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भारत
राजनीति
गृह मंत्रालय ने दिल्ली दंगों को बेरोकटोक जारी रहने दिया: सीपीएम 
इस वर्ष की शुरुआत में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई क्रूर हिंसा को आमजन की स्मृतियों में बनाए रखने के उद्देश्य से सीपीआई(एम) द्वारा संकलित रिपोर्ट में हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े किये गये हैं। 
सुमेधा पाल
10 Dec 2020
Delhi violence

जैसा कि यह वर्ष अपने समापन के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुका है लेकिन स्वतंत्र जाँच को लेकर कोई संकेत नजर में नहीं है। ऐसे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने आज एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें फरवरी में हुए दिल्ली दंगों को लेकर नए सिरे से स्वतंत्र जाँच की जरूरत पर जोर देते हुए पीड़ितों के आंकड़े और व्यापक मामलों को जारी करने का काम किया गया।

इस साल फरवरी माह में हुए दंगों में छह दिनों तक जारी रही इस हिंसा में 53 से भी ज्यादा मौतों ने राष्ट्रीय राजधानी में रह रहे अल्पसंख्यकों के जीवन पर लंबे समय तक बने रहने वाला प्रभाव छोड़ा है। आज भी कईयों को उत्पीडन और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ रहा है।

यह रिपोर्ट पुलिस की चार्जशीट के जरिये उपलब्ध आंकड़ों, अदालत के जवाबों और केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा कानून और प्रशासन को लेकर संकलित आंकड़ों के जरिये प्रासंगिक सवालों को उठाने का काम करती है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली पुलिस द्वारा हिंसा को रोकने की कोशिशें नाकाम रहीं और छह दिनों तक उस हिंसा को “अबाध” गति से जारी रहने दिया गया।

23 फरवरी को, जिस दिन दंगों की शुरुआत हुई थी – उसी दिन 700 से भी अधिक संकटकालीन फोन आने के बावजूद सिर्फ 450 पुलिस कर्मी ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मौजूद थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय द्वारा हालात को काबू में रखने के लिए सीमित पुलिस कर्मियों को ही तैनात किया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार 39 ख़ुफ़िया सूचनाओं की उपलब्धता के बावजूद यह सब घटित हुआ। इतना ही नहीं बल्कि दूसरे दिन भी पुलिस ने कर्फ्यू नहीं लगाया।

रिपोर्ट में इस बात को दर्शाया गया है कि हिंसा के दूसरे दिन (24 फरवरी) 1,393 पुलिस कर्मियों की मौजूदगी के बावजूद हिंसात्मक घटनाओं में और भी अधिक तेजी देखने को मिली, और अधिक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, और हथियारबंद भीड़ द्वारा बेखटके दर्जनों घरों और दुकानों में या तो तोड़फोड़ की गई या उन्हें जला कर ख़ाक कर दिया गया। 

नीचे दी गई तालिका को पुलिस की ओर से अदालत के समक्ष प्रस्तुत किये गए साक्ष्यों के आधार पर संकलन और रिपोर्ट में उद्धृत किया गया है। यह प्रदर्शित करता है कि इस इलाके में हुई बेरोकटोक हिंसा पर अच्छी-खासी संख्या में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती सिर्फ तीसरे या चौथे दिन में जाकर ही प्रभावी साबित हो सकी, जो कि इस ढिलाई के पीछे के कारणों पर सवाल उठाती है।

रिपोर्ट को जारी करने के अवसर पर बोलते हुए सीपीआई(एम) की पोलितब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने कहा है कि: “यह दिल्ली पुलिस की ख़ुफ़िया जानकारी के मामले में बहुत बड़ी असफलता थी, क्योंकि शेरपुर चौक से ही भीड़ ने उग्र रूप धारण कर लिया था, जिसमें लोगों की दुकानों और घरों को आग के हवाले करने से लेकर कई लोगों की निर्ममता से हत्या करने से लेकर कईयों पर हमले को अंजाम दिया गया था। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के लगातार अपील के बावजूद पुलिस बल की उपस्थिति में वृद्धि नहीं की गई थी।” 

उन्होंने आगे कहा “यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक राजनीतिक संदेश था: सीएए के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन नहीं होने दिया जायेगा। वास्तव में यह गृह मंत्रालय की ओर से हिंसा को लगातार जारी रखने को लेकर जानबूझकर किया गया प्रयास था।”

रिपोर्ट उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सामाजिक-आर्थिक हालात को भी बयां करता है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद भी बीजेपी ने अपने सम्बद्ध संगठनों के साथ मिलकर माहौल को सांप्रदायिक रंग देना जारी रखा था। जिन लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को इस हिंसा में खोया है, उन परिवारों की गवाहियों को भी इस रिपोर्ट में सूचीबद्ध किया गया है।

एक वीडियो में युवाओं को पुलिसकर्मियों द्वारा राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किये जाने वालों में से एक फैज़ान- जिसकी पुलिस की बर्बरता के बाद मौत हो गई थी की माँ किस्मतून, भी रिपोर्ट के जारी किये जाने के अवसर पर मौजूद थीं। उनका कहना था “मैं अपने बेटे को देख तक नहीं पाई। पुलिस ने उसे सड़कों पर यातनाएं दीं और बाद में पुलिस स्टेशन में ले जाकर भी उस पर अत्याचार ढाए। उसका कुसूर सिर्फ इतना था कि वो एक मुसलमान था। काश पुलिस ने उसे यातना देकर मारने के बजाय उसे गोली से मार दिया होता। मुझे अब सिर्फ न्याय की दरकार है।”

रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के आचरण को लेकर स्वतंत्र जाँच कराये जाने की माँग की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश वी. गोपाला गौड़ा जो इस लांच अवसर पर मौजूद थे ने कहा कि रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीमों ने घर-घर जाकर सूचनाओं को इकट्ठा करने और विवरणों की जाँच का काम किया है। इसके अलावा इस रिपोर्ट को संकलित करने से पहले जो लोग व्यवसाय चला रहे हैं उनसे इन तथ्यों की पुष्टि की गई है। 

उनके अनुसार “वे लोग जिनके उपर कानून और व्यवस्था की स्थिति और कानून के राज को स्थापित करने की जिम्मेदारी थी, वे ऐसा कर पाने में विफल रहे। इस बारे में सूचना होने पर भी कोई कार्यवाई नहीं की गई। ये वे सवाल हैं जिसको लेकर प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं, और जिस पर सरकार को खुद को पाक-साफ़ साबित करना होगा।”

रिपोर्ट को जारी करने वाली टीम के सदस्यों की ओर से इस बात पर जोर दिया गया कि इसका उद्देश्य आमजन की स्मृतियों को जिन्दा रखने और सरकार के उपर स्वतंत्र जाँच कराने को लेकर दबाव बनाने एवं भारत के नागरिकों के प्रति जवाबदेह बने रहने से प्रेरित है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Delhi Riots: Home Ministry let Violence Continue Unabated, says CPI(M)

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