NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है...
जोश मलीहाबादी (5 दिसंबर 1898 - 22 फरवरी 1982):  जोश की इंक़लाबी शायरी आज और मानीखेज़ हो जाती है, जब सर्द रातों में किसान सड़कों पर हैं, नौजवान रोज़ी-रोज़गार के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं, मुल्क के दस्तूर को ताक़ पर रख दिया गया है।
नाइश हसन
05 Dec 2020
Josh Malihabadi

हिन्दुस्तान पर आज़ादी हासिल करने का रंग चढ़ चुका था। हर शोबे में आज़ादी की हलचल मौजूद थी। ऐसे वक्त में मलीहाबाद के एक अदबी घराने में आज ही के दिन 5 दिसम्बर सन् 1898 में शब्बीर हसन ख़ान पैदा हुए। शब्बीर के पुरखे नवाबी हुकूमत के वक्त काबुल से भारत आए थे, आफरीदी पठानों का ये कुनबा पहले कुछ वक्त फरीदाबाद और फिर मलीहाबाद लखनऊ में आकर बस गया। फिरंगी हुकूमत में ये सूबा यूनाइटेड प्रॉविन्स कहलाता था। उनके घराने की उर्दू ज़बान पर हुकूमत थी, उन्होंने शायराना माहौल में ही आँखें खोलीं।  उन्हें विरासत में जागीर के बदले शायरी मिली। उसका असर शब्बीर हसन ख़ान पर यूँ हुआ कि जब उन्होंने शायरी करना शुरू किया तो अपना नाम जोश मलीहाबादी रख लिया।

यूं तो जोश उनकी रग-रग में मौजूद था, वो हिन्दुस्तान की आज़ादी की तहरीक से बहुत मुतास्सिर रहे। उनकी शख्सियत सत्ता विरोधी थी। इसी लिए उन्हें शायर-ए-इंकलाब कहा जाने लगा।

1918 में कांग्रेस के अहमदाबाद इजलास में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आज़ाद से हुई। फिर ये ताल्लुकात ताउम्र कायम रहे। हिन्दुस्तान की आज़ादी के हवाले से उन्होने कई नज़्में भी कहीं। उनकी नज़्में अक्सर कम्पनी सरकार ज़ब्त कर लिया करती थी।

सीने में तलातुम बिजली का

आँखों में चमकती शमशीरें

सम्हलो कि वो ज़िन्दां गूँज उठा

झपटो कि वो क़ैदी छूट गए

उट्ठो कि वो बैठी दीवारें

दौड़ो कि वो टूटी ज़ंजीरें...

जोश मुशायरों में बहुत गरज कर पढा करते थे, उनकी आवाज़ से मंच पर जुम्बिश पैदा होती, इंकलाबी शायरी सुनने वाले वाह-वाह के साथ मालूम होता अभी मैदाने जंग में कूद पड़ेंगे।

भटक के जो बिछड गए है रास्ते पे आएंगे,

लपक के एक दूसरे को फिर गले लगाएंगे।

उनके बग़ावती तेवर का अन्दाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने 1925 में हैदराबाद में उस्मानिया यूनीवर्सिटी में मुलाज़िमत की, उस वक्त उन्होंने निज़ाम हैदराबाद के खिलाफ भी एक नज़्म कही,  निज़ाम को बहुत नागवार गुज़रा, उन्होने जोश से माफी मांगने को कहा, लेकिन जोश ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिसके चलते उन्हें हैदराबाद छोड़ना पड़ा। दिन गर्दिशों में भी गुज़रे लेकिन उन्होंने समझौता नही किया, आगे चल कर उन्होंने कलीम नाम से एक पर्चा निकाला उसमें उन्होंने फिरंगियों के खिलाफ़ दिल खोल कर लिखना शुरू किया। गोया उन्हें उनकी खुराक मिल गई। उन्होंने लिखा-

एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के

एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है।

जोश रवीन्द्र नाथ टैगोर के बारे में कहते थे कि उनकी जिन्दगी में इंसानियत, बराबरी, गंगाजमुनी तहज़ीब के तमाम रंग भरने में टैगोर का बड़ा हाथ था। टैगोर की दावत पर 6 महीना वह शान्ति निकेतन में जाकर रहे। वो उनकी जिन्दगी के बहुत अहम पलों में शुमार हुआ।

जोश ने “नया अदब”,  “आजकल” और “शालीमार पिक्चर्स” पूना में भी काम किया। तकरीबन 20 किताबें लिखीं। 1954 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। जोश को उर्दू ज़बान पर महारत हासिल थी, आलम तो ये था कि उनके सामने कोई एक लफ़्ज़ भी ग़लत बोल कर बच न पाता। वो उसे फ़ौरन टोकते और दुरूस्त कराते। एक रोज़ वो अपने एक दोस्त के घर हाज़िर हुए। लौटते वक्त उनकी बीवी ने कहा कि जोश साहब को दरवाजे तक छोड़ आएं। उनके ऐसा कहते ही जोश साहब ने पलट कर उन्हें देखा, बोले बीबी कबूतर छोड़े जाते हैं, तोते छोड़े जाते हैं, मेहमान छोड़े नही जाते उन्हें पहुंचाया जाता है।

ज़िन्दगी भर वतन परस्त, मानवता जिनका मज़हब था, उनके सामने एक ऐसा वक्त आया जब उन्हें लगने लगा कि हिन्दुस्तान में उर्दू ज़बान का अब कोई मुस्तक्बिल नहीं है। उर्दू ज़बान से उन्हें इन्तेहा प्यार था उसकी खि़दमत के लिए उन्होंने 1958 में पाकिस्तान का रुख किया, लेकिन वहाँ ज़बान की और खुद की बेकदरी ने उन्हें परेशान किया। पंजाबियत और उर्दू के बीच जंग जारी रही, उन्हें लगने लगा कि वह अपना ख्वाब यहाँ भी पूरा न कर पाएंगे, उन्होंने रिसाला निकाला, कुछ और काम किए, लेकिन उनसे वो एक न सम्हला। वहाँ उन्हें बहुत सदमा मिला।

पाकिस्तान उनके नेहरू प्रेम से वाकिफ़ था। वहाँ उनके खिलाफ एक माहौल बनने लगा। लोगों ने कहा कि सरकार ने आधा पाकिस्तान जोश को घूस में दे दिया है। तमाम अदीब, शायर और कार्टून साज़ों ने जोश के खि़लाफ लेख, कविता और कार्टूनों की भरमार कर दी। उन्हें ग़द्दार और भारत का एजेन्ट कहा जाने लगा। उनकी जिन्दगी, नाकामियों से भर गई। तिजारत भी फेल रही। लेागों ने उनका साथ नहीं दिया। 1966 में एक बार वो भारत आए। मुम्बई में एक अखबार को इंटरव्यू दिया। इस कारण पाकिस्तान सरकार ने उनसे उनकी सरकारी नौकरी भी छीन ली।

इस पर उन्होंने एक शेर कहा जो बहुत मशहूर हुआ-

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया

जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया।

 

इसका रोना नही कि तुमने किया दिल बरबाद

इसका रोना है बहुत देर से बर्बाद किया।

वहाँ उनके हालात न सम्हले, उन्होंने मुशायरों में जाना बन्द कर दिया, उनके आखिरी कुछ साल गुमनामी में गुजरे।

उनकी ज़िन्दगी बहुत विवादग्रस्त रही। उतनी ही उनकी आत्मकथा ‘यादों की बरात’ चर्चित है, उनकी इस आत्मकथा को आज भी पाठक पढ़ना पसन्द करता है। उन्होंने अपनी सभी नाकामियों को इसमें खुल कर लिखा। उनका नाम ऊॅंचें दर्जे के शायरों में शुमार है।  उनकी यादों से न मलीहाबाद और न ही लखनऊ कभी ओझल हुआ। लखनऊ को वह हिन्दुस्तान की तहज़ीबी जन्नत कहा करते थे। जिक्र तो उन्होंने पीने-पिलाने की तहज़ीब का भी किया। 1982 में 83 वर्ष की उम्र में वह इस दुनियाए दारफानी से कूच कर गए। आज जोश नहीं है उनकी यादें बाक़ी हैं,  सारी उम्र लखनऊ और मलीहाबाद उनके दिल में बसा रहा।

ऐ मलीहाबाद के रंगी गुलिस्ता अल्विदा

अल्विदा ऐ सर जमीने सुबहे खन्दां अल्विदा

 

जब कभी भूले से अपने होश में होता हूँ मैं,

देर तक भटके हुए इंसान पर रोता हूँ मैं,

फिर रहा है आदमी भूला हुआ भटका हुआ,

इक न इक लेबिल हर एक माथे पे है लटका हुआ।

जोश मलीहाबादी को हम खिराजे-अक़ीदत पेश करते हैं। उनकी इंक़लाबी शायरी आज और मानीखेज़ हो जाती है, जब सर्द रातों में किसान सड़कों पर हैं, नौजवान रोज़ी-रोज़गार के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं, मुल्क के दस्तूर को ताक पर रख दिया गया है, फिरक़ापरस्ती अपनी जड़े जमाने में लगी है, गरीब-गु़रबा हाशिए पर ढकेल दिए गए हैं। महिलाओं पर हिंसा बढ़ गई है, जिसे हुकूमत शय दे रही है। ऐसे में एक इंक़लाब की दरकार है और ऐसे में जोश हमें बार-बार याद आयेंगे।

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Josh Malihabadi
Josh Malihabadi Birth Anniversary
hindi poet
Hindi poem
Shayar-e-Inqalab

Related Stories

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

...हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!

इतवार की कविता: जश्न-ए-नौरोज़ भी है…जश्न-ए-बहाराँ भी है

इतवार की कविता: के मारल हमरा गांधी के गोली हो

इतवार की कविता: सभी से पूछता हूं मैं… मुहब्बत काम आएगी कि झगड़े काम आएंगे

इतवार की कविता : 'आसमान में धान जमेगा!'


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License