NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
उत्पीड़न
कोविड-19
मज़दूर-किसान
अंतरराष्ट्रीय
वैश्विक फैशन ब्रांड महामारी के दौरान 6 एशियाई देशों में मानवीय संकट के कारण बने : रिपोर्ट
लगभग 93 प्रतिशत भारतीय गारमेंट मजदूर अप्रैल एवं मई, 2020 में विश्व बैंक की अंतररार्ष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे आए
दित्सा भट्टाचार्य
10 Jul 2021
garment workers

महामारी के दौरान भारत सहित छह एशियाई देशों में गारमेंट मजदूरों को बड़ी मात्रा में मजदूरी का नुकसान हुआ। एशिया फ्लोर वेज एलायंस (एएफडब्ल्यूए) द्वारा प्रकाशित ‘मनी हाइस्ट : कोविड-19 थेफ्ट इन गारमेंट ग्लोबल सप्लाई चेन’ शीर्षक की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, मजदूरों की मजूरी महामारी से पहले भी गरीबी स्तर पर थी और उन्हें महामारी द्वारा उनके देशों में अंतरर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से और नीचे धकेल दिया गया। छह देशों-श्रीलंका, पाकिस्तान, भारत, इंडोनेशिया, कंबोडिया तथा बांग्लादेश में स्थित 189 सप्लायर फैक्टरियों में कार्यरत लगभग 2,185 गारमेंट मजदूरों ने इस रिपोर्ट के लिए सर्वे में भाग लिया। वालमार्ट,  नाइकि, एडिडास, गैप, मार्क्स एंड स्पेंसर, लिवाइस तथा अमेरिकन ईगल आउटफिटर्स अपने गारमेंट इन 189 फैक्टरियों से सोर्स करते हैं।

इस रिपोर्ट में प्रमुख ग्लोबल अपैरल ब्रांडों की सप्ताई चेनों में कार्यरत एशियाई गारमेंट मजदूरों पर कोविड-19 महामारी से प्रेरित मंदी के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इस रिपोर्ट में मजदूरी की चोरी को गारमेंट मजदूरों पर महामारी से प्रेरित मंदी के सबसे सामान्य अनुभव और सुस्पष्ट दुष्परिणाम के रूप में रेखांकित किया गया है जिसका नतीजा विनाशकारी और दीर्घ मानवीय संकट के रूप में सामने आया। 

इस रिपोर्ट में कहा गया, “ मजदूरी की चोरी महामारी संकट का कोई अनपेक्षित परिणाम नहीं था बल्कि वास्तव में यह वैश्विक गारमेंट सप्लाई चेन में एक अंतर्निहित तंत्र है, जिसके जरिये ग्लोबल अपैरल ब्रांडों ने अपनी सप्लायर फैक्टरियों में मजदूरों के भीषण शोषण के जरिये अकूत लाभ कमाया। मजदूरी की चोरी ग्लोबल अपैरल ब्रांडों, जो उतार चढ़ाव भरे उपभोक्ता बाजारों के लिए मैन्युफैक्चरिंग के जोखिमों और लागतों को अपने सप्लायरों तथा अंततोगत्वा उनकी सप्लाई चेन में, मजदूरी की चोरी के रूप में हस्तांतरित कर देते हैं। यह इनके बिजनेस मॉडल का आंतरिक हिस्सा है। महामारी प्रेरित मंदी के दौरान यह और बढ़ गया था।” 

यह रिपोर्ट बुधवार, 7 जुलाई को एक ऑनलाइन कार्यक्रम में लांच की गई जिसमें एशिया के सात ट्रेड यूनियन नेताओं तथा अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविदों ने ग्लोबल फैशन ब्रांडों द्वारा लाये गए मानवीय संकट के विस्तृत वर्णन से जुड़ी इस रिपोर्ट के निष्कर्षों पर चर्चा की। सभी ट्रेड यूनियनों ने इस पर सहमति जताई कि हाल के समय में, खासकर, महामारी के दौरान मजदूरों द्वारा यूनियन का निर्माण करने या वर्तमान यूनियनों में शामिल होने की किसी भी या सभी कोशिशों को समाप्त करने के प्रयास किए गए हैं। कई देशों में, मजदूरों को नौकरी खत्म करने की धमकी दी गई। बांग्लादेश में,  जिन मजदूरों ने यूनियन बनाने और आंदोलन आरंभ करने की कोशिश की, उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करा दिए गए। 

लांच कार्यक्रम में, नीदरलैंड के लैडेन विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रत्ना सत्परी ने कहा, “इस रिपोर्ट में इन कंपनियों में शक्ति संबंधों की विभिन्न परतों को उजागर किया गया है। जिन तीन ताकतों से श्रमिकों को निपटना पड़ता है और व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से जिनके खिलाफ रणनीति बनानी पड़ती है, वे हैं-कॉरपोरेट, देश का शासन और सत्ता व्यवस्था और इस रिपोर्ट में तीनों का उल्लेख किया गया है। यह सामाजिक और आर्थिक भदभाव तथा मजदूरों की राजनीति पर इसके प्रभाव को समझने की दिशा में एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। ‘ 

रत्ना ने कहा, ‘ रिपोर्ट में श्रमिकों की विभिन्न पृष्ठभूमियों को प्रदर्शित किया गया है-उदाहरण के लिए, भारत में 63 प्रतिशत प्रवासी हैं जबकि कंबोडिया में 67 प्रतिशत प्रवासी हैं। पाकिस्तान में 74 प्रतिशत गैर-प्रवासी हैं। रिपोर्ट में प्रदर्शित किया गया है कि किस प्रकार श्रमिकों की अलग-अलग स्थितियां, जैसे प्रवासी और गैर-प्रवासी होना मजदूरों के बीच उनके बहिष्करण और एकजुटता को प्रभावित करती हैं, और किस प्रकार कंपनियां मजदूरों के बीच इन अंतरों का फायदा उठाती हैं। ‘ 

ऋण और मजदूरी की चोरी 

रिपोर्ट के अनुसार, 89 प्रतिशत मजदूरों ने 2020 के दौरान किसी न किसी प्रकार के रोजगार के झटके, चाहे वह छंटनी का हो या नौकरी के खात्मे, का अनुभव किया। मजदूरों ने कोविड-19 लॉकडाउन अवधि के दौरान मजदूरी में 73 प्रतिशत की तेज गिरावट के साथ 2020 में कुल मिला कर 23 प्रतिशत मजदूरी चोरी की रिपोर्ट दर्ज की। 

अप्रैल एवं मई, 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, कुल घरेलू उपभोग के 81 प्रतिशत ऋण वित्तपोषण के साथ, कुल खपत में 16 प्रतिशत की कमी आई। गारमेंट मजदूरों के लिए औसत ऋण के आकार में 2020 में दोगुनी से अधिक बढोतरी हुई जो महामारी-पूर्व अवधि के 152 डॉलर से बढ़कर दिसंबर, 2020 में 360 डालर हो गई। 

लगभग 93 प्रतिशत भारतीय गारमेंट मजदूर अप्रैल एवं मई, 2020 में विश्व बैंक की अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा ( 3.2 डॉलर पीपीपी पर मापित) से नीचे धकेल दिए गए। 29.67 मिलियन डॉलर के बराबर की मजदूरी जिनका मजदूरों को नुकसान हुआ, 5.3 मिलियन डॉलर का नुकसान त्योहारी बोनस के रूप में हुआ, जो ऐसे मजदूरों की पूरक आय का एक अंतरंग हिस्सा हैं, जिन्हें गरीबी-स्तर मजूरी दी जाती है।

मजूरी चोरी के आंकड़े

चित्र स्रोत: https://asia.floorwage.org/wp-content/uploads/2021/07/Money-Heist_Book_Final-compressed.pdf

भारतीय गारमेंट मजदूरों पर महामारी का प्रभाव

 रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि भारत सरकार द्वारा मार्च 2020 में मनमाने तरीके से लगाए गए लॉकडाउन ने रातोंरात समस्त उत्पादन गतिविधियों पर विराम लगा दिया और यह भारत में लाखों गारमेंट मजदूरों की परेशानी के सबसे बड़े कारणों में से एक बन गया। लॉकडाउन से उपजी परेशानियां बड़े स्तर पर ऑर्डरों के कैंसल होने और ब्रांडों द्वारा ऐसी वस्तुओं की कीमत में कमी किए जाने जिनका पहले से ही उत्पादन हो रहा था या पूरा हो चुका था और निर्यात होने के लिए तैयार था, के कारण एक मानवीय संकट पैदा हो गया।

लांच कार्यक्रम में, भारत के गारमेंट लेबर यूनियन की अध्यक्ष रुक्मिणी ने कहा, “लॉकडाउन के बाद, पूरे 2020 में, गारमेंट फैक्टरियों ने फैक्टरियों में क्रेच को फिर से खोलने या महिला मजदूरों को वैकल्पिक चाइल्ड केयर का विकल्प उपलब्ध कराने में मदद करने से मना कर दिया। क्रेच उपलब्ध न कराना, भारत के मातृत्व लाभ कानून का उल्लंघन है- ब्रांडों एवं सप्लायरों ने संयुक्त रूप से भारत में महिला श्रमिकों के इन मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा, “अब, कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद, खासकर, तमिलनाडु में न केवल कई फैक्टरियां लॉकडाउन की मजदूरी देने से इंकार कर रही हैं, वे मजदूरों से कोविड-19 के टीकों का खर्च भी ले रही हैं। हमने कई महिला मजदूरों से सुना है कि जो आर्थिक परेशानियां उन पर लाद दी गई हैं उनसे बचने के लिए वे खुदकुशी करने पर विचार कर रही हैं।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि, “कोविड-19 संकट के दौरान, भारतीय सप्लायरों को ब्रांडों द्वारा ऑर्डरों के कैंसलेशन, घरेलू बाजार में कमजोर मांग (डिस्पोजेबल यानी खर्च करने योग्य आय तथा उपभोक्ताओं के विश्वास में कमी के कारण), प्रचालनगत अधिशेषों (सरप्लस) में कमी और सरकार से अपर्याप्त सहायता जैसे विभिन्न मुद्वों का सामना करना पड़ा। भारतीय सप्लायरों ने इन मुद्दों की लागत व्यापक पैमाने पर छंटनी तथा नौकरी खत्म करने के द्वारा मजदूरों पर डाल दी और ज्यादातर मजदूरों को छंटनी की क्षतिपूर्ति तथा नौकरी खत्म होने से जुड़े लाभ भी प्राप्त नहीं हुए।”

रिपोर्ट में कहा गया, “जब हम यह रिपोर्ट लिख रहे हैं, विभिन्न राज्यों में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान गारमेंट मजदूरों की मजदूरी के भुगतान के संबंध में बातचीत जारी है। जहां आरंभिक रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि बंगलुरु में सप्लायर लाकडाउन की अवधि के लिए आंशिक मजदूरी का भुगतान करने के इच्छुक हैं, भारत के दूसरे हिस्सों में ज्यादातर सप्लायरों ने लॉकडाउन की अवधि के लिए किसी भी मजदूरी का भुगतान करने से मना कर दिया है। इससे मजदूरों के और गरीबी की गर्त में धंस जाने की आशंका है जिसका दीर्घकालिक अवधि में कई पीढ़ियों पर प्रभाव पड़ सकता है। ‘   

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/Global-Fashion-Brands-Caused-Humanitarian-Crisis-6-Asian-Countries-During-Pandemic-Report

garment workers
bangladesh garment worker in corona
Informal sector workers

Related Stories


बाकी खबरें

  • अनिंदा डे
    मैक्रों की जीत ‘जोशीली’ नहीं रही, क्योंकि धुर-दक्षिणपंथियों ने की थी मज़बूत मोर्चाबंदी
    28 Apr 2022
    मरीन ले पेन को 2017 के चुनावों में मिले मतों में तीन मिलियन मत और जुड़ गए हैं, जो  दर्शाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद धुर-दक्षिणपंथी फिर से सत्ता के कितने क़रीब आ गए थे।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली : नौकरी से निकाले गए कोरोना योद्धाओं ने किया प्रदर्शन, सरकार से कहा अपने बरसाये फूल वापस ले और उनकी नौकरी वापस दे
    28 Apr 2022
    महामारी के भयंकर प्रकोप के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर 100 दिन की 'कोविड ड्यूटी' पूरा करने वाले कर्मचारियों को 'पक्की नौकरी' की बात कही थी। आज के प्रदर्शन में मौजूद सभी कर्मचारियों…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज 3 हज़ार से भी ज्यादा नए मामले सामने आए 
    28 Apr 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,303 नए मामले सामने आए हैं | देश में एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 0.04 फ़ीसदी यानी 16 हज़ार 980 हो गयी है।
  • aaj hi baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    न्यायिक हस्तक्षेप से रुड़की में धर्म संसद रद्द और जिग्नेश मेवानी पर केस दर केस
    28 Apr 2022
    न्यायपालिका संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में जरूरी हस्तक्षेप करे तो लोकतंत्र पर मंडराते गंभीर खतरों से देश और उसके संविधान को बचाना कठिन नही है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कथित धर्म-संसदो के…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान
    28 Apr 2022
    आजकल भारत की राजनीति में तीन ही विषय महत्वपूर्ण हैं, या कहें कि महत्वपूर्ण बना दिए गए हैं- जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र। रात-दिन इन्हीं की चर्चा है, प्राइम टाइम बहस है। इन तीनों पर ही मुकुल सरल ने…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License