NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
आंदोलन
उत्पीड़न
कानून
कोविड-19
पर्यावरण
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
हसदेव अरण्य: केते बेसन पर 14 जुलाई को होने वाली जन सुनवाई को टाले जाने की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही है
छत्तीसगढ़ के सुरगुजा जिले में गोंड आदिवासी घने जंगलों के बीच में स्थित केते बेसन नामक एक और कोयला ब्लॉक में कार्य-संचालन के खिलाफ अपने प्रतिरोध को जारी रखे हुए हैं।
सुमेधा पाल
07 Jul 2021
hasdeo aranya
चित्र साभार: मोंगाबे-इंडिया

नई दिल्ली: इस वर्ष भारत द्वारा कोयला खनन के निजीकरण के बाद, जारी कोरोना महामारी के बावजूद इसके परिचालन को अबाध गति से जारी रखा गया है और उसी प्रकार से कुछ क्षेत्रों में सामुदायिक प्रतिरोध भी लगातार कायम है।

छत्तीसगढ़ के सुरगुजा जिले में गोंड आदिवासी समुदाय हसदेव अरण्ड के घने जंगल के बीचो-बीच में स्थित एक और कोयला ब्लॉक - केते बेसन में चल रहे अभियान के खिलाफ अपने प्रतिरोध को जारी रखे हुए हैं।

यह ब्लॉक 17.6 वर्ग किमी से अधिक के क्षेत्र में चार गाँवों में फैला हुआ है, और इसका स्वामित्व राज्य-संचालित राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड के हाथ में है। इस कोयला ब्लॉक के आवश्यक मंजूरी प्रकिया के हिस्से के तौर पर 14 जुलाई को एक जन सुनवाई होने जा रही है। 

खदान के संचालन की प्रक्रिया को लेकर वर्तमान विरोध की जड़ें आदिवासी समुदायों के बीच में पूर्व के अनुभवों पर आधारित हैं, जिनकी ओर से आरोप लगाया जाता रहा है कि हसदेव अरण्य की 98% वन आच्छादित भूमि, जो कि 1,70,000 हेक्टेयर में फैली हुई है, में खनन कार्यों का अर्थ उनके प्राकृतिक आवास, उनकी आजीविका और सांस्कृतिक पहचान के लिए पूर्ण तबाही का सबब बनने जा रही है। 

2009 में, हसदेव अरण्य को इसके समृद्ध जंगल क्षेत्र के कारण खनन के लिए “नो-गो” जोन नामित किया गया था। हालाँकि बाद में इसे उलट दिया गया। वर्तमान में कई कोयला ब्लाकों में अधिग्रहण और संचालन की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में जारी है, जिसमें परसा, परसा पूर्व, केते बेसन और तारा कोयला ब्लॉक शामिल हैं। इस क्षेत्र में ऐसे कुल 22 ब्लॉक्स हैं।

23 जून, 2011 को तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने तीन कोयला ब्लाकों - तारा, परसा पूर्व एवं केते बेसन के लिए वन मंजूरी दे दी थी, लेकिन वादा किया था कि इसके बाद इस क्षेत्र में किसी भी अन्य कोयला खनन परियोजना को कोई मंजूरी नहीं दी जायेगी।

14 जुलाई को होने वाली जन सुनवाई को स्थगित किये जाने के लिए एक अनुरोध पत्र। 

इस क्षेत्र के निवासी, रामलाल करियाम ने न्यूज़क्लिक को बताया: “केते विस्तार के उद्घाटन ने तमाम उल्लंघनों से गुजरने के बाद हमारे सामने एक भारी संकट खड़ा कर दिया है, जैसा कि परसा कोयला ब्लॉक के मामले में देखा गया है। अगर केते के लिए भी मंजूरी मिल जाती है तो यह हमारे प्राकृतिक आवास और इस क्षेत्र में रह रहे आदिवासी समुदायों के लिए किसी भारी आघात से कम नहीं होगा। खनन गतिविधि का अर्थ है कि हम अपनी वन उपज से हमेशा-हमेशा के लिए हाथ धो बैठेंगे।”

कोविड-19 संक्रमण, बारिश आदि के कारण जन सुनवाई को स्थगित किये जाने की मांग करते हुए करियाम का कहना था: “पिछली प्रकियाओं को देखते हुए इस बारे में लोगों का अनुभव काफी कड़वा रहा है, यही वजह है कि खनन गतिविधियों के खिलाफ इतना मजबूत प्रतिरोध देखने को मिल रहा है। वर्तमान में बारिश एवं और खरीफ का मौसम होने के कारण, ज्यादातर लोग 14 जुलाई को होने वाली जन सुनवाई प्रकिया में भाग ले पाने में असमर्थ हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जमीन पर यह प्रक्रिया पूरी तरह से जनभावनाओं को प्रतिबिंबित कर पाने में असमर्थ रहने वाली है - हम इसे सुनवाई को आगे बढ़ाने के एक और तरीके के तौर पर देख रहे हैं, जिसमें विरोध के बावजूद सहमति का नाटक किया जा रहा है।”

इससे पहले, न्यूज़क्लिक ने पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सरगुजा और सूरजपुर जिलों के परसा कोयला ब्लॉक में सल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर के गांवों में शुरू की गई भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को समाप्त किये जाने के लिए आदिवासियों की मांग की रिपोर्टिंग की थी। इन समुदायों का दावा है कि कोयला खनन में तेजी लाने की प्रक्रिया संविधान की पांचवीं अनुसूची एवं पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, या पेसा अधिनियम के तहत हासिल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, जो इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी भी प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण करने से पहले ग्राम सभाओं से सहमति पत्रों को हासिल करना अनिवार्य है। 

समुदायों के लिए विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा कोयला धारक अधिनयम को लागू करना रहा है, जिसके मूल में इस क्षेत्र में खनन को मंजूरी देना छिपा हुआ है। पिछले साल दिसंबर माह में केंद्र सरकार ने 700 हेक्टेयर से अधिक भूमि का अधिग्रहण करने के लिए कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 को लागू किया था।  

यह अधिनियम केंद्र सरकार को इस बात की अनुमति देता है कि यदि वह इस बारे में संतुष्ट है कि कोयले को समूचे या भूमि के एक हिस्से से निकाला जा सकता है, तो क्षेत्र में कोयले की संभावना को देखते हुए अधिसूचना जारी करने के दो वर्षों के भीतर इसे खनन के लिए अधिग्रहित किया जा सकता है। कोयला धारक अधिनियम सर्वोपरि क्षेत्र के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके तहत सरकार के पास निजी भूमि को हस्तगत करने और इसे सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए परिवर्तित करने की शक्तियाँ निहित हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/Hasdeo%20Aranya-demand-defer-kente-besan-public-hearing-july-14-grows

Hasdeo Aranya forests
Hasdeo Aranya Forest
Chhattisgarh
coal mines
Coal mining

Related Stories

कोरबा : रोज़गार की मांग को लेकर एक माह से भू-विस्थापितों का धरना जारी

माओवादियों के गढ़ में कुपोषण, मलेरिया से मरते आदिवासी

‘माओवादी इलाकों में ज़िंदगी बंदूक की नाल पर टिकी होती है’

बीजापुर एनकाउंटर रिपोर्ट: CRPF की 'एक भूल' ने ले ली 8 मासूम आदिवासियों की जान!

छत्तीसगढ़ : सिलगेर में प्रदर्शन कर रहे आदिवसियों से मिलने जा रहे एक प्रतिनिधिमंडल को पुलिस ने रोका

छत्तीसगढ़: आदिवासियों के ख़िलाफ़ दर्ज 718 प्रकरणों की वापसी

छत्तीसगढ़: लड़ेंगे, लेकिन पुरखों की ज़मीन कंपनी को नहीं देंगे

छत्तीसगढ़ : भू-अधिकारों के बावजूद जनजातीय परिवार लगातार हो रहे हैं ज़मीन से बेदख़ल


बाकी खबरें

  • अनिल अंशुमन
    झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 
    12 May 2022
    दो दिवसीय सम्मलेन के विभिन्न सत्रों में आयोजित हुए विमर्शों के माध्यम से कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध जन संस्कृति के हस्तक्षेप को कारगर व धारदार बनाने के साथ-साथ झारखंड की भाषा-संस्कृति व “अखड़ा-…
  • विजय विनीत
    अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद की शक्ल अख़्तियार करेगा बनारस का ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा?
    12 May 2022
    वाराणसी के ज्ञानवापी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिविजन) ने लगातार दो दिनों की बहस के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिवक्ता कमिश्नर नहीं बदले जाएंगे। उत्तर प्रदेश के…
  • राज वाल्मीकि
    #Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान
    12 May 2022
    सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन पिछले 35 सालों से मैला प्रथा उन्मूलन और सफ़ाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक टैंको में हो रही मौतों को रोकने और सफ़ाई कर्मचारियों की मुक्ति तथा पुनर्वास के मुहिम में लगा है। एक्शन-…
  • पीपल्स डिस्पैच
    अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की
    12 May 2022
    अल जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह (51) की इज़रायली सुरक्षाबलों ने उस वक़्त हत्या कर दी, जब वे क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैंप में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही छापेमारी की…
  • बी. सिवरामन
    श्रीलंकाई संकट के समय, क्या कूटनीतिक भूल कर रहा है भारत?
    12 May 2022
    श्रीलंका में सेना की तैनाती के बावजूद 10 मई को कोलंबो में विरोध प्रदर्शन जारी रहा। 11 मई की सुबह भी संसद के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License