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भारत
राजनीति
Exclusive : गंगा किनारे बालू की अंधाधुंध लूट, भाजपा और सालों से जमे अफसरों की नीयत पर सवालिया निशान
सिर्फ बनारस ही नहीं, पूरे प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट मची हुई है। इस लूट की सबसे बड़ी शिकार हुई है गंगा। इसे काशी में साफ-साफ देखा जा सकता है। सरकार और प्रशासन की लूट वाली नीति और नीयत के चलते गंगा को नंगा किया जा रहा है। इस पवित्र का वस्त्र और आभूषण क्या है, यह सत्तारूढ़ दल के समझ में नहीं आ रहा है?
विजय विनीत
06 Feb 2022
ganga

उत्तर प्रदेश के बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगा का बेटा बनकर जिस नदी को तारने आए थे, उसकी सांसें अब उखड़ने लगी हैं। बनारस को नए मॉडल के रूप में दुनिया भर में परोसने की सनक में यहां कुछ ऐसा खेल हुआ कि गंगा के कई कोने बुरी तरह छलनी हो गए। नतीजा, जो नदी कुछ साल पहले तक कल-कल बहा करती थी, उसका दायरा सिकुड़ता जा रहा है और वह तेजी से सूखती जा रही है। गंगा की रेत पर सब्जियों की खेती करने वाले सैकड़ों किसान दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हो गए हैं। यह पटकथा उसी इलाके की है जहां पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों के साथ 13 दिसंबर 2021 को घंटों नौका विहार किया था। पीएम को तो शायद पता ही नहीं होगा कि बनारस के आला अफसरों की मिलभगत से गंगा का सीना कितना छलनी हुआ है और कितना बच पाया है?

विकास के नए मॉडल में बनारसियों के लिए गंगा नदी में कुछ बचा है तो सिर्फ बड़े-बड़े गड्ढे और लगातार सूख रही नदी के निशान। खनन माफ़िया ने गंगा की तलहटी के एक बड़े इलाके को जिस बेरहमी से खोदा है, उससे सिर्फ बनारस के कलेक्टर कौशलराज शर्मा और खनन अधिकारी पारिजात त्रिपाठी ही नहीं, योगी सरकार भी सवालों के घेरे में आ गई है। हाल यह है कि अवैध खनन की शिकायतों के बाद अफसर जांच-पड़ताल करने जाते हैं तो रेत की निकासी एक-दो दिन के लिए बंद हो जाती है। अफसरों के लौटते ही शुरू हो जाता है बालू लूटने का खेल। बनारस में यह हाल उस नदी का है, जिसके बारे में उन्नीसवीं सदी के सबसे बड़े शायर गालिब ने गंगा और बनारस की पवित्रता से अभिभूत होकर से 'चिराग़-ए-दैर' अर्थात 'मंदिर का दीया' जैसी विलक्षण कृति की रचना की थी। अकबर और औरंगजेब ने गंगा के जल की सफ़ाई के लिए बकायदा वैज्ञानिकों  की नियुक्ति की थी। काशी नरेश ने गंगा के औषधीय गुणों को पहचानकर ही इसे 'नहर-ए-बिहिश्त' यानी 'स्वर्ग की नदी' का खिताब दिया था।

गंगा की 2525 किलोमीटर लंबी जीवनधारा में बनारस में पड़ने वाला पांच किलोमीटर लंबा हिस्सा धर्म, अध्यात्म, संस्कृति और नदी की सेहत से लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। यहां इस नदी का आभूषण और वस्त्र उसके मजबूत किनारे, नदी के घाट, गहराई, अविरलता और निर्मलता है। बनारस में इन दिनों जितनी भी परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं उसमें इन सभी बिंदुओं के विपरीत कार्य हो रहा है। पर्यावरण और नदी विशेषज्ञों ने शासन-प्रशासन का ध्यान लगातार इस ओर आकृष्ट कराया है और तल्ख सवाल भी खड़ा किया, लेकिन  गंगा की नैसर्गिक प्रवृत्ति के खिलाफ रेत खनन का धंधा जोरों से चलता रहा।

यह कैसा है नए विकास का मॉडल? 

यूपी के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा बनारस मॉडल का जमकर प्रचार कर रही है और इसके नाम पर पूर्वांचल की 130 सीटों पर वोट भी मांगती दिख रही है। बनारस के विकास का नया मॉडल कैसा है?  इसे समझने के लिए कुछ महीने पीछे लौटना होगा। पिछले साल गंगा पार विशाल रेत के मैदान के बीचो-बीच 1195 लाख रुपये की लागत से करीब 5.3 किमी लंबी और 45 मीटर चौड़ी नहर बनाई गई थी। रेत में नहर बनाने वाली एजेंसी प्रोजेक्ट कारपोरेशन ने दावा किया कि हर और गंगा के बीच अनूठा आईलैंड विकास की नई गाथा लिखेगा। अफसरों के गौरव गाथा को गंगा में आई बाढ़ ने मटियामेट कर दिया। बाढ़ ने नहर का वजूद तो मिटा ही दिया, अनियोजित विकास के नाम पर खर्च किए गए करोड़ों रुपये भी गंगा में डूब गए।

बालू के मैदान पर जिस समय नहर की खोदाई शुरू हुई तभी बनारस के नदी विशेषज्ञ यूके चौधरी, जल पुरुष राजेंद्र सिंह, पर्यावरणविद विशंभर नाथ मिश्र ने उसके औचित्य पर सवाल खड़े कर दिए थे। विशेषज्ञों ने नहर के औचित्य पर खतरनाक सवाल खड़ा करते हुए यहां तक कहा था कि कछुआ सैंक्चुरी हटाए जाने के बाद रेत उत्खनन की आड़ में गंगा के समानांतर नहर का आकार देना विशुद्ध रूप से अवैज्ञानिक है। बाढ़ आते ही 1,195 लाख रुपये पानी में डूब जाएंगे। सरकारी मशीनरी नदी विशेषज्ञों की सलाह नहीं मानी। अलबत्ता इसे बनारस के विकास का नया मॉडल बताना शुरू कर दिया। नतीजा, जैसे ही बाढ़ आई, फुंफकार मारती गंगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के मॉडल को मटियामेट कर दिया। गंगा में पानी के वेग ने जो पैगाम दिया उससे रेत में बनाई गई नहर लापता हो गई।

बालू के अवैध खनन का खेल

बनारस की गंगा में बालू की रेत पर अफसरों ने जो नहर बनाई थी, उसे बनारसियों ने नाम दिया गया था “मोदी नहर”। इस नहर के मटियामेट होने के बाद शुरू हो गया अवैध खनन का अजूबा खेल। मई 2021 में करीब सात किलोमीटर लंबी नहर से निकले बालू के नौ अलग-अलग लॉट को दिखाकर टेंडर किया गया, जिनमें से सात लॉट का बालू बेचने का टेंडर अलाट किया गया। गंगा में आई बाढ़ में रेत के लॉट तो बह गए तो खनन विभाग ने नदी पार रेती पर बिना किसी औपचारिकता के मनमाने ढंग से खनन माफिया को रेत लूटने की आजादी दे दी। अवैध खनन करने वाली फर्मों ने गंगा की तलहटी तक से बालू खरोचकर निकाल लिया। सिर्फ खनन माफिया ही नहीं, रिंग रोड बनाने वाली कंपनी गैमन इंडिया के लिए काम करने वाली महादेव कंस्ट्रक्शन कंपनी ने मौके का फायदा उठाया। यह कंस्ट्रक्शन कंपनी उस रोज भी गंगा में अवैध खनन में जुटी रही, जिस दिन पीएम नरेंद्र मोदी को विश्वनाथ कारिडोर के लोकार्पण के लिए बनारस आना था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गंगा पार बालू उठान के लिए सात में से पांच फर्मों की समयावधि दिसंबर 2021 में पूरी हो गई थी, लेकिन गंगा में खोदाई उन सभी फर्मों ने मिलकर की, जिन्हें पहले टेंडर अलाट किए गए थे। सिर्फ एक फर्म के पास 27 जनवरी 2022 तक सिर्फ लॉट उठाने की अनुमति थी।

दिसंबर 2021 खनन माफिया जेसीबी और हजारों ट्रैक्टर लगाकर दिन-रात गंगा का सीना छलनी करते आ रहे हैं। बनारस में गंगा पार जेसीबी और तमाम वाहनों की मदद से एक बड़े इलाके को बुरी तरह से खोद दिया गया है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि गंगा पार रेती में बालू उठान के टेंडर के बाद खनन विभाग ने यहां निगरानी का कोई इंतजाम नहीं किया। खनन विभाग के पास इस बात का कोई अभिलेख नहीं है कि गंगा से कितनी बालू निकाली गई और किस बालू की निकासी के लिए रवन्ना जारी किया गया। इस मामले में खनन अधिकारी पारिजात त्रिपाठी ही नहीं, बनारस के कलेक्टर कौशल राज शर्मा भी चुप्पी साधे हुए हैं।

 एनजीटी में याचिका दायर 

बनारस में विकास के जिस नए मॉडल का डंका देश भर में पीटा जा रहा है वहां गंगा की दुर्गति किस कदर हुई है, वह मौका मुआयना करने से पता चल जाता है। करोड़ों रुपये की रेत के अवैध खनन के खेल को योगी सरकार के उन अफसरों ने नजरंदाज किया, जो पिछले कई सालों से बनारस में जमे हुए हैं। अवैध खनन की शिकायत बनारस के हर प्रशासनिक अफसर से की गई, लेकिन नतीजा वही निकला ढाक के तीन पात। अफसरों की नींद तब उड़ी जब सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अवधेश दीक्षित ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता सौरभ तिवारी के माध्यम से एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में याचिका दायर की, जिसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर याचिका में गंगा नदी में हो रहे खनन पर अविलंब हस्तक्षेप करने, अवैध बालू खनन पर रोक लगाने और स्वतंत्र जांच समिति गठित करते हुए इस मामले में दोषी अफसरों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई की का आग्रह किया गया है। याचिका में गंगा के बालू खनन को सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी द्वारा पूर्व में दिए गए फैसले के खिलाफ बताया गया है।

डॉ. अवधेश ने "न्यूजक्लिक" से बातचीत में कहा, "साल 2021 में प्रशासन ने इस दावे के साथ रेत में नहर का निर्माण कराया कि इससे गंगा घाटों पर पानी का दबाव कम होगा। बिना किसी विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा के मनमाने ढंग से 11.95 करोड़ रुपये लगाकर खोदी गई "मोदी नहर" जून महीने में पूरी हुई और बारिश आते ही अगस्त में डूब गई। जल प्रवाह के नैसर्गिक और स्वाभाविक वेग से बालू के बहकर गड्ढों में भरने से नहर ने अपना अस्तित्व पूरी तरह खो दिया। नहर की खुदाई के समय ही इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए गए थे और इसे पैसे की बर्बादी करार दिया गया था। तब जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने आनन-फानन मोदी नहर से निकली गई बालू के उठान की निविदा जारी कर यह सिद्ध करने की कोशिश की कि ड्रेजिंग के एक हिस्से की लागत हम बालू उठान के ठेके से निकाल रहे हैं। ड्रेजिंग के नाम पर करोड़ों की लूट के बाद यह निविदा प्रशासनिक मनमानेपन और लूट की दूसरी किस्त थी, जिसमें व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ। गंगा की तलहटी खोदने वाले बालू कहां और कितना ले जा रहे हैं,  इसका हिसाब किसी के पास नहीं है।"

"गंगा का बालू कहां और कितना ढोया जा रहा है, इसका हिसाब किसी के पास नहीं है। जिलाधिकारी ने जून 2021 में मात्र छह महीने की अवधि के लिए रामनगर क्षेत्र में कुल नौ लाट बालू के उठान की निविदा जारी की थी, जिसमें तब केवल तीन लाट की निविदाएं ही स्वीकृत हुईं थीं। जिन ठेकेदारों को निविदा प्राप्त हुई उन्होंने एक महीने तक धड़ल्ले से गंगा के किनारे खनन किया और ड्रेज मटेरियल न उठाकर अपनी सुविधानुसार बालू की लूट की। उस समय भी इसकी लिखित शिकायत कलेक्टर से की गई, लेकिन उन्होंने कोई सार्थक कदम नहीं उठाया। अगस्त माह में बाढ़ आने के बाद नहर पूरी तरह से डूब कर समाप्त हो गई। नवंबर माह में गंगा का पानी उतरते ही ठेकेदारों ने मनमाने ढंग से गंगा के किनारे बालू खनन तेज कर दिया। मौजूदा समय में मौके पर न तो एक इंच भी नहर बची है और न ही नहर से निकाली गई वह बालू, जिसके लिए निविदा जारी हुई थी। जिला खनन अधिकारी से शिकायतें होती रहीं और करने के बावजूद हीला-हवाली करते रहे। जून 2021 से जारी निविदा की अवधि दिसंबर 2021 में समाप्त हो चुकी थी, इसके बावजूद अवैध खनन का खेल नहीं थमा। दर्जनों जेसीबी और सैकड़ों ट्रैक्टर लगाकर दिन-रात बालू का अवैध खनन किया जा रहा है।"

खनन माफिया से मिलीभगत का आरोप

एनजीटी में नौकरशाही की मनमानी के खिलाफ मुकदमा दायर करने वाले डा.अवधेश दीक्षित खुलेआम आरोप लगाते हैं कि जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा और जिला खनन अधिकारी पारिजात त्रिपाठी की मिलीभगत से खनन माफिया ने गंगा की रेत पर डाका डाला। नहर से निकाली गई बालू को उठाने की बजाय उससे कई गुना ज्यादा बालू मनमाने ढंगे से निकाल लिया गया। साथ ही अनियोजित ढंग से खुदाई कर नदी के तट का स्वरूप विद्रूप कर दिया गया, जो आगामी बाढ़ में किनारे के कटान का सबब बन सकता है। साक्ष्य पूर्ण शिकायतों के बाद भी प्रशासन की तरफ से इस लूट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।"

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रिंग रोड के निर्माण के लिए महादेव कंस्ट्रक्शन को लाट संख्या 07 से कुल 57 हजार 500 घन मीटर बालू उठाने का टेंडर दिया गया, लेकिन इस फर्म ने लाखों घन मीटर बालू खोद डाला। मीडिया में हो-हल्ला मचने पर शिकायतों की जांच-पड़ताल करने जिला खनन अधिकारी मौके पर पहुंचे। इससे पहले रेत माफिया गिरोहों को खबर मिल गई थी। जिला खनन अधिकारी पारिजात त्रिपाठी और पुलिस के आने की भनक से ही अवैध खनन माफिया भाग निकले। मौके पर एक भी जेसीबी, ट्रैक्टर के अलावा कोई मजदूर नहीं मिला। खनन विभाग के अधिकारी रामनगर के अलावा कोदोपुर स्थित गंगा बालू उठान की पड़ताल कर लौट गए।  

बाद में अवैध खनन के बारे में जिला खनन अधिकारी परिजात त्रिपाठी ने ऐसी सफाई पेश की, जो किसी के गले से नीचे उतरती ही नहीं है। वह कहते हैं, "नहर के मटियामेट होने के बाद भी घाटों से अवैध खनन की लगातार शिकायतें मिल रही थीं। जून 2021 में राजस्व की वसूली के लिए यूपीपीसीएल ने हमें नौ लाट दिए थे, जिसकी निविदा के बाद पांच लाट को तुरंत अलॉट कर दिया गया। लाट संख्या-सात के लिए संबंधित कंपनियों से पत्राचार किया जा रहा था। रिंग रोड के निर्माण में लगी महादेव कंस्ट्रक्शन को पिछले साल 15 जून तक 57500 घनमीटर बालू निकालने की अनुमति दी गई थी। नहर बनाने के तुरंत बाद बाढ़ आ जाने से खनन का कार्य तीन महीने प्रभावित रहा। साथ ही बालू का उत्खनित टीला रेत की मोटी परत के रूप में बदल गया। खनन करने वाली कंपनियों को एक निश्चित घनमीटर मात्रा में बालू निकालने की अनुमति दी गई है, जो पूर्व के नहर के स्थान वाले जगह से निकाले जा रहे है। अवैध बालू खनन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई करने के पुलिस को पत्र भी लिखा गया है।"

जांच-पड़ताल या फिर नाटक? 

मजेदार बात यह है कि जब जिला खनन अधिकारी परिजात त्रिपाठी अवैध खनन पर रोक नहीं लगा सके तब कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने रेत उठान से जुड़ी सभी पत्रावलियां तलब की। इसके बावजूद गंगा की तलहटियों ममें गुपचुप तरीके से अवैध खनन का खेल जारी रहा। नतीजा गंगा के किनारे दस-दस फीट से अधिक गहरे गड्ढे बना दिए गए। दिन-रात चले अवैध खनन के मामले में किसी भी विभाग और अधिकारी ने निगरानी करने की जहमत नहीं उठाई।

मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने जब खनन विभाग से पत्रावलियां तलब की तब कलेक्टर कौशलराज शर्मा के कान खड़े हुए। अपनी गर्दन बचाने के लिए लाचारी में उन्हें अवैध खनन पर रोक लगानी पड़ी। डीएम ने अपर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में टीम गठित कर खनन क्षेत्र के आंकलन की रिपोर्ट मांगी है। वह मीडिया को सफाई दे रहे हैं कि अवैध खनन करने वालों से वसूली की जाएगी।

यह बात अब साफ हो चुकी है कि खनन के टेंडर के बाद से खनन अधिकारी परिजात त्रिपाठी ने न तो खनिज के उठान का आंकलन किया और न ही मौके पर जाकर देखने की जहमत उठाई। इस महकमे के पास खनन की अवधि का एक भी निरीक्षण नोट नहीं है। साथ ही टेंडर वाली फर्मों से वाहनों की सूची भी नहीं है, जिससे उनके परिवहन की जांच कराई जा सके और अवैध खनन की पुष्टि होने पर संबधित फर्मों पर कार्रवाई करते हुए उनसे वसूली की जा सके।

सामाजिक कार्यकर्ता डा.अवधेश दीक्षित ऐलानिया तौर पर बयान दे रहे हैं कि बनारस के आला अफसरों ने खनन माफिया से मिलकर गंगा को लूटा है। वह कहते हैं, "अभी तक प्रशासन यह पड़ताल नहीं करा सका है कि गंगा से कितनी मात्रा में बालू की निकासी हुई है। नंगा सच यह है कि गंगा में बाढ़ आने से पहले जितने की निविदा हुई थी, टेंडर लेने वाली फर्मे उससे ज्यादा बालू पहले ही निकाल चुकी थीं। बाढ़ रुकने से पहले ही बालू माफिया पूरी तैयारी में थे। पानी उतरते ही अफसरों से मिलकर दिन-रात अवैध खनन शुरू कर दिया। कलेक्टर की अनुमति के बगैर गंगा में अवैध खनन भला कैसे हो सकता है?"

डा.दीक्षित यह भी बताते हैं, " सीएम योगी आदित्यनाथ ने साफ-साफ कह दिया था कि नहर का प्रोजेक्ट ठीक नहीं है। इस बारे में हमने  डीएम से लिखित और मौखिक शिकायत की तो उन्होंने हमारा व्हाट्सअप ब्लाक कर दिया। कोई यह बताने के लिए तैयार ही नहीं कि बाढ़ के बाद जब बालू की लाटें बची ही नहीं, तो सैद्धांतिक रूप से रेत निकालने के लिए खोदाई कैसे शुरू करा दी? गंगा में खोदी गई नहर का ड्रेज मैटेरियल उठाने का टेंडर जारी किया गया था, लेकिन खनन माफिया ने सैकड़ों जेसीबी और हजारों ट्रैक्टर लगाकर गंगा के समूचे किनारे को ही खोद डाला। यह तो बेशर्मी भरी लूट है। नौकरशाही की अनुमति के बगैर क्या कोई फर्म गंगा में खोदाई कर सकती है। अभी भी गंगा के किनारे जहां-तहां तहां जेसीबी और तमाम गाड़ियां छिपाकर रखी गई हैं। यह तो आर्थिक भ्रष्टाचार का बड़ा मामला है। इसका मूल्यांकन डीएम के अधीन काम करने वाला महकमा कतई नहीं कर सकता है। इसकी जांच तो सीबीआई अथवा अन्य किसी जांच एजेंसी से करार्ई जानी चाहिए। टेंडर से सौ गुना ज्यादा बालू पहले ही निकाला जा चुका है और रोक के बावजूद कई स्थानों पर खोदाई चल रही है। हमें लगता है कि अवैध खनन के इस खेल में सत्तारूढ़ दल के कुछ जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं जो खनन माफिया के खेल से वाकिफ होते हुए भी खामोश बैठे हैं। बालू की लूट उस जगह हो रही है जहां पीएम को मां गंगा ने बुलाया था। जिस जेसीबी को अपना ब्रांड बनाकर इसे चुनावी हथियार बना रही है उसी जेसीबी और बुल्डोजर का इस्तेमाल यहां बालू की लूट और डकैती के लिए प्रयोग किया जा रहा है।" 

डा.दीक्षित के मुताबिक, "गंगा बालू सौ फीट की दो हजार रुपये है। बालू की चेकिंग के लिए गंगा के किनारे कहीं कोई चेकपोस्ट नहीं है। जब बैरियर ही नहीं है, तो चेकिंग कैसे होगी? जितने की निविदा हुई थी सौ गुना से ज्यादा बालू सिर्फ एक जगह से उठाया गया है। एनजीटी ने हमारी याचिका स्वीकर कर ली है। एक ट्रैक्टर पर तीन-तीन ड्राइवर रखे गए हैं। इलाके भर के जेसीबी और ट्रैक्टर बालू ढोने के लिए लगाए गए हैं। एनटीजी में हमने जो याचिका दायर की है उसमें हमने जिलाधिकारी को भी पार्टी बनाया है। जांच के फ्रेम में आएंगे को कार्रवाई उनके खिलाफ भी होगी। बनारस के डीएम ईमानदार होते तो शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करते और तत्काल खनन बंद कराते। एनजीटी की याचिका का इंतजार नहीं करते।"

अवैध खनन स्थल पर मौजूद इलाहाबाद के गोपेश पांडेय़ ने गंगा के हालात को देखकर काफी नराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, "अवैध खनन को देखने से लगता है कि माफिया ने मनमाने ढंग से लूट-खसोट की है। गंगा की पारिस्थितिकी पर इसका काफी असर पड़ेगा। गंगा के साथ खिलवाड़ हो रहा है, इसलिए खड़े हैं।" गोपेश के साथी प्रद्योत कुमार सिंह कहते हैं, "अवैध खनन साफ-साफ दिख रहा है। जिस तरह से गंगा में डाका डाला गया है, वह बेशर्मी की पराकाष्टा है। मैं घूमने आया था, लेकिन गंगा की हालत देखकर हैरान हूं। पता नहीं, यह लूट-खसोट चुनाव के लिए धन जुटाने के लिए किया गया या फिर बनारस के विकास का यही नया मॉडल है।"  

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "सवाल पूछने पर जब पाबंदी लग जाए और तब सवाल बेमानी हो जाते हैं। ऐसे में न सिर्फ सवाल अपनी अहमियत खो देते हैं, बल्कि सरकार और प्रशासन बेलगाम हो जाता है। सिर्फ बनारस ही नहीं, पूरे प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की लूट मची हुई है। इस लूट की सबसे बड़ी शिकार हुई है गंगा। इसे काशी में साफ-साफ देखा जा सकता है। सरकार और प्रशासन की लूट वाली नीति और नीयत के चलते गंगा को नंगा किया जा रहा है। इस पवित्र का वस्त्र और आभूषण क्या है, यह सत्तारूढ़ दल के समझ में नहीं आ रहा है? गंगा के किनारों को आप समतल करने की कोशिश करेंगे तो नदी गहरी होने के बजाए छिछली होती चल जाएंगी।"

 प्रदीप यह भी कहते हैं, "यह बनारस मॉडल नहीं, गुजरात की कंपनियों मुनाफा कमवाने वाला मॉडल है। इस मॉडल में विकास की सनक और लूट होती है। सनक भरी योजनाएं इस तरह चलती रहेंगी तो बनारस के हजारों साल पुराने घाटों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। गंगा के बारे में विशेषज्ञों के सुझाव को नजरंदाज किया जाना काशी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों के साथ खुला खिलवाड़ है। कारपोरेट घरानों को मुनाफा कमवाने के लिए संसाधनों की लूट की जा रही है। यह खेल ऊंचे स्तर पर किया जा रहा है। प्रशासनिक अफसरों की तो कोई औकात ही नहीं है कि वो खनन माफिया पर कार्रवाई कर सकें।"

लोकतंत्र सेनानी अशोक मिश्र बेबाकी के साथ कहते हैं, “गंगा की सौगंध लेने वालों को देखना चाहिए कि जिस देवी की यह पूजा करते हैं, अगर गंगा खत्म हो गई तो उस देवी का क्या होगा! अनियोजित विकास की सनक के चलते गंगा का हरी काई से ढंक जाना इस नदी को लेकर हमारी सामाजिक चेतना पर छाई काई के लिए गजब का अलंकार है। गंगा के इस रूप को हम पहले देख चुके हैं और आने वाले दिनों में हम इसके नए रूप को देखेंगे। तब शायद हमारे पास सहेजने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं।”

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License