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राजनीति
किसान आंदोलन: सड़क से संसद तक लड़ते किसान
किसान केंद्र द्वारा पारित तीन नए विवादित कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही हरियाणा और पंजाब के आंदोलन के दौरान किसानों पर लगाए जा रहे आपरधिक मामलों की वापसी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं, इन सबके बीच वो विपरीत मौसम का भी सामना कर रहे हैं। सोमवार से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में भी किसानों का मुद्दा गर्मा रहा है।
मुकुंद झा
20 Jul 2021
किसान
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

किसान आंदोलन आज, मंगलवार 20 जुलाई को 236वें दिन में प्रवेश कर गया है।  इस दौरान प्रदर्शनकारी किसान एक साथ कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहे हैं। वे जहाँ केंद्र द्वारा पारित तीन नए विवादित कृषि कानूनों की वापसी के लिए लड़ रहे हैं, वहीं हरियाणा और पंजाब में आंदोलन के दौरान किसानों पर लगाए जा रहे आपरधिक मामलों की वापसी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। इन सबके बीच वे विपरीत मौसम का भी सामना कर रहे है। सोमवार से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में भी किसानों का मुद्दा गर्मा रहा है और इसी के साथ किसान 22 जुलाई से संसद तक विरोध मार्च की भी तैयारी  कर रहे हैं। 

संसद में गूंजा किसानों का मुद्दा

संयुक्त किसान मोर्चा ने संसद के मानसूत्र सत्र के पहले दिन सोमवार को किसानों के मुद्दे पर हुए हंगामे को महिलाओं, दलितों और पिछड़ों, आदिवासियों के मंत्री बनने से उपजी नाराज़गी बताये जाने की कड़ी निंदा की है। मोर्चा ने एक बयान जारी करके कहा है कि नरेंद्र मोदी का बयान (एक लोक-विरोधी सरकार का बचाव करने के लिए, जिस पर कई मोर्चों पर उसकी विफलताओं के लिए हमला किया जा रहा है और जिसे इस संसद सत्र में मुश्किल का सामना करना पड़ेगा) वास्तव में निरर्थक है क्योंकि संसद भवन में गूँज रहे नारे किसान आंदोलन से सीधे संसद पहुंचे थे। जो नारे लगाए जा रहे थे, वे हाशिये के नागरिकों के थे, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सरकार के अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक कानूनों और नीतियों का सामना करना पर रहा है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इससे पहले सभी सांसदों को एक ‘पीपुल्स व्हिप’ जारी किया था और एसकेएम के प्रतिनिधिमंडल ने कई सांसदों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की थी। विपक्षी सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में उन मुद्दों को उठाया जिन्हें किसान आंदोलन कई महीनों से उठा रहा है।

बयान में कहा गया है कि एसकेएम प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहता है कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, किसानों और ग्रामीण भारत के अन्य लोगों सहित देश के हाशिये पर रहने वाले समुदायों को सच्चा सम्मान तभी मिलेगा जब उनके हितों की वास्तव में रक्षा की जाएगी। इसके लिए सरकार को तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को रद्द करने और ईंधन की कीमतों को कम से कम आधा करने के अलावा सभी किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांगो पर अमल करना चाहिए। अन्यथा बचाव के लिए खोखले शब्द अर्थहीन हैं।

"संसद विरोध मार्च को पुलिस संसद घेराव बता रही"

संयुक्त किसान मोर्चा ने नोट किया कि दिल्ली पुलिस, किसानों के संसद विरोध मार्च की योजनाओं के बारे में स्पष्ट रूप से सूचना होने के बावजूद, इसे “संसद घेराव” करार दे रही है। एसकेएम ने पहले ही सूचित कर दिया था कि संसद की घेराबंदी करने की कोई योजना नहीं है, और विरोध शांतिपूर्ण और अनुशासित होगा। दिल्ली पुलिस जानबूझकर गलत सूचना दे रही है और एसकेएम ने दिल्ली पुलिस को ऐसा करने से बचने को कहा।

आपको बता दे एसकेएम ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था की गिनती के दो सौ लोगों संसद विरोध मार्च में शामिल होंगे और उनकी भी जानकारी प्रशासन को दे दी जाएगी। प्रदर्शनकारियों की पहचान के लिए एसकेएम द्वारा मार्च में शामिल वाले किसानों आईडी कार्ड जारी किया जायेगा।

किसान नेता सिरसा का आमरण अनशन जारी

उधर, सिरसा में सरदार बलदेव सिंह सिरसा का अनिश्चितकालीन अनशन मंगलवार तीसरे दिन में प्रवेश कर गया। प्रशासन ने प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांगों, कि सभी मामलों को वापस लिया जाए और गिरफ्तार किए गए किसान नेताओं को तुरंत रिहा कर दिया जाए, को अभी तक पूरा नहीं किया है।

किसान नेताओं के मुताबिक हरियाणा पुलिस और प्रशासन शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे किसानों पर राजद्रोह और अन्य गंभीर आरोप लगाने में अपनी हद से आगे बढ़ रही है और यह पूरी तरह से आपत्तिजनक और अस्वीकार्य है।

चंडीगढ़ की एक नागरिक समिति ने एसकेएम लीगल सेल के प्रेम सिंह भंगू के साथ, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज मामलों और तीन प्रदर्शनकारियों को न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के संबंध में सोमवार को चंडीगढ़ प्रशासन से मुलाकात की। एसएसपी ने आश्वासन दिया कि रखी गई मांगों पर गंभीरता से विचार किया जायेगा और पूरा किया जाएगा। इसमें गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों के लिए जमानत, हाल की घटनाओं के साथ-साथ 26 जून को दर्ज मामलों पर पुनर्विचार और आगे कोई गिरफ्तारी नहीं, शामिल है।

भाकियू कादियान ने स्पष्टीकरण जारी किया है कि उन्होंने चंडीगढ़ में सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए कोई आह्वान नहीं किया है। न तो एसकेएम और न ही भाकियू कादियान ने ऐसा कोई कॉल किया है, और इस तरह की कॉल के बारे में सोशल मीडिया में प्रसारित की जा रही कोई भी खबर फर्जी है, और इसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए।

एसकेएम ने बतया कि भारत सरकार ने मानसून सत्र के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक 2021 (फिर से जारी किए गए अध्यादेश को बदलने के लिए) के साथ-साथ विद्युत संशोधन विधेयक 2021 को विधायी व्यवसाय के तहत सूचीबद्ध किया है। एसकेएम ने सरकार को इन मामलों पर 30 दिसंबर 2020 को प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रति की गई प्रतिबद्धता से मुकरने के खिलाफ चेतावनी दी है।

एसकेएम ने कहा कि वह किसान आंदोलन के समर्थकों द्वारा लंदन में भारतीय उच्चायोग के बाहर आयोजित विरोध प्रदर्शन को संज्ञान में लेता है और उसकी सराहना करता है। यह लंदन में विरोध प्रदर्शन में, उच्चायोग के बाहर, फुटपाथ पर खुले में सोये प्रदर्शनकारियों से प्रेरणा लेता है।

इसके अलावा विभिन्न सीमाओं पर किसानों का विरोध कैंप लगातार बारिश से जूझ रहा है। यहां के किसान बहादुरी और बिना शिकायत के कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। दरअसल वे बारिश पर खुशी जाहिर कर रहे हैं, क्योंकि यह बोई गई खरीफ फसलों के लिए अच्छा है।

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