NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
शिक्षा
समाज
सोशल मीडिया
भारत
राजनीति
कैसे भाजपा की डबल इंजन सरकार में बार-बार छले गए नौजवान!
किसानों के अतिरिक्त जिस दूसरे तबके का इस डबल इंजन सरकार से सबसे अधिक मोहभंग हुआ है, वे युवा हैं। दरअसल यही वह तबका है जिसके अंदर मोदी और भाजपा-राज ने सबसे अधिक उम्मीदें जगाईं थीं।
लाल बहादुर सिंह
12 Jan 2022
BJP
प्रतीकात्मक तस्वीर

आज राष्ट्रीय युवा दिवस है। युवाओं ने आज #भाजपा_हराओ_रोजगार_बचाओ और #YouthForRightToEmployement हैशटैग के साथ ट्विटर अभियान चलाने की अपील की है। रोजगार को तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र के लिए, कॉर्पोरेट वित्तीय पूंजी के हमले के विरुद्ध आर्थिक राष्ट्रवाद के लिए संघर्ष से जोड़ने का आह्वान किया गया है।

वैसे तो उत्तर प्रदेश के चुनावी परिदृश्य में इस समय भाजपा के कद्दावर कैबिनेट मन्त्री स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे और भाजपा में मची भगदड़ की खबर छाई हुई है, इसे भाजपा की चुनावी सम्भावनाओं के लिए निर्णायक झटका माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह अभी ट्रेलर है, पूरी पिक्चर बाकी है। कुछ लोग इसे कमंडल के खिलाफ मंडल राजनीति की वापसी के रूप मे देख रहे हैं तो कुछ मौर्य या अन्य भाजपा विधायकों के इस्तीफे के पीछे निजी स्वार्थ और अवसरवाद को देख रहे हैं। पर यहां यह समझना अधिक महत्वपूर्ण है कि निजी factors और सोशल इंजीनियरिंग जैसे कारक भी तभी सक्रिय और कारगर होते हैं जब जमीनी स्तर पर जनता के बीच मौजूदा शासन से गहरा मोहभंग और नाराजगी हो। जमीनी हलचल की नब्ज पर पकड़ रखने वाले नेताओं का पाला बदल अक्सर इसी बदलती जनभावना की अभिव्यक्ति होता है। (इसीलिए उन्हें राजनीतिक 'मौसम वैज्ञानिक' भी कहा जाता है)

आज उत्तर प्रदेश में ठीक यही स्थिति है। जनता के जो तबके आज भाजपा के साथ हैं भी, उनके जीवन में भी न कोई बेहतरी हुई है, न खुशहाली आयी है। अनेक कारणों से वह भी सरकार से असंतुष्ट और नाराज हैं, लेकिन वह विचारधारात्मक पूर्वाग्रहों और राजनीतिक-सामाजिक कारणों से भाजपा के साथ है। भाजपा सरकार से इसी गहरी नाराजगी की अभिव्यक्ति एक साल से ऊपर चला किसान आंदोलन था, जिसमें जाति-धर्म के सारे विभाजनों के पार किसानों की व्यापक एकता कायम हुई। इसने प्रदेश में नए सामाजिक समीकरणों और राजनीतिक ध्रुवीकरण को उत्प्रेरित किया।

किसानों के अतिरिक्त जिस दूसरे तबके का डबल इंजन सरकार से सबसे अधिक मोहभंग हुआ है, वे युवा हैं। दरअसल यही वह तबका है जिसके अंदर मोदी और भाजपा-राज ने सबसे अधिक उम्मीदें जगाईं थीं। इसीलिए उनकी निराशा दुहरी है और वे भी लगातार आंदोलनरत हैं।

याद करिये, 2017 में भाजपा का संकल्प-पत्र जारी करते हुए, उस समय चाणक्य बन कर उभरे, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 70 लाख रोजगार देने का वायदा किया था (हालांकि यह 2012 में भाजपा द्वारा किये गए 1 करोड़ रोजगार के वायदे से कम था)।प्रदेश सरकार में खाली पड़े सभी पदों को 1 साल में भरने का वायदा किया गया था। (युवाओं को फ़्री लैपटॉप, 1 GB फ्री डाटा के साथ देने का वायदा भी किया गया था और कहा गया था कि सभी कॉलेज-विश्वविद्यालय में फ्री wi-fi दिया जाएगा।)

इसके पूर्व 22 नवम्बर 2013 को तब के भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार मोदी ने आगरा की अपनी रैली में प्रतिवर्ष 1 करोड़ रोजगार का वायदा कर दिया था। बाद में इसे बढ़ाकर 2 करोड़ कर दिया गया था और घोषणापत्र में पार्टी की मुख्य प्राथमिकता घोषित कर दिया गया था। कहा गया हम घोषणापत्र नहीं संकल्प पत्र जारी कर रहे हैं। घोषणाएं तो होती रहती हैं, हमारा तो संकल्प है, नहीं जिसका कोई विकल्प।

इन बड़बोली घोषणाओं के बल पर युवा पीढ़ी का एकमुश्त वोट हासिल करने वाली डबल इंजन सरकार के 5 साल के कार्यकाल के बाद आज हालत यह है कि राज्य में पिछले 5 साल में काम करने वाले तो 2.12 करोड़ बढ़ गए, लेकिन कुल रोजगार (absolute numbers में) पहले से भी 16 लाख घट गया। सरकारी नौकरी में भी 2017 में जो वर्कफ़ोर्स थी, उसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है।

महज ध्रुवीकरण, जातियों के जोड़-गणित या चुनावी सौगात के आधार पर चुनाव विश्लेषण में लगे राजनीतिक पंडित भले ही रोजगार को चुनाव का मुद्दा न मानें और इग्नोर करें, जब प्रदेश में रोजगार दर (ER) 5 साल पहले के 38.5% से भी घटकर 32.79% ही रह गयी हो अर्थात काम करने लायक हर 3 लोगों में 2 लोग बेरोजगार हों, वहां रोजगार तो लोगों की जिन्दगी में सबसे बड़ा मुद्दा है ही, उसे गोदी मीडिया बहस का मुद्दा बनाये चाहे न बनाये। सत्ता पक्ष चाहे जितना उसे फ़र्ज़ी आंकड़ों और विज्ञापनों से उसे ढकने की कोशिश कर ले, उसका खामियाजा तो उसे भुगतना ही है। जाहिर है विपक्ष उसकी उपेक्षा अपने विनाश की कीमत पर ही कर सकता है।

बहरहाल, एक ओर खोखले वायदे और घोषणाएं होती रहीं, दूसरी ओर देश और प्रदेश में अर्थव्यवस्था को एक के बाद दूसरे हिचकोले लगते रहे। यहां यह नोट करना बहुत जरूरी है कि इसका मूल कारण मोदी की ill-conceived कॉर्पोरेट परस्त नीतियां थीं, कोविड ने तो उसमें केवल कोढ़ में खाज का काम किया, अर्थव्यवस्था के ध्वंस का मूल कारण वह कत्तई नहीं है। 

2016 की नोटबंदी, GST का विवेकहीन  क्रियान्वयन, कोविड के दौरान गलत ढंग से लॉक-डाउन, अंधाधुंध निजीकरण, जनता की क्रयशक्ति बढ़ाने और उत्पादक अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने की बजाय कारपोरेट हितों को प्राथमिकता वाली नीतियां इकॉनमी का भट्ठा बैठाती रहीं। 5 ट्रिलियन इकॉनमी का सब्जबाग दुःस्वप्न में तब्दील हो गया, विकास दर गोते लगाते हुए एक समय (-23%) तक पहुंच गई। जाहिर है इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि बेरोजगारी 45 साल के सर्वोच्च मुकाम पर पहुंच गई। मोदी जी के राज में काम करने लायक आबादी की संख्या 96 करोड़ से बढ़कर 108  करोड़ हो गयी, वहीं रोजगार पाए लोगों की संख्या 41.2 करोड़ से घटकर 40.4 करोड़ रह गयी।

जाहिर है बेरोजगारी के इस संकट के मूल में मोदी सरकार है और युवा इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। इसीलिए उत्तरप्रदेश में नौजवानों की नाराजगी और मोहभंग केवल योगी सरकार से नहीं है, वरन मोदी सरकार से भी है। इसीलिए मोदी का भी कोई जादू UP में नहीं चल पा रहा। यह भी तय है कि अब बेरोजगारी का यह भूत 2024 तक उनका पीछा करने वाला है।

संघ-भाजपा ने युवा-पीढ़ी के मन मस्तिष्क को सांप्रदायिक जहर से विषाक्त करने का जो आक्रामक अभियान गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से छेड़ रखा है, वह बेरोजगारी के इसी विस्फोटक सवाल से ध्यान हटाने और घटते रोजगार के अवसरों लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा को साम्प्रदायिक मोड़ देने की कोशिश है। नरेंद्र मोदी जिस युवा देश के डेमोग्राफिक डिविडेंड की बात करते थे, उसे 7 साल में बेरोजगार बनाकर तथा जहर घोल कर उन्होंने डेमोग्राफिक डिज़ास्टर में बदल दिया है।

फासीवादी प्रोपेगंडा का आसान शिकार बनते युवा पीढ़ी को बचाने और उन्हें लोकतान्त्रिक राष्ट्रीय नवनिर्माण में लगाने के लिए भी यह अनिवार्य है कि उनकी अपार सृजनात्मक ऊर्जा का स्वस्थ उत्पादक सदुपयोग सुनिश्चित किया जाए।

आज युवाओं का सबसे बड़ा राष्ट्रीय धर्म है कि वे भाजपा की विदाई सुनिश्चित करें, क्योंकि उसके सत्ता में रहते, न रोजगार-सृजन की कोई सम्भावनाएं बची हैं, न ही स्वस्थ लोकतान्त्रिक समाज निर्माण की। साथ ही उन्हें रोजगार के लिए अपने आंदोलन की स्वायत्तता बरकरार रखते हुए उसे नई ऊंचाई पर ले जाना होगा और विपक्ष को हर हाल में रोजगार को केंद्रीय एजेंडा बनाने के लिए मजबूर करना होगा। क्या विपक्ष युवाओं की आवाज सुनेगा?

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

ये भी पढ़ें: यूपी: युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराने के राज्य सरकार के दावे जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते हैं!

Yogi Modi
Modi government
yogi government
BJP government
unemployment
Employment
Uttar pradesh

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

भारत को मध्ययुग में ले जाने का राष्ट्रीय अभियान चल रहा है!

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

17वीं लोकसभा की दो सालों की उपलब्धियां: एक भ्रामक दस्तावेज़

कार्टून क्लिक: चुनाव ख़तम-खेल शुरू...

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

विचार: बिना नतीजे आए ही बहुत कुछ बता गया है उत्तर प्रदेश का चुनाव

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License