NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था
रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध का भारत के आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा?
आर्थिक जानकारों का कहना है कि सरकार चाहे तो कच्चे तेल की वजह से बढ़े हुए ख़र्च का भार ख़ुद सहन कर सकती है।
अजय कुमार
15 Mar 2022
Russia

जब ऐसे देश युद्ध के भागीदार होते हैं जो संसाधनों की दुनिया में बहुत अधिक ताक़तवर हैं तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। रूस और यूक्रेन की लड़ाई में रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों से पूरी दुनिया पर यही ख़तरा मंडरा रहा है। रूस के क्षेत्रफल को देखिये। क्षेत्रफल यानी एरिया के लिहाज़ से रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है। भारत के क्षेत्रफल से पांच गुना बड़ा है। अमेरिका और चीन से दो गुना बड़ा देश है। इंग्लैंड से 70 गुना बड़ा देश है। लेकिन रूस की आबादी उत्तर प्रदेश की आबादी से भी कम यानी महज़ 14 करोड़ है। इतनी कम आबादी और इतने बड़े क्षेत्रफल से यह बात साफ हो जाती है कि रूस के संसाधनों का इस्तेमाल रूस से ज़्यादा दुनिया के दूसरे मुल्क करते हैं। रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है और तीसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस उत्पादक देश।

रूस से हर रोज़ तकरीबन 50 लाख बैरल तेल का निर्यात होता है। इसमें से 48% ख़रीद यूरोप की होती है। तो तकरीबन 42% खरीद एशिया की होती है। यूरोप प्राकृतिक गैस की अपनी खपत का 90 प्रतिशत आयात करता है, जिसमें रूस से तकरीबन 45 प्रतिशत आयात करता है। रूस और यूक्रेन की लड़ाई का असर यह हुआ है कि जब से लड़ाई शुरू हुई है तब से कच्चे तेल की कीमत में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 110 डॉलर प्रति बैरल के आस पास पहुंच गयी है। रूस और यूक्रेन के बीच की लड़ाई जितने लम्बे समय तक मौजूद रहेगी तब तक कच्चे तेल की कीमत बढ़ती रहेगी।  

पहले से ही बेरोजागारी, महंगाई और मांग की कमी से जूझ रही भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका असर बहुत बुरा पड़ने वाला है। भारत अपनी जरूरतों का तकरीबन 84 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। आर्थिक जानकारों का कहना है कि अगर चुनाव न होते और कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर पेट्रोल डीजल की कीमत बढ़ती तो अब तक इनकी कीमत में मौजूदा कीमत से 25 से 35 रूपये प्रति लीटर का इजाफा हो चुका होता। रसोई गैस की क़ीमतों में 400 रूपये का इजाफा हो गया होता।

तेल की कीमतों में इजाफे की सबसे ख़राब बात यह है कि तेल से अर्थव्यवस्था के कारोबार का पूरा पहिया जुड़ा हुआ है। तेल की कीमतें बढ़ेंगी तो परिवहन की लागत बढ़ जाएगी। ट्रक से लेकर ट्रैन का किराया बढ़ेगा तो सभी तरह के कारोबार की लागत बढ़ जाएगी। बिजली की कीमत बढ़ जायेगी। उर्वरक यानी फर्टिलाइजर बनाने में पोटाश और प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल होता है। रूस और बेलारूस से पूरी दुनिया के पोटाश का तकरीबन 73 प्रतिशत उत्पादन होता है। इसलिए उर्वरक की कीमत बढ़ जायेगी। तेल की कीमतों के बढ़ने का असर ऐसा है कि कारोबारी से लेकर किसान तक सब पर असर पड़ेगा। भारत सरकार के इकोनॉमिक एडवाइजरी कौंसिल के सदस्य नीलकंठ मिश्रा का कहना है कि महंगे होते कच्चे तेल और कच्चे तेल से जुड़े सामानों की वजह से अगले साल भर में भारत के आयात बिल में तकरीबन 7.7 लाख करोड़ रुपये का इजाफा होने वाला है। यह मनरेगा के बजट के दस सालों के बजट के बराबर है।

आर्थिक जानकारों का कहना है कि सरकार चाहे तो कच्चे तेल की वजह से बढ़े हुए ख़र्च का भार खुद सहन कर सकती है। चुनाव की वजह से सरकार अब तक कच्चे तेल की बढ़ी हुए कीमतों का भार सहती भी आयी है। अगर सरकार आम लोगों पर बढ़े हुए खर्च का भार नहीं डालेगी तो इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा लेकिन प्रभात पटनायक जैसे आर्थिक जानकारों ने कई बार लिखा है कि राजकोषीय घाटे को ध्यान में रखते हुए सरकार को आम जनता पर बोझ नहीं बढ़ाना चाहिए। अगर कच्चे तेल की बढ़ी कीमत से बढ़ा खर्चा सरकार आम लोगों से वसूलती है तो हो सकता है कि अमीर आबादी तो इसे सहन कर ले मर कम आमदनी वालों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। भारत की प्रति व्यव्ति प्रति माह औसत आमदनी महज 16000 है। वह भी तब जब भारत घनघोर आर्थिक असमानता वाला देश है। केवल 1 प्रतिशत अमीरों के पास देश की कुल आमदनी का 22 फीसदी हिस्सा है और 50 प्रतिशत गरीब आबादी के पास केवल 13 प्रतिशत। ऐसी स्थिति में अगर सरकार कच्चे तेल की कीमत का भार जनता पर डालती है तो उन्ही किसानों और मजदूरों पर सबसे अधिक बोझ पड़ेगा जिनके खाते में सरकार चंद पैसा डालकर वोट वसूलने की रणनीति अपना रही है।

Russia
ukraine
Russia Ukraine war
economic crises
Economic Recession
indian economy

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

एक ‘अंतर्राष्ट्रीय’ मध्यवर्ग के उदय की प्रवृत्ति

जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?

मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

क्या भारत महामारी के बाद के रोज़गार संकट का सामना कर रहा है?

गुटनिरपेक्षता आर्थिक रूप से कम विकसित देशों की एक फ़ौरी ज़रूरत

यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License