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‘देश बचाओ’ के नारे के साथ सड़क पर निकले मज़दूरों और आशा कर्मियों पर मुकदमा
दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने को लेकर, संसद मार्ग थाने में सेंट्रल ट्रेड यूनियन और आशा वर्कर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
12 Aug 2020
‘देश बचाओ’ के नारे के साथ सड़क पर निकले मज़दूरों और आशा कर्मियों पर मुकदमा

दिल्ली: मज़दूर-किसानों के देशव्यापी ‘देश बचाओ आंदोलन’ के तहत जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने को लेकर,संसद मार्ग थाने में सोमवार को सेंट्रल ट्रेड यूनियन और आशा वर्कर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। यह जानकारी डीसीपी ईश सिंघल ने ट्वीट कर दी। दरअसल मज़दूर संगठन लगातर पिछले कुछ महीनों से अपनी मांगो को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे परन्तु कोरोना माहमारी के बाद यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में मज़दूर किसान और स्कीम वर्कर ने एक साथ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया था।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि संगठनों के पास प्रदर्शन के लिए कोई अनुमति नहीं थी, इसके बाद भी भीड़ के साथ प्रदर्शन किया गया। जबकि मज़दूर संगठनों ने साफ किया कि ये उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, एक तरफ सरकार मज़दूरों की नौकरी छीन रही है और दूसरी तरफ जब मज़दूर उसका विरोध कर रहा है तो उनपर मुकदमें दर्ज करा रही है।

 

पुलिस के मुताबिक, आईपीसी की धारा 188, एपिडेमिक एक्ट और डिजास्टर मैनेजमेंट की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है। प्रदर्शन के दौरान सेंट्रल ट्रेड यूनियन और आशा वर्कर्स के बैनर तले करीब सैकड़ों की संख्या में लोग, जंतर मंतर पर आए, इसमें बड़ी संख्या महिलाओं की थी। पुलिस ने कहा इस प्रदर्शन के दौरान कई महिलाओं ने तो मास्क तक नहीं पहना था। वहीं ट्रेड यूनियन के प्रदर्शन में भी लगभग इतने ही लोग आए थे।

डीसीपी ने बताया कि अनलॉक 3 के दौरान बिना किसी जरूरी काम के जनता के घर से बाहर न निकलने की अपील की जा रही है। ऐसे में अगर नियम तोड़ते हुए बिना किसी वजह के कोई भीड़ एकत्र करने का काम करेगा तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

 "एफआईआर आवाज़ दबाने की कोशिश"

जिन आशा वर्कर पर एफआईआर दर्ज की गई उनका कहना है कि वे इस कोरोना की माहमारी में सबसे आगे होकर लड़ रही हैं परन्तु उन्हें न वेतन मिलता है और न कोई सुरक्षा, आज भी वो दिल्ली में 3000 रुपये में काम करने को मज़बूर हैं। वो अपने वेतन में बढ़ोतरी के लिए और अपने लिए सुरक्षा उपकरण की मांग को लेकर जंतर मंतर आईं थी। परन्तु सरकार ने उनकी मांग तो नहीं सुनी और उल्टा एफआईआर कर दिया।

मज़दूर संगठनों ने पुलिस द्वार की गई कार्रवाई की निंदा की और इसे सरकार के इशारे पर मज़दूरों की आवाज़ दबाने की कोशिश बतया। सेंट्रल ट्रेड यूनियन ऐक्टू ने बयान जारी कर इस कार्रवाई को सरकारी आपातकाल बताया। उन्होंने अपने बयान में कहा कि ये कार्रवाई प्रधानमंत्री के इशारे पर की गई है। ये सरकार जब से आई है तब से ही मज़दूरों के खिलाफ कार्य कर रही है और अब वो नहीं चाहते कि मज़दूर उनके खिलाफ सड़कों पर उतर कर विरोध करें।

आगे उन्होंने कहा कि सरकार मज़दूरों को इस एफआईआर से डराने की कोशिश कर रही है परन्तु वो नहीं जानते की हम डरने वाले नहीं हैं, मज़दूर इस दमन का समय आने पर जवाब देगा। ऐक्टू ने कहा कि सभी मज़दूर संगठन फिर से चर्चा करने के बाद अपने आगे के आंदोलन को और तेज़ करेंगे।

मज़दूर नेताओं ने इस अंदोलन को ऐतिहासिक आंदोलन कहा था और बताया कि मज़दूर वर्ग में जिस तरह की एकता हुई है उससे सरकार में भय पैदा हो गया है और इसलिए वो इस तरह के हथकंडे अपना रही है।

कई मज़दूर नेताओं ने तो इसको लेकर भी सवाल किया जिस आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत मज़दर नेताओं के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किया गया है,परन्तु उसी अधिनियम के तहत लॉकडाउन के शुरुआत में कहा गया था मालिक किसी भी मज़दूर को न निकलेगा और न वेतन कटौती करेगा। अगर मालिक ऐसा करता है तो उसपर क़ानूनी कार्रवाई होगी लेकिन क्या ऐसा हुआ? क्या पुलिस ने उन मालिकों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की? जबकि राजधानी दिल्ली में ही लाखों की संख्या में मज़दूरों को नौकरी से हटा दिया गया।

इसके बाद भी मज़दूरों ने कई महीनो तक आपदा को देखते हुए धैर्य रखा और उन्होंने बीते मार्च जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया लेकिन जब मालिकों ने जुल्म की इंतेहा कर दी और सरकार भी उनके साथ मिलकर मज़दूरों पर हमला किया। तब जब मई में ढील दी गई तो ट्रेड यूनियनों ने पहले 22 मई को देशव्यापी प्रदर्शन किया। इसके अलावा जून और जुलाई में भी प्रदर्शनों में तेज़ी आई और 9 अगस्त भारत छोड़ दिवस के दिन मज़दूरों ने अपने अधिकार के लिए देश बचाओ अभियान के तहत देशव्यापी प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में किसान संगठन, स्कीम वर्कर्स और ट्रेड यूनियनों से अलग मज़दूर संगठनों ने भी एक साथ आकर प्रदर्शन किया था।

 

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