NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
6 दिसंबर महज़ एक तारीख़ रह गई : अयोध्या के चेहरे पर नहीं कोई शिकन
याद उन्हें है, जिन्हें लगता है कि इस दिन 16वीं सदी की एक मस्जिद ताक़त के बल पर ढहा दी गई और कोई दंडित नहीं हुआ या फिर उन्हें जिन्हें यह एहसास है कि यह महज़ एक भवन को ढहाना नहीं था...।
सुमन गुप्ता
06 Dec 2021
Babri Demolition

छह दिसंबर की अयोध्या सरयू के जल की तरह शांत है। वर्ष 2021 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद अब ज्यादातर लोग इस दिन को भूल चुके हैं कि 6 दिसंबर को अयोध्या में क्या हुआ था, जिनके साथ दुःखद स्मृतियां है वे इसे दोबारा याद नहीं करना चाहते हैं।

अयोध्या के लोगों को लगता है कि जब अयोध्या में मीडियाकर्मी आते हैं या पुलिस और सुरक्षाबलों की जांच-पड़ताल, रोक-टोक बढ़ जाती है तब लगता है कुछ है। अभी भी कुछ लोग इस दिन को घर में रहना पसन्द करते हैं कि बाहर कोई बवाल न हो।

याद उन्हें है, जिन्हें लगता है कि इस दिन 16वीं सदी की एक मस्जिद ताकत के बल पर ढहा दी गई और कोई दंडित नहीं हुआ या फिर उन्हें जिन्हें यह एहसास है कि यह महज एक भवन को ढहाना नहीं, देश के संविधान, अदालत की फैसले और संविधान की शपथ लेकर बनी सरकारों के आश्वासन की विश्वनीयता का सवाल है कि जिन लोगों ने ऐसा किया क्या उन्हें कोई दंड मिला, उनका यह सवाल पूरी व्यवस्था का है।

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों ने चैन की सांस ली कि अब अयोध्या युद्ध का मैदान नहीं बनेगा हमारी रोजी-रोटी के आयाम बढ़ेंगे। अयोध्या में बाहर के लोगों की आवाजाही बढ़ने से उनके रोजी रोजगार बढ़ेंगे। इसी सम्भावना में अयोध्या ही नहीं, अयोध्या के आस-पास की जमीनों के दाम आसमान छूने लगे। जमीन घोटाले और भ्रष्टाचार के तमाम उदाहरण सामने आये।

अयोध्या के मंदिरों की जमीनों पर मंदिर हनुमानगढ़ी और आस-पास अब राममंदिर की ओर जाने वाले मार्गों पर सैकड़ों दुकानें अयोध्या के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया हैं अब उनके विध्वंस का समय आ गया है। उनके मालिकों को मुआवजा मिल गया है लेकिन जिनकी रोटी-रोटी चलती थी वे असहाय हैं, कहां जाएं। राममंदिर के लिए चारों ओर सड़कों को चौड़ा किया जाना है। पुराना बस स्टेशन ध्वस्त कर दिया गया है जो बीच शहर में था उसके आस-पास बनी दुकानें भी ध्वस्त हो गईं।

मेले और त्योहारों पर आधारित जीविका चलाने वाले एक हजार परिवार अब जल्द ही अपनी दुकानों से हाथ धो बैठेंगे क्योंकि प्रशासन ने दुकानों मकानों को ढहाकर सड़क को चौड़ा करने की पूरी तैयारी कर ली है। कोरोनाकाल-लॉकडाउन के कारण मामला ठंडा पड़ा था लेकिन अब इनके सिर पर तलवार लटक चुकी है। किसी भी दिन प्रशासन का बुलडोजर इन्हें जमींदोज कर सकता है। इन लोगों ने दो बार इसके विरोध में अयोध्या की पूर्णबंदी की करके अपना प्रतिरोध दर्ज कराया है। लेकिन अब इनके लिए स्थिति यही है ‘होंइहिं वही जो राम रचि राखा।’

अयोध्या के मुसलमानों ने पूरी चुप्पी ओढ़ रखी है। वे चुप हैं, कोई सवाल नहीं। छह दिसंबर के प्रश्न पर टेलरिंग करने वाले सलीम (बदला हुआ नाम) कहते हैं, सब कुछ ठीक है, छह दिसंबर को काहे की बंदी, मस्जिद गिरा दी गई मंदिर बन रहा है। (पहले 1 फरवरी ताला खुलने की तारीख और छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस के दिन मुसलमान अपने दुकान प्रतिष्ठान बंद रखते थे)। अब तो अयोध्या में किसी भी दिन कोई नहीं बंद रखता है। अयोध्या आने वालों की संख्या बढ़ गई है।

बात करने के दौरान ही दो युवा साधु पीला वस्त्र धारण किये हुए दुकान में प्रवेश करते है उन्हें व्यवहार में मिले मलमल के कुर्ते की सही फिटिंग करानी है। पूछने पर बताते है, बड़ा स्थान मंदिर से आये हैं। इन लोगों की सहजता देखते ही बनती है। किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है।

श्रृगारहाट में बर्तन की दुकान चलाने वाले आनन्द कहते हैं, ‘छह दिसंबर तो अब खत्म हो गया। राममंदिर को देखते हुए सारा कार्य हुआ था। अब मंदिर बन रहा है। अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं को प्रतिबंध के कारण परेशानियां होती थीं अब दूर हो गई हैं।’

दीपू पान की दुकान चलाते हैं इनका कहना है लोगों का नजरिया बदल गया है। अब नया रोशन अयोध्या की ओर देखते हैं। पहले हर तरह से परेशानियां होती थीं छह दिसंबर को।’

हनुमानगढ़ी पर प्रसाद की दुकान लगाने वाले बजरंग प्रसाद कहते हैं अब लोगों के दिमाग से उतर चुका है लोग अपने अपने रोजी रोजगार में लग गए हैं जब शासन प्रशासन तैयारियां करता है तब लोगों को पता चलता है कि छह दिसंबर आया है।’

दशरथ महल के पास अपना छोटा सा होटल चलाने वाले विकास कहते हैं, ‘यदि मीडिया या न्यूज में न आये तो लोग भूल जाएं कि छह दिसंबर को क्या हुआ था। पहले पूरी अयोध्या सील हो जाती थी सब कुछ बंद हो जाता था। बहुत परेशानियां होती थीं, अब ऐसा नहीं है।’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ‘यौमें गम’ और ‘शौर्य दिवस’ दोनों के रस्मी आयोजन भी अब अयोध्या में समाप्त हो गए हैं। अयोध्या के लोगों को उम्मीद है कि मंदिर निर्माण के बाद उनके जीवनस्तर में बदलाव आयेगा। दूरगामी व्यापारिक सोच वाले लोगों अयोध्या में जमीनों को बड़ी संख्या में जमीनें खरीद ली हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एक बड़ा कार्यालय भी बन चुका है। आंदोलन चलाने वाले राजनीतिक दल के लोग सत्ता में हैं और मंदिर निर्माण ट्रस्ट में सर्वेसर्वा पदाधिकारी हैं। 1990 में गोलीकांड के समय मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री रहे नृपेन्द्र मिश्र राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष हैं। वहीं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा सरकार और उसके नेता 31 साल पहले हुई मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल में बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए संघर्षरत कारसेवकों पर गोली चलवाने को घटना को सार्वजनिक मंचों पर अपने भाषणों में शामिल कर रहे हैं।

जनता तो शांत है, अब उद्वेलन मौजूदा उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की ओर से है, चुनाव सिर पर हैं। सरकार विकास के दावों से सरोबार है फिर भी मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के उपमुख्यमंत्री और छुटभइये नेताओं को 31 वर्ष पहले हुई गोलीकांड की घटना याद आ रही है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीपोत्सव पर कहा गया यह कथन मायने रखता है विशेषकर कृष्णभक्तों को लेकर कहा गया कथन........अगली कारसेवा जब होगी तब रामभक्तों कृष्ण भक्तों पर गोलियां नहीं चलेंगी पुष्प वर्षा होगी। (3 नवम्बर 2021, अयोध्या)

सरकार के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का ट्वीट है, ‘अयोध्या काशी का भव्य मंदिर निर्माण जारी है, अब मथुरा की तैयारी है। जय श्री राम, जय शिव शम्भू, जय श्री राधेकृष्ण।’ (1 दिसंबर 2021)

‘श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर निर्माण और 6 दिसंबर 1992 एक रथ के दो पहिए की तरह हैं’। (6 दिसंबर, 2021)

भारतीय जनता पार्टी अयोध्या के मामले को दूसरी तरह से चुनाव में उपयोग के तहत अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए गांव-गांव शहर-शहर अपने नेताओं की सभा करा रही है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार क्यों जरूरी है। उसके नेता कहते हैं कि 1990 में यदि भाजपा सरकार रही होती तो रामभक्तों पर गोलियां नहीं चलती। क्या यह भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक एजेण्डे का संकेत है। क्या अयोध्या का एजेण्डा तो मंदिर निर्माण के साथ ही खत्म हो जायेगा तो नया एजेण्डा मथुरा होगा।

छह दिसंबर को जिस प्रकार मथुरा के लिए कई स्वघोषित हिंदूवादी संगठनों द्वारा कार्यक्रमों की घोषणा की गई उसमें अयोध्या के वे भी शामिल हैं जो अयोध्या से भाजपा के महापौर पद के लिए होने वाले चुनाव में भाजपा के टिकट के दावेदारों में थे जो मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा करते रहे हैं। उसमें महन्त राजूदास अयोध्या हनुमानगढ़ी मंदिर भी शामिल हैं। पोस्टर अयोध्या की दीवारों पर पर लगाये गए हैं। जिसमें मथुरा चलने का आहवान किया गया है। कृष्ण जन्मभूमि मुक्तिदल रजिस्टर्ड के पोस्टर में नारा है छह दिसंबर चलो चलें मथुरा काशी संकल्प यात्रा में। इसका संगठन का ध्येय वाक्य है ‘अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च’ यानी अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है।

अयोध्या के अन्तिम फैसले के बाद उसी आधार पर काशी और मथुरा के लिए अदालतों में दर्जनों याचिकाएं दाखिल हो गई हैं। वहीं कृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद के लिए हुए 1968 में समझौते के बाद फिर आंदोलन की एक रूपरेखा भारतीय जनता पार्टी के लोगों के अलग-अलग बैनरों के तले फलने-फूलने के लिए प्रयासरत है। मथुरा में छह दिसंबर को किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किए गए। उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशान्त कुमार के अनुसार एहितियात के तौर पर उत्तर प्रदेश में पीएसी और पैरामिलेट्री फोर्स तैनात की गई है। अयोध्या मथुरा वाराणसी के लिए अलग से सुरक्षा व्यवस्था की गई है। परम्परा से हटकर कोई आयोजन न हो यह सुनिश्चित कराया जायेगा।

हिन्दू महासभा ने घोषणा की है। उसके अयोध्या के पदाधिकारी राकेशदत्त मिश्र के अनुसार छह दिसंबर को कृष्ण जन्मभूमि मथुरा में जलाभिषेक पर रोक लगाये जाने के खिलाफ पूरे देश भर में लड्डू गोपाल का जलाभिषेक कर श्रीकृष्ण जन्मभूमि को ईदगाह मस्जिद के अतिक्रमण से मुक्त कराने का संकल्प लेगी।  

राममंदिर बन जाने के बाद आगे की सरकारें बनाने के लिए भाजपा को कोई मुद्दा तो चाहिए ही। अयोध्या आंदोलन में नारे लगते थे, ‘तीन नहीं है, तीन हजार, नहीं बचेगी एक मजार’, ‘अयोध्या तो एक झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’।

फैजाबाद में हेलाल कमेटी के खालिक अहमद कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करके बाबरी मस्जिद के एवज मे आखिर सरकार को भूमि आवंटित करने का आदेश क्यों दिया था इसके बारे में लोगों को सोचना चाहिए। छह दिसंबर को मुसलमानों की मस्जिद नहीं तोड़ी गई, हिन्दुस्तान का संविधान अदालतों के आदेश और संविधान की शपथ लिए मुख्यमंत्री का सुरक्षा का आश्वासन धरा का धरा रह गया।

प्रदेश सरकार ने अयोध्या शहर से 27 किलोमीटर दूर रौनाही में पांच एकड़ जो जमीन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुस्लिम पक्ष को दी है वहां गतिविधियां ठंडे बस्ते में हैं। इस सम्बन्ध में इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन अयोध्या के सेक्रेटरी अतहर हुसैन का कहा है कि विकास प्राधिकरण में नक्शा प्रस्तुत कर दिया गया है हमें क्लियरेंस का इन्तजार है। 

हाजी महबूब जो अयोध्या विवाद में एक मस्जिद की ओर से एक पक्षकार रहे हैं यौमें गम का कार्यक्रम उनके ही आवासीय परिसर में आयोजित होता था। इस बार कोई कार्यक्रम नहीं आयोजित हुआ। उनका कहना है  मुसलमानों की राय थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे। हम मान रहे हैं। वहां मंदिर बन रहा है हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। वर्षों से विवाद में मुख्य पक्षकार रहे हाशिम अन्सारी के पुत्र इकबाल अन्सारी के आवास पर भी अब सन्नाटा पसरा है। कारसेवकपुरम में भी अब शौर्य दिवस का कोई आयोजन जरूरी नहीं रह गया है।

मंदिर निर्माण  को देखने के लिए लोगों की अयोध्या में आवाजाही बढ़ गई है। यहां एक बड़ा होटल चलाने वाले व्यवसायी कहते है, अयोध्या की ओर लक्जरी बसों की संख्या भी बढ़ गई है तीर्थयात्रियों की भी। मीडिया की चकाचौध में अयोध्या देखने के बाद धरती पर अयोध्या देखकर लौटने के बाद उन पर्यटकों तीर्थयात्रियों को बहुत निराशा होती है। अयोध्या में राममंदिर दर्शन के लिए अब कई राज्य सरकारों में होड़ सी मच गई है कि वे अपने राज्य के बुजुर्गो को अयोध्या दर्शन रेलगाड़ियों से फ्री में करायें। ऐसी तीन रेलगाड़ियों से अब तक लोग अयोध्या दर्शन के लिए आ चुके हैं।

1949 से धर्म में राजनीति का क्षेत्र बन चुका अयोध्या अब अपने राजनीतिक अध्याय की समाप्ति की ओर है। अब यह महज एक तारीख बनकर रह गया है। कैलेण्डर की तारीखें आती जाती रहती है। उसी तरह अब छह दिसंबर भी आयेगा और चला जायेगा क्योंकि अब सरयू में बहुत पानी बह चुका है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद कुछ वर्षों तक अयोध्या को पूरी तौर पर सील कर दिया जाता था।

(फ़ैज़ाबाद-अयोध्या स्थित लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं। आपने 1990-92 का वह दौर बहुत करीब से देखा है, जब बाबरी मस्जिद ध्वस्त की गई।)

babri masjid
Babri Demolition
Ayodhya Dispute
ram janm bhoomi
L K Advani
Advani and BJP leaders
Demolition of Babri masjid
Criminal conspiracy
BJP
RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License