NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
यदि मैं संघर्ष करते हुए गिर जाऊँ, तो मेरी जगह ले लेना
इजराइल का फिलिस्तीन पर अत्याचार करने का मतलब है मानवता को तहस-नहस करने की लड़ाई लड़ना।
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
18 May 2021
‌टाइगर तातेशी (जापान), समुराई, देखने वाला, 1965
‌टाइगर तातेशी (जापान), समुराई, देखने वाला, 1965

कैली (कोलम्बिया) से लेकर डरबन (दक्षिण अफ़्रीका) की सरकारें इस समय क्रूर हिंसक मूड में हैं। हिंसा और उसके तरीक़े जगह के हिसाब से बदलते रहते हैं। अपने राजनीतिक अधिकारों को व्यक्त करने की कोशिश कर रहे लोगों पर सुरक्षा बलों की हिंसा की तस्वीरें आम हो गई हैं। सार्वजनिक प्रदर्शनों से लेकर अदालतों के कमरे तक, और आँसू गैस के गोलों के इस्तेमाल से लेकर जेल की काल कोठरियों की अदृश्य हताशा तक, तेज़ी से बदलती इन सभी घटनाओं पर नज़र रखना असंभव है। फिर भी, इन सभी घटनाओं और इन्हें निर्मित करने वाली परिस्थितियों के पीछे एक ही कारण है -इनकार; सत्ता में बैठे लोगों द्वारा निर्धारित शर्तों को मानने से इनकार और विनम्र तरीक़े से अपने असंतोष को व्यक्त करने से इनकार।

ऑर्केस्ट्रा निदेशक सुज़ाना बोरियल (मेडेलिन, कोलम्बिया), एल पुएब्लो यूनीडो जामस सेरा वेन्सीडो (एकजुट लोग कभी हारेंगे नहीं), 5 मई 2021

कोलम्बिया की सरकार ने एक नया क़ानून प्रस्तावित किया है, जिसका नाम है सस्टेनेबल सॉलिडेरिटी लॉ: इस क़ानून के ज़रिये सरकार महामारी की वित्तीय लागत को जनता पर थोपना चाहती है। इसके ख़िलाफ़ जनता का आक्रोशित होना लाज़मी था। 28-29 अप्रैल की राष्ट्रीय हड़ताल का जवाब कोलम्बिया की सरकार ने ताबड़तोड़ हिंसा के साथ दिया। हिंसा को अंजाम देने के लिए सरकार ने मोबाइल एंटी-डिस्टर्बेंस स्क्वाड्रॉन (ईएसएमएडी) का इस्तेमाल किया। लोग अपने आक्रोश और अपने गीतों के साथ सड़कों पर निकले थे, उन सभी लोगों को जिस एक ने चीज़ ने एक साथ इकट्ठा किया था वह थी राष्ट्रपति इवान ड्यूक की सरकार के प्रति उनकी उदासीनता।

अपनी सत्ता क़ायम रखने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करने वाला कोलम्बिया का अक्खड़ कुलीन वर्ग कैली के प्रदर्शनकारियों को सेबेस्टियन डे बेलालकज़र की मूर्ति गिराते देख ज़रूर काँप गया होगा। प्रदर्शनकारी ये दिखाना चाहते थे कि वे केवल इस प्रस्तावित क़ानून को लागू होने से रोकना नहीं चाहते बल्कि वे अपने समाज को नियंत्रित करने वाले कठोर भेदभावों को जड़ से ख़त्म करना चाहते हैं। ड्यूक को प्रदर्शन करने वाले लोग नागरिक नहीं गुंडे लगते हैं। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ड्यूक ने उन्हें रोकने के लिए हिंसा करने की खुली छूट दी, जिसका ख़ामियाज़ा बोगोटा, कैली और मेडेलिन जैसे शहरों को भुगतना पड़ा। बोगोटा की मेयर क्लाउडिया लोपेज़ और मेडेलिन के मेयर डैनियल क्विंटरो ने हिंसा रोकने का आह्वान किया, लेकिन इसके बावजूद सरकार की ओर से हिंसा जारी रही। एक कोलम्बियाई मित्र, जो कि पश्चिम एशिया में हुए युद्धों को कवर कर चुका है, ने कहा कि यहाँ की सड़कें इराक़ जैसी दिखने लगी हैं।

डेविड कोलौने (दक्षिण अफ़्रीका), शहर में साँड, 2016

इराक जैसी। या इज़रायल जैसी, जिसे कुछ समय पहले ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडबल्यू) ने अपार्थैड स्टेट का नाम दिया है; यानी रंगभेद करने वाला। अपार्थैड एक अफ़्रीकी शब्द है जिसका मतलब है ‘अपार्टनेस’ यानी '[किसी का किसी दूसरे से] अलग होना'। जैसे गोरों को दूसरों से अलग बताया जाता है, या, इज़रायल के मामले में, यहूदी नागरिकों को फ़िलिस्तीनी लोगों से अलग बताया जाता है। एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट से पहले पश्चिम एशिया पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीडब्ल्यूए) जैसे कई संगठन फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रति इज़रायल की नस्लवादी नीतियों का वर्णन करते हुए 'अपार्थैड' शब्द का इस्तेमाल कर चुके हैं। एचआरडब्ल्यू, जिसने इन प्रारंभिक निष्कर्षों पर पहुँचने में अपना समय लिया है, का कहना है कि इज़रायल फ़िलिस्तीनियों को जीवन जीने के अधिकार से कठोर रूप से वंचित रखता है; 'ये अभाव इतने गंभीर हैं कि वे अपार्थैड और उत्पीड़न जैसे मानवता के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में आते हैं'।

'अपार्थैड' और 'मानवता के विरुद्ध अपराधों' के बीच का संबंध संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा के दिसंबर 1966 के एक प्रस्ताव में मिलता है जहाँ 'मानवता विरोधी अपराध के रूप में दक्षिण अफ़्रीकी सरकार की अपार्थैड नीतियों' की निंदा की गई थी। 1984 में, संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने अपार्थैड को 'एक ऐसी प्रणाली [कहा था] जो कि मानवता के विरुद्ध अपराध के रूप में वर्णित होती है'। इसके बाद 'मानवता के विरुद्ध अपराध' शब्द को अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (1998) के रोम संविधि के अनुच्छेद 7 में प्रतिष्ठापित किया गया। यह कोई संयोग नहीं है कि 3 मार्च 2021 को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) के प्रमुख अभियोजक फतो बेंसौदा ने कहा कि आईसीसी 2014 से इज़रायल में जारी अपराधों की जाँच शुरू करेगा। इज़रायल ने आईसीसी के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया है।

इज़रायली अदालतों ने पूर्वी यरुशलम में शेख़ जर्राह के फ़िलीस्तीनी इलाक़े -जहाँ तीन हज़ार लोग रहते हैं- से छह परिवारों को बेदख़ल करने का फ़ैसला सुनाया है, बावजूद इसके कि ये क़ब्ज़ा किए गए इलाक़े इज़रायली अदालतों के अधिकार-क्षेत्र में नहीं आते। इज़रायल ने पूर्वी यरुशलम -जो कि इज़राइल द्वारा क़ब्ज़ा किए गए फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों का हिस्सा है- पर 1967 में क़ब्ज़ा किया था। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव 242 (1967) में कहा गया है कि क़ब्ज़ा करने वाली शक्ति, अर्थात् इज़रायल को क्षेत्र के प्रत्येक राज्य की संप्रभुता, राजनीतिक स्वतंत्रता और 'प्रादेशिक सुरक्षा' का सम्मान करना चाहिए। 1972 में, इज़रायली निवासियों (सेट्लर्ज़) ने इस क्षेत्र में रहने वाले हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को बेदख़ल करने के लिए इज़रायली अदालतों का रुख़ किया। फ़िलिस्तीनी लोग पिछले पचास सालों से इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। इज़रायली सीमा पुलिस (मागव) की बेशर्म हिंसा तब और बढ़ गई जब 7 मई को यरुशलम की अल-अक़्सा मस्जिद में हथियारों से लैस इज़रायली सैनिक घुस गए। उनके द्वारा बरपाई गई हिंसा कोलम्बिया के ईएसएमएडी द्वारा अंजाम दी गई हिंसा से कहीं कम नहीं थी।

इस क्रूर दमन के साथ-साथ फ़िलीस्तीनी लोगों की राजनीतिक परियोजनाओं को अवैध ठहराने की निरंतर कोशिशें भी जारी हैं। अगर फ़िलीस्तीनी लोग अपने हक़ के लिए खड़े होते हैं, तो इज़रायल उन्हें आतंकवादी कहता है। ठीक ऐसा ही दक्षिण अफ़्रीका की अपार्थैड सरकार और उसके पश्चिमी सहयोगी अपार्थैड (रंगभेद) विरोधी संघर्ष के शीर्ष के दिनों में अफ़्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ कर रहे थे। 1994 में, दक्षिण अफ़्रीका में अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस की सरकार बनी और उसने असमानता और रंगभेद की गहरी संरचनाओं को ख़त्म करने की दीर्घकालिक प्रक्रिया शुरू की; पिछले दशकों में जो कुछ भी गहराई से स्थापित किया जा चुका है उसे मिटाने के लिए कई पीढ़ियों को संघर्ष करना पड़ेगा।

डांग ज़ुआन होआ (वियतनाम), लाल परिवार, 2008.

अगस्त 2020 में, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ‘ख़ून की राजनीति: दक्षिण अफ़्रीका में राजनीतिक दमन’ नाम से एक डोज़ियर निकाला था। इस डोज़ियर के शुरुआत में हमने फ्रांत्ज़ फ़ैनन की रेचेड ऑफ़ द अर्थ (1961) से कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की थीं। इस किताब में फ़ैनन ने उपनिवेशवाद के दौर के बाद उभरे नये देशों के शासक वर्गों के संदर्भ में कई बार 'अक्षमता' शब्द का प्रयोग किया है। फ़ैनन लिखते हैं, जब लोग अपने स्वयं के संगठन बनाते हैं और सहभागी लोकतंत्र की माँग उठाते हैं तो शासक वर्ग, जनता की इस कार्रवाई को तर्कसंगत रूप से देख पाने में अक्षम होता है; वह इस लोकप्रिय कार्रवाई को अपने शासन के लिए एक ख़तरे के रूप में देखता है। कोलम्बिया के कुलीनतंत्र और इज़रायल के अपार्थैड वर्ग का यही हाल है। ऐसा ही रवैया दक्षिण अफ़्रीका के शासक वर्ग का भी है, जिसके राजनीतिक उपकरण उस देश में मज़दूर वर्ग के स्वतंत्र राजनीतिक संगठन को बढ़ाने का मौक़ा नहीं देते।

4 मई 2021 को, अधिकारियों ने दक्षिण अफ़्रीका के झोंपड़-पट्टी वासियों के आंदोलन, अबाहलाली बासे मजोंडोलो (एबीएम), के उपाध्यक्ष म्काफेली जॉर्ज बोनोनो को गिरफ़्तार कर लिया। अधिकारियों ने बोनोनो पर 'हत्या करने की साज़िश' का आरोप लगाया है। झोंपड़-पट्टियों में रहने वालों की अगुवाई में एबीएम – जो अपने 82000 सदस्यों की मदद से भू अधिग्रहण और आवास के लिए संघर्ष करता है - को 2005 में अपनी स्थापना के बाद से ही दमन का सामना करना पड़ रहा है।

2018 में, हमने एक डोज़ियर के लिए एबीएम के नेता स'बु ज़िकोदे का साक्षात्कार लिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि:

राजनीति अमीर बनने का ज़रिया बन गई है और लोग अमीर बनने और अमीर बने रहने के लिए मारने या कुछ भी और करने को तैयार हैं। हम एक के बाद एक अंतिम संस्कार कर रहे हैं। हम अपने साथियों को उस सम्मान के साथ दफ़नाते हैं जिससे उन्हें जीवन भर वंचित रखा गया। अपार्थैड के बाद के तथाकथित लोकतांत्रिक दक्षिण अफ़्रीका में हमारे कई साथी अपने घरों में नहीं सो सकते हैं या अंधेरा होने के बाद अपना घर नहीं छोड़ सकते हैं। दमन एक लहर की तरह आता है।

एबीएम सदस्यों के ख़िलाफ़ राजनीतिक दमन के मामलों में बोनोनो का मामला सबसे नया है। दुनिया के हर कोने में बहादुर कार्यकर्ता मौजूदा सच्चाइयों के ख़िलाफ़ संगठित होने के कारण धमकियों और हत्याओं का सामना कर रहे हैं। इस दमन के ही परिणामस्वरूप कैली (कोलम्बिया) में कलाकार निकोलस ग्युरेरो की हाल में पुलिस हत्या हुई और नबग्राम, पूर्वी बर्दवान (पश्चिम बंगाल) में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की काकाली खेत्रपाल की राजनीतिक हत्या हुई। ग्युरेरो की हत्या सड़क पर हुई, जब कोलम्बिया में प्रदर्शनकारियों ने विरोध-प्रदर्शन अभी शुरू ही किया था, और खेत्रपाल की हत्या पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव जीतने वाली पार्टी के सदस्यों ने की। ये राजनीतिक नरसंहार है, जिसमें उन कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है, जिनकी हत्या के बाद सत्ता से लोहा लेने का जनता का आत्म-विश्वास टूट जाता है। अंधेरों में अपनी तलवारें तेज़ करने वाले इन हत्यारों को उन नंबरों से फ़ोन आते हैं जिनसे ताक़तवरों के घरों के नम्बर भी मिलाए जाते हैं।

फर्नांडो ब्राइस (पेरू), शीर्षकहीन (परमाणु लाशें), 2018

ताक़त का इस क़िस्म का इस्तेमाल हो, और इन हत्याओं के लिए किसी को सज़ा न मिले, ये शर्मनाक है। 6 मई को, सरकारी स्क्वाड्रॉन रियो डी जनेरियो (ब्राज़ील) में जकारेज़िन्हो बस्ती में घुस गए और आत्मसमर्पण कर चुके लोगों पर दनादन गोलियाँ चलाने लगे। कम-से-कम पच्चीस लोग मारे गए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस मामले की जाँच की माँग की है, लेकिन इससे कुछ ख़ास होगा नहीं। ब्राज़ील के संविधान ने 1988 में मृत्युदंड पर रोक लगा दी थी, फिर भी इस बात का साक्ष्य है कि पुलिस मानती ​​है कि यदि आप बस्तियों में रहते हैं, तो आपको -बिना न्यायिक समीक्षा के- मौत की सज़ा दी जा सकती है।

टीबीटी: मुइन ब्सीसो (1926-1984)

यह किस तरह का समय है जब राजनीतिक दमन के ख़िलाफ़ जनता में पुरज़ोर आक्रोश नहीं उठ रहा है? मुइन ब्सीसो ने इज़रायली अपार्थैड की घुटन के ख़िलाफ़ गाज़ा में अपने साथी फ़िलीस्तीनियों को जगाने के लिए कई गीत गाए। उनके कविता-संग्रह, अल-म'राका ('जंग') में, मुइन ब्सीसो की यह कविता शामिल है:

यदि मैं संघर्ष करते हुए गिर जाऊँ तो, कॉमरेड, मेरी जगह ले लेना।

हवा के पागलपन को रोकते मेरे होठों को देखना।

मैं मरा नहीं हूँ। अपने घावों में से मैं पुकार रहा हूँ अब भी तुम्हें।

अपना नगाड़ा बजाओ ताकि लोग तुम्हारे जंग के आह्वान को सुन सकें।

Israel
plastine
arab
America
colombia
Israel and us conflict
apartheid

Related Stories

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

दुनिया भर की: कोलंबिया में पहली बार वामपंथी राष्ट्रपति बनने की संभावना

न नकबा कभी ख़त्म हुआ, न फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध

अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

इज़रायली सुरक्षाबलों ने अल-अक़्सा परिसर में प्रार्थना कर रहे लोगों पर किया हमला, 150 से ज़्यादा घायल

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

पड़ताल दुनिया भर कीः पाक में सत्ता पलट, श्रीलंका में भीषण संकट, अमेरिका और IMF का खेल?

लैंड डे पर फ़िलिस्तीनियों ने रिफ़्यूजियों के वापसी के अधिकार के संघर्ष को तेज़ किया


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License