NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
ज़मीन के नीचे धंसी भारतीय अर्थव्यवस्था को नोट छाप कर उबारा जा सकता है?
वित्त वर्ष 2020-21 के जीडीपी के आंकड़ों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था में 7.3 फ़ीसदी का कॉन्ट्रैक्शन यानी संकुचन हुआ है। भारत की अर्थव्यवस्था साल 2019-20 के वित्त वर्ष में तकरीबन 145 लाख करोड़ रुपए की थी, जो साल 2020-21 के वित्त वर्ष में घट कर 135 लाख करोड़ रुपए की हो गई है।
अजय कुमार
03 Jun 2021
ज़मीन के नीचे धंसी भारतीय अर्थव्यवस्था को नोट छाप कर उबारा जा सकता है?
Image courtesy : Yahoo Finance

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अध्ययन के मुताबिक मई महीने में तकरीबन डेढ़ करोड़ लोगों की नौकरी चली गई। नौकरी खो चुके लोगों से पूछिए तो यह बताएंगे कि बेरोजगार जिंदगी हर दिन कितनी परेशानियों से जूझती है। शायद इनमें से बहुत सारे लोग यह कहें कि कैसे भी करके महामारी जल्द खत्म हो। तालाबंदी खुले। उन्हें ठीक-ठाक नौकरी मिले। इसलिए गहरा सवाल यही है कि महामारी में तबाह होती जिंदगियों को उबारने के लिए भारत की अर्थव्यवस्था का क्या हाल-चाल है?

तो अर्थव्यवस्था का हाल बताने के लिए वित्त वर्ष 2020-21 के जीडीपी के आंकड़े जारी हुए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था में 7.3 फ़ीसदी का कॉन्ट्रैक्शन यानी संकुचन हुआ है। आसान भाषा में समझा जाए तो यह कि भारत की अर्थव्यवस्था की जिस जमीन से शुरुआत होती है वहां से भारत की अर्थव्यवस्था गिरकर -7.3 फ़ीसदी पर पहुंच चुकी है। यानी भारत की अर्थव्यवस्था की गाड़ी बढ़ाने के लिए सबसे पहले तो 7.3 फ़ीसदी की खाई को पाटना पड़ेगा। 

भारत की अर्थव्यवस्था साल 2019-20 के वित्त वर्ष में तकरीबन 145 लाख करोड़ रुपए की थी यह घटकर साल 2020-21 के वित्त वर्ष में तकरीबन 135 लाख करोड़ रुपए की हो गई है (स्थाई मूल्य केआधार पर)। आजादी से लेकर अब तक जीडीपी की यह सबसे बड़ी गिरावट है। अब तक पांच बार भारत की अर्थव्यवस्था संकुचित हुई है। लेकिन यह संकुचन उन सब में सबसे बड़ा है।

जारी किए गए आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि भारत में अर्थव्यवस्था के सप्लाई साइड से जुड़े क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई है लेकिन डिमांड साइड रुका हुआ। साल 2021 के वित्त वर्ष के चौथे तिमाही में विनिर्माण, कंस्ट्रक्शन, माइनिंग, यूटिलिटी, मशीनरी जैसे सप्लाई साइड से जुड़े क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई लेकिन डिमांड साइड से जुड़ा क्षेत्र यानी निजी उपभोग साल 2020 के तीसरी तिमाही से भी कम रहा, जिसके बाद लॉकडाउन लगा था। बहुत सारे जानकार यह मान रहे थे की 2021 की चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था उभर रही है। लेकिन प्राइवेट कंजम्पशन के लिहाज से देखा जाए अर्थव्यवस्था में कोई उधार नहीं हुआ। अर्थव्यवस्था उस जगह तक नहीं पहुंच पाई जो कोरोना से पहले थी। आसान भाषा में समझा जाए तो इन सारी बातों का यही मतलब है कि उत्पादन तो हुआ है लेकिन लोगों की जेब में पैसा नहीं है कि वह खरीदारी कर पाए। इसके तमाम कारण हो सकते हैं। लेकिन जिन कारणों से कोई इनकार नहीं कर सकता वह यह है कि लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी है। बहुत सारे लोग बेरोजगार हुए हैं। बहुत बड़ी आबादी पैसे की कमी से जूझ रही है। 

इन सबके लिए एक लाइन में महामारी को दोष दिया जा सकता है। लेकिन याद कीजिए कोरोना के पहले मंदी की खबर कि कार से बाज़ार भरे हैं लेकिन उन्हें कोई खरीदने वाला नहीं है। पारले जी के बिस्कुट दिख नहीं रहे हैं। लेकिन सरकार यह मानने से साफ इंकार कर रही थी की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। बेकारी की दर 45 साल में सबसे अधिक होकर 6.1 फ़ीसदी हो चुकी थी और यह रुकने का नाम नहीं ले रही थी। फरवरी 2019 में यह 8.75 फ़ीसदी के रिकॉर्ड पर पहुंच गई। साल 2013 से लेकर 2020 के बीच प्रति व्यक्ति खर्च बढ़ोतरी दर 7 फ़ीसदी सालाना रही और प्रति व्यक्ति आय बढ़ोतरी दर 5.5 फ़ीसदी रही। यानी खर्चा कमाई से ज्यादा हो रहा था। बचत कम हो रही थी। कर्ज का बोझ बढ़ रहा था। बैंक टूट रहे थे। एक दशक पहले जो कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त बचत हुआ करती थी वही बचत पिछले 10 सालों में कम पड़ लगी और कर्ज का आकार दोगुना हो गया।

यानी अर्थव्यवस्था पहले से ही डूबी हुई थी और इस डूबी हुई अर्थव्यवस्था में कोरोना महामारी आई और अर्थव्यवस्था को वहां ले गई जहां वह आजादी के बाद अब तक नहीं पहुंची थी।इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार के 7 सालों के दौरान तकरीबन 5 साल भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई है।

भारत की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी परेशानी उसका मांग पक्ष है। लोगों के पास पैसे नहीं है कि वह खर्च करें।यानी अर्थव्यवस्था में खरीदने वाले खरीदारी नहीं कर रहे हैं। इस मांग पक्ष को बढ़ाने के कई तरीके हो सकते हैं। जिनके पास रोजगार नहीं है, उन्हें रोजगार दिया जाए।इसके अलावा दूसरी तरीके भी अपनाए जा सकते हैं। लेकिन इन सबके लिए पैसे की जरूरत पड़ेगी। पैसे को लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी से लेकर उद्योगपति उदय कोटक तक का कहना है कि भारत सरकार को नोट छापना शुरू कर देना चाहिए।

अभिजीत बनर्जी तो सीधे कहते हैं कि नोट छाप कर लोगों के हाथ में बांटना शुरू कर देना चाहिए। लेकिन नोट छापने वाला जैसे ही तर्क सामने आता है। पूंजीवादी अखबारों में कॉलम लिखने वाले बड़े-बड़े महारथी कहने लगते हैं कि इससे कोई फायदा नहीं होगा बल्कि  और अधिक महंगाई बढ़ेगी।

अर्थव्यवस्था का बेसिक फंडा क्या होता है कि जब उत्पादन के साधन अपनी पूरी क्षमता में काम नहीं कर रहे होते हैं या उत्पादन कम होता है और पैसे का प्रवाह लोगों के बीच ज्यादा होता है तो महंगाई बढ़ जाती है। इस बेसिक बात के अलावा और भी दूसरी चीजें भी महंगाई बढ़ाने का काम करती हैं। लेकिन बेसिक बात यही है कि जब सप्लाई कम हो और डिमांड बहुत ज्यादा हो तब महंगाई बढ़ती है। हाल फिलहाल अर्थव्यवस्था ऐसी है कि उत्पादन के साधन पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं और लोगों के जरिए मांग नहीं बन पा रही है क्योंकि लोगों के पास पैसा नहीं है। अगर लोगों के पास पैसा पहुंचा दिया जाए तो उत्पादन के साधन भी काम करेंगे और अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी। महंगाई दूसरे कारकों से बढ़ सकती है लेकिन नोट का सर्कुलेशन बढ़ाने से नहीं बल्कि से अर्थव्यवस्था को ही गति मिलेगी। लोगों को रोजगार मिल सकता है लोगों की जीवन यापन में सुधार हो सकता है और उद्योग धंदे आगे बढ़ सकते हैं। 

वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार औनिंद्यो चक्रवर्ती इसे बड़े ही शानदार तरीके से समझाते हैं कि मान लीजिए कि एक फैक्ट्री में हफ्ते भर में 100 कार बनती है। लेकिन मंदी की वजह से हफ्ते भर में केवल 60 कार बन पा रही है। हफ्ते भर में ₹10 हजार का कच्चा माल लगता है। लेकिन जमीन का किराया फैक्ट्री मशीन कर्मचारियों की तनख्वाह सबको जोड़ कर हफ्ते भर में ₹3 लाख का स्थाई खर्च आता है। मतलब यह की कंपनी 100 कार बनाए या 60 कार बनाएं हफ्ते भर में उसे ₹3 लाख का भुगतान करना ही करना है। यानी अगर 100 कार बनते हैं तो कंपनी को एक कार बनाने में कम लागत लगेगी, कंपनी मुनाफे में रहेगी, उसे घाटा नहीं सहना पड़ेगा और कर्मचारियों को भी नौकरी से बाहर नहीं निकाला जाएगा। यह सब तभी हो पाएगा जब लोगों की क्रय शक्ति किसी तरीके से बढ़ी हो। लोगों की जेब में पैसा हो ताकि वह खरीदारी कर पाएं। 

ढंग से कहा जाए तो यह कि मांग की कमी से जूझ रही अर्थव्यवस्था में जब नोट छाप कर पैसे की सप्लाई बढ़ाई जाती है तो इसका मतलब यह नहीं होता कि महंगाई बढ़ेगी। बल्कि महंगाई कम होती है। रोजगार के साधन रोजगार से जुड़ जाते हैं। अर्थव्यवस्था गति पकड़ने लगती है। 

लेकिन इस सुझाव का कहीं से भी है मतलब नहीं है कि नोट छाप कर बाजार पर छोड़ दिया जाए कि वह जो मर्जी सो निर्णय ले। ऐसा घातक साबित हो सकता है। अनिंदो चक्रवर्ती कहते हैं कि सरकार को यह तय करना पड़ेगा कि वह पैसे का इस्तेमाल किस तरह से करें? किन जगहों पर पैसा पहुंचाए? कहां पर मांग बढ़ाने से अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी? कहां पर पैसा भेजने से मांग बढ़ेगा और रोजगार मिलेगा? यह सब तय करने की क्षमता और योजना बनाकर लागू करने का अधिकार केवल सरकार के पास है। अगर बाजार के भरोसे छोड़ दिया जाएगा तो नोट छापने का मतलब भी वहीं रह जाएगा की पूंजी पतियों की जेब भरी जा रही है और भारत को घनघोर आर्थिक असमानता की खाई में धकेला जा रहा है।

indian economy
economic crises
Economic Recession
poverty
unemployment
Nirmala Sitharaman
Narendra modi
modi sarkar

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License