NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
हिंदी पत्रकारिता दिवस: अपनी बिरादरी के नाम...
आज न तो सियापा करने का दिन है और न ही जश्न मनाने का। आज, अपने काम, लेखनी व बोली की वकत जानने और इसकी ज़रूरत को पहचाने का दिन है। ...वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह का आलेख
भाषा सिंह
30 May 2021
media with spine

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर तमाम साथियो को जिंदाबाद!

आज न तो सियापा करने का दिन है और न ही जश्न मनाने का। आज, अपने काम, लेखनी व बोली की वकत जानने और इसकी ज़रूरत को पहचाने का दिन है।

पत्रकारिता कॉरपोरेट की गुलाम है--हिंदी हो या अंग्रेजी, या कोई भी भारतीय भाषा। जैसा जिस समूह का मालिक है, वैसी वहां खबरें आती हैं,

पत्रकारिता पर सत्ता का शिकंजा कसा है, लंबलेट हुई है...लार टपकाते हुए संपादक-मालिक विधानसभाओं से लेकर संसद में पहुंचे हैं...

अब वे खुलकर प्रवक्ता बने फिर रहे हैं, अंदर से जनविरोधी-दलाल-संघी लोग पहले छुपकर बैटिंग करते थे,  अब जैसे सत्तासीन नंगे हो गये,  सत्ता के साथ मिलकर ताली-थाली का खेल करने वाले मीडियाकर्मी भी नंगे हो गये...

इस नंगई में फर्क अभी बस डिग्री का है। मोदी सरकार जितना भी `हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान’  का नारा उछालती रहे, सत्ता की डीलिंग की भाषा अंग्रेजी ही है। शायद इसकी वजह यह है कि वह भी कॉरपोरेट की भाषा है। यही कारण है कि जितनी बड़ी डील हुई हैं, जो सामने आई हैं, उसमें बाज़ी हिंदी के दलाल पत्रकारों के नाम नहीं रही हैं। इसके बस दो उदाहरण अभी साझा करूंगी- राडिया टेप्स और अर्नब गोस्वामी वाट्सऐप लीक।

अब देखिए, राडिया टेप्स हों (2007-09)--जिसमें मंत्रियों और पदों के खेल में किस तरह से दलालों की भूमिका होती है और पत्रकार कैसे डील कराते हैं, एजेंट बनते हैं, इसका पर्दाफाश हुआ था—इसमें डीलर पत्रकारों में हिंदी का एक बड़ा संपादक तक नहीं था। उस समय मैं आउटलुक पत्रिका में काम करती थी। हम उस समय बैठकर यह सोचते रहे कि हिंदी के तमाम पत्रकार-संपादक-मालिक जो दिन रात सत्ता के आगे पीछे घूमते हैं, उन्हें जब असली मलाई कटती है, तब पास तक नहीं फटकने दिया जाता। अंग्रेजी के नामचीन पत्रकार, एंकर मंत्री पद की डीलिंग से लेकर बाकी सारी सैटिंग करते रहते हैं। उस समय मेरे वरिष्ठ सहयोगी नीलाभ मिश्रा ने बताया, सत्ता की सारी डील अंग्रेजी में ही होती है, हिंदी का संपादक-मालिक ज़्यादा से ज्यादा राज्यसभा तक पहुंचता है। और, फिर खूब जोरदार ठहाका लगा था कमरे में।

इसी तरह से अभी अर्नब गोस्वामी का वाट्सऐप लीक (जनवरी,2021) भी यही बताता है कि बड़े खेल में किन पत्रकारों की भूमिका होती है। सत्ता किन दलाल पत्रकारों से अपने गोपनीय राज साझा करती है। अर्नब गोस्वामी का वाट्सऐप लीक (जनवरी, 2021) में यह सामने आया कि 2019 के शुरुआत में पुलवामा में हुए आतंकी हमले से पहले और बाद में किस तरह से पत्रकार और सत्ता प्रतिष्ठान किस तरह से गोपनीय सैन्य जानकारियों का खेल टीआरपी के फायदे के लिए खेलते रहे। इसमें रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी बाकायदा गृहमंत्री अमित शाह तक का हवाला देते बेनकाब हुए।

ये दोनों घटनाएं बस यह बताने के लिए बड़े खेल की खिलाड़ी अभी हिंदी पत्रकारिता नहीं बन पाई है—दलाली है, सांप्रदायिक एजेंडा नंगई के साथ है, लेकिन वह पूरी पत्रकारिता को डस रहा है। साख गिर रही है।

साथ ही, एक बहुत अहम बात यह कि हिंदी पत्रकारिता को जिंदा रखने का बीड़ा जिन पत्रकारों ने उठा रखा है, आज उन्हें सलाम करने और उनका हौसला बढ़ाने का दिन है। ऐसे पत्रकारों की संख्या हजारों में हैं, जो जान को ज़ोखिम में डालकर गांव-देहात, छोटे-छोटे कस्बे, शहरों से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। मुझे यह सोच कर फख्र होता है कि इनमें से बहुत बड़ी संख्या हिंदी के पत्रकारों की है। इनमें बड़ी संख्या में महिला पत्रकार भी शामिल हैं, जो पित्तसत्ता से टकराते हुए बिंदास अंदाज में रिपोर्टिंग कर रही हैं, खबरों को तेवर के साथ सच्चाई से पेश कर रही हैं। दलित समाज की दावेदारी और उपस्थिति बहुत से जातिगत शिकंजे को नेस्तनाबूद करते हुए बुलंद हुई है। ऐसे तमाम पहलू सामने आए हैं, जिन्हें बड़े संस्थागत घरानों में कभी जगह नहीं मिल पाती। यूं कहिए कि उन्होंने ही पत्रकारिता को ज़िंदा रखने का बीड़ा उठा रखा है। अनगिनत वेबसाइट्स, यू-ट्यूब चैनल, डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म, पत्रिकाएं, अखबार—आज के हिंदी पत्रकारिता का तेवर लिए मौजूद हैं। ये बहुत कम संसाधनों से निकल रहे हैं। इनकी पहुंच भी सीमित है, लेकिन असर है इनका। अगर असर न होता तो इन पर लगाम कसने के लिए मोदी सरकार नए कानून/हथियार न लाती।

जन-सरोकारी मीडिया, क़ॉरपोरेट मीडिया पर भी दबाव डालता है। उसे पत्रकारिता करने पर बाध्य करता है। ग्राउंड रिपोर्टिंग करने के लिए बाध्य करता है। कोरोना आपदा में मरघट बने देश में, शवदाहगृहों से खबरें हों, या लाशों से अटी गंगा की ख़बरें—ये सब हमारे हम-ज़ुबान, हमारे साथी पत्रकार ही देश के सामने लाए। जहां मृतकों की संख्या सरकारें छुपा रही हैं, वहीं मृतकों की संख्या, परिजनों की वेदना को कलमबंद करने, वीडियोग्राफ करने का साहस अपनी ज़ान को ज़ोखिम में डालकर पत्रकार साथी ही कर रहे थे, कर रहे हैं....और यही लोग जिंदा रख रहे हैं पत्रकारिता को,  हिंदी पत्रकारिता को। गणेश शंकर विद्यार्थी की डगर तो कठिन है ही।

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

journalism
Hindi journalism
Indian media
Mainstream Media
Social Media
Media and Politics

Related Stories

मीडिया का ग़लत गैरपक्षपातपूर्ण रवैया: रनौत और वीर दास को बताया जा रहा है एक जैसा

बीच बहस: विपक्ष के विरोध को हंगामा मत कहिए

'मैं भी ब्राह्मण हूं' का एलान ख़ुद को जातियों की ज़ंजीरों में मज़बूती से क़ैद करना है

नुक़्ता-ए-नज़र: शून्य को शून्य में जोड़ने या एक शून्य हटा दूसरा बिठाने से संख्या नहीं बढ़ती

बीच बहस: नेगेटिव या पॉजिटिव ख़बर नहीं होती, ख़बर, ख़बर होती है

वामपंथ, मीडिया उदासीनता और उभरता सोशल मीडिया

क्या गोदी मीडिया का काम ही किसानों के लिए नफ़रत फ़ैलाना है? 

रुख़ से उनके रफ़्ता-रफ़्ता परदा उतरता जाए है

सुशान्त सिंह राजपूत मामले में हदें पार करती मीडिया

कार्टून क्लिक: जनमुद्दे बनाम सांप्रदायिकता


बाकी खबरें

  • up map
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव:  कई सीटें ऐसी भी जहां हार-जीत का अंतर 500 वोटों से भी कम
    25 Jan 2022
    इसमें कोई दो राय नहीं कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाले हैं, जानें किन-किन सीटों पर होगा एक-एक वोट का महत्व?
  • UP Polls
    सुबोध वर्मा
    यूपी चुनाव: राज्य के वित्तीय कुप्रबंधन की एक तस्वीर
    25 Jan 2022
    जहां एक तरफ़ राज्य पर क़र्ज़ को बोझ बढ़ गया है, वहीं दूसरी तरफ़ यूपी सरकार के पास जो पैसे थे,वह उसे भी ख़र्च नहीं कर पा रही थी।
  • poor district
    सौरभ शर्मा
    उप्र चुनाव: भारत के सबसे पिछड़े  जिले के जीवन में एक दिन
    25 Jan 2022
    भारत के सबसे बड़े इस राज्य में विधानसभा चुनाव तेजी से नजदीक सरकते आ रहे हैं। यहां विकास हर पार्टी के लिए एक महत्त्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बना हुआ है। इसके बावजूद राज्य के कुछ जिले विकास के संकेतकों पर…
  • hum bharat ke log
    लाल बहादुर सिंह
    आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमारा गणतंत्र एक चौराहे पर खड़ा है
    25 Jan 2022
    यह आज का ख़ौफ़नाक सच है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संघ-भाजपा ने हमारे गणतंत्र के भविष्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। हमारे गणतांत्रिक संविधान की जो मूल आत्मा है-न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और…
  • solver gang
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : टीईटी परीक्षा में सॉल्वर गैंग के 19 सदस्य गिरफ़्तार, वर्षों से हैं सक्रिय
    24 Jan 2022
    बीते कुछ वर्षों में सॉल्वर गैंग के एक के बाद एक कई मामले सामने आए हैं जो परीक्षार्थियों से भारी रकम लेकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में उनकी जगह बैठ कर पेपर देते हैं। गत रविवार को हुई यूपी-टीईटी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License