NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
वे तो शहीद हुए हैं, मरा तो कुछ और है!
कृषि मंत्री के चुनिंदा स्मृतिलोप की क्रोनोलॉजी जानते हैं कि कैसे उनके मंत्रालय को नहीं मालूम है कि कितने किसान आंदोलन में शहीद हुए हैं, लेकिन आंदोलन के हर छोटे-बड़े पल की पूरी जानकारी सरकार और उसके मंत्रियों को होती थी।
बादल सरोज
02 Dec 2021
kisan andolan
फाइल फोटो।

तीन कृषि कानूनों की वापसी के लिए लड़ते-लड़ते किसान आंदोलन में शहीद हुए सातेक सौ किसानों के बारे में संसद में दिए जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि; "कृषि मंत्रालय के पास इस बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है। ऐसे में वित्तीय सहायता देने का सवाल नहीं उठता।"  

यह उस सरकार के मंत्री का बयान है जिसके पास पक्की जानकारी थी कि "सारे किसान नहीं, बल्कि कुछ मुट्ठी भर गुमराह किसान आंदोलनरत हैं।" जिसके प्रधानमंत्री से लेकर मोबाइल पर व्हाट्सप्प दीक्षांत कार्यकर्ता तक के पास पुख्ता सूचना थी कि आंदोलन करने वाले किसान "खालिस्तानी" हैं, पाकिस्तान से प्रायोजित हैं, चीन से पैसा लेते हैं, इंटरनेशनल एजेंडा चलाते हैं। भाई जी और उनकी सरकार को इस बात की भी एकदम पुष्ट जानकारी थी कि ये सब के सब देशद्रोही हैं।  

उनके पास इस बात की भी डेली अपडेट्स थीं कि किस दिन वे पिज़्ज़ा खा रहे हैं, किस दिन खीर और पूड़ी बनी है, किस दिन बिरियानी छकी जा रही है, कि कैसे कैसे आरामदेह गद्दों पर सोया जा रहा है, कि कितनी कितनी गुदगुदी रजाईयाँ ओढ़ी जा रही हैं। एक मोहतरमा मंत्राणी को तो यह भी पता था कि कितने रूपये रोज की दिहाड़ी पर उन्हें दिल्ली लाया जा रहा है- उनके पास तो ऐसे महिला-पुरुषों की तस्वीरें तक थी।  

हैरत की बात है कि जिस सरकार को यह सब पता था, सब कुछ पता था, उसे यह नहीं पता कि कितने किसान इस आंदोलन में मारे गए। 

कुल 689 किसाननहीं मरे, वे तो देश की खेती और किसानी को कारपोरेट भेड़ियों के जबड़े से वापस छीनकर ले आने की देशभक्तिपूर्ण लड़ाई में शहीद हुए हैं; मरा तो कुछ और है। मरा तो वह नैतिक, राजनैतिक, मानवीय उत्तरदायित्व है, जो किसी भी निर्वाचित सरकार के होने की पहली पहचान होती है। मरी हैं सहानुभूति और संवेदनायें, मरी हैं इंसानियत, मरी है सभ्यता की पहचान। अपने नागरिकों की दुःख तकलीफों के प्रति संवेदना, उनकी पीड़ादायी मौतों के समय उनके प्रति सहानुभूति रखना सरकार की ही नहीं, सभ्य समाज की पहचान है। मौजूदा सरकार इस मानवीय गुण से पूरी तरह वंचित है।  

कृषिमंत्री उसी समुदाय के हैं, जिसके मुखिया ने पूरे साल भर, यहां तक कि 19 नवम्बर के अपने 18 मिनट के "एक तपस्वी की आत्मरति" वाले भाषण तक में इन शहीद हुए हिन्दुस्तानियों के प्रति सहानुभूति का एक भाव, उनके परिजनों के प्रति संवेदना का एक शब्द भी नहीं बोला। यह अनायास नहीं है; यह वह निर्लज्ज धूर्तता है, जिसे मौजूदा हुक्मरान अपनी चतुराई मानते हैं। 

किसान आंदोलन में मारे गए शहीदों की बाकायदा एक सूची है। पंजाब के विश्वविद्यालय के दो नामचीन प्रोफेसर्स इनमें से एक-एक किसान के परिवार से बात करके उनकी माली और समाजी हैसियत का पूरा ब्यौरा इकट्ठा कर चुके हैं; मगर कृषिमंत्री और उनकी सरकार को कोई जानकारी नहीं है। ठेठ राजधानी में सरकार की नाक के नीचे हुए हादसों की उस सरकार को खबर तक नहीं, जो हर आड़े-टेढ़े समय कुसमय में अपनी आँखों से टसुए बहाते हैं; उन्हें नहीं पता कि उनके राज में, उनकी वजह से कितने मनुष्यों ने अपना बलिदान दे दिया है।  

यह सेलेक्टिवनेस सिर्फ किसानों के बारे में नहीं है। यही क्रूर चुनिंदा स्मृतिलोप (सेलेक्टिव एमनीसिया) पिछली वर्ष इसी सरकार ने इसी संसद में दिखाया था, जब उसने कहा था कि "कोरोना की मौतों के बारे में उसके पास कोई आँकड़ा नहीं है। इस देश में जिस बीमारी से 40 से 50 लाख तक मौतों की आशंका दुनिया जता रही थी, उस देश की सरकार पूरी निष्ठुर दीदादिलेरी के साथ ऐसी किसी भी मौत की जानकारी न होने का दावा कर रही थी। यही स्मृतिलोप बेरोजगारी, भुखमरी, जीडीपी और नोटबंदी के समय भी उजागर हुआ था।

विडम्बना की बात यह है कि इस झांसेबाज़ी की झक्क में कृषिमंत्री अपने ही कार्यकर्ताओं की मौतों को भी दरकिनार कर जाते हैं। दिल्ली की पलवल बॉर्डर पर भीषण ठण्ड में अगुआई करने वाले सरदार सुरेंदर सिंह कृषि मंत्री के गृह जिले ग्वालियर के चीनोर के भाजपा के बड़े नेता थे। पिछली लोकसभा में जब कृषि मंत्री तोमर ने ग्वालियर लोकसभा सीट से मामूली मतों से जीत हासिल की थी उस वक़्त चीनोर के सारे पोलिंग बूथ्स से चुनाव जितवाने वाले यही सुरेंदर सिंह थे। वे नए भाजपाई नहीं थे। इन पंक्तियों के लेखक ने जब 1989 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब भी सुरेंदर सिंह भाजपा के लिए काम करते थे।  तोमर भले उनकी मौत पर मातमपुर्सी करने नहीं गए हों, ग्वालियर के भाजपा सांसद विवेक नारायण शेजवलकर और पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा जरूर आये थे। किसान आंदोलन में शहीद हुए ऐसे ही एक और भाजपा कार्यकर्ता ग्वालियर के ही सिगौरा ग्राम के शौकत हुसैन थे। क्या इन दोनों की मौतों का भी कोई आंकड़ा या सूचना भाजपा सरकार के पास नहीं है? 

कृषिमंत्री और उनके ऊपर वालों को यह पता होना चाहिये कि तीन कृषि कानूनों के बाद एमएसपी के बाध्यकारी क़ानून के बारे में एसकेएम से परामर्श के जरिये निश्चित समय सीमा में फैसला करने वाली एक समिति बन सकती है, बिजली क़ानून रुक सकता है और बातचीत जारी रह सकती है,.......यह लेकिन अत्यंत निर्णायक तथा नॉन-नेगोशिएबल है....शहीदों को राहत और मुआवजे, झूठे मुकदमों की वापसी एवं सिंघु बॉर्डर पर शहीदों का स्मारक बनाये बिना किसान घर वापस नहीं लौटने वाले।  

पता नहीं जिस सरकार को कुछ भी नहीं पता उसे यह सच भी पता है कि नहीं कि कबीर बाबा कह गए हैं कि; 

"दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय। 

मरी खाल की सांस से, लोह भसम हो जाय।"

किसान आंदोलन में शहादत देने वाले तो इतने सबल थे कि निरंकुश हठ का अहंकार तोड़ गए। बाकी सब भी ध्वस्त करेंगे।  

Farmers Protest Against Farm Laws
farmers movement
Farm Laws
Anti-farmer Policies of Modi Government
Farmers Deaths During Protest
kisan andolan
New Farm Laws

Related Stories

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

यूपी चुनाव में भाजपा विपक्ष से नहीं, हारेगी तो सिर्फ जनता से!

किसानों को आंदोलन और राजनीति दोनों को साधना होगा

पंजाब में राजनीतिक दलदल में जाने से पहले किसानों को सावधानी बरतनी चाहिए

ख़बर भी-नज़र भी: किसानों ने कहा- गो बैक मोदी!

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

लखीमपुर कांड की पूरी कहानी: नहीं छुप सका किसानों को रौंदने का सच- ''ये हत्या की साज़िश थी'’

किसान आंदोलन ने देश को संघर्ष ही नहीं, बल्कि सेवा का भाव भी सिखाया

किसान आंदोलन की जीत का जश्न कैसे मना रहे हैं प्रवासी भारतीय?


बाकी खबरें

  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!
    29 Mar 2022
    जगह-जगह हड़ताल के समर्थन में प्रतिवाद सभाएं कर आम जनता से हड़ताल के मुद्दों के पक्ष में खड़े होने की अपील की गयी। हर दिन हो रही मूल्यवृद्धि, बेलगाम महंगाई और बेरोज़गारी के खिलाफ भी काफी आक्रोश प्रदर्शित…
  • मुकुंद झा
    दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन
    29 Mar 2022
    केंद्रीय ट्रेड यूनियन ने इस दो दिवसीय हड़ताल को सफल बताया है। आज हड़ताल के दूसरे दिन 29 मार्च को देश भर में जहां औद्दोगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की हड़ताल हुई, वहीं दिल्ली के सरकारी कर्मचारी और रेहड़ी-…
  • इंदिरा जयसिंह
    मैरिटल रेप को आपराधिक बनाना : एक अपवाद कब अपवाद नहीं रह जाता?
    29 Mar 2022
    न्यायिक राज-काज के एक अधिनियम में, कर्नाटक उच्च न्यायालय की व्याख्या है कि सेक्स में क्रूरता की स्थिति में छूट नहीं लागू होती है।
  • समीना खान
    सवाल: आख़िर लड़कियां ख़ुद को क्यों मानती हैं कमतर
    29 Mar 2022
    शोध पत्रिका 'साइंस एडवांस' के नवीनतम अंक में फ्रांसीसी विशेषज्ञों ने 72 देशों में औसतन 15 वर्ष की 500,000 से ज़्यादा लड़कियों के विस्तृत सर्वे के बाद ये नतीजे निकाले हैं। इस अध्ययन में पाया गया है कि…
  • प्रभात पटनायक
    पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों में फिर होती बढ़ोतरी से परेशान मेहनतकश वर्ग
    29 Mar 2022
    नवंबर से स्थिर रहे पेट्रोल-डीज़ल के दाम महज़ 5 दिनों में 4 बार बढ़ाये जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License