NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत में नौकरी संकट जितना दिखता है उससे अधिक भयावह है!
सामान्य तथ्य यह है कि इच्छुक छात्र सरकारी नौकरियों की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन निजीकरण, डिजिटलीकरण एवं ऑटोमेशन में लगातार वृद्धि के चलते इनमें लगातार कमी होती जा रही है।
नीलू व्यास
01 Feb 2022
Employment

रेलवे भर्ती बोर्ड परीक्षाओं को लेकर पूरे बिहार और उत्तर प्रदेश में हाल ही में छात्रों का विरोध प्रदर्शन भारत में बढ़ते नौकरी संकट का एक लक्षण है, जो जितना दिखने में आ रहा है उससे कहीं अधिक गंभीर है। इसे सिर्फ बिहार या यूपी की परिघटना के बतौर नहीं देखा जा सकता है। इसके बावजूद, ये दोनों राज्य एक पाठ्यपुस्तिका के समान उदाहरण पेश करते हैं कि कैसे सरकारी सेवाओं और विभिन्न भर्ती बोर्डों में चीजें गलत हो रही हैं, जिसके चलते युवाओं के बीच में भारी गुस्सा है। सबसे ज्यादा अचंभे की बात यह है कि इस मुद्दे को हल करने के मामले को लेकर सरकार पूरी तरह से उदासीन नजर आ रही हैं ।

आइये समझते हैं कि मूल समस्या कहाँ पर है। बिहार को एक उदाहरण के तौर पर लें, जिससे कि आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं कि रोजगार का गंभीर संकट क्यों बना हुआ है। कुछ बेहद कठोर और स्पष्ट आंकड़े हैं – आरआरबी द्वारा विज्ञापित ग्रुप सी की सेवाओं के लिए 35,000 से अधिक पदों के लिए 1.25 करोड़ अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। राज्य सरकार के मोटे अनुमानों से पता चलता है कि इनमें से अधिकांश आवेदक यूपी और बिहार से हैं। रेलवे के लिए ऐसी दीवानगी की क्या बताती है?

ये भी पढ़ें:- कैसे भाजपा की डबल इंजन सरकार में बार-बार छले गए नौजवान!

इसका उत्तर यह है कि बिहार में उद्योग ना के बराबर हैं, और इसके परिणामस्वरूप यहाँ पर निजी क्षेत्र में नौकरियां ही नहीं हैं। ऐसे में शिक्षित युवाओं के पास आजीविका के लिए क्या बचता है? स्वाभाविक तौर पर वे सरकारी नौकरियों के पीछे भागते हैं क्योंकि यहीं से उन्हें नौकरी की सुरक्षा और अच्छे वेतन की गारंटी संभव है। बिहार में बेरोजगारी का स्तर इतना अधिक है कि औसतन तकरीबन 20 लाख युवा हर साल रेलवे, बैंक एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करते हैं।

रेलवे और बैंक देश के सबसे प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के नौकरी प्रदाताओं में से हैं, जिनमें बिहार से कई लोगों को स्थान प्राप्त होता है। रेलवे में नए कर्मचारियों के लिए ग्रुप डी से लेकर ग्रुप ए की तनख्वाह 17,000 रूपये प्रतिमाह से लेकर 50,000 रूपये प्रतिमाह तक है, और यह राशि उनके कैरियर में पदोन्नति के साथ बढ़ती जाती है। कल्पना कीजिये किसी व्यक्ति को छोटे-मोटे काम से प्रति माह 4000 रूपये की कमाई हो पाती है, उसके लिए रेलवे में ग्रुप डी की नौकरी से 17,000 रूपये से अधिक की कमाई करना कितना मायने रखता होगा। यही वजह है जिसके चलते हमें बिहार और यूपी की सड़कों पर हंगामा देखने को मिल रहा है।

बिहार में 18-23 वर्ष की आयु के बीच में लगभग 1.25 करोड़ लोग हैं, जिन्हें कॉलेज जाना चाहिए। लेकिन इनमें से 50 लाख कक्षा 10 पास होंगे, तकरीबन 35 लाख कक्षा 12 पास होंगे और सिर्फ 25 लाख या उसके आसपास स्नातक होंगे। बड़ी संख्या में स्कूली शिक्षा छोड़ने वाले भी बेरोजगार युवाओं का एक बड़ा हिस्सा निर्मित करते हैं। ऐसे में जो शिक्षित हैं उनके पास रोजगार के नाम पर ले-देकर एकमात्र साधन बचता है और वह है सरकारी नौकरी का।

सामान्य तथ्य यह है कि ये इच्छुक छात्र सरकारी नौकरियों की आस में रहते हैं, लेकिन बढ़ते निजीकरण, डिजिटलीकरण एवं ऑटोमेशन के चलते सरकारी नौकरियों की संख्या में लगातार कमी होती जा रही है। संघ लोक सेवा आयोग या यूपीएससी, जो सिर्फ अभिजात्य नौकरियों की ही पेशकश करता है, में भी रिक्तियों में कमी देखी जा रही है। पिछले साल लोकसभा में सरकार की ओर से दिए गए जवाब के मुताबिक यूपीएससी की नौकरियों में लगभग 30% की गिरावट दर्ज की गई है। मैंने डीओपीटी (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) के एक अधिकारी से इस बारे में बात की, जिन्होंने नाम गुप्त रखे जाने की शर्त पर बताया कि किसी भी भर्ती या रिक्तियों को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक कैडर प्रबंधन है। सरकार को अपने नवनियुक्त रंगरूटों के कैरियर की प्रगति को ध्यान में रखना पड़ता है, और यही कारण है कि नई भर्तियों में गिरावट का रुझान बना हुआ है।

यूपीएससी के अलावा कई अन्य भर्ती बोर्ड मौजूद हैं। कर्मचारी चयन आयोग या एसएससी का मामला तो और भी बदतर है। 2013 में एसएससी में 20,000 रिक्तियां थीं, जो 2018 में घटकर 12,000 रह गईं और वर्तमान में सिर्फ 8000-9000 रिक्तियां ही रह गई हैं। संदेहास्पद प्रशासनिक प्रक्रिया, परीक्षाओं के आयोजन में ईमानदारी की कमी, और नौकरियों को सृजित कर पाने में सरकार की अक्षमता की वजह से छात्रों को अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आरआरबी एनटीपीसी परीक्षाओं में अनियमितता की बात तो वस्तुतः आटे में नमक बराबर ही है।

आरआरबी एनटीपीसी परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों की चिंताओं की जांच करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है, लेकिन सरकार को पहले से ही समस्या के बारे में सारी जानकारी है। विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एक कमेटी का गठन सिर्फ संकट को टालने के लिए समय काटने की रणनीति से अधिक कुछ नहीं है। क्या सरकार वास्तव में लाखों विद्यार्थियों की समस्याओं के समाधान को लेकर गंभीर है? शायद नहीं। यदि वह वास्तव में गंभीर होती तो इसके लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया होनी चाहिए थी जिसका पालन आसानी से किया जा सकता था।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि बेरोजगारी की दर 8% तक पहुँच गई है, जो साफ़-साफ़ इस बात को दर्शाता है कि सरकार नौकरियों को सृजित कर पाने में नाकाम साबित हुई है। इतना ही नहीं बल्कि इस प्रक्रिया के साथ-साथ रिक्तियों का आकार भी कम किया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रव्यापी आंदोलन के रूप में एक ज्वालामुखी बस कभी भी फूटने की कगार पर है, और यदि ऐसा होता है तो यह नरेंद्र मोदी सरकार के तख्त के लिए सबसे बड़ा काँटा साबित हो सकता है।

(लेखिका दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत हैं। )

अंग्रेजी में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:-

India’s Job Crisis Much Severe Than it Seems

unemployment
Government Jobs
Public Sector
UPSC
SSC
indian railways
Railway Exams
Bank Exams
UP
Bihar
Railway Recruitment Board

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   


बाकी खबरें

  • putin
    अब्दुल रहमान
    मिन्स्क समझौते और रूस-यूक्रेन संकट में उनकी भूमिका 
    24 Feb 2022
    अति-राष्ट्रवादियों और रूसोफोब्स के दबाव में, यूक्रेन में एक के बाद एक आने वाली सरकारें डोनबास क्षेत्र में रूसी बोलने वाली बड़ी आबादी की शिकायतों को दूर करने में विफल रही हैं। इसके साथ ही, वह इस…
  • russia ukrain
    अजय कुमार
    यूक्रेन की बर्बादी का कारण रूस नहीं अमेरिका है!
    24 Feb 2022
    तमाम आशंकाओं के बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला करते हुए युद्ध की शुरुआत कर दी है। इस युद्ध के लिए कौन ज़िम्मेदार है? कौन से कारण इसके पीछे हैं? आइए इसे समझते हैं। 
  • up elections
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    उत्तर प्रदेश चुनाव: ज़मीन का मालिकाना हक़ पाने के लिए जूझ रहे वनटांगिया मतदाता अब भी मुख्यधारा से कोसों दूर
    24 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव के छठे चरण का मतदान इस इलाक़े में होना है। ज़मीन के मालिकाना हक़, बेरोज़गारी और महंगाई इस क्षेत्र के कुछ अहम चुनावी मुद्दे हैं।
  • ayodhya
    अरुण कुमार त्रिपाठी
    यूपी चुनाव: अयोध्यावादियों के विरुद्ध फिर खड़े हैं अयोध्यावासी
    24 Feb 2022
    अयोध्या में पांचवे दौर में 27 फरवरी को मतदान होना है। लंबे समय बाद यहां अयोध्यावादी और अयोध्यावासी का विभाजन साफ तौर पर दिख रहा है और धर्म केंद्रित विकास की जगह आजीविका केंद्रित विकास की मांग हो रही…
  • mali
    पवन कुलकर्णी
    माली से फ़्रांसीसी सैनिकों की वापसी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ ऐतिहासिक जीत है
    24 Feb 2022
    माली से फ़्रांसीसी सैनिकों को हटाने की मांग करने वाले बड़े पैमाने के जन-आंदोलनों का उभार 2020 से जारी है। इन आंदोलनों की पृष्ठभूमि में, माली की संक्रमणकालीन सरकार ने फ़्रांस के खिलाफ़ लगातार विद्रोही…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License