NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
8 दिसंबर : 'भारत बंद'
इस बंद को क्यों बुलाया गया है और इसका क्या असर होगा ?
सुबोध वर्मा
07 Dec 2020
भारत बंद

कल (8 दिसंबर) के भारत बंद का आह्वान किसने किया है ?

4 दिसंबर का शुरुआती आह्वान उस संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से किया गया था, जिसमें देश भर के तक़रीबन 500 किसान संगठन शामिल हैं। वे चल रहे किसानों के उस विरोध का नेतृत्व कर रहे हैं,जिसमें दिल्ली जाने वाले कई राजमार्गों की नाकाबंदी और 27 नवंबर को इस नाकेबंदी के शुरू होने के बाद से कई राज्यों में आयोजित विरोध प्रदर्शन शामिल हैं।

इसके बाद,इस बंद को 18 प्रमुख राजनीतिक दलों,10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों,भारत के बैंकों, बीमा क्षेत्र, विश्वविद्यालय और स्कूल के शिक्षकों/अधिकारियों, छात्रों, नौजवानों सहित महिलाओं,दलितों और आदिवासियों के संगठनों,सशस्त्र बलों के अवकाशप्राप्त सैनिकों,फ़िल्म उद्योग से जुड़े कामगारों, अनौपचारिक क्षेत्र और अनुबंध कामगारों, आदि सहित सैकड़ों अन्य संगठनों ने समर्थन किया है।

इस 'बंद' का आह्वान क्यों किया गया है ?

इस साल के जून में जब इन तीन क़ानूनों को पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने अध्यादेश के तौर पर जारी किये थे,तभी से किसान इस नये कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं। सरकार ने उन पर बिना समुचित चर्चा और मतदान के सितंबर में संसद के ज़रिये ताक़त के दम पर (अध्यादेशों की जगह) सितंबर में इन्हें क़ानून के रूप में पारित करा लिया था।

इन तमाम महीनों में किसान यह बताते हुए उन क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे कि इन्हें लेकर उनसे कभी सलाह-मशविरा नहीं किया गया,उन्होंने इन कानूनों की कभी मांग ही नहीं की थी, और कि ये क़ानून खेती की मौजूदा प्रणाली, कृषि उत्पाद के कारोबार और यहां तक कि इन उत्पादों के भंडारण और मूल्य निर्धारण की प्रणाली को भी तबाह कर देंगे।

इसके बावजूद,मोदी सरकार ने इन विरोधों को नज़रअंदाज़ कर दिया और विरोध से आंख मूंदते हुए इन क़ानूनों के साथ शायद यह सोचकर आगे बढ़ गयी कि इस समय देश में फैली महामारी के चलते किसी तरह का कोई बड़ा विरोध नहीं होगा।

लेकिन,किसान इन क़ानूनों से इतने नाराज़ थे कि उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए 26-27 नवंबर को दिल्ली में मार्च करने का फ़ैसला किया। मुख्य रूप से पड़ोसी राज्यों से मार्च कर रहे किसानों को हरियाणा में आंसू गैस, पानी के तोप और सड़कों की नाकेबंदी का सामना करना पड़ा,जिसे उन्होंने कामयाबी के साथ  इन तमाम बाधाओं पार करते हुए दिल्ली बॉर्डर के अलग-अलग जगहों तक पहुंच गये। तब से वे वहीं डेरा डाले हुए हैं।

इन घटनाक्रमों से हिलकर मोदी सरकार ने उन्हें पहली बार मंत्रियों के साथ बातचीत के लिए आमंत्रित किया। इससे पहले,किसान सरकार से मिलने के लिए अपने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ आये थे,लेकिन नौकरशाहों ने उन्हें बिना किसी सार्थक बातचीत के चलता कर दिया था।

कृषि मंत्री और दो अन्य मंत्रियों के साथ तीन दौर की बातचीत के बाद यह साफ़ हो गया कि मोदी सरकार इन क़ानूनों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए,किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया है ताकि वे देशव्यापी समर्थन दिखा सकें और सरकार को उनकी नामसझी का एहसास करा सकें।

क्या सरकार ने उनकी कुछ मांगों को नहीं माना है ?

इस बातचीत में सरकार वास्तव में यह कहकर थोड़ी सी ढीली हुई है कि वह क़ानूनों में कुछ संशोधन करने पर विचार करेगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के अहम मुद्दे पर सरकार ने कहा है कि वह मौजूदा प्रणाली को जारी रखेगी, और उस कृषि उत्पादन बाज़ार समितियों (APMC) को लेकर भी ऐसा ही कहा गया है,जहां किसान एमएसपी पर सरकारी एजेंसियों को अपने उत्पाद बेचते हैं।

लेकिन,सरकार ने इन क़ानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने से इनकार कर दिया है। किसान कह रहे हैं कि ऊपरी बदलाव उन्हें स्वीकार्य नहीं होंगे,क्योंकि इससे खेती और कृषि से जुड़े वस्तु व्यापार के कॉर्पोरेट अधिग्रहण की उनकी आशंकाओं का समाधान नहीं होता हैं।

ऐसे में कल के बंद के असर की क्या संभावना है ?

इस भारत बंद के व्यापक असर होने की संभावना इसलिए है, क्योंकि पिछले 10 -12 दिनों में सरकार की कठोरता के क़िस्से देश भर को पता चला गये हैं कि सरकार ने किसानों के आंदोलन को नेस्तनाबूद करने के लिए अपनी गंदी चालें चली हैं। इन तीनों क़ानूनों ने किसानों में ज़बरदस्त नाराज़गी पैदा कर दी है और उनमें इस बात का डर घर कर गया है कि उनकी ज़मीन को लेकर भी ख़तरा पैदा हो सकता है,और वे अपनी ही ज़मीन पर काम करने वाले मज़दूर बनाये  जा सकते हैं। यही वजह है कि सभी राज्यों में किसानों के इस विरोध का व्यापक समर्थन है।

इसके अलावा,कई राजनीतिक दलों,ख़ासकर क्षेत्रीय दलों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है। यही इस बात को सुनिश्चित करेगा कि संगठनात्मक पहुंच और शक्ति के आधार पर भारत बंद का व्यावहारिक रूप से सभी राज्यों पर कमोवेश असर पड़ेगा।

मुमकिन है कि कई राज्यों के शहरी क्षेत्रों में जन-जीवन ज़्यादा प्रभावित नहीं हो, लेकिन ज़्यादातर राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों और टोल प्लाज़े की नाकेबंदी होगी। हाल के दिनों में प्रधानमंत्री मोदी और अम्बानी और अडानी जैसे कॉरपोरेट के बड़े-बड़े लोगों के पुतले जलाते हुए हज़ारों जगहों पर प्रदर्शन हुए हैं, जबकि हर जगह पर स्थानीय सड़कों की नाकेबंदी की गयी हैं। इससे पता चलता है कि देश भर के किसान इस इस बंद में शामिल हैं और इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए तैयार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Explainer: ‘Bharat Bandh’ on December 8

Bharat Bandh
Farmers’ Protest
Farm Laws
Samyukt Kisan Morcha
Dec 8 bandh

Related Stories

देशव्यापी हड़ताल: दिल्ली में भी देखने को मिला व्यापक असर

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ भारत बंद का दिखा दम !

क्यों मिला मजदूरों की हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा का समर्थन

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

एमएसपी पर फिर से राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेगा संयुक्त किसान मोर्चा

1982 की गौरवशाली संयुक्त हड़ताल के 40 वर्ष: वर्तमान में मेहनतकश वर्ग की एकता का महत्व

किसानों को आंदोलन और राजनीति दोनों को साधना होगा


बाकी खबरें

  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    संतूर के शहंशाह पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में निधन
    10 May 2022
    पंडित शिवकुमार शर्मा 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर बजाना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में 1955 में किया था। शिवकुमार शर्मा की माता जी श्रीमती उमा दत्त शर्मा स्वयं एक शास्त्रीय…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ग़ाज़ीपुर के ज़हूराबाद में सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर पर हमला!, शोक संतप्त परिवार से गए थे मिलने
    10 May 2022
    ओमप्रकाश राजभर ने तत्काल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम, गाजीपुर के एसपी, एसओ को इस घटना की जानकारी दी है। हमले संबंध में उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा के…
  • कामरान यूसुफ़, सुहैल भट्ट
    जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती
    10 May 2022
    आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    मछली पालन करने वालों के सामने पश्चिम बंगाल में आजीविका छिनने का डर - AIFFWF
    10 May 2022
    AIFFWF ने अपनी संगठनात्मक रिपोर्ट में छोटे स्तर पर मछली आखेटन करने वाले 2250 परिवारों के 10,187 एकड़ की झील से विस्थापित होने की घटना का जिक्र भी किया है।
  • राज कुमार
    जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप
    10 May 2022
    सम्मेलन में वक्ताओं ने उन तबकों की आज़ादी का दावा रखा जिन्हें इंसान तक नहीं माना जाता और जिन्हें बिल्कुल अनदेखा करके आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। उन तबकों की स्थिति सामने रखी जिन तक आज़ादी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License