NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत का संचालन किसके हाथ — शास्त्र/धर्मपुस्तकें या संविधान?
विगत कुछ सालों के विभिन्न अदालतों के फैसलों की थोड़ी-सी बेतरतीब चर्चा करते हुए हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि अदालतों ने किस तरह समय-समय पर कानून की हिफाजत का काम किया है।
सुभाष गाताडे
15 Jul 2021
भारत का संचालन किसके हाथ — शास्त्र/धर्मपुस्तकें या संविधान?
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

कभी कभी बेहद सरल बातें भी दोहराते रहना जरूरी होता है, खासकर उन दिनों जब समूचा समाज उथल-पुथल से गुजर रहा हो।

यह एक हक़ीकत है कि हम विगत 70 साल से अधिक समय से एक गणतंत्र हैं — जहां संप्रभुता लोगों में निहित होती है न कि शास्त्रों में। यह दूसरा सच है कि यह देश संविधान और उसके तहत बने कानूनों से संचालित होता है। 

उत्तराखंड उच्च अदालत ने दरअसल यही किया जब राज्य सरकार ने ‘चार धाम यात्रा’ के लाइव स्ट्रीम करने के उसके प्रस्ताव पर आपत्ति प्रकट की और कहा कि हमारे धर्मग्रंथां में इसकी इजाजत नहीं है। राज्य सरकार की इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि मुल्क पर कानून का राज चलता है और न ही शास्त्रों/धर्मपुस्तकों का।

निश्चित तौर पर यह पहली दफा नहीं था कि सूबे की उच्च अदालत ने हस्तक्षेप किया था और हुकूमत को उनके संवैधानिक कर्तव्यों की याद दिलायी थी और जनभावनाओं को प्रश्रय देने की उसके कदमों को प्रश्नांकित किया था।  सभी को याद होगा कि जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिल कर कुंभ मेला में पहुंचने के लिए तमाम उद्यम में जुटे थे। यहां तक कि कुंभ मेला में पहुंचने के लिए जनता का आह्वान करते हुए तमाम अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन छापे जा रहे थे। उन्हीं दिनों इसी अदालत ने कहा था कि ऐसी कार्रवाई से कुंभ मेला कोविड संक्रमण के सुपरस्प्रेडर में तब्दील हो जाएगा।

महज कुछ दिन पहले उच्च अदालत ने चार धाम यात्रा आयोजन की राज्य सरकार की योजना पर स्थगनादेश दिया था क्योंकि उसे वाजिब चिंता थी कि ऐसे आयोजनों में लोगों के बड़े पैमाने पर जुटने से कोविड संक्रमण की रफतार तेज हो सकती है। उसका तर्क इस बार भी बेहद सरल था। चंद लोगों की भावनाओं का खयाल करने के बजाय यह अधिक महत्वपूर्ण है कि हरेक को डेल्टा वेरियंट के कोरोना संक्रमण के खतरे से बचाया जाए।

आज जब चंद लोगों की भावनाओं को जनभावनाओं के तौर पर पेश किया जा रहा है, जो एक तरह से व्यापक जनहित पर हावी होती दिख रही है। हम पा रहे हैं कि न केवल उत्तराखंड उच्च अदालत बल्कि अन्य जगहों की अदालतों ने भी शासन को सही सीख देने की कोशिश जारी रखी है।

कर्नाटक के हालिया अनुभव को भी देखें जब अदालतों के सामने अलग-अलग धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का मसला आया और उच्च अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि वह इनके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करे। जब उसने पाया कि पुलिस इस मामले में आनाकानी कर रही है और कुछ नए बहाने ढूंढ रही है, तो उसने तत्काल फिर पुलिस अधिकारी को बुला कर उन्हें निर्देश दिया कि वह तत्काल इस मामले में कार्रवाई करे और न कि इसके लिए ध्वनि प्रदूषण के नियमों में तब्दीली की जरूरत को रेखांकित करते हुए टालमटोल करे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर दो साल से अधिक कार्यरत रहे गोविंद माथुर — जो अप्रैल माह में रिटायर हुए — उनका यह कार्यकाल इसी बात को रेखांकित करता है। याद रहे यही वह कालखंड है जब राज्य सरकार की अपनी कथित मनमानी कार्रवाइयों और नीतियों के चलते जबरदस्त आलोचना का शिकार हो रही थीं। 

एक पत्रकार ने मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उनके कार्यकाल में निपटाये गए बारह महत्वपूर्ण मसलों की सूची का जिक्र करते हुए एक लेख लिखा है जिसमें शामिल हैं : अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित तौर पर पुलिस ज्यादती का मसला, किसी नागरिक को गैरकानूनी ढंग से सर्विलांस में रखने की राज्य द्वारा कोशिश; घर घर जाकर वैक्सिनेशन करने की जरूरत को रेखांकित करना, कैदियों के मानवाधिकार आदि। लेख में डॉ. कफील खान की राष्टीय सुरक्षा कानून के तहत हुई गिरफतारी के प्रसंग का भी उल्लेख है, जिसे अदालत ने ‘मनमाना’ और ‘गैरकानूनी’ घोषित करते हुए उनकी तत्काल रिहाई के आदेश दिए थे। जहां सरकार ने डॉ. कफील खान के इस भाषण को विवादास्पद माना था। वहीं अदालत ने कहा था कि वह भाषण राष्टीय एकता और अखंडता को मजबूत करने वाला था। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के नाम से जारी ‘नेम एण्ड शेम’ पोस्टर्स के बारे में अदालत ने उन्ही दिनों ही खुद संज्ञान लिया था और सरकार को यह आदेश दिया था कि वह उन्हें तत्काल हटा दे क्योंकि वह लोगों की निजता में गैरजरूरी हस्तक्षेप है और संविधान द्वारा प्रदत्त धारा 21 के अधिकारों का उल्लंघन है।

वैसे विगत कुछ सालों के विभिन्न अदालतों के फैसलों की थोड़ी सी बेतरतीब चर्चा करते हुए हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि अदालतों ने किस तरह समय-समय पर कानून की हिफाजत का काम किया है।

मिसाल के तौर पर सबरीमाला मामले में हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बहुमत के आधार पर दिए फैसले को (4 बनाम 1) देखें, जिसके तहत माहवारी वाली महिलाओं को ‘रिवाज’ के नाम पर केरल के एक मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी, उसे अदालत ने खारिज किया था और मंदिर में सभी के प्रवेश के लिए रास्ता सुगम किया। इस रिवाज को — जिसके तहत स्त्रियों को मंदिर प्रवेश से रोका जा रहा था — असंवैधानिक घोषित करते हुए उसने बताया कि किस तरह “केरल हिंदू प्लेसेस आफ पब्लिक वर्शिप की धारा 3 बी” असंवैधानिक है।

इस बहुमत के फैसले को लेकर असहमति रखनेवाली जज सुश्री इंदु मल्होत्रा का कहना था कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में अदालतों को धर्म से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और उसे उन्हीं लोगों पर छोड़ना चाहिए जो धर्म का पालन करते हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने देश के अन्य भागों में भी मंदिरों या अन्य पवित्र स्थलों से महिलाओं को विभिन्न आधारों पर रोक को लेकर बने अन्य रिवाजों को भी चुनौती देने को प्रेरित किया।

यदि हम जाने माने क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के मामले को देखें, जिनके खिलाफ ‘आहत भावनाओं’ के तौर पर मुकदमा दर्ज हुआ था। इसमें यह दावा किया गया था कि किसी पत्रिका के कवर पर छपे उनके फोटो के चलते जिसमें उन्हें भगवान विष्णु के रूप में दिखाया गया था, उससे याचिकाकर्ता की ‘धार्मिक भावनाएं आहत’ हो गई थीं। धोनी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने, जिसमें न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, ए एम खानविलकर और एम एम शांता नागौदार शामिल थे, कहा, “बेइरादे और लापरवाही से या बिना किसी सचेत या विद्वेषपूर्ण इच्छा के जब किसी तबके की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं” तब उन्हें धार्मिक भावनाओं का आहत होने की श्रेणी में शुमार नहीं किया जा सकता।

निचोड़ के तौर पर कहें तो एक ऐसे वक्त़ में जब हम ‘बहुसंख्यकवादी कार्यपालिका’ का सामना कर रहे हैं,  जब खुद पा रहे हैं कि खुद राज्य नागरिक अधिकारों पर हमले करने वालों के साथ खड़ा हो रहा है, तब अदालतों द्वारा संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों की हिफाजत के लिए आगे आने की अधिक से अधिक जरूरत महसूस हो रही है।

इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त़ हम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड यात्रा को दी गई मंजूरी के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खुद किए हस्तक्षेप से रूबरू हैं। इसमें उसने सरकार को यह नोटिस भेजा है कि वह इस मामले में तत्काल जवाब दें। यह जानने योग्य है कि एक तरफ जहां उत्तराखंड सरकार ने कोविड संक्रमण के फैलाव के डर से यात्रा को मंजूरी देने से इनकार किया है, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार इसे सीमित दायरे में ही सही करने पर आमादा है।

याद रहे वर्ष 2020 में जहां कोविड संक्रमण के खतरे के मद्देनजर कांवड यात्रा स्थगित की गयी थी। वहीं वर्ष 2019 में लगभग साढ़े तीन करोड़ कांवडियों ने हरिद्वार की यात्रा की थी और दो से ढाई करोड़ लोगों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न पवित्र स्थानों की यात्रा की थी।

निश्चित तौर पर यह विचलित करने वाला है कि जहां खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में कोविड की दूसरी लहर के लिए देश में हुए धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों को प्रेरित करने वाला बताया है। खुद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने वैश्विक अनुभवों के आधार पर और महामारियों के इतिहास को देखते हुए-अपील की है कि ‘‘तीसरी लहर आ रही है’’ और इसके चलते ‘‘धार्मिक स्थलों की यात्रा और पर्यटन रुक सकता है’’। ऐसे वक्त़ में उत्तर प्रदेश का यह निर्णय चौंकाने वाला है।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि व्यापक पैमाने पर वैक्सिनेशन कार्यक्रम जहां कोविड संक्रमण के फैलाव को रोकने में कारक हो सकते हैं। वह तमाम प्रचार के बावजूद भारत में अभी भी जोर नहीं पकड़ रहा है। आंकड़े यहीं बताते हैं कि भारत अपनी महज 4 फीसदी आबादी को पूरी तरह कोविड के दोनों डोस लगा पाया है, जबकि अमेरिका जैसे मुल्क में आबादी का 46 फीसदी से अधिक हिस्से को दोनों कोविड के जरूरी डोस लग चुके हैं।  कुंभ मेला जिसने बड़े पैमाने पर कोविड -19 हॉटस्पॉट का रूप ले लिया था, वो फिर से दोहराए जाने से ज़्यादा दूर नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय के सामने अब सवाल है कि क्या अब वो ज़िंदगियां बचाने के लिए एक बार फिर सक्रियता के साथ हस्तक्षेप करेगी या फिर इस मुद्दे पर एक सलाहकारी की भूमिका निभाएगी जब कंवर यात्रा की तैयारी पूरी हो चुकी है या एक बार फिर जन-साधारण को व्यापक सार्वजनिक धार्मिक उत्सवों की आग में झोंक देगी। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Governments Must Implement the Constitution, Not Religious Texts

Kumbh Mela Judicial activism
Delta Plus
Uttar pradesh
kanwar yatra
super-spreader event
Delta Plus Variant
Covid second wave India

Related Stories

आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही मस्जिद ईदगाह प्रकरण में दो अलग-अलग याचिकाएं दाखिल

ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली पुलिस की बर्बरता की शिकार निशा यादव की मौत का हिसाब मांग रहे जनवादी संगठन

जौनपुर: कालेज प्रबंधक पर प्रोफ़ेसर को जूते से पीटने का आरोप, लीपापोती में जुटी पुलिस

उपचुनाव:  6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 23 जून को मतदान

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?

उत्तर प्रदेश विधानसभा में भारी बवाल


बाकी खबरें

  • लेखनाथ पांडे (काठमांडू)
    नेपाल की अर्थव्यवस्था पर बिजली कटौती की मार
    16 May 2022
    नेपाल भारत से आयातित बिजली पर बहुत ज़्यादा निर्भर है, जहां सालों से बिजली संकटों की बुरी स्थितियों के बीच बिजली उत्पादन का काम चल रहा है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: गिर रहा कोरोना का स्तर लेकिन गंभीर संक्रमण से गुजर चुके लोगों की ज़िंदगी अभी भी सामान्य नहीं
    16 May 2022
    देश में कोरोना के मामलों में एक बार फिर लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले एक सप्ताह के भीतर कोरोना का दैनिक आंकड़ा 3 हज़ार से भी कम रहा है |
  • सुबोध वर्मा
    कमरतोड़ महंगाई को नियंत्रित करने में नाकाम मोदी सरकार 
    16 May 2022
    गेहूं और आटे के साथ-साथ सब्ज़ियों, खाना पकाने के तेल, दूध और एलपीजी सिलेंडर के दाम भी आसमान छू रहे हैं।
  • gandhi ji
    न्यूज़क्लिक टीम
    वैष्णव जन: गांधी जी के मनपसंद भजन के मायने
    15 May 2022
    हाल ही में धार्मिक गीत और मंत्र पूजा अर्चना की जगह भड़काऊ माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इसी सन्दर्भ में नीलांजन और प्रोफेसर अपूर्वानंद गाँधी जी को प्रिय भजन वैष्णव जन पर चर्चा कर रहे हैं।
  • Gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद: क्या और क्यों?
    15 May 2022
    जो लोग यह कहते या समझते थे कि अयोध्या का बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद आख़िरी है, वे ग़लत थे। अब ज्ञानवापी विवाद नये सिरे से शुरू कर दिया गया है। और इसके साथ कई नए विवाद इस कड़ी में हैं। ज्ञानवापी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License