गए हैं।
अफ़ज़ल इमाम
13 Apr 2022
ram_navmi
प्रतीकात्मक तस्वीर- Deccan Herald

हमेशा धूमधाम और शांतिपूर्ण तरीके से मनाए जाने वाले पर्व रामनवमी के मौके पर इस बार आधा दर्जन से अधिक राज्यों में हिंसा हुई। सभी जगहों पर पैटर्न एक जैसा था- मसलन मस्जिदों के सामने हुड़दंग, उकसाने वाली नारेबाजी और डीजे बजाना। कुछ जगहों पर तो मस्जिदों की दीवार पर चढ़ कर भगवा झंडे भी लगाए गए, जिनकी तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुईं हैं। कई जगहों पर इसकी प्रतिक्रिया भी हुई, जिसने दंगे का रूप ले लिया। हिंसा की इन घटनाओं ने संविधान, लोकतंत्र और बहुलतावाद में विश्वास रखने वाले शांतिप्रिय भारतवासियों की चिंता बढ़ा दी है। लोग अपने जान-माल और बच्चों के भविष्य को लेकर सहम गए हैं।

पिछले 8-10 दिनों के भीतर जो कुछ देखने को मिला है, उसके बारे आमतौर माना जा रहा है कि यह तो महज ट्रेलर था। असली पिक्चर तो अभी आनी बाकी है, क्योंकि वर्ष 2024 में लोकसभा के आम चुनाव हैं, जबकि उसके पहले गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व कर्नाटक समेत 11 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।

यूपी चुनाव में जो ‘अस्सी बनाम बीस’ व बुल्डोजर की राजनीति शुरू हुई थी, वह आगे भी जारी रहेगी। ऐसा इसलिए कि चुनाव जीतने का यह एक ऐसा अचूक फार्मूला साबित हुआ है, जिसके सामने प्रचंड बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, अशिक्षा, समाज के कमजोर तबकों का उत्पीड़न और सरकार की तमाम नाकामियां जैसे मुद्दे जमींदोज हो जाते हैं।

राजस्थान में करौली के बाद मध्य प्रदेश के खरगोन का दंगा काफी चर्चित रहा। यूपी की नकल करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भी दर्जनों मकानों व दुकानों पर बुलडोजर चलवा दिए और इसके लिए उन्होंने अपनी पीठ भी थपथपाई। उनके समर्थकों ने उन्हें नया नाम ‘बुल्डोजर मामा’ दे दिया है। दरअसल राज्य में विधानसभा चुनाव का माहौल बन चुका है और चौहान इस बार मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे या नहीं? इस बात पर संशय है, क्योंकि राज्य में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम तेजी से उभरा है। वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेहद करीबी माने जाते हैं। बुलडोजर वाले मामले में दोनों के बीच की श्रेय लेने की जबरदस्त होड़ दिखाई पड़ रही है। वैसे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम भी चर्चा में हैं। साथ ही कैलाश विजयवर्गीय और उमा भारती जैसे नेता भी वहां अपनी-अपनी तरह से सक्रिय हैं।

इसी तरह चुनाव वाले राज्य गुजरात के हिम्मतनगर और खम्भात आदि जगहों से भी हिंसा की खबरें आईं हैं। करीब 7 माह पहले ही वहां विजय रूपाणी को हटा कर भूपेंद्र पटेल को नया सीएम बनाया गया था। गुजरात भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है। यही कारण है कि यूपी में जीत हासिल करने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद में रोड शो किया था। कर्नाटक में भी पिछले वर्ष जुलाई में येदियुरप्पा की जगह बासवराज बोम्मई को सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके बाद से ही यह राज्य हिजाब विवाद, हलाल मीट, मुस्लिम दुकानदारों, कारीगरों व ऑटो वालों का बहिष्कार आदि के कारण चर्चा में बना हुआ है। यहां भी रामनवमी के मौके पर कोलार व कुछ अन्य जगहों पर हिंसा हुई है।

दक्षिण भारत में कर्नाटक इकलौता राज्य है, जहां भाजपा की सरकार है। वर्ष 2019 में कांग्रेस व जद (एस) के विधायकों को तोड़ कर उसने ने वहां सत्ता पर कब्जा किया था। इसे बचाए रखना भाजपा लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। बहरहाल उपरोक्त मुद्दों से तैयार हुए माहौल के बीच पार्टी ने राज्य में अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि हिंसा व घृणा किसी भी देश और समाज के लिए बेहद घातक हैं, लेकिन भारत में यह तेजी से बढ़ती नजर आ रही है। हालत यह हो गई है कि गाली-गलौज और यहां तक कि बलात्कार की खुली धमकी को भी कुछ लोग सोशल मीडिय़ा पर उचित ठहरा रहे हैं। स्थिति दिनों-दिन गंभीर होती जा रही है, लेकिन किसी भी स्तर पर कोई अंकुश नहीं है।

हैरत की बात यह है कि विभिन्न राज्यों में हुई हिंसक घटनाओं व उन्मादी माहौल को लेकर विपक्षी पार्टियों की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली। सिर्फ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शांति व भाईचारे की अपील करते हुए एक ट्वीट किया, जबकि सपा नेता अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व तृणमूल की मुखिया ममता बनर्जी समेत अन्य विपक्षी नेता खामोश हैं।

पार्टियों की आपसी प्रतिद्वन्द्विता अलग बात है, लेकिन देश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उसमें अमन-चैन व भाईचारे के लिए इन पार्टियों के नेताओं को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि तक कुछ कदम का मार्च करना ही चाहिए था। यदि यह संभव नहीं था, तो कम से कम संयुक्त बयान तो जारी ही किया जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।

देश में तेजी बढ़ रही हिंसा और घृणा के मसले पर विपक्ष दलों की उदासीनता समाज में भारी बेचैनी पैदा कर रही है। इस खामोशी के बहुत सारे मतलब भी निकाले जा रहे हैं। हद तो यह है कि जब विभिन्न शहरों में हिंसक झड़प हो रही थी, तो कांग्रेस और बसपा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त दिखे। वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव यूपी में होने वाली आपराधिक घटनाओं की खबरें ट्वीट कर रहे थे। वे शायद अपने राजनीतिक कैरियर में दूसरी बार बड़ी गलती कर रहे हैं। वर्ष 2013 में जब मुजफ्फरनगर दंगा हुआ था तो अखिलेश यूपी के मुख्यमंत्री थे और उस समय दंगा भड़काने वालों के खिलाफ जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए थी, वह उन्होंने नहीं की थी। अब यह दूसरा मौका है, जब जनता ने उन्हें प्रदेश में मजबूत विपक्ष बनाया है तो भी वे खामोश हैं। क्या ‘भाईचारा’ और जातीय जनगणना जैसे मुद्दे सिर्फ चुनाव के लिए थे? 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Ramnavami
Hindu Nationalism
Hindutva Agenda
communal violence
Communalism

Related Stories

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

जोधपुर में कर्फ्यू जारी, उपद्रव के आरोप में 97 गिरफ़्तार

सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में अतिक्रमण रोधी अभियान पर रोक लगाई, कोर्ट के आदेश के साथ बृंदा करात ने बुल्डोज़र रोके

अब भी संभलिए!, नफ़रत के सौदागर आपसे आपके राम को छीनना चाहते हैं

एक आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण की डॉ. आंबेडकर की परियोजना आज गहरे संकट में

मुस्लिम जेनोसाइड का ख़तरा और रामनवमी

पश्चिम बंगाल: विहिप की रामनवमी रैलियों के उकसावे के बाद हावड़ा और बांकुरा में तनाव

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

क्या मुस्कान इस देश की बेटी नहीं है?

सांप्रदायिक घटनाओं में हालिया उछाल के पीछे कौन?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License