NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
गाय और जस्टिस शेखर: आख़िर गाय से ही प्रेम क्यों!
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गाय पर एक नई बहस छेड़ दी है। आज जिस तरह का माहौल है, उसमें यह टिप्पणी केंद्र की बीजेपी सरकार को एकदम मुफ़ीद बैठ रही है।
शंभूनाथ शुक्ल
02 Sep 2021
गाय और जस्टिस शेखर: आख़िर गाय से ही प्रेम क्यों!

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कही है। उत्तर प्रदेश गो-वध निषेध क़ानून में बंद ज़ावेद नाम के एक शख़्स की ज़मानत याचिका रद्द करते हुए जस्टिस यादव ने यह बात कही। उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा कि गायों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार एक बिल लाकर गो-वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दे। साथ ही उसे राष्ट्रीय पशु भी घोषित कर दे। उन्होंने कहा, गाय को किसी धर्मविशेष से न जोड़ें बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है गाय। जस्टिस यादव के अनुसार वैज्ञानिकों का भी मानना है कि गाय अकेला ऐसा पशु है जो आक्सीजन छोड़ती है और ग्रहण करती है। उन्होंने कहा कि जीवन का अधिकार मारने के अधिकार से ऊपर है। जबकि गाय मार कर खाने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस यादव मानते हैं कि बूढ़ी गाय भी हमारे लिए कई तरह से उपयोगी है। जस्टिस यादव ने यह टिप्पणी बुधवार एक सितम्बर को की।

जस्टिस शेखर कुमार यादव ने गाय पर एक नई बहस छेड़ दी है। केंद्र में बीजेपी सरकार का गठन होते ही गाय को लेकर आरोप-प्रत्यारोप और समुदाय विशेष की लिंचिंग का ऐसा दौर शुरू हुआ था, जिससे गाय की छवि एक आवारा और खल पशु जैसी हो गई थी। अपने वोट बैंक को पुख़्ता करने के लिए बीजेपी सरकारों ने गाय पालकों को पूरी छूट दी कि वे अपनी दुधारू गायों को किसी किसान के खेत पर चरने के लिए छोड़ दे। वह न तो उसे लाठी मार कर खदेड़ सकता है न इसकी शिकायत कांजी हाउस वालों को कर सकता है। सिर्फ़ अपनी बर्बादी का ही जश्न मना सकता है। गायों के यदि बछड़ी हुई तब तो गो-पालक उसे रखेगा और बछड़ा हुआ तो उसे लावारिस छोड़ देता है। क्योंकि कृषि कार्यों में बछड़े की उपयोगिता नहीं रही है। ये सारा गो-वंश चाहे शहरों में हो या गाँवों में मरकहा बैल बन कर अपनी सींगें इधर-उधर घुसेड़ा करता है।

पिछले दिनों मेरा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई इलाक़ों में जाना हुआ। मैं सड़क मार्ग से गया। यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे में तो कोई गाय नहीं चढ़ी लेकिन जैसे ही मैं इटावा ज़िले में सैफ़ई के क़रीब एक्सप्रेस वे से उतर कर एनएच-टू पर आया तो गाड़ी में झटके से ब्रेक लगाना पड़ा। बीच सड़क पर गाएँ बेलगाम इधर से उधर ख़रामा-ख़रामा वॉक कर रही थीं। इस एनएच-टू पर सौ की स्पीड एलाऊ है क्योंकि यह टोल रोड है, अब ऐसे में किसी कार को कोई गाय हिट कर दे तो कार तो पलटेगी ही साथ में पास के गाँव वाले फ़ौरन कार में सवार घायलों की मदद की बजाय उनकी पिटाई शुरू कर देंगे। आज कल कार चलाते समय आदमी बचाने से अधिक ध्यान गाय या बैल बचाने पर देना पड़ता है।

एनएच-टू तो ख़ैर नेशनल हाईवे है स्टेट हाई वे का हाल तो और बुरा है। कानपुर से कलिंजर जाने के लिए मैंने वाया बिंदकी, ललौली, तिंदवारी, बांदा, नरैनी का रूट लिया था। यह रास्ता रोड़ी और मौरम से लदे ट्रकों की आवाजाही के कारण यूँ भी टूटा-फूटा है ऊपर से गायों के झुंड सड़क पर बैठे रहते हैं।

यह कोई यूपी का ही नहीं बल्कि एमपी में हाल और बुरा है। मज़े की बात कि मध्य प्रदेश में सड़कें यूपी की तुलना में बेहतर हैं। लेकिन स्पीड से आती हुई गाड़ियों के समक्ष जब कोई गाड़ी ब्रेक लगाता है तो साँस रुक जाती है क्योंकि टू-लेन सड़क पर पीछे आ रहे वाहन द्वारा ठोक देना बिल्कुल स्वाभाविक लगता है। मैहर से मैं रात आठ बजे निकला था, मुझे वहाँ से 125 किमी दूर चित्रकूट पहुँचना था। आज से 15 वर्ष पहले इस रोड पर डकैत ददुआ का आतंक था और दिन को भी लोग यहाँ गुजरने से डरते थे मगर अब गायों का भय अधिक है। सतना के बाद तो यह रास्ता जंगल का है। तेंदुआ, भालू और टाइगर के मिलने की आशंका रहती है। जगह-जगह इस आशय के बोर्ड लगे हैं। लेकिन मुझे सिवाय झुंड में बैठी गायों के कोई हिंसक पशु नहीं मिला। पूरी की पूरी सड़क को घेर कर बैठा गो-वंश। कई जगह तो स्थिति यह होती है कि सामने से आने वाला ट्रक ब्रेक नहीं लगा पाता और सड़क किनारे के खड्ड में गिर जाता है। यहाँ गायों का ऐसा आतंक है कि उनके झुंड को देख कर तेंदुआ और बाघ भी रास्ता बदल लेते हैं।

ख़ैर, गाय-गाथा से महत्वपूर्ण है न्यायमूर्ति की टिप्पणी। उन्होंने गाय को जीने का अधिकार देने और इस संदर्भ में केंद्र सरकार को एक बिल लाने की बात कही है। आज जिस तरह का माहौल है, उसमें यह टिप्पणी केंद्र की बीजेपी सरकार को एकदम मुफ़ीद बैठ रही है। समीप के अफ़ग़ानिस्तान में जिस तरह से तालिबान क़ाबिज़ हुए हैं, उससे सरकार को हिंदुओं की आत्म तुष्टि के लिए ऐसा बिल लाने के लिए प्रेरित कर रही है। हालाँकि देश के अधिकांश राज्यों में गो-वध पर पाबंदी है। देश के 29 राज्यों में से 24 पर गाय का मांस नहीं बिक सकता। यूँ एक सत्य यह भी है कि मुस्लिम परिवारों में गाय का मांस खाने का चलन नहीं है। दो बातें हैं। एक तो अधिकांश मुस्लिम जो पहले हिंदू थे, वे धर्मांतरण के बाद भी गाय का मांस नहीं खाने की अपनी परंपरा साथ लाए और दूसरा कि 13 वीं शताब्दी से ही दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने गाय काटने को हतोत्साहित किया। बादशाह अकबर के समय तो उस पर प्रतिबंध था ही बहादुर शाह ज़फ़र ने गो-वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी थी। गाय का राजनीतिक इस्तेमाल अंग्रेजों ने किया, जो गाय और सूअर दोनों खाते थे। गाय को लेकर हिंदुओं की संवेदनशीलता तभी बढ़ी। किंतु हिंदू-मुस्लिम विद्वेष बढ़ाने के लिए आज मुसलमानों को गाय खाने वाला बताया जा रहा है।

कबीर ने लिखा है- “गाय बधे सो बधिक कहावे, ये क्या इनसे छोटे, क़हत कबीर सुनो भाई साधो कलि मा बाँभन खोटे”। यहाँ बाँभन से आशय वह मानसिकता है जो श्रेष्ठ होने के चक्कर में लोगों को परस्पर लड़वाती है। दुर्भाग्य से यह मानसिकता आजकल कुछ अधिक प्रभावी हो गई है।

शुक्र यह है कि न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने सिर्फ़ टिप्पणी की है फ़ैसला नहीं सुनाया। अभी तक भारत में राष्ट्रीय पशु बंगाल टाइगर है। अप्रैल 1973 में बाघों के संरक्षण के लिए जब रिज़र्व टाइगर बनाए गए थे तब उसे राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिला था। बाँग्लादेश में भी बंगाल टाइगर को ही राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिला हुआ है। गाय को नेपाल में राष्ट्रीय पशु का स्थान मिला हुआ है तथा स्पेन में बैल को। अब भारत में गायों की न तो कमी है और न ही वह लुप्तप्राय है। गाय तो यूँ भी पालतू पशु है और दुधारू भी इसलिए गाय और भैंस की उपयोगिता कभी समाप्त नहीं होगी। लेकिन गाय को अकेला कर उसे लेकर इतना संवेदनशील हो जाने से गाय नहीं बचेगी उलटे वह एक समुदाय के लिए खल बन जाएगी। कोई भी कह सकता है कि गाय और भैंस जब अपनी उपयोगिता और पालतू पशु होने में समानधर्मा हैं तो सिर्फ़ गाय के प्रति यह ममत्त्व क्यों?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Allahabad High Court
Justice Shekhar Kumar Yadav
BJP
BJP government
cows
cow politics

Related Stories

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

त्वरित टिप्पणी: जनता के मुद्दों पर राजनीति करना और जीतना होता जा रहा है मुश्किल


बाकी खबरें

  • बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    18 May 2022
    ज़िला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए स्वीकृत पद 1872 हैं, जिनमें 1204 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं, जबकि 668 पद खाली हैं। अनुमंडल अस्पतालों में 1595 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 547 ही पदस्थापित हैं, जबकि 1048…
  • heat
    मोहम्मद इमरान खान
    लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार
    18 May 2022
    उत्तर भारत के कई-कई शहरों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चढ़ने के दो दिन बाद, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ रही प्रचंड गर्मी की मार से आम लोगों के बचाव के लिए सरकार पर जोर दे रहे हैं।
  • hardik
    रवि शंकर दुबे
    हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?
    18 May 2022
    गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। हार्दिक पटेल ने पार्टी पर तमाम आरोप मढ़ते हुए इस्तीफा दे दिया है।
  • masjid
    अजय कुमार
    समझिये पूजा स्थल अधिनियम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां
    18 May 2022
    पूजा स्थल अधिनयम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां तब खुलकर सामने आती हैं जब इसके ख़िलाफ़ दायर की गयी याचिका से जुड़े सवालों का भी इस क़ानून के आधार पर जवाब दिया जाता है।  
  • PROTEST
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा
    18 May 2022
    पंजाब के किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन राज्य की राजधानी जाने से रोके जाने के बाद वे मंगलवार से ही चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठ गए हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License