NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लोहिया आंदोलनकारी थे या आंदोलनजीवी?
चूंकि प्रधानमंत्री और भाजपा के कई नेता डॉ. राममनोहर लोहिया का नाम लेते रहते हैं और कई लोहियावादियों को उम्मीद भी है कि वे उन्हें भारत रत्न देंगे ऐसे में यह सवाल ज़रूरी हो जाता है कि आख़िर वे उन्हें किस श्रेणी में रखते हैं।
अरुण कुमार त्रिपाठी
12 Feb 2021
लोहिया आंदोलनकारी थे या आंदोलनजीवी?

जब से प्रधानमंत्री ने संसद में आंदोलनकारी, आंदोलनजीवी और परजीवी का गूढ़ वर्गीकरण किया है तब से इस स्तंभकार के लिए यह समझ पाना कठिन हो रहा है कि स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया को आंदोलनकारी कहें या आंदोलनजीवी या परजीवी? चूंकि प्रधानमंत्री और भाजपा के कई नेता डॉ. राममनोहर लोहिया का नाम लेते रहते हैं और कई लोहियावादियों को उम्मीद भी है कि वे उन्हें भारत रत्न देंगे ऐसे में यह सवाल जरूरी हो जाता है कि आखिर वे उन्हें किस श्रेणी में रखते हैं।

डॉ. राममनोहर लोहिया दो बार लोकसभा में चुनकर गए। एक बार मध्यावधि चुनाव में और दूसरी बार आम चुनाव में। लेकिन दूसरी बार वे सिर्फ सात महीने ही संसद में रह पाए और इस बीच उनका निधन हो गया। बाद में उनका चुनाव भी अवैध घोषित करवा दिया गया। खास बात यह है कि सांसद बनने से पहले डॉ. लोहिया के पास आय का कोई नियमित जरिया नहीं था। उनके मित्र ही उनके रहने खाने और यात्रा वगैरह का ध्यान रखते थे। निधन के बाद उनके पास कोई संपत्ति भी नहीं थी। न तो बैंक बैलेंस और न ही कोई मकान या जमीन।

लोहिया का जीवन किसी पद और संपदा के लिए जाना नहीं जाता। अगर वे जाने जाते हैं तो विचार और उसके लिए आंदोलन के कारण। लोहिया का पूरा जीवन ही एक आंदोलन था। वे महज 57 साल की उम्र में बीस बार गिरफ्तार किए गए। आश्चर्य की बात यह है कि इसमें 12 बार वे आजाद भारत में और आठ बार अंग्रेजी शासन में जेल गए। लेकिन उन्होंने आम आदमी के लिए और अन्याय के विरुद्ध और समता और समृद्धि के लिए आंदोलन करना आखिरी सांस तक बंद नहीं किया। लोहिया का नाम अपने में आंदोलन का पर्याय हो गया था।

डॉ. लोहिया को याद करते हुए और उनकी आंदोलनधर्मिता से थोड़ा दुखी रहने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए एक प्रोफेसर कहते हैं कि वे जब दिल्ली आते थे तो युवाओं से कहते भी थे कि क्या हुआ भाई तुम लोग बहुत दिनों से शांत बैठे हो किसी मामले पर आंदोलित नहीं हुए। कुछ नारे नहीं लगे कहीं हड़ताल नहीं हुई।

लोहिया ने इलाहाबाद छात्र संघ के अध्यक्ष और समाजवादी युवजन सभा के नेता व बाद में सांसद बने बृजभूषण तिवारी को एक पत्र लिखते हुए देश के छात्रों युवाओं को संबोधित किया था। तब उन्होंने छात्रों से अपील की थी कि वे उन्हें एक शर्त पर अनुशासनहीनता की छूट देते हैं और वो यह कि वह स्वार्थप्रेरित नहीं होनी चाहिए। यानी परमार्थिक अनुशासनहीनता होनी चाहिए। इसी के साथ वे आंदोलन को शांतिपूर्ण ही रहने की सलाह देते थे। वे कहते भी थे कि कई बार मन में हाथ उठाने का विचार आता है लेकिन गांधी आगे आकर खड़े हो जाते हैं और अपने शपथ की याद दिला देते हैं।

लोहिया को आंदोलन का विचार और कर्म दोनों इतने प्रिय थे कि उसके लिए सदैव तैयार रहते थे। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता के कारण जब 1944 में उन्हें बंबई (मुंबई) से गिरफ्तार करके लाहौर जेल ले जाया गया तो भयंकर यातनाएं दी गईं। वे उसी कोठरी में रखे गए जिसमें भगत सिंह को रखा गया था। उनका स्वास्थ्य बुरी तरह टूट गया, उनकी आंखें कमजोर हो गईं लेकिन मनोबल नहीं टूटा। इसी साल उनके पिता का भी निधन हुआ था। दो साल बाद उनकी रिहाई हुई तो गोवा आराम करने गए लेकिन वहां भी उन्होंने दमनकारी पुर्तगाली सरकार के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया। उन्हें पकड़ कर गोवा से निष्कासित किया गया और मुआवजा मांगा गया।

आजाद भारत में लोहिया की पहली गिरफ्तारी नेपाल के मुद्दे पर हुई। राणा सरकार की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध नेपाल कांग्रेस के नेता बीपी कोइराला ने मई 1949 में आमरण अनशन शुरू कर दिया। चूंकि नेपाली कांग्रेस के पीछे डॉ. लोहिया की प्रेरणा थी इसलिए उन्होंने राणा सरकार के विरुद्ध दिल्ली में विरोध कार्यक्रम अपनाया। कांस्टीट्यूशन क्लब में मीटिंग रखी गई। लोहिया के नेतृत्व में एक जुलूस निकला जिसे नेपाली दूतावास से 500 फुट की दूरी पर रोक लिया गया। आंदोलनकारी वहीं बैठ गए और नारा लगाने लगे। एक घंटे बाद आंसू गैस के गोले छोड़े गए और लाठी चार्ज किया गया। लोग तब भी नहीं हटे तो लोहिया समेत कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आजाद भारत में हुई इस पहली गिरफ्तारी पर टिप्पणी करते हुए लोहिया ने कहा, ` सही है कि अंग्रेजों ने मेरे साथ जेल में बहुत बुरा बर्ताव किया लेकिन आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का सम्मान तो स्वतंत्र भारत की सरकार को ही मिलना चाहिए।’

लोहिया पर पंजाब सुरक्षा कानून लगा दिया गया और जमानत नहीं दी गई। उनकी सुनवाई एक महाने तक चली। इसके विरोध में पूरे देश में 20 जून को लोहिया दिवस मनाया गया। इस दिन नागरिक अधिकारों का दमन करने का विरोध किया गया। लोहिया ने कहा भी कि सरकार लोगों के असंतोष का दमन करने के लिए आपातकाल का सहारा ले सकती है। इसीलिए उन्होंने स्वीडन की तरह से लोगों के मौलिक अधिकारों की हिफाजत के लिए जन अदालत बनाने का सुझाव दिया जहां सरकार के अन्याय के विरोध में सुनवाई हो सके। उन्होंने कहा कि पंजाब सुरक्षा कानून आपातकाल की स्थिति में प्रयोग किया जाने वाला कानून है और इसका प्रयोग दिल्ली और कनाट प्लेस की सामान्य स्थिति में नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में उन्हें दो माह की सजा और 100 रुपए जुर्माना हुआ।

लोहिया को 1951 में बंगलूर में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें जुलाई में विदेश जाना था। इस बीच मैसूर सोशलिस्ट पार्टी की कार्यकारिणी को गिरफ्तार कर लिया गया था। वे उनकी पैरवी में वहां गए तो उन्हें निशीथ विश्राम गृह में ही बंदी बना लिया गया। इस मामले पर भी विरोध दिवस मनाया गया और सरकार ने उन्हें छोड़ दिया। एक जुलाई 1954 को उत्तर प्रदेश में नहर, पानी और लगान सत्याग्रह के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया और अपने मामले में खुद ही बहस की। सितंबर के महीने में उनकी रिहाई हुई। एक बार फिर 2 नवंबर 1957 को उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ में डॉ. लोहिया को गिरफ्तार कर लिया। वे बिक्री कर का विरोध कर रहे थे। उन्हें डाकिए के काम में बाधा डालने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। उधर समाजवादी लोग अंग्रेजी शासकों का पुतला हटाओ आंदोलन चला रहे थे। वे भी जेल में बंद थे। लोहिया को जेल में यातनाएं दी गईं। उस समय संपूर्णानंद मुख्यमंत्री थे। लोहिया न्यायिक प्रक्रिया की अनैतिकता पर सवाल उठा रहे थे और उससे सहयोग करने को तैयार नहीं थे। जेल में मजिस्ट्रेट ने अदालत लगाई और उन्हें कुर्सी से बांध कर मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया और उनका अंगूठा लगवाया गया। इस दौरान कैदियों से आंदोलनकारियों पर हमले भी करवाए गए। लोहिया का कहना था कि किसी भी शांतिपूर्ण सत्याग्रह के लिए छह माह से ज्यादा सजा नहीं होनी चाहिए। बाद में उनका मामला हाई कोर्ट गया और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। लोहिया निर्दोष पाए गए और छूटे।

नवंबर 1958 और नवंबर 1959 में नेफा में प्रवेश और सत्याग्रह करने के सिलसिले में डॉ. लोहिया को दो बार गिरफ्तार किया गया। उन्होंने 1965 में 9 अगस्त के दिन पटना में भुखमरी विरोधी आंदोलन किया। वहां भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लोहिया की रिहाई सुप्रीम कोर्ट से सुनिश्चित हो पाई।

असल में डॉ. लोहिया अन्याय के विरुद्ध भारतीय धरती पर ही नहीं विदेशी धरती पर भी संघर्ष करने से नहीं चूकते थे। अमेरिका में रंगभेद के विरोध में सभा करने गए डॉ. लोहिया को वहां के जैक्सन रेस्तरां में पकड़ लिया गया। जैक्सन मिसिसिपी प्रांत में है बाद में पुलिस ने उन्हें शहर के किनारे ले जाकर छोड़ा।

अब सवाल उठता है कि मोदी जी ऐसे डॉ. लोहिया के लिए क्या कहेंगे ? आंदोलनकारी या आंदोलनजीवी?  क्या यह कहा जाएगा कि डॉ. लोहिया का खर्च आंदोलन से चलता था? या यह कहा जाएगा कि डॉ. लोहिया एक परजीवी थे। हर आंदोलन का नेतृत्व स्थानीय भी हो सकता है और बाहरी भी। सवाल यह है कि आंदोलन करने वाले उस व्यक्ति से विचार और आचरण के स्तर पर प्रेरणा पा रहे हैं या नहीं। आज देश में जो लोग भी आंदोलन चलाते हैं या देश भर के आंदोलनों का समन्वय करते हैं उन्हें आंदोलनजीवी कहना परिवर्तन और बेहतरी के लिए चल रही इंसानी बेचैनी का अपमान है। हो सकता है कुछ लोगों का मानना हो कि जो रास्ता सरकार तय कर रही है और चलाना चाहती है वही एक रास्ता है जिस पर सबको चलना चाहिए। वह उनका अधिकार और कर्तव्य है और वे उस पर चलें। लेकिन जो लोग वैसा नहीं मानते और सोचते हैं कि इसका कोई विकल्प और बेहतर रास्ता भी बन सकता है उन्हें उसे साबित करने का हक है। इसी बात को पिछली सदी में कई आंदोलनकारियों ने यह कह कर रखा है कि दूसरी दुनिया संभव है। इसी बात को किशन पटनायक कहते थे कि विकल्पहीन नहीं है दुनिया। यह टीना यानी कोई विकल्प नहीं है का जवाब है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Ram Manohar Lohia
Narendra modi
Andolankari
Andolanjivi
BJP
Protests
democracy

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License