NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
उत्पीड़न
भारत
राजनीति
गुजरात : महिला स्वास्थ्यकर्मियों के यौन शोषण का आरोप कार्यस्थल पर महिलाओं की स्थिति दर्शाता है!
गुरु गोबिंद सिंह सरकारी अस्पताल की कुछ महिलाकर्मियों ने यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सुपरवाइजरों ने उन्हें सेवा से इसलिए हटा दिया, क्योंकि उन्होंने यौन संबंध बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
सोनिया यादव
18 Jun 2021
गुजरात : महिला स्वास्थ्यकर्मियों के यौन शोषण का आरोप कार्यस्थल पर महिलाओं की स्थिति दर्शाता है!
Image courtesy : Aasawari Kulkarni, (Feminism in India)

पितृसत्ता की बेड़ियों को तोड़कर घर की चार दीवारी के बाहर आज भी महिलाओं का काम करना आसान नहीं है। काम की जगह यौन शोषण से निपटने का कानून तो देश में सालों पहले बन गया बावजूद इसके आज भी तमाम महिलाओं को वर्क प्लेस पर शोषण और उत्पीड़न का दर्द सहना ही पड़ रहा है। ताजा मामला गुजरात के गुरु गोबिंद सिंह सरकारी अस्पताल का है, जहां अनुबंध पर काम करने वाली कुछ महिलाकर्मियों ने बुधवार, 16 जून को यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि सुपरवाइजरों ने उन्हें सेवा से इसलिए हटा दिया, क्योंकि उन्होंने यौन संबंध बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइन्स के तहत कार्यस्थल के मालिक के लिए ये ज़िम्मेदारी सुनिश्चित की थी कि किसी भी महिला को कार्यस्थल पर बंधक जैसा महसूस न हो, उसे कोई धमकाए नहीं। साल 1997 से लेकर 2013 तक दफ़्तरों में विशाखा गाइडलाइन्स के आधार पर ही इन मामलों को देखा जाता रहा लेकिन 2013 में 'सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट' आया। हालांकि जमीनी हकीकत इसके बाद भी नहीं बदली। फिलहाल गुजरात का मामला अपने आप में अपने अंदर झांकने को मजबूर करता है कि क्या आज भी हम महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल बना पाए हैं?

क्या है पूरा मामला?

जामनगर के गुरु गोबिंद सिंह सरकारी अस्पताल की कुछ महिला कर्मचारियों ने पत्रकारों से बातचीत में आरोप लगाया कि उनके सुपरवाइजरों ने इसलिए उन्हें सेवा से हटा दिया, क्योंकि उन्होंने यौन संबंध के उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्हें एक एजेंसी के माध्यम से अनुबंध पर काम पर रखा गया था।

इस दौरान एक महिला कर्मचारी ने पत्रकारों को बताया कि सुपरवाइजर वार्ड बॉयज के जरिये उन्हें दोस्ती करने के प्रस्ताव भेजते थे। उन्होंने दावा किया कि ऐसे प्रस्तावों को ठुकराने वाली अटेंडेंट्स को सुपरवाइजरों ने लगभग तीन महीने का वेतन दिए बिना निकाल दिया।

सरकार क्या कर रही है?

राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान बुधवार को ही इस मुद्दे पर चर्चा हुई। बैठक के बाद राज्य के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने इन आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करने की घोषणा की।

प्रदीप सिंह जडेजा ने पत्रकारों से कहा, ‘गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल की कुछ महिला कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि उनका यौन शोषण किया गया। मामले पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारी और स्वास्थ्य आयुक्त से इन आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने को कहा है।’

उन्होंने बताया कि उपमंडलीय जिलाधीश, जामनगर पुलिस के सहायक अधीक्षक और जामनगर मेडिकल कॉलेज के डीन इस समिति का हिस्सा होंगे। जांच रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

इस मामले पर गुजरात राज्य महिला आयोग ने भी संज्ञान लिया है। आयोग की अध्यक्ष लीलाबेन अंकोलिया ने जिला पुलिस अधीक्षक से इन आरोपों की विस्तृत रिपोर्ट तीन दिनों के भीतर देने को कहा है।

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण

गौरतलब है कि ये कोई पहला मामला नहीं है, जब एक साथ कई महिलाओं ने कार्यस्थल पर यौन शोषण की शिकायत की हो। इससे पहले भी साल 2018 में जब मी-टू मूवमेंट की भारत में शुरुआत हुई थी तब बड़ी संख्या में महिलाओं ने बेबाक तरीक़े से अपने खिलाफ़ हुए उत्पीड़न के बारे में तमाम बातें सामने रखी थीं। इसने बड़ी शख्सियत वाले पुरुषों को नए सिरे से सार्वजनिक जांच के दायरे में ला दिया और कुछ को  इस्तीफे देने पड़े और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। हालांकि उस में से कितने मामले अपने अंजाम तक पहुंच पाए ये शायद ही कोई बता सके।

अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं का ज्यादा शोषण होता है!

सोशल मीडिया पर चलने के कारण भारत में मी-टू आंदोलन ने अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं को बाहर रखा जहां 95 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं। हम शायद इस बात को स्वीकार तक नहीं कर पाते कि फैक्टरी कर्मचारी, घरेलू कामगार, निर्माण मजदूर जैसे श्रमिकों का ज्यादा यौन उत्पीड़न किया जाता है और उन पर यौन हमले होते हैं। लेकिन गरीबी के कारण उनके पास कोई विकल्प नहीं होता, वे जानते हैं कि जो भी वे कमाते हैं वह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

भंवरी देवी के मामले में साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कुछ निर्देश जारी किए। इन निर्देशों को ही 'विशाखा गाइडलाइन्स' के रूप में जाना जाता है। तब अदालत ने कहा था कि लैंगिक समानता में यौन उत्पीड़न से सुरक्षा और गरिमा के साथ काम का अधिकार शामिल है, जो एक सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त बुनियादी मानवाधिकार है। हालांकि, ये दिशानिर्देश वर्तमान में करीब 19.5 करोड़ श्रमिक समूह वाले अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने में साफ़ तौर से असफल रहे हैं।

नौकरी खोने का डर और समाज में तिरस्कार

दूसरी ओर समर्थ महिलाएं भी अपनी नौकरी खोने का डर या समाज में तिरस्कार के चलते अपने साथ हुए मामलों तो रिपोर्ट नहीं कर पातीं लेकिन इन्हीं सब आशंकाओं को दूर करने के लिए साल 2013 में सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट लाया गया। जिससे यदि किसी महिला के साथ कार्यस्थल पर कोई दुर्व्यवहार होता है तो वो पुलिस के पास जाने या सोशल मीडिया में लिखने से पहले अपने ऑफ़िस में बनी इस समिति में जा सकती है। इस समिति द्वारा महिला की प्राइवेसी के साथ-साथ उसकी नौकरी और सुरक्षा सभी तथ्यों को ध्यान में रखा जाता है।

2013 में आए कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम ने कार्यस्थल की परिभाषा को व्यापक किया और घरेलू कामगारों समेत अनौपचारिक क्षेत्र को इसके दायरे में लाया। पॉश नाम से लोकप्रिय यह अधिनियम स्वास्थ्य, खेल, शिक्षा के साथ–साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों या सरकारी संस्थानों में और परिवहन समेत अपने नियोजन के दौरान कर्मचारी के भ्रमण के किसी भी स्थान में सभी कामगारों को सुरक्षा प्रदान करता है। इन सबके बाद भी महिलाएं यौन उत्पीड़न या हमले से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत पुलिस शिकायत दर्ज कर सकती हैं। लेकिन वर्षों तक लंबित रह सकने वाले आपराधिक मामलों के विपरीत, शिकायत समितियों से त्वरित और प्रभावी राहत उपाय मिलने की उम्मीद होती है।

अधिकांश संगठन अभी भी क़ानून का अनुपालन करने में विफल हैं!

इंडियन नेशनल बार एसोसिएशन द्वारा 2017 में कराए गए भारत में अब तक के सबसे बड़े 6,000 से अधिक कर्मचारियों के सर्वेक्षण में पाया गया कि रोजगार के विभिन्न क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न पांव पसारे हुए है। जिनमें अश्लील टिप्पणियों से लेकर यौन अनुग्रह की सीधी मांग तक सम्मिलित है। इसमें पाया गया कि अधिकांश महिलाओं ने लांछन, बदले की कार्रवाई के डर, शर्मिंदगी, रिपोर्ट दर्ज कराने संबंधी नीतियों के बारे में जागरूकता का अभाव या शिकायत तंत्र में भरोसा की कमी के कारण प्रबंधन के समक्ष यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई। यह भी पाया गया कि अधिकांश संगठन अभी भी कानून का अनुपालन करने में विफल हैं, या आंतरिक समितियों के सदस्यों ने इस प्रक्रिया को पर्याप्त रूप से नहीं समझा है।

ह्यूमन राइट वॉच रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो इस बात का दस्तावेजीकरण करता हो कि कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न महिलाओं को नौकरी छोड़ने के लिए किस हद तक जिम्मेदार है।

इस संबंध में डेटा जर्नलिज्म वेबसाइट, इंडियास्पेंड के लिए कई किस्तों में एक जांच रिपोर्ट लिखनेवाली पत्रकार नमिता भंडारे कहती हैं, “वैयक्तिक अनुभवों के ढेर सारे स्रोत हैं। लड़कियां यौन उत्पीड़न के बारे में  बात नहीं करना चाहती हैं क्योंकि उन्हें डर सताता है कि परिवार तुरंत उन्हें काम छोड़ने के लिए कहेगा। यौन उत्पीड़न संबंधी कोई आंकड़ा या मौलिक परिमाणात्मक अध्ययन नहीं है, और अनौपचारिक क्षेत्र में तो बिल्कुल नहीं।”

मालूम हो कि आईसीसी यानी आंतरिक समितियों की परिकल्पना क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के विकल्प के तौर पर की गई थी, ताकि पीड़ित को अदालती दांवपेच में न उलझना पड़े और उन्हें न्याय दिलाया जा सके। बावजूद इसके आईसीसी महिलाओं को अक्सर न्याय नहीं दिलवा पाती। ऐसे बहुत से संस्थान हैं जहां आईसीसी निष्क्रिय बनी रहती है। अगर वह सक्रिय भी होती है तो उसकी सिफारिशों को माना नहीं जाता। जैसे द इनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (टेरी) और आरके पचौरी वाले मामले में हुआ था। टेरी की आईसीसी ने पचौरी के खिलाफ जांच में उन्हें दोषी माना था। लेकिन टेरी ने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की थी। नतीजतन पीड़िता को क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम यानी कोर्ट का सहारा लेना पड़ा था।

Gujrat
Guru Gobind Singh Government Hospital
harrasment at work place
crimes against women
violence against women
exploitation of women
VIJAY RUPANI

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

बिहार: आख़िर कब बंद होगा औरतों की अस्मिता की क़ीमत लगाने का सिलसिला?

बिहार: 8 साल की मासूम के साथ बलात्कार और हत्या, फिर उठे ‘सुशासन’ पर सवाल

मध्य प्रदेश : मर्दों के झुंड ने खुलेआम आदिवासी लड़कियों के साथ की बदतमीज़ी, क़ानून व्यवस्था पर फिर उठे सवाल

बिहार: मुज़फ़्फ़रपुर कांड से लेकर गायघाट शेल्टर होम तक दिखती सिस्टम की 'लापरवाही'

यूपी: बुलंदशहर मामले में फिर पुलिस पर उठे सवाल, मामला दबाने का लगा आरोप!

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर

असम: बलात्कार आरोपी पद्म पुरस्कार विजेता की प्रतिष्ठा किसी के सम्मान से ऊपर नहीं


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License