NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
नज़रिया
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
बात बोलेगी: विपक्ष बुलाए शीत सत्र, दिल्ली बॉर्डर पर लगाई जाए जन संसद
सत्ता पक्ष ने तो संसद का शीतकालीन सत्र रद्द कर दिया है तो अब विपक्ष का दायित्व है कि वो किसानों के बीच जाकर खुली संसद लगाए।
मुकुल सरल
21 Dec 2020
Farmers protest
प्रतीकात्मक तस्वीर : किसान एकता मोर्चा के फेसबुक पेज से साभार

तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ ऐतिहासिक किसान आंदोलन के चलते सत्ता पक्ष अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी से भाग खड़ा हुआ हुआ है। लेकिन इसमें बिल्कुल भी हैरत नहीं। हैरत इस बात में है कि सत्ता पक्ष ने कोरोना की आड़ में संसद का शीतकालीन सत्र रद्द कराया और विपक्ष ने उसे स्वीकार कर लिया। इसके विरुद्ध जैसी गोलबंदी, नाराज़गी और विरोध दिखाई देना चाहिए था, वो नहीं दिखाई दिया। न किसी दल ने राष्ट्रपति से मुलाकात की, न लोकसभा अध्यक्ष से। न संसद तक पैदल मार्च किया, न धरना, न उपवास!

सरकार के एक ऐसे अवैधानिक फ़ैसले को मान लिया गया, जिसका कोई तर्क नहीं है। अगर कोविड का तर्क होता तो न तो बिहार विधानसभा चुनाव होते, न हैदराबाद नगर निगम चुनाव, न जगह-जगह पंचायत चुनाव, और न अब बंगाल चुनाव के लिए महीनों पहले रोज़ के दौरे, रोड शो और रैली होती। आज लोकसभा के 545 और राज्यसभा के 245 सदस्यों के लिए कोरोना का डर है, लेकिन लाखों की भीड़ के लिए कोरोना का डर नहीं! और लाखों की भीड़ भी कोई और नहीं यही माननीय नेता इकट्ठा कर रहे हैं, जो संसद में बैठते।

अगर वाकई कोरोना की फिक्र या डर होता तो इससे पहले वो मानसून सत्र भी न होता जिसमें ये किसान विरोधी तीन बिल पास कराए गए हैं, जिसके विरोध में आज लाखों किसान इस कड़कड़ाती सर्दी में दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं।

संसद का मानसून सत्र सितंबर में हुआ, जब आज के मुकाबले कोरोना का क़हर काफ़ी ज़्यादा था। लेकिन तब बड़ी चालाकी से 14 सितंबर से एक अक्टूबर तक चलने वाले सत्र को मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड और किसान विरोधी तीन कृषि क़ानून समेत ऐसे ही कई जनविरोधी क़ानून पास कराकर इसी कोरोना की आड़ में एक सप्ताह पहले ही 23 सितंबर को समाप्त कर दिया गया।

सरकार के ही दावों के मुताबिक आज तो कोरोना पर बहुत ज़्यादा काबू पाया जा चुका है, तभी तो देश में हर गतिविधि खोली जा चुकी है, फिर किस आधार पर संसद सत्र नहीं किया जा रहा, समझ से बाहर है।

आज कहा जा रहा है कि इन कृषि क़ानूनों को पास कराने के लिए व्यापक विचार और बहस की गई, लेकिन आज तक इस बात का जवाब नहीं दिया गया कि किस किसान या किसान संगठन या विशेषज्ञ से राय ली गई या किसने इसकी मांग की थी कॉरपोरेट के सिवा। यही नहीं पूरे देश ने देखा कि किस तरह राज्यसभा में विपक्ष के भारी विरोध के चलते केवल ध्वनिमत से ही इन महत्वपूर्ण क़ानूनों का पारित करा लिया गया, जिसका इस देश में बहुत दूरगामी असर होना है।  

जब सत्ता पक्ष लोकतंत्र की मर्यादा और संवैधानिक दायित्वों को भूल जाए तो फिर विपक्ष का ही कर्तव्य है कि वो जनता की तरफ़ से भूमिका लेते हुए सत्ता को सीधी चुनौती दी।

साथी पत्रकार महेंद्र मिश्र से बात करते हुए ख़्याल आया कि क्यों नहीं विपक्ष सिंघु या टिकरी बॉर्डर पर जन संसद लगाता, क्यों नहीं किसानों को शामिल करके खुला सत्र किया जाता और इन किसान विरोधी तीनों क़ानूनों को रद्द किया जाता, जिन्हें संसद ख़ासकर राज्यसभा में बिना किसी बहस और मतदान के पास करा लिया गया।

जन संसद जैसे हम स्कूल-कॉलेजों में किया करते थे, उस समय उसे भले ही नाटक का नाम दिया जाता था, लेकिन वास्तव में उससे भी हमने संसदीय लोकतंत्र का पाठ सीखा। आज भी लगभग उसी तर्ज पर बहुत जनसंगठन जनसुनवाई आयोजित करते हैं।

भले ही ये प्रतीकात्मक कार्यवाही होगी, लेकिन किसी लोकतंत्र में प्रतीकों का भी बहुत महत्व होता है और मैं तो इसे प्रतीकात्मक से भी ज़्यादा प्रतिरोधात्मक कार्यवाही/कार्रवाई (Proceeding/Action) कहूंगा।

प्रतीकों के नाम पर तो जिस तरह का झूठ और नाटक इन दिनों सत्ता पक्ष द्वारा रचा जा रहा, दिखाया जा रहा है, वो तो बेहद आपत्तिजनक है।

आपने देखा ही होगा कि कैसे किसान आंदोलन में पंजाब को आगे देख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिखों से अपने ‘अटूट’ रिश्तों को दिखा रहे हैं। पहले भारतीय रेलवे यानी आईआरसीटीसी (Indian Railway Catering and Tourism Corporation) की तरफ़ से बुकलेट निकाली जाती है, ईमेल किए जाते हैं। ईमेल का शीर्षक है- 'पीएम मोदी और उनकी सरकार के सिखों के साथ खास रिश्ते।'  और अब कैसे रविवार, 20 दिसंबर को सुबह-सुबह मोदी जी रकाबगंज गुरुदारे पहुंचकर मत्था टेकने लगते हैं। इतना ही नहीं गृहमंत्री अमित शाह को भी बंगाल जाकर ‘किसान’ के घर खाना खाना पड़ता है, दिखाना पड़ता है।

तो विपक्ष तो प्रतिरोधात्मक कार्रवाई और सक्रिय हस्तक्षेप के तौर पर बाक़ायदा बॉर्डर पर ईमानदारी से जन संसद लगा ही सकता है।

सरकार को ये बताने के लिए कि अगर वो संसदीय मर्यादा भूलेगी तो फिर विपक्ष को उसकी जगह लेनी होगी। संसद एक भवन की जगह सड़क पर लगानी ही होगी। जनता के साथ खड़ा होना ही होगा। कहना ही होगा- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

वाकई असली जनता आज सड़कों पर ही तो है। किसान, मज़दूर, युवा सब सड़क पर हैं, जिनकी भलाई के लिए चुनाव होते हैं, संसद होती है, संसद के सत्र होते हैं। पूरा विपक्ष अपनी मौजूदगी से इस खुली संसद को विश्वसनीय बना सकता है। 

भले ही किसान विपक्ष को अपना मंच न दें लेकिन विपक्ष अपना अलग मंच सजाकर किसान प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों को उसमें आमंत्रित कर सकता है। इस खुले सत्र में कृषि क़ानूनों पर खुली बहस की जा सकती है। सत्ता पक्ष के एक-एक प्रोपेगंडा (Propaganda) का जवाब दिया जा सकता है। विरोध में प्रस्ताव रखा जा सकता है, मतदान किया जा सकता है। और सरकार को बताया जा सकता है कि हमें तुम्हारे काले क़ानून मंज़ूर नहीं।

इन्हें भी पढ़ें : बीच बहस: आह किसान! वाह किसान!

बतकही: विपक्ष के पास कोई चेहरा भी तो नहीं है!

बैठे बैठे बोर हुए करना है कुछ काम, चलो राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं...

farmers protest
Farm Bills
agrarian crises
Protest on Delhi Border
Parliament winter session
BJP
Narendra Modi Government
Amit Shah
Narendra modi
IRCTC
Winter session canceled

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License