23  जुलाई   को ,  विश्व   स्वास्थ्य   संगठन  (WHO)  के   महानिदेशक   डॉ .  टेड्रोस   एडनम   गेबराइसेस   ने   घोषणा   की   है   कि   दुनिया   में   अब   लगभग   डेढ़   करोड़   लोग  COVID-19  से   संक्रमित   हैं।   उन्होंने   कहा  ‘ महामारी   ने   अरबों   लोगों   के   जीवन   को   अस्त - व्यस्त   कर   दिया   है।   कई   लोग   महीनों   से   घर   पर  [ बंद ]  हैं। ’  ग्रेट   लॉकडाउन   का   असर   अब   मनोवैज्ञानिक   और   सामाजिक   नुक़सान   का   रूप   ले   रहा   है।   डॉ .  गेबराइसेस   ने   कहा , ‘ यह   पूरी   तरह   से   समझ   में   आता   है   कि   लोग   अपना   जीवन   फिर   से   शुरू   करना   चाहते   हैं।   लेकिन   हम  “ पुराने   सामान्य "  में   वापस   नहीं   जाएँगे।   महामारी   हमारे   जीवन   जीने   के   तरीक़े   को   बदल   ही   चुकी   है।  “ नये   सामान्य "  के   अनुरूप   ढलने  [ के   काम ]  का   एक   हिस्सा   हमारे   जीवन   को   सुरक्षित   रूप   से   जीने   के   तरीक़े   खोजना   है। ’ 
जॉर्ज   लिलांगा  ( तंज़ानिया ),  उकिफ्का   मजिनी   किला   मटु   ना   झील , 1970  का   दशक।   
23  जुलाई   को   ब्राज़्ज़ाविले  ( कांगो   गणराज्य )  में   हुए   एक   संवाददाता   सम्मेलन   में , WHO  के   अफ़्रीका   के   क्षेत्रीय   निदेशक   डॉ .  मात्शीदिसो   मोएटी   ने   कहा   कि  ' अफ्रीका   में  COVID-19  के   मामलों   में   जिस   तरह   से   हम   वृद्धि   देख   रहे   हैं ,  उससे   महाद्वीप   की   स्वास्थ्य   सेवाओं   पर   दबाव   लगातार   बढ़ता   जा   रहा   है। '  अफ्रीका   के   स्वास्थ्यकर्मियों   में  COVID-19  संक्रमण   के   लगभग  10,000  मामलों   की   पुष्टि   हुई   है।   डॉ .  मोएटी   ने   कहा , ‘[ स्वास्थ्य   सेवा   क्षेत्र ]  में   काम   करने   वाले   लोगों   पर   इसका   भयावह   प्रभाव   पड़ेगा।   स्वास्थ्यकर्मियों   में   होने   वाला   एक   संक्रमण   एक   नहीं   अनेक   होगा।   डॉक्टर ,  नर्सें   और   अन्य   स्वास्थ्य   पेशेवर   हमारी   माएँ ,  भाई   और   बहनें   हैं।   वे  COVID-19  से   ज़िंदगियाँ   बचाने   में  [ हमारी ]  मदद   कर   रहे   हैं।   हमें  [ भी ]  यह   सुनिश्चित   करना   चाहिए   कि   उनके   पास   वो  [ सभी ]  उपकरण ,  कौशल   और   जानकारियाँ   हों ,  जो   उन्हें   ख़ुद   को ,  अपने   मरीज़ों   को   और   अपने   सहकर्मियों   को   सुरक्षित   रखने   के   लिए   आवश्यक   हैं। ’  सब   जगह   हालात   इतने   ही   या   इससे   भी   ज़्यादा   बदतर   हैं।   मई   के   अंत   में ,  ब्राज़ीलियाई   नर्सों   के   दो   संगठनों  ( फ़ेडरल   काउंसिल   ऑफ़   नर्सिंग  [COFEN]  और   इंटरनेशनल   काउंसिल   ऑफ़   नर्सेज़  (ICN])  ने   घोषणा   की   कि   ब्राज़ील   में  COVID-19  से   मरने   वाली   नर्सों -  ज्यादातर   महिलाएँ -  की   संख्या   सबसे   अधिक   है। 
डॉ .  मोएटी   की   टिप्पणी   से   मुझे   हमारा   डौसियर  29  ( जून  2020),  स्वास्थ्य   एक   राजनीतिक   विकल्प   है   याद   आ   गया।   हमारे   शोधकर्ताओं   ने   अर्जेंटीना ,  ब्राज़ील ,  भारत   और   दक्षिण   अफ्रीका   के   स्वास्थ्यकर्मियों   से   उनके   काम   की   परिस्थितियों   और   सरकारों   द्वारा   किए   जा   रहे   महामारी   के   प्रबंधन   पर   उनकी   चिंताओं   के   बारे   में   बात   की   थी।   यंग   नर्सेस   इंडाबा   ट्रेड   यूनियन  (YNITU)  की   अध्यक्ष   लेराटो   मदुमो   ने   कहा   था   कि  ‘ कोविड -19  की   चपेट   में   आने   से   पहले   से   ही   हमारी   स्वास्थ्य   प्रणाली   ख़राब   हालत   में   थी।  [ दिक़्क़तों   की ]  सूची   में   सबसे   ऊपर   थी -  नर्सों   की   कमी।   महामारी   आई ,  तब   हमारे   पास   न्यूनतम   नर्सिंग   स्टाफ़   था। ’  हमने   जिससे   भी   बात   की ,  सभी   ने   हमें   यही   बताया   कि   उनके   देश   की   कमज़ोर   सार्वजनिक   स्वास्थ्य   प्रणाली   का   कारण   अमीर   बॉन्डहोल्डर्स   और   अंतर्राष्ट्रीय   मुद्रा   कोष  (IMF)  द्वारा   लागू   की   गईं   बजट   कटौतियाँ   हैं ,  जिन्हें   केवल   अपने   ऋण   भुगतान   से   मतलब   है   और   इस   बात   की   बिलकुल   परवाह   नहीं   है   कि   ये   पैसा   सार्वजनिक   स्वास्थ्य ,  सार्वजनिक   शिक्षा   और   लोक   कल्याण   कार्यों   के   बजट   में   कटौतियाँ   करके   आता   है।   अब   ज़रूरत   है   कि   हम   सब   मिलकर   विकासशील   देशों   के   ऋण   रद्द   करने   की   माँग   करें। 
हेनर   डाइज़   विलहोज़  ( स्पेन ), QUIEN  SOSTIENE LA VIDA ( वो   जो   जीवन   चलाते   हैं ),  2020 ।   
अप्रैल   में , WHO  ने   इंटरनेशनल   काउंसिल   ऑफ़   नर्सेज़  (ICN)  और   नर्सिंग   न्यू   के   साथ   मिलकर  ‘ स्टेट   ऑफ़   द   वर्ल्ड्स   नर्सिंग  2020’  नामक   एक   रिपोर्ट   जारी   की   थी।   ये   रिपोर्ट   बताती   है   कि   दुनिया   में   लगभग  60  लाख   नर्सों   की   कमी   है।   और   इस   कमी   का  89%  हिस्सा   दक्षिणी   गोलार्ध   के   देशों   में   केंद्रित   है ;  यानी   दक्षिणी   गोलार्ध   के   देशों  -‘ जहाँ   नर्सों   की   संख्या   मुश्किल   से   जनसंख्या   वृद्धि   के   हिसाब   से   बढ़   रही   है ’-  में  53  लाख   से   भी   ज़्यादा   नर्सों   की   कमी   है।   इस   बात   की   ओर   ध्यान   देना   ज़रूरी   है   कि   अंतर्राष्ट्रीय   मुद्रा   कोष   देशों   की   सरकारों   पर   सार्वजनिक   क्षेत्र   के   वेतन   कम   रखने   का   दबाव   डालता   है ,  जिससे   नर्सों   का   वेतन   भी   कम   हो   जाता   है।   इसके   कारण   बहुत - सी   नर्सें   काम   के   लिए   ज़्यादा   वेतन   देने   वाले   देशों   में   चली   जाती   हैं ,  ज़ुहल   गुंडुज़   के   कथानुसार   इससे   उनके   अपने   देशों   से  ‘ केयर   ड्रेन ’ ( देखभाल   करने   वालों   का   पलायन )  हो   रहा   है। 
जब   हम   नर्सों   की   बात   कर   रहे   हैं ,  तो   हम   काफ़ी   हद   तक   महिलाओं   की   बात   कर   रहे   हैं ,  और   इसलिए   उपेक्षा   और   भेदभाव   पर   ध्यान   देने   की   ज़रूरत   है।   मार्च  2019  के  WHO  के   लेख   में   एक   वाक्य   है   जो   लैंगिक   समानता   पर   दिए   गए   सभी   पाखण्डी   भाषणों   की   पोल   खोल   देता   है : ‘ महिलाएँ   लगभग  70%  स्वास्थ्य   कार्यबल   का   प्रतिनिधित्व   करती   हैं ,  लेकिन   पुरुषों   की   तुलना   में   औसतन  28%  कम   कमाती   हैं। ’  इस   तरह   के   और   भी   आँकड़ों   को   विस्तार   से   उजागर   करने   के   लिए   ट्राईकॉन्टिनेंटल :  सामाजिक   शोध   संस्थान   में   हम ,  हमारी   उप   निदेशक ,  रेनाटा   पोर्टो   बुगनी   के   नेतृत्व   में ,  कोरोनाशॉक   और   इसके   लिंग - आधारित   प्रभावों   का   अध्ययन   कर   रहे   हैं।   इस   अध्ययन   की   रिपोर्ट   आने   वाले   महीनों   में   उपलब्ध   होगी। 
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इंटरनेशनल   काउंसिल   ऑफ़   नर्सेज़ ,  मैं   एक   नर्स   हूँ ,  2020 
स्वास्थ्य   एक   राजनीतिक   विकल्प   है   के   लिए   हमारी   टीम   द्वारा   लिए   गए   स्वास्थ्यकर्मियों   के   साक्षात्कारों   के   आधार   पर ,  हमने   अपने   डौसियर   में   पूँजीवादी   देशों   की   स्वास्थ्य   प्रणालियों   की   प्राथमिकता   बदलने   के   लिए   ज़रूरी  16  एजेंडों   की   एक   सूची   शामिल   की   है।   उनमें   से   बेहद   ज़रूरी   छह   एजेंडा   निम्नलिखित   हैं : 
स्वास्थ्यकर्मियों   की  COVID-19  टेस्टिंग   बढ़ाएँ। श्रमिकों   की   सुरक्षा   हेतु   उन्हें   अच्छी   क्वालिटी   वाले  PPE  और   मास्क   व   अन्य   आवश्यक   उपकरण   उपलब्ध   कराएँ।   फ़्रंटलाइन   श्रमिकों    को   रोग   का   सामना   करने   के   लिए   पर्याप्त   रूप   से   प्रशिक्षित   किया   जाना   चाहिए। डॉक्टरों ,  नर्सों   और   सार्वजनिक   स्वास्थ्यकर्मियों   सहित   सभी   स्वास्थ्य   कार्यकर्ताओं   के   लिए   प्रशिक्षण   स्कूल   स्थापित   करने   के   लिए   फ़ंड   दें। स्वास्थ्य   कर्मचारियों   का   वेतन   बढ़ाएँ   व   जल्दी   और   नियमित   रूप   से   उसका   भुगतान   करें। श्रमिकों   के   अपना   श्रम   वापस   लेने   के   अधिकार   को   मान्यता   दें ;  यदि   वे   मानते   हैं   कि   किसी   काम   से   उनके   स्वास्थ्य   या   जीवन   को   ख़तरा   है  ( यह   माँग   अंतर्राष्ट्रीय   श्रम   संगठन   कन्वेंशन  155  और  187  पर   आधारित   है ) । सामान्य   स्वास्थ्य   क्षेत्र   की   या   विशेष   रूप   से  COVID-19  संकट   के   लिए   नीतियाँ   बनाने   वाली   समितियों   में   स्वास्थ्यकर्मियों   की   यूनियनों   को   शामिल   करने   की   गारंटी   दें   और   सुनिश्चित   करें   कि   ऐसी   नीतियाँ   निर्धारित   करने   में   उनकी   बात   सुनी   जाए। ये   प्राथमिक   माँगें   हैं ;  इस   महामारी   के   दौरान   पूँजीवादी   देशों   की   जनता   पर   बरपे   क़हर   को   देखने   के   बाद   कोई   भी   संवेदनशील   व्यक्ति   इन   नीतियों   से   सहमत   होगा।   इनमें   से   कई   एजेंडा   COVID-19  के   बाद   दक्षिणी   गोलार्ध   के   देशों   के   लिए   दस   एजेंडा   में   भी   शामिल   हैं।   इस   सूची   में   एक   और   एजेंडा   जोड़ना   चाहिए : 
IMF  और  US  ट्रेज़री   विभाग   पर   दबाव   डालें   कि   वे   अपने   अनुसार   सार्वजनिक   क्षेत्र   के   वेतन   निर्धारित   करने   की   शर्त   के   बदले   क़र्ज़   न   दें ,  ताकि   दक्षिणी   गोलार्ध   के   देशों   की   सरकारें   अपने   स्वास्थ्य   कर्मचारियों   को   पर्याप्त   वेतन   दे   सकें। 
इसम   अल - सईद  ( इराक़ ),  प्यार   का   शहर ,  (1963) ।   
सितंबर  1947  में ,  फ़ाकस  ( उत्तरी   मिस्र )  के   एक   डॉक्टर   ने   दो   मरीज़   देखे ,  जिनमें   फ़ूड   पोआईज़निंग   के   लक्षण   थे ;  अगले   दिन ,  उसी   तरह   के   दो   और   मरीज़   आए   और   डॉक्टर   ने   उन्हें   सामान्य   अस्पताल   जाने   की   सलाह   दी।  WHO  की   बाद   में   छपी   एक   रिपोर्ट   के   अनुसार   अल - क़रना  ( मध्य   मिस्र )  के   एक   स्वास्थ्य   अधिकारी  ‘ उस   दिन   हुई   दस   मौतों   की   ख़बर   से   बेहद   हैरान   हुए   थे ’ ।   मिस्र   में   इससे   पहले   हैज़ा   की   महामारी   छः   बार  (1817, 1831, 1846, 1863, 1883  और  1902)  आई   थी ,  लेकिन   फिर   भी   उस   बार   चिकित्सा   अधिकारी   बीमारी   के   कारणों   को   लेकर   अनिश्चित   थे।   इससे   पहले   कि  ‘ डॉक्टरों ,  सेनेटरी   अधिकारियों ,  नर्सिंग   स्टाफ़   और   डिसइंफ़ेक्टरों   की   सेना ’  संक्रमण   चक्र   को   तोड़   पाती ,  देश   भर   में   हैज़ा   बुरी   तरह   से   फैल   चुका   था ;  इस   प्रकोप   के   दौरान  10,277  लोगों   की   मौत   हुई   थी।   ऐसी   अफ़वाहें   थीं   कि   द्वितीय   विश्व   युद्ध   के   दौरान   मिस्र   में   तैनात   ब्रिटिश   सैनिकों   से   मिस्र   देश   में   हैज़ा   फैला   था ,  जिन्हें   ब्रिटिश   अधिकारियों   द्वारा   ख़ारिज   कर   दिया   गया। 
इराक़   में ,  नाज़िक   अल - मलाइका  (1923-2007)  ने   रेडियो   पर   हैज़ा   के   प्रकोप   की   ख़बरें   सुनीं।   मलाइका   ने   अपनी   व्यथा   एक   ख़ूबसूरत   कविता  ‘ हैज़ा ’  के   रूप   में   उजागर   की। 
ये   रात   है। 
अंधेरे   की   चुप्पी   से   ऊपर   उठते 
विलाप   की   गूँज   सुनो। 
... 
कष्टदायी   दुःख   का   सैलाब 
टकराता   है   विलाप   से। 
हर   दिल   में   आग   है , 
हर   ख़ामोश   घर   में ,  मातम , 
और   हर   कहीं ,  अंधेरे   में   कोई   रो   रहा   है। 
 
ये   रात   है।   
भोर   के   सन्नाटे   में   
राहगीर   के   क़दमों   की   आहट   सुनो।   
सुनो ,  देखो   शोक - जुलूस 
दस ,  बीस ,  नहीं …  अनगिनत। 
... 
हर   कहीं   कोई   लाश   पड़ी   है ,  उदास   
शोक   संदेश   या   मौन   का   एक   क्षण   मिले   बग़ैर। 
… 
मानवता   मौत   के   अपराधों   का   प्रतिरोध   करती   है। 
... 
हैज़ा   मौत   का   प्रतिशोध   है। 
... 
क़ब्र   खोदने   वाला   भी   टेक   चुका   है   घुटने ,  
मुअज़्ज़िन   गया   है   मर ,  
अब   कौन   पढ़ेगा   शोक   संदेश   मरने   वालों   के   लिए ? 
... 
ओ   मिस्र ,  मौत   के   क़हर   से   फटा   जाता   है   मेरा   कलेजा। 
क़ब्र   खोदने   वाला   भी   टेक   चुका   है   घुटने   रोग   के   सामने ,  और   स्वास्थ्यकर्मी   भी   हो   रहे   हैं   धराशायी   रोग   के   सामने।   और   फटे   जा   रहे   हैं   हमारे   कलेजे   मौत   के   क़हर   से ,  कोरोनावायरस   महामारी ,  भूखमरी   की   महामारी   और   आशाहीनता   की   महामारी   के   गहरे   संकट   में।   लेकिन ,  चारों   ओर   व्याप्त   इस   उदासी   में   भी ,  मलाइका   हमें   याद   दिलाती   हैं   कि  ‘ मानवता   मौत   के   अपराधों   का   प्रतिरोध   करती   है।