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कोरोना संकट: बेहाल होती इकोनॉमी और बेपरवाह मोदी सरकार
विश्व की कई आर्थिक एजेंसियों के अनुमान के बाद अब विश्व बैंक ने भी कहा है कि कोविड-19 महामारी का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ने वाला है। विश्व बैंक ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ने की बजाय 3.2% सिकुड़ जाएगी।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Jun 2020
economy and corona
Image courtesy:Ofonline.org

दिल्ली: विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में कोराना वायरस और उसकी रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों के प्रभावों के चलते 3.2 प्रतिशत सिकुड़ेगी।

इस बहुपक्षीय वित्तीय संगठन का कहना है कि कोविड-19 के झटके से देश की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गयी है। आपको बता दें कि कई अन्य वैश्विक साख प्रमाणन एजेंसियों ने इससे बड़े संकुचन के अनुमान लगाए हैं।

विश्व बैंक ने क्या कहा?

विश्व बैंक की ग्लोबल इकोनॉमिक प्रास्पेक्ट (वैश्विक आर्थिक संभावना) रिपोर्ट में भारत की वृद्धि के अनुमान में पहले के अनुमानों की तुलना में नौ प्रतिशत की भारी कमी की गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आर्थिक वृ्द्धि 2019-20 में अनुमानित 4.2 प्रतिशत रही। अनुमान है कि 2020-21 में यह अर्थव्यवस्था कोविड-19 के प्रभावों के कारण 3.2 प्रतिशत संकुचित होगी।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए जो कड़े उपाय किए गए उससे अल्पकालिक गतिविधियां बहुत सीमित हो गयी। आर्थिक संकुचन में इसकी भूमिका होगी।

विश्व बैंक का कहना है कि भारत सरकार के राजकोषीय प्रोत्साहनों और रिजर्व बैंक की ओर से लगातार कर्ज सस्ता रखने की नीति के बावजूद बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र पर दबाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने संकट का भी भारत पर असर पड़ेगा।

आपको बता दें कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2016-17 में सात प्रतिशत, 2017-18 में 6.1 प्रतिशत और 2019-20 में (अनुमानित) 4.2 प्रतिशत रही। विश्व बैंक ने कहा है कि कोविड-19 और लॉकडाउन (आवागमन की पाबंदी) का वास्तविक प्रभाव अप्रैल-मार्च 2020-21 में दिखेगा। उसका अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आएगी।

चालू वित्त वर्ष की वृद्धि का यह अनुमान विश्व बैंक का यह अनुमान जनवरी में जारी किए गए उसके अनुमान की तुलना में नौ प्रतिशत की भारी गिरावट दर्शाता है। इसी तरह 2021-22 के वृद्धि के अनुमान को भी तीन प्रतिशत नीचे किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत में संकुचन का असर दक्षिण एशिया की आर्थिक वृद्धि पर पड़ेगा। 2020-21 में इस क्षेत्र में 2.7 प्रतिशत आर्थिक संकुचन होने का अनुमान है।

दूसरी एजेंसियों ने भी दी है चेतावनी

गौरतलब है कि वित्तीय साख प्रमाणित करने वाली वैश्विक एजेंसियों- फिच रेटिंग और एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष में भारत में चार से पांच प्रतिशत के बीच संकुचन हो सकता है। क्रिसिल ने तो यहां तक कहा कि यह आज़ाद भारत के इतिहास की चौथी और 1991 के उदारीकरण के बाद पहली बड़ी मंदी होगी। उसने कहा कहा इस बार शायद मंदी का असर पूर्व की तीनों मंदियों से ज्यादा होगा।

इसी तरह इसी महीने के शुरुआत में रेटिंग एजेंसी ने मूडीज ने भी दो दशक से भी अधिक समय बाद भारत की साख घटा दी थी। रेटिंग एजेंसी मूडीज़ इनवेस्टर्स सर्विस ने भारत की सावरेन (राष्ट्रीय) रेटिंग को ‘बीएए2’ से घटाकर ‘बीएए3’ कर दिया। एजेंसी का कहना है कि निम्न आर्थिक वृद्धि और बिगड़ती वित्तीय स्थिति के चलते जोखिम कम करने वाली नीतियों के क्रियान्वयन में चुनौतियां खड़ी होंगी।

‘बीएए3’ सबसे निचली निवेश ग्रेड वाली रेटिंग है। इसके नीचे कबाड़ वाली रेटिंग ही बचती है। एजेंसी ने कहा, ‘मूडीज ने भारत की स्थानीय मुद्रा वरिष्ठ बिना गारंटी वाली रेटिंग को बीएए2 से घटाकर बीएए3 कर दिया है। इसके साथ ही अल्पकालिक स्थानीय मुद्रा रेटिंग को भी पी-2से घटाकर पी-3 पर ला दिया गया है।’

वक्तव्य में कहा गया है कि नकारात्मक परिदृश्य में अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली में गहरा दबाव दिखाई देता है जिसके और नीचे जाने का जोखिम है। यह स्थिति मूडीज के मौजूदा अनुमान के मुकाबले वित्तीय मजबूती को अधिक गहरा और लंबा नुकसान पहुंचा सकती है। मूडीज़ ने इससे पहले नवंबर 2017 में 13 साल के अंतराल के बाद भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को एक पायदान चढ़ाकर बीएए2 किया था।

क्या कर रही है सरकार?

गौरतलब है कि भारत ने कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के लिए राष्ट्रव्यापी पाबंदी 25 मार्च को लागू की। इसे कई चरणों में बढ़ाया गया। सरकार ने आठ जून से संक्रमण मुक्त क्षेत्रों में कारोबार सावधानी के साथ शुरू करने की छूट देने की घोषणा की है। इसके लिए कुछ नियम प्रक्रियाएं भी लागू की गयी हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी।

हालांकि विपक्षी कांग्रेस समेत तमाम अर्थशास्त्रियों ने इस आर्थिक पैकेज को सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी बताया है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने तो मांग की थी कि सरकार की ओर से 10 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का दस फीसदी वाला पैकेज जारी होना चाहिए क्योंकि वर्तमान पैकेज़ ने कई क्षेत्रों जैसे ग़रीबों, प्रवासियों, किसानों, मजदूरों, कामगारों, छोटे दुकानदारों, और मध्य वर्ग की उचित मदद नहीं की है।

पी चिदंबरम ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सरकार को इस समय राजकोषीय घाटा बढ़ने की चिंता छोड़ देनी चाहिए। इसी तरह अभी कुछ दिन पहले भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा है कि गरीबों को नकद आर्थिक मदद की योजना जरूर जारी रखी जानी चाहिए। हालांकि सरकार में बैठे हुए बहुत सारे लोग इस पक्ष में नहीं दिखाई दे रहे हैं।

फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था के तमाम डरावने अनुमानों से सरकार बेपरवाह नजर आ रही है। जहां उसे इस मसले पर ध्यान देना चाहिए तो वहीं वह बिहार विधानसभा चुनाव और राज्यसभा चुनावों में तैयारी में लगी नजर आ रही है। अर्थव्यवस्था की चिंता उसके एजेंडे में दूर नजर आ रही है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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