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पर्यावरण
भारत
लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार
उत्तर भारत के कई-कई शहरों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चढ़ने के दो दिन बाद, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ रही प्रचंड गर्मी की मार से आम लोगों के बचाव के लिए सरकार पर जोर दे रहे हैं।
मोहम्मद इमरान खान
18 May 2022
heat

पटना: उत्तर भारत में इस साल कहर बरपाती गर्मी से लाखों लोगों के रोजमर्रे की जिंदगी पर बुरा असर पड़ रहा है। मुख्य रूप से श्रमिक और गरीब वर्ग पर इसकी मार ज्यादा पड़ रही है। इसके चलते अधिक आशंका है कि आने वाले वर्षों में इससे भी भयंकर गर्मी पड़ेगी। इसके मद्देनजर विशेषज्ञों ने रूई की मानिंद जल रही धरती और उस पर रहने वाले प्राणियों को बचाने के लिए सरकार से हीट एक्शन प्लान पर काम करने का आग्रह किया है।

लू के थपेड़ों (हीटवेव) ने अर्थव्यवस्था को भी दुष्प्रभावित किया है। यह बात देश में बिजली और कोयला संकट से जाहिर हो गई है, जबकि केंद्र सरकार ने ऐसा कोई संकट न होने का दावा किया था।

जैसा कि सबको मालूम है कि दिल्ली के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 49 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया है जबकि उत्तर भारत के कई-कई शहरों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया है। इसके दो दिन बाद, भारत में विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ने वाली इस प्रचंड गर्मी से लोगों को बचने में मदद करने के लिए सरकार की तरफ से तत्काल कार्रवाई पर जोर दिया है।

डॉ अभियंत तिवारी, जो गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट के सहायक प्रोफेसर और कार्यक्रम प्रबंधक हैं, उनका कहना है, “भविष्य में होने वाले दहन को एक हद में रखने के लिए शमन के कुछ उपाय लाजिमी हैं क्योंकि आने वाले समय में चरम पर गरम हवा के बहने या उनका लगातार बने रहने या लंबे समय तक उसके चलने की आशंका अब सुदूर भविष्य की बात नहीं रह गई। वह खतरा मौजूदा समय की दहलीज पर पहले से ही आया हुआ है और उससे निबटना अब अपरिहार्य हो गया है।" डॉ तिवारी क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा ‘भारत में गर्मी का तनाव: जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर शमन और अनुकूलन के प्रयासों में तेजी लाना’ विषय पर हालिया आयोजित एक कार्यशाला में बोल रहे थे।

डॉ. तिवारी ने कहा, “प्रचंड गर्मी से बचाव एवं राहत की हमारी कार्य योजनाओं में ठंडक प्रदान करने वाले कुछ अनुकूलन के उपायों पर अमल करना चाहिए। ये उपाय हैं-गर्मी से राहत देने वाले सार्वजनिक शीतल क्षेत्रों का निर्माण, बिजली की बेरोकटोक आपूर्ति बनाए रखना, लोगों को शीतल पेयजल तक पहुंच सुनिश्चित करना  और पिरामिड के नीचे पड़े सबसे कमजोर लोगों को मसलन श्रमिकों को तेज गर्मी के दौरान उनके काम के घंटों में बदलाव करना।”

वहीं, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ गांधीनगर (आईआईपीएचजी) के निदेशक डॉ दिलीप मावलंकर ने कहा, "लोगों को विशेषज्ञों की इन सलाहों पर अमल करने की जरूरत है, वे लू चलने के दौरान अपने-अपने घरों के अंदर रहें, खुद को हाइड्रेटेड रखें और यदि वे खुद में गर्मी से संबंधित किसी मर्ज का कोई लक्षण महसूस करते हैं तो तुरंत अपने निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाएं। उम्रदराज एवं शरीर से लाचार व कमजोर लोगों की विशेष देखभाल करने की आवश्यकता है, जैसा हमने कोविड के दौरान किया था। इसलिए कि वे घरों में बैठे होने के बावजूद लू की चपेट में आ सकते हैं।”

मावलंकर की सलाह है कि “नगर प्रशासन को अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों और एम्बुलेंस के लिए आनेवाले कॉल के डेटा के साथ-साथ किसी भी वजहों से होने वाली मृत्यु दर डेटा का रोजाना स्तर पर निगरानी करनी चाहिए ताकि भयंकर गर्मी या लू से मरने वालों के वास्तविक संकेत हासिल करने के लिए पिछले पांच वर्षों के डेटा के साथ उनका मिलान किया जा सके।"

डॉ मावलंकर कहते हैं, “यह जबकि एक बहुत ही शुरुआती गर्मी की लहर है, और इससे होने वाली मृत्यु दर सामान्य रूप से ऊंची है, क्योंकि गर्मी से राहत-बचाव के लिए मार्च-अप्रैल के महीनों में बहुत कम तैयारी की गई है। हालांकि केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा नगर प्रशासन को भी इस पर ध्यान देना चाहिए, खासकर जब भारतीय मौसम विभाग द्वारा नारंगी और लाल अलर्ट जारी किए गए हों, और इसके बारे में जनता को आगाह करने के लिए समाचार पत्रों, में, टीवी चैनलों पर और रेडियो में चेतावनी विज्ञापन जारी करना चाहिए। यह चेतावनी मई-जून में पड़ने वाली भीषण गर्मी का एक संकेत होती है। यदि हम अब प्रभावी कार्रवाई करते हैं, तो हम अधिक तादाद में लोगों के मरीज होने और इसके चलते बढ़ती मृत्यु दर को रोक सकते हैं।”

ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (जीडब्ल्यूईसी) इंडिया के नीति-निदेशक मार्तंड शार्दुल का कहना है, "जलवायु में लगातार चरम बदलाव और बिजली के झटके केवल यही इशारा करते हैं कि जलवायु संबंधी कार्रवाई और ऊर्जा संक्रमण की जरूरतें न केवल घरेलू घटनाओं से जुड़ी हुई हैं बल्कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय झटकों से कितनी प्रभावित होती हैं। कोयले का घरेलू उत्पादन बढ़ा कर और उसके आयात में वृद्धि कर इसकी कमी से राहत मिल सकती है; हालांकि, इन तेज मांग वाली जरूरतों को स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव कर और नवीकरणीय ऊर्जा निवेश को सामाजिक अच्छाई, पृथ्वी ग्रह की सेहत बनाए रखने और आर्थिक लचीलापन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।”

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला का इस विषय पर मानना है कि, "यह तथ्य कि हमने गलती की है, 120 वर्षों में पहली बार प्रचंड लू के थपेड़े महज संयोग नहीं है। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि पूर्व-औद्योगिक स्तर के बाद से वैश्विक सतह का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। प्रचंड गर्मी और इसीसे जुड़ी उर्जा की भारी मांग ने देश में बिजली का एक संकट पैदा कर दिया है, जो वास्तव में, कोयले की ढुलाई और संचरण ऊर्जा की बाबत एक खराब योजना है। यह कोयले की कमी की बात नहीं है। और न ही इसमें ऊर्जा क्षमता की कोई कमी है। यह समस्या वैश्विक महामारी और यूक्रेन-रूस युद्ध से पैदा हुई है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले की कीमतों में वृद्धि की है, दरअसल यह समय कोयले के उपयोग को खत्म करने की दिशा में अंतिम कील होना चाहिए था। फिर भी, विडंबना यह है कि यह तुरंत एवं अधिक से अधिक ऊर्जा पैदा करने का हमारा इकलौता विकल्प बना हुआ है। अब पवन और सौर ऊर्जा बढ़ाने का समय है ताकि हम एक ताप से दुनिया से निपटने के लिए तैयार हो सकें।”

डब्ल्यूआरआई इंडिया, एनर्जी प्रोग्राम के निदेशक भरत जयराज ने कहा, "वर्तमान कोयला संकट केवल खदानों और बंदरगाहों से बिजली संयंत्रों तक संसाधन या इसके परिवहन की उपलब्धता को लेकर नहीं है। यह संबद्ध राज्यों और राष्ट्रीय एजेंसियों की एकीकृत योजना की कमी और अल्पकालिक मुद्दों में ही लगातार फंसे रहने की तरफ इशारा करता है, जो मध्यम एवं लेकर दीर्घकालिक महत्त्व के मुद्दों पर विचार एवं अमल के लिए जरूरी वक्त और गुंजाइश को ही खत्म कर देता है। भारत को आक्रामक रूप से नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने की आवश्यकता है-वर्तमान में प्रति वर्ष 10-12 गीगावॉट की दर को बढ़ा कर प्रति वर्ष 35-36 गीगावॉट तक करना होगा-अगर हमें 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के 500 गीगावॉट के लक्ष्य को पूरा करना है।”

जयराज ने कहा, "हमें ऊर्जा भंडारण में निवेश का जबरदस्त तरीके से समर्थन करना होगा और अंतिम उपभोक्ताओं को रूफटॉप एवं बिहाइंड द मीटर योजना में निवेश के लिए अनुकूल नियामक स्थितियों को फिर से पेश करना होगा। इसी तरह, हमें देश में नीतिगत मामलों में एक निश्चितता और निरंतरता बनाए रखने की आवश्यकता है ताकि निवेशक और डेवलपर्स मध्यम से दीर्घकालिक निर्णय ले सकें। यह काम समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।”

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Heat-Stress-Experts-Urge-Work-Heat-Action-Plans

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