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देहरादून : मुश्किल में कश्मीरी छात्र, लेट फीस और परीक्षा का संकट
"कश्मीर घाटी से यहां पढ़ने आने वाले ज्यादातर स्टुडेंट गरीब तबके के होते हैं या फिर उनके माता-पिता कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। प्रतिबंधों के चलते इस बार वहां खेती में भी बहुत नुकसान हुआ है। जिसके चलते कश्मीरी स्टुडेंट अपनी फीस जमा करने की ही स्थिति में नहीं हैं।"
वर्षा सिंह
02 Dec 2019
Nasir
तस्वीर : देहरादून में जम्मू-कश्मीर स्टुडेंट्स एसोसिएशन के प्रवक्ता नासिर खुहामी की फेसबुक वॉल से साभार

देहरादून में पढ़ रहे कश्मीरी छात्र इस समय लेट फीस और परीक्षा में न बैठने देने को लेकर मुश्किल में आ गए हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और इसके बाद बदले हालात, बंद, संचार सेवाओं के ठप होने से बहुत से छात्र-छात्रा समय पर अपने कॉलेजों में नहीं पहुंच सके। जिससे कॉलेजों में उनकी अटेंडेंस कम हो गई। कक्षा से अनुपस्थित रहने और समय पर फीस जमा न कर पाने की वजह से कश्मीरी स्टुडेंट्स पर दस से बारह हज़ार रुपये तक का फाइन लगा दिया गया है। कश्मीर के हालात ने पहले ही परिवारों को आर्थिक मुश्किल में डाल दिया है। फीस, जुर्माने और परीक्षा में न बैठ पाने की स्थिति से इन छात्र-छात्राओं का मनोबल गिर रहा है।

देहरादून में जम्मू-कश्मीर स्टुडेंट्स एसोसिएशन के प्रवक्ता नासिर खुहामी बताते हैं कि गर्मियों में सेशन खत्म होने के बाद 70 से 80 प्रतिशत स्टुडेंट्स घर गए हुए थे। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया और राज्य में कई तरह के प्रतिबंध लग गए, उसके बाद कश्मीरी स्टुडेंट्स समय पर अपने कॉलेज नहीं आ सके। इस दौरान इंटरनेट बंद रहने और संचार माध्यमों के ठप होने की वजह से स्टुडेंट्स अपनी फीस भी जमा नहीं कर सके।
 
नासिर कहते हैं कि डेढ़ महीने से अधिक समय तक कश्मीरी बच्चे अपने कॉलेजों से अनुपस्थित रहे। करीब दस दिन पहले परीक्षा को लेकर फॉर्म भरे जाने लगे तो कॉलेज वालों ने कहा कि लेट फीस जमा करने की वजह से जुर्माना (फाइन) देना होगा। ये फाइन कुछ कॉलेज में सौ रुपये प्रति दिन है। कुछ जगह पर इससे भी अधिक।
 
नासिर कहते हैं कि कश्मीर घाटी से यहां पढ़ने आने वाले ज्यादातर स्टुडेंट गरीब तबके के होते हैं या फिर उनके माता-पिता कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। प्रतिबंधों के चलते इस बार वहां खेती में भी बहुत नुकसान हुआ है। जिसके चलते कश्मीरी स्टुडेंट अपनी फीस जमा करने की ही स्थिति में नहीं हैं। नासिर बताते हैं कि लोन लेकर पढ़ने वाले बच्चे भी हैं। कॉलेज वाले फीस टाइम पर भरने को लेकर ज़ोर दे रहे हैं। जबकि तीन महीने से जिनका कारोबार ठप पड़ा हो, वो बड़ी मुश्किल से अपनी रोजी रोटी चला रहा है। फीस भरना ही अपने आप में बड़ी समस्या हो गई है। लेट फीस ने तो इस समस्या को और बढ़ा दिया।
 
नासिर के मुताबिक मौटे तौर पर 300 स्टुडेंट के सामने इस तरह की स्थिति है। कश्मीरी स्टुडेंट्स को पांच हजार से बारह हजार रुपये तक लेट फीस देनी पड़ रही है। देहरादून के बीएफआईटी कॉलेज, कुकरेजा मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, माया कॉलेज, डीबीआईटी, उत्तरांचल कॉलेज, साईं इंस्टीट्यूट जैसे कई कॉलेज हैं जहां कश्मीरी बच्चे इंजीनियरिंग, मेडिकल और सामान्य कोर्सेस में पढ़ाई कर रहे हैं।
 
बीएफआईटी कॉलेज के एक स्टुडेंट (नाम देने पर कॉलेज में मुश्किल आ सकती है) पर पांच हज़ार रुपये का जुर्माना लगा है। वे कहते हैं कि हमने कॉलेज में बात की है तो प्रबंधन ने प्रार्थना पत्र देने को कहा है। हो सकता है कि वे लेट फीस माफ कर देंगे। हालांकि अभी तक ये तय नहीं हुआ है।
 
माया कॉलेज से बीएससी कर रहे एक स्टुडेंट पर सात हज़ार रुपये जुर्माना लगा है। वो उम्मीद कर रहा है कि राज्य सरकार इस मामले में कोई ठोस कदम उठाएगी।
 
देहरादून के नौगांव क्षेत्र स्थित डीबीआईटी कॉलेज के एक स्टुडेंट ने बताया कि मेरी अटेंडेंस किसी तरह 60 प्रतिशत हो गई इसलिए मैं परीक्षा दे सकूंगा। लेकिन मेरे साथ के बहुत से स्टुडेंट्स हैं जो कश्मीर के ऐसे हिस्सों से हैं जहां हालात काफी दिनों बाद कुछ सामान्य हुए और वे कॉलेज आ सके। वह बताते हैं कि उनके कॉलेज में तकरीबन 70 कश्मीरी स्टुडेंट होंगे जिनमें से करीब 25-30 स्टुडेंट कम अटेंडेंस के चलते परीक्षा नहीं दे पा रहे।
 
वह बताते हैं कि जिन स्टुडेंट्स की उपस्थिति 60 प्रतिशत नहीं बन रही है, उन्हें परीक्षा में नहीं बैठने दिया जा रहा। बहुत से बच्चों ने लेट फीस जमा भी कर दी है। लेकिन कुछ बच्चों के हालात ऐसे नहीं है कि वे अपनी पढ़ाई की फीस दे सकें, ऐसे में लेट फीस जमा करना तो और मुश्किल है। डीबीआईटी का ये स्टुडेंट बताता है कि कुछ बच्चों की लेट फीस 12 हज़ार रुपये तक हो गई है।
 
इसी संस्थान का एक अन्य कश्मीरी छात्र (नाम न बताने की शर्त पर) कहता है कि अटेंडेंस कम होने के चलते उनपर 12 हज़ार रुपये लेट फीस लगा दी है और परीक्षा में भी नहीं बैठने दिया जा रहा। वह कहते हैं कि दक्षिण कश्मीर के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां हालात बहुत खराब रहे और तीन महीने तक कामकाज पूरी तरह ठप रहा। हम घर से बाहर भी नहीं निकल सकते थे। लेकिन कॉलेज प्रशासन कहता है कि कश्मीर के कुछ बच्चे आए तो आप क्यों नहीं आए।

उन्हें नहीं पता कि कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग हालात थे। वह बताते हैं कि मैं डिग्री छोड़ दूंगा लेकिन लेट फीस नहीं दे पाउंगा। उनकी पिछले दो सेमिस्टर की करीब 70 हज़ार रुपये फीस पहले ही नहीं जमा हो सकी है। वह कहते हैं कि हमारा व्यापार पूरी तरह चौपट रहा। तीन महीने तक हमारी दुकान बंद रही। हमारे सेब के बगीचों में भी इस बार बहुत नुकसान हुआ। हमारे मां-बाप कहां से पैसे लाएं। लेकिन कॉलेज वालों को इस सबसे कोई लेना देना नहीं। ये हमारा दर्द नहीं समझते। वह बताते हैं कि बहुत से बच्चे जनवरी से शुरू हो रही परीक्षा नहीं दे पाएंगे और उन्हें अगले सेमिस्टर का इंतज़ार करना पड़ेगा। इस सब में हमारी पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है।
 
पंजाब के कॉलेजों में भी इसी तरह की स्थिति बनी। लेकिन वहां के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस पर तत्काल प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि वे अपने राज्य में कश्मीरी बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं होने देंगे। कश्मीर में प्रतिबंध के चलते वहां के स्टुडेंट्स अपनी कक्षाओं में नहीं आ सके। जिसमें उनकी कोई गलती नहीं है। इसलिए उन्हें लेट फीस या कम अटेंडेंस की वजह से परीक्षा से बाहर नहीं किया जाएगा।
 
डीबीआईटी का ये स्टुडेंट कहता है कि इससे पहले फरवरी में भी पुलवामा घटना के बाद देहरादून में कश्मीरी बच्चों के साथ मारपीट हुई थी। उस घटना के बाद कश्मीरी लोगों ने देहरादून के बजाए पंजाब में ही अपने बच्चों का दाखिला दिलाना उचित समझा। उनका कहना है कि इस वर्ष के शैक्षिक सत्र में देहरादून में कश्मीरी स्टुडेंट्स के एडमिशन में भी गिरावट आई है। कश्मीर के लोगों ने पंजाब में एडमिशन लेना ज्यादा मुनासिब समझा। क्योंकि वो जगह उन्हें ज्यादा सुरक्षित महसूस हुई। पुलवामा के बाद  पंजाब में कश्मीरी बच्चों को शेल्टर दिया गया। उनकी सुरक्षा का ख्याल रखा गया। जबकि उत्तराखंड में हिंदूवादी संगठनों ने काफी शोरशराबा किया था। ये स्टुडेंट कहता है कि ऐसा करने पर उत्तराखंड का भी नुकसान होगा। कश्मीरी स्टुडेंट यहां पढ़ने नहीं आएंगे।
 
नासिर खुहामी कहते हैं कि लेट फीस और कक्षा से अनुपस्थिति को लेकर हमने उत्तराखंड सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक जी से बात की है। लेकिन सरकार की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। वे शांत बने हुए हैं। पांच दिसंबर से बहुत से बच्चों की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। जबकि बच्चों को कहा गया है कि फीस भरो तभी परीक्षा में बैठने दिया जाएगा नहीं तो घर जाओ।
 
यहीं, साईं मेडिकल इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल संध्या डोगरा कहती हैं कि फीस जमा करने का निर्णय गढ़वाल विश्वविद्यालय का है। वे जो कहते हैं हम वही करते हैं। संध्या कहती हैं कि सेमेस्टर कोर्स की फीस ऑन लाइन जमा होती है। फॉर्म भी ऑनलाइन भरे जाते हैं। उसी के बाद एडमिट कार्ड जारी होते हैं। इसमें उनका संस्थान कुछ नहीं कर सकता।

अपडेट : राज्य सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने न्यूज़क्लिक से कहा कि सरकार कश्मीरी स्टुडेंट्स के मामले में एक-दो दिन के अंदर कार्रवाई करेगी। उन्होंने कहा कि रविवार का दिन होने की वजह से कॉलेज में बात नहीं हो सकी। परीक्षाएं शुरू होने को है ऐसे में उनकी कोशिश होगी कि जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान किया जाए।

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