NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
‘हमें पानी दो, वरना हम यहां से नहीं हटेंगे’: राजस्थान के आंदोलनरत किसान
किसानों का कहना है कि गहलोत सरकार द्वारा पानी की आपूर्ति का कुप्रबंधन दिनों-दिन उन लोगों के लिए लगातार बदतर होता जा रहा है जो अक्टूबर के मध्य में सरसों और चने की बुआई करने की उम्मीद कर रहे हैं।
रवि कौशल
06 Oct 2021
किसान

राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के एक किसान विष्णु भंभू के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न बन चुका है क्योंकि वे अपने खेतों में पानी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। सरसों की बुआई के लिए यह पहले से ही पीक सीजन चल रहा है, लेकिन किसानों को अभी भी हिमाचल प्रदेश के पोंग बाँध से सिंचाई के लिए पानी के छोड़े जाने का इंतजार है। भंभू का कहना था “सरकार कई वर्षों से किसानों को प्रवचन देने में लगी हुई है कि किसान कम पानी वाली फसलों को उगायें। हमारे क्षेत्र में, हम गेंहूँ, सरसों और चना उगाते हैं। किसानों ने गेंहूँ की खेती करनी बंद कर दी है क्योंकि इसमें काफी अधिक पानी की खपत होती है। उन्होंने सरसों की खेती करनी तो शुरू कर दी है, लेकिन उसे उगाने के लिए भी तो पानी चाहिये! सरकार अब अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है।”

सरकार की अकर्मण्यता से गुस्साए किसानों ने श्रीगंगानगर के जिला मुख्यालय की घेराबंदी कर अपना महापड़ाव शुरू कर दिया है, जिसे वे तब तक जारी रखने जा रहे हैं जब तक कि सरकार पानी के आरक्षित कोटे को जारी नहीं कर देती है। किसानों का जोर इस बात को लेकर है कि इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के पहले चरण में भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड द्वारा प्रबंधित पोंग बाँध से राजस्थान के कोटे से तीन जिलों - श्रीगंगानगर, बीकानेर और हनुमानगढ़ को 58% पानी आवंटित किया गया था। हालाँकि, गहलोत सरकार के द्वारा पानी के कुप्रबंधन के चलते किसानों के लिए अक्टूबर के मध्य में सरसों और चने की फसल को बोने का संकट लगातार गहराता जा रहा है। अखिल भारतीय किसान सभा के किसान नेता श्योपत राम मेघवाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पोंग बाँध में पानी का जल-स्तर अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच चुका है, लेकिन आवंटन तकरीबन आधा कर दिया गया है। उनका कहना था “वर्तमान में, पोंग बाँध में जलस्तर 1354 फीट पर बना हुआ है, लेकिन सरकार सिर्फ तीन चरण के पानी का वादा कर रही है। पिछले साल, जब यह स्तर 1331 फीट था तो सरकार ने छह चरणों में पानी की आपूर्ति की थी। हमें सात चरणों में भी पानी मिला है जब स्तर 1342 फीट ही था। इसलिए, यह बात तो तय है कि पानी की कोई कमी नहीं है।”

मेघवाल का आगे कहना था कि इस नहर परियोजना की परिकल्पना हाइड्रोलिक अभियंता कँवर सैन द्वारा की गई थी, जिन्होंने सोचा था कि पंजाब की नदियों के अतिरिक्त पानी को बीकानेर और आस- पड़ोस के जिलों में सूखे से निपटने में इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में, भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसने देश को तीन नदियों – सतलुज, रावी और व्यास के पानी को इस्तेमाल करने में सक्षम बना दिया था। दस वर्षों के दौरान पोंग बाँध को आतंकी खतरों का सामना करना पड़ा था, जब इसके मुख्य अभियंता को खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा मार डाला गया था जिन्होंने इसे उड़ा देने की योजना बना रखी थी। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 1984 में जलस्तर को स्थायी तौर पर 1415 फीट तक घटा दिया था।

मेघवाल ने कहा “अब हमें जिस बात का पता चला है वह यह है कि सरकार जैसलमेर में 1100 क्यूसेक पानी के चार जलाशयों का निर्माण कर रही है और पीने के पानी के नाम पर इस पानी को वहां पर स्थानांतरित कर रही है। लेकिन असल में इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर रही है।” इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए पूर्व विधायक एवं किसान नेता पवन दुग्गल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कुप्रबंधन का स्तर इस हद तक बढ़ चुका है कि इस प्रक्रिया में आवश्यकता से अधिक पानी बर्बाद हो रहा है। उनका कहना था “केंद्र ने जलाशयों के निर्माण के लिए राज्य को 1200 करोड़ रूपये आवंटित किये थे। हमें इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है यदि आप इसका इस्तेमाल पीने के पानी के लिए करने जा रहे हैं, लेकिन वे तो जैसलमेर और बाड़मेर तक पानी को ले जाने के लिए बड़ी नहरों का निर्माण कार्य कर रहे हैं। अब हर किसी को इस बात को समझने की जरूरत है कि पानी दोनों ही स्तरों पर नष्ट होता है; एक है वाष्पीकरण के जरिये और दूसरा है पानी के रिसाव के जरिये। यदि उन्हें 1100 क्यूसेक पानी ही चाहिए तो इसके लिए बाँध से दुगुनी मात्रा में पानी छोड़े जाने की आवश्यकता है। उन्हें इसे पाइपलाइनों के माध्यम ले जाना चाहिए था ताकि नुकसान को रोका जा सके।” उन्होंने आरोप लगाया “हमें यह भी देखने को मिल रहा है कि इन दो जिलों में कई प्रभावशाली मंत्रियों के पास कई एकड़ों में फैले हुए बड़े- बड़े खेत हैं, और यही वजह है जिसके चलते वे ये सब चाहते हैं।”

दुग्गल का आगे कहना था “यहाँ पर हम साल भर में दो फसलें बोते हैं। जिस क्षेत्र में वे पानी को ले जा रहे हैं वहां पर सिर्फ एक फसल ही बोई जाती है। वे कम उपजाऊ भूमि की कीमत पर अधिक उपजाऊ भूमि को क्यों वंचित कर रहे हैं, यह सब मेरी समझ से बाहर है!” दुग्गल ने इस बारे में विस्तार से बताया कि किस प्रकार से नहर के पानी से छोटी जोत के किसानों की जरूरतों की पूर्ती हो रही है। इस क्षेत्र के किसानों को उनकी जमीनों का स्वामित्व 70 के दशक में वामपंथी पार्टियों के द्वारा श्रीगंगानगर में लगभग 50,000 हेक्टेयर भूमि की नीलामी के लिए सरकार की प्रस्तावित योजना के खिलाफ चलाए गए संघर्ष के बाद जाकर हासिल हुई थी। वामपंथी दलों ने इस बात पर जोर दिया था कि सरकार को इसे भूमिहीनों के बीच में वितरित कर देना चाहिए। दिग्गज कम्युनिस्ट

नेता ए. के. गोपालन ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से मुलाक़ात कर उन्हें स्थिति से अवगत कराया था। बाद में जाकर इंदिरा गाँधी ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और हजारों भूमिहीन परिवारों को खेती के लिए छोटे-छोटे भूखंड दिए गए थे। लेकिन यहाँ पर तब खेती कर पाना आसान नहीं था। इसे खेती योग्य बनाने के लिए बेहद परिश्रम की जरूरत थी। इसे खेती योग्य बनाने में हमारे माता-पिताओं की एक पूरी पीढ़ी खप गई। अब जबकि यह पूरी तरह से तैयार है तो वे यहाँ से पानी को ही ले जा रहे हैं। इसलिए, मूलतः यह लड़ाई अब छोटे किसानों और बड़े जमींदारों के बीच की है। कई दौर की बातचीत के बाद जाकर सोमवार को किसानों और जिला प्रशासन के बीच की वार्ता आखिरकार विफल हो गई। मेघवाल और दुग्गल दोनों का मानना है कि सरकार ने वार्ता के लिए शक्तिहीन अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल को भेजा था जो स्वतंत्र रूप से फैसले ले पाने की क्षमता नहीं रखते थे। दुग्गल का कहना था “वार्ता विफल हो गई है। किसानों ने अब तय किया है कि बीकानेर के पुगल से पानी छोड़े जाने वाले बिंदु को बंद किया जायेगा। हम वहां पर पानी को नहीं जाने देंगे।”

इस बीच अमरजीत सिंह मेहरादा, मुख्य अभियंता, गुणवत्ता नियंत्रण एवं सतर्कता जो कि जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त सचिव के रूप में भी कार्यरत हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वार्ता इसलिए विफल रही क्योंकि विनयमन के काम को सिर्फ अटकलों के आधार पर नहीं बल्कि पानी की उपलब्धता के आधार पर जारी किया गया है। उनका कहना था “पानी की उपलब्धता का आकलन दो मोर्चों पर किया जाता है; एक है बाँध में उपलब्ध पानी और दूसरा बारिश के जरिये पानी की उपलब्धता की संभावना। वर्तमान में, 14 लाख क्यूसेक पानी उपलब्ध है, और एक बार बारिश का पानी आ जाने के बाद हम अतिरिक्त 18 लाख क्यूसेक पानी की उम्मीद कर रहे हैं। यदि हमें अतिरिक्त पानी उपलब्ध हो जाता है तो इसे निश्चित तौर पर छोड़ दिया जायेगा। जहाँ तक जल के परिवहन के लिए पाइपलाइन का प्रस्ताव दिया गया है, इसका हम स्वागत करते हैं। वो चाहे सिंचाई या कृषि विभाग, सभी विभाग इस पर गौर कर रहे हैं, लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है। वर्तमान में हम सिर्फ उपलब्ध पानी ही मुहैय्या करा सकते हैं।”

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Give-Water-Won%E2%80%99t-Move-Agitating-Rajasthan-Farmers-Sowing-Season-Begins

farmers protest
Rajasthan
ashok gehlot
water crises
agricultural crises

Related Stories

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

दिल्ली में गूंजा छात्रों का नारा— हिजाब हो या न हो, शिक्षा हमारा अधिकार है!

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

ऐतिहासिक किसान विरोध में महिला किसानों की भागीदारी और भारत में महिलाओं का सवाल

पंजाब : किसानों को सीएम चन्नी ने दिया आश्वासन, आंदोलन पर 24 दिसंबर को फ़ैसला

लखीमपुर कांड की पूरी कहानी: नहीं छुप सका किसानों को रौंदने का सच- ''ये हत्या की साज़िश थी'’

इतवार की कविता : 'ईश्वर को किसान होना चाहिये...

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा

जीत कर घर लौट रहा है किसान !


बाकी खबरें

  • सत्यम कुमार
    उत्तराखंड : ज़रूरी सुविधाओं के अभाव में बंद होते सरकारी स्कूल, RTE क़ानून की आड़ में निजी स्कूलों का बढ़ता कारोबार 
    28 Apr 2022
    उत्तराखंड राज्य में विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद…
  • प्रेम कुमार
    ‘जनता की भलाई’ के लिए पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के अंतर्गत क्यों नहीं लाते मोदीजी!
    28 Apr 2022
    अगर पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में लाए जाते हैं तो कीमत में 30 से 40 रुपये प्रति लीटर तक की कमी हो जाएगी। जनता केंद्र और राज्यों के दोहरे कराधान से भी बच जाएगी। जनता की भलाई के लिए बीजेपी की सरकार…
  • वी. श्रीधर
    एलआईसी की आईपीओ: बड़े पैमाने का घोटाला
    28 Apr 2022
    एलआईसी को लिस्टेड करने की इस बेबुनियाद हड़बड़ी में दिग्गज "निवेशकों" के पैसे बनाने की सनक को बढ़ावा देते हुए लोगों के हितों की भयानक अनदेखी नज़र आती है। आईपीओ की क़ीमत से यह संकेत मिलता है कि यह शायद…
  • सुभाष गाताडे
    दलित जननेता जिग्नेश को क्यों प्रताड़ित कर रही है भाजपा? 
    28 Apr 2022
    ‘क्या अपने राजनीतिक आकाओं के फायदे के लिए एक जननेता को प्रताड़ित और आतंकित किया जा रहा है’?
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर में एक आर्मी-संचालित स्कूल की ओर से कर्मचारियों को हिजाब न पहनने के निर्देश
    28 Apr 2022
    पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती ने भाजपा पर महिलाओं की आजादी पर अंकुश लगाने का आरोप लगाया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License