NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
क्या रोज़ी-रोटी के संकट से बढ़ गये हैं बिहार में एनीमिया और कुपोषण के मामले?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण के अनुसार जब लॉकडाउन से पहले बिहार में पिछले चार वर्षों में महिलाओं और बच्चों के बीच एनीमिया के मामलों में भारी वृद्धि हुई है, तो आप बिहार के सुशासन की हक़ीक़त पहचान सकते हैं।
पुष्यमित्र
15 Dec 2020
बिहार

“लॉकडाउन में काम नहीं होने के कारण पैसों की कमी थी। खाने में सब्जी की कमी थी, दाल चावल भी ठीक से नहीं मिलता था। पढ़ाई में भी दिक्कत हुई और खाने-पीने की भी तकलीफ हुई।”

“घर में खाना नहीं था। काम बंद था। मम्मी-पापा कहीं से जुगाड़ कर हमें खाने के लिए देते थे। और हां, इस बीच में तीन दिनों तक खाना नहीं खाने को मिला।”

“लॉकडाउन के दौरान खाने के लिए हरी सब्जियां नहीं मिलीं। सामान काफी महंगा मिलता था। दुकानदार उधार नहीं देते थे। घर में पैसे नहीं थे, जलावन नहीं था। मजदूरी बंद हो गयी थी।”

ये टिप्पणियां बिहार की किशोरियों की हैं, जो एक संस्था द्वारा संचालित किशोरी समूह की सदस्य हैं। इस साल सितंबर माह में जब उस संस्था ने किशोरी समूहों की बैठक की और लॉकडाउन के दौरान उनके अनुभव पूछे तो गांव की किशोरियों ने उन्हें पोस्टर पर लिखकर यह सब बताया। इन अनुभवों से जाहिर है कि लॉकडाउन के दौरान बिहार की गरीब आबादी को आजीविका का भीषण संकट झेलना पड़ा और इसका असर लोगों के खान-पान पर पड़ा।

अभी इस शनिवार 12 दिसंबर को जब नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण-5 के आंकड़े जारी हुए तो उन आंकड़ों में बिहार के इन्हीं हालात की प्रतिध्वनियां सुनाई दीं। इन आंकड़ों से पता चला कि पिछले चार वर्षों में बिहार में महिलाओं और बच्चों के बीच एनीमिया के मामलों में अच्छी खासी वृद्धि हुई है, बिहार कुपोषण के मामलों में भी कुछ मानकों में पिछड़ता नजर आ रहा है। हालांकि इस बार के आंकड़ों में गुजरात जैसे विकसित राज्य भी कई मानकों पर पिछड़ते नजर आ रहे हैं, मगर पहले से ही कुपोषण और एनीमिया के मामलों में काफी पीछे रहने वाले बिहार के लिए यह ज्यादा चिंता की खबर है। हम तेजी से आगे बढ़ने के बदले पिछड़ रहे हैं।

ये आंकड़े बताते हैं कि जहां 2015-16 में बिहार में छह माह से पांच साल के बीच के 63.5 फीसदी बच्चे एनीमिक थे, वहीं 2019-20 के इन आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या बढ़कर 69.4 हो गयी है। 15-49 वर्ष के आयु वर्ग की सामान्य महिलाओं में पहले 60.4 फीसदी एनीमिक थीं, अब 63.6 फीसदी एनीमिक हो गयी हैं। इसी आयु वर्ग में गर्भवती महिलाओं में 58.3 फीसदी से बढ़कर 63.1 फीसदी हो गया है। जहां तक 15-19 साल के बीच की किशोरियों का सवाल है, पहले 61 फीसदी एनीमिक थीं, अब 65.7 फीसदी किशोरियां एनीमिक हैं।

बिहार में किशोरियों और महिलाओं के साथ काम करने वाली संस्था हंगर प्रोजेक्ट से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शाहिना परवीन कहती हैं कि महिलाओं और किशोरियों के बीच बढ़ती रक्त-अल्पता की वजह समुचित पोषक भोजन नहीं मिल पाना है। हाल के कुछ वर्षों में खास कर नोट बंदी और मंदी के माहौल में गरीब लोगों के लिए आजीविका का बड़ा संकट पैदा हो गया है। इसका सीधा असर लोगों के भोजन की गुणवत्ता पर पड़ा है। इसके साथ-साथ हरी सब्जियां भी महंगी हुई हैं। इस वजह से गरीब परिवारों की थाली से अब हरी सब्जियां धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। मजदूरी करने वाले परिवार अब हर शाम चावल-दाल और आलू खरीदकर घर ले जाते हैं, और खाने में वही पकता है।

वे कहती हैं कि पहले ग्रामीण इलाकों में हर घर में छोटा सा किचेन गार्डेन होता था, जिसमें कुछ न कुछ सब्जियां उगा ली जाती थीं। हाल के दिनों में सरकारी आवास योजना के तहत पक्का मकान बनने और पीढ़ियों के साथ रहने की जमीन कम होने के कारण किचेन गार्डेन के लिए जगह की गुंजाइश खत्म हो गयी हैं। पहले खेतों में भी फसलों के बीच साग उग जाया करते थे, जिन्हें गरीब महिलाएं तोड़ लाती थीं। मगर अब पेस्टीसाइड के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से वह विकल्प भी खत्म हो गया है। बिहार की कई दलित जातियां पहले चूहा, केकड़ा या अन्य जीव भी खा लिया करती थीं, अब उसे बुरा माना जाने लगा है। इस तरह पहले गरीब लोगों को जो पोषक आहर सहज उपलब्ध थे, अब उसमें कमी आयी है।

हालांकि दिलचस्प है कि इस अवधि में किशोरों और पुरुषों में एनीमिया के मामले घटे हैं। बिहार में पहले (2015-16) 15-19 वर्ष की आयु के 37.8 फीसदी किशोर एनीमिक थे, अब यह संख्या घट कर 34.8 फीसदी रह गयी है। 15-49 साल के पुरुषों में पहले यह संख्या 32.3 फीसदी थी, अब 29.5 फीसदी रह गयी हैं।

शाहीना इसकी वजह बताते हुए कहती हैं कि बिहार के ग्रामीण परिवारों में अभी भी महिलाएं पहले घर के पुरुषों को खिला देती हैं, फिर बचा-खुचा खाती हैं। इस वजह से घर में जो अच्छा भोजन होता है, वह पुरुषों की थाली में जाता है। महिलाएं और किशोरियां इससे स्वाभाविक रूप से वंचित रहती हैं। इन सबका असर तो होना ही है।

बिहार में एनीमिया के साथ-साथ कुपोषण के मामले में बढ़ोतरी देखी गयी है। ऊंचाई के अनुपात में वजन के मामले में पांच साल से कम उम्र के 20.8 फीसदी बच्चे पहले कुपोषित थे, अब यह संख्या बढ़कर 22.9 फीसदी हो गयी है। गंभीर रूप से अतिकुपोषित बच्चों की संख्या भी सात फीसदी से बढ़कर 8.8 फीसदी हो गयी है।  

ये आंकड़े सरकार द्वारा कुपोषण और एनीमिया को नियंत्रित करने के लिए चलाये जा रहे विभिन्न योजनाओं पर भी सवाल खड़े करते हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये राज्य में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषाहार और किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को आयरन-फोलिक एसिड की गोलियां उपलब्ध कराने की व्यवस्था है।

वहीं पिछले साल से बिहार के स्कूलों में किशोरों के बीच हर हफ्ते आयरन-फोलिक एसिड की गोलियां उपलब्ध कराये जाने की योजना शुरू हुई थी। आंगनबाड़ी और स्कूलों में बच्चों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने की भी योजनाएं हैं। अगर इन योजनाओं के बाद भी बिहार की महिलाएं और बच्चे कुपोषण और एनीमिया के शिकार हो रहे हैं और ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं तो यह खतरे की बात है।

कुपोषण के मसले पर देश के कई राज्यों में काम करने वाले अशोका फेलो सचिन कुमार जैन कहते हैं कि नये आंकड़े हमें सरकारी योजनाओं के डिलीवरी सिस्टम को नयी निगाह से देखने की मांग कर रहे हैं। हाल के ही दिनों में मैंने बिहार के सीतामढ़ी जिले की यात्रा की थी, वहां पता चला कि आंगनबाड़ी सेविकाओं को पिछले छह माह से मानदेय नहीं मिला है। यही आंगनबाड़ी सेविकाएं हैं, जिनके कंधों पर कुपोषण और एनीमिया से लड़ने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। अगर वह इन परिस्थितियों में काम करे तो काम की गुणवत्ता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

वे कहते हैं, अभी महिलाओं और बच्चों के लिए टेकहोम राशन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है, मगर क्या वह राशन महिलाओं और बच्चों की थाली तक पहुंच रहा है, यह देखने की बात होगी। हमलोग लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि आंगनबाड़ी केंद्रों को प्ले स्कूल के तौर पर विकसित किया जाये ताकि वहां बच्चों के पोषण की ठीक से निगरानी हो सके।

वहीं शाहीना एक और गंभीर तथ्य की तरफ इशारा कहती हैं, वे कहती हैं कि बिहार में आंगनबाड़ी केंद्रों को निर्देश है कि वे उन्हीं बच्चों को पोषणआहार उपलब्ध करायें जो उनके केंद्र तक पहुंचते हैं। मतलब यह योजना सभी बच्चों के लिए नहीं है। वे राज्य में पोषण पुनर्वास केंद्रों की लचर स्थिति के बारे में भी बताती हैं, जहां अतिकुपोषित बच्चों के इलाज की व्यवस्था की जानी है।

इन बिगड़ी स्थितियों को लेकर बिहार सरकार के साथ बच्चों के मसले पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ भी चिंतत है। यूनिसेफ, पटना के पोषण विशेषज्ञ डॉ हुबे अली कहते हैं कि सरकार की योजनाओं का असर लोगों तक क्यों नहीं है, इसे ठीक से देखना होगा। वे कहते हैं कि हमने जो मानिटरिंग करवायी है, उसके हिसाब से 70 से 75 फीसदी गर्भवती महिलाओं तक आंगनबाड़ी केंद्रों से आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां बंटी हैं, जब आंकड़े कहते हैं कि इस दौरान सिर्फ 18 फीसदी महिलाओं ने ही इन गोलियों का सेवन किया है। जाहिर है अब हमें इस तरफ भी ध्यान देना होगा।

इन आंकड़ों में सबसे गंभीर बात यह है कि ये दिसंबर, 2019 तक के ही हैं। यानी यह स्थिति कोरोना और लॉकडाउन से पहले की है। लॉकडाउन के दौरान जिस तरह बिहार के गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों में आजीविका का संकट तेजी से बढ़ा है औऱ लोगों को खाने-पीने की दिक्कतें हुई हैं, ऐसे में एनीमिया और कुपोषण के मामले और बढ़े होंगे। क्या हम इस बढ़े संकट का मुकाबला करने की स्थिति में होंगे, यह बड़ा सवाल है।

(पटना निवासी पुष्यमित्र स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Bihar
COVID-19
Lockdown
National Family Health Survey
NFHS
malnutrition in children
Anemia
poverty
Hunger Crisis
Nitish Kumar

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License