NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
विवादित कृषि क़ानून वापस नहीं लिए गए तो छोटे किसान खत्म हो जाएंगे!
भले ही ये कहा जा रहा है कि मौजूदा आंदोलन में बड़े किसानों की सहभागिता अधिक है लेकिन हक़ीक़त यह है कि अगर एमएसपी की गारंटी नहीं मिली और तीनों क़ानून वापस नहीं लिए गए तो छोटे किसानों का भारतीय कृषि में बचा हिस्सा भी खत्म हो जाएगा।
अजय कुमार
08 Dec 2020
किसान
Image courtesy: Tamil News

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि साल 1960 में तकरीबन 60 फ़ीसदी लोगों के जिंदगी का गुजारा खेती किसानी से हो जाता था। साल 2016 में घटकर यह आंकड़ा 42 फ़ीसदी हो गया। और अभी सीएमआईई यानी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी का कहना है कि भारत की तकरीबन 35 फ़ीसदी आबादी केवल खेती किसानी करके अपना गुजारा करती है।

अब सवाल है कि साल 1960 से लेकर 2020 में ऐसा क्या घटा कि लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में खेती किसानी छोड़ दिया। इसका जवाब है कि साल 1991 के बाद भारतीय सरकारों ने पूरी तरह से उदारीकरण को अपना लिया। नीतियां किसानों के जीवन में सुधार के लिए नहीं बल्कि केवल अनाज उत्पादन के लिहाज से बनाई गई। इसलिए पहले से ही तकरीबन 2 हेक्टेयर से कम की जमीन पर खेती किसानी करने वाले 86 फ़ीसदी किसानों के बहुत बड़े हिस्से ने खेती किसानी को अलविदा कह दिया।

लेकिन जिन पेशों को उन्होंने अपनाया क्या उनसे उनकी जिंदगी में कुछ सुधार हुआ? तो जवाब है बिल्कुल नहीं। जिन्होंने खेती किसानी छोड़ी उन्होंने या तो कोई अपना रोजगार शुरू किया या किसी फैक्ट्री में काम करने लगे। इनकी जिंदगी ऐसी है कि महीने भर का इन्हें तनख्वाह ना मिले तो ये लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाए या फिर भूखे मरने के कगार पर पहुंच जाएं।

अब आप पूछेंगे कि बाजार जब इतना खराब है तो कैसे ऐसे कानून बन जाते हैं जो कृषि को पूरी तरह से बाजार के हवाले करने पर उतारू हैं। इसका जवाब यह है कि साल 1990 के बाद से जैसे-जैसे बाजार के हवाले सारे क्षेत्र होते चले गए हैं ठीक वैसे ही कुबेर पतियों की संपत्तियों में भी इजाफा हुआ है। भारत का अमीर और अधिक अमीर हुआ है। इसकी हैसियत पहले से और अधिक बढ़ी है। भारतीय चुनाव पर हम चाहे जैसा मर्जी वैसा विश्लेषण कर ले लेकिन एक बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनाव में पैसों का असर बहुत अधिक बढ़ा है।

जिनके पास पैसा है उनके पास मीडिया से लेकर वह सारे हथकंडे हैं कि वह अपनी खामियां छिपाकर जनता को बरगला कर सत्ता की सवारी कर सकें। इसलिए सरकार में उन लोगों की पहुंच बहुत कम हुई है जो वैचारिक हैं, जनवादी हैं, जो दुनिया में मौजूद पूंजीपतियों के गठजोड़ से लड़ने का हौसला रखते हैं। ऐसा ना होने की वजह से सरकार में उन लोगों की भरमार है जो अपनी कुर्सी के लिए पूंजीपतियों पर निर्भर हैं और पूंजीपति खुद की मठाधीश स्थापित करने के लिए उन नीतियों के हिमायती होते हैं जहां सामूहिक संपत्तियों का अधिकार खत्म कर प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा दिया जाता है।

पूरे खेती किसानी को ही देख लीजिए तो इसके केंद्र में अनाज और भोजन उत्पादन है। और यह यह ऐसा इलाका है जहां दुनिया में तब तक मांग बनी रहेगी जब तक इस दुनिया में इंसानों की मौजूदगी है। इसलिए उद्योगपति चाहते हैं कि क्षेत्र पर उनका कब्जा हो जाए। और इन चाहतों को पूरा करने में पैसे के दम पर चुनी जाने वाली सरकार है पूरा मदद कर रही है।

खेती किसानी को पूरी तरह से बाजार के हवाले करने से किसानों का क्या हश्र हुआ है? यह समझना हो तो दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क की हैसियत पाए अमेरिका को ही देख लिया जाए।

अमेरिका में कुछ दशक पहले ही खेती किसानी को पूरी तरह से बाजार के हवाले कर दिया गया था। मौजूदा समय की स्थिति यह है कि अमेरिका में केवल डेढ़ फीसदी आबादी ही खेती किसानों करती है। यानी खेती किसानी से बहुत बड़ी आबादी को अलग कर दिया गया है। खेती किसानी पूरी तरह से कॉरपोरेट्स के हाथ में है।

कॉर्पोरेट के काम करने का तरीका है यही होता है। उसे केवल अपने मुनाफे से मतलब है। बड़ी-बड़ी जमीनों पर बड़े बड़े कॉर्पोरेट खेती का धंधा करते हैं। जहां किसान नगण्य है। कॉन्ट्रैक्ट खेती के कानून से इसी का अंदेशा बना हुआ है। साल 2018 के फार्म बिल के तहत अमेरिका की सरकार ने अगले 10 सालों के लिए तकरीबन 867 बिलियन डॉलर खेती किसानी में लगाने का फैसला किया है।

वजह यह है कि खेती किसानी पूरी तरह से घाटे का सौदा बन चुकी है। कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं। डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। उन्हें अपनी उपज की वाजिब कीमत नहीं मिल रही है। अमेरिका के ग्रामीण इलाकों में आत्महत्या की दर सारे इलाकों से 45 फ़ीसदी ज्यादा है। इन सबका कारण केवल खेती किसानी तो नहीं है लेकिन खेती किसानी से होने वाली आय अमेरिका की एक खास आबादी की बदहाली का महत्वपूर्ण कारण है।

कॉर्पोरट की मौजूदगी से वजह से किसान किस तरह बरबाद हो रहे हैं? अमेरिका इसका एक नायाब उदाहरण है। सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी से उत्पाद बाजार में प्रतियोगिता कर पाने में कामयाब हो रहे हैं। लेकिन किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा। बल्कि छोटे किसान तंगहाली में आकर किसानी छोड़ दे रहे हैं।

यही हाल यूरोप का भी है। तकरीबन 100 बिलीयन डॉलर की सरकारी मदद के बाद भी छोटे किसान किसानी छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं। वजह पूरी दुनिया की तरह वही कि उन्हें अपनी उपज का इतना भी कीमत नहीं मिल रहा कि वह अगले मौसम के लिए फसल लग पाए। पैसा कम है और कर्जा ज्यादा है। परिणाम यह है कि जिसके पास बोझ सहने की क्षमता नहीं, वे खेती किसानी छोड़ने को मजबूर है। अध्ययन बताता है कि फ्रांस में हर साल तकरीबन 500 किसान आत्महत्या कर लेते हैं।

कॉरपोरेट का काम करने का यही ढंग है। अगर साझेदारी के तौर पर कोई बड़ा किसान नहीं है। तो कॉरपोरेट छोटे किसानों को लील लेता है। भारत का भी यही हाल है। तकरीबन 80% किसान कभी मंडियों का मुंह नहीं देखते। मंडियों से दूर ही रहते हैं। यह विक्रेताओं को अपना अनाज बेचते आ रहे हैं। इन्हें कोई फायदा नहीं हुआ है। इन्हीं में से पिछले 25 सालों में तकरीबन 4 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। इन्हीं में से अधिकतर किसानों ने उद्योगों में सस्ती मजदूरी के तहत खुद को झोंक दिया है।

सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कानून मंडियों को ख़तम कर, किसानों को एमएसपी से दूर कर, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत कॉरपोरेट को रास्ता देकर खेती किसानी से किसानों को पूरी तरह बाहर करने की योजना है। इसलिए भले ही ये आरोप लगाया जा रहा कि मौजूदा आंदोलन में बड़े किसानों की सहभागिता अधिक है लेकिन हकीकत यह है कि अगर एमएसपी की गारंटी नहीं मिली और तीनों कानून वापस नहीं लिए गए तो छोटे किसानों के लिए भारतीय कृषि में बचा हिस्सा भी खतम हो जाएगा।

farmers movement
AIKS
AIKSCC
Punjab Farmers
BJP
Bharat Bandh
RBI
Agriculture in India
farmers crises
Agriculture Crises

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात


बाकी खबरें

  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज फिर एक हज़ार से ज़्यादा नए मामले, 71 मरीज़ों की मौत
    06 Apr 2022
    देश में कोरोना के आज 1,086 नए मामले सामने आए हैं। वही देश में अब एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 0.03 फ़ीसदी यानी 11 हज़ार 871 रह गयी है।
  • khoj khabar
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं, देश के ख़िलाफ़ है ये षडयंत्र
    05 Apr 2022
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने दिल्ली की (अ)धर्म संसद से लेकर कर्नाटक-मध्य प्रदेश तक में नफ़रत के कारोबारियों-उनकी राजनीति को देश के ख़िलाफ़ किये जा रहे षडयंत्र की संज्ञा दी। साथ ही उनसे…
  • मुकुंद झा
    बुराड़ी हिन्दू महापंचायत: चार FIR दर्ज लेकिन कोई ग़िरफ़्तारी नहीं, पुलिस पर उठे सवाल
    05 Apr 2022
    सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि बिना अनुमति के इतना भव्य मंच लगाकर कई घंटो तक यह कार्यक्रम कैसे चला? दूसरा हेट स्पीच के कई पुराने आरोपी यहाँ आए और एकबार फिर यहां धार्मिक उन्माद की बात करके कैसे आसानी से…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एमपी : डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे 490 सरकारी अस्पताल
    05 Apr 2022
    फ़िलहाल भारत में प्रति 1404 लोगों पर 1 डॉक्टर है। जबकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मानक के मुताबिक प्रति 1100 लोगों पर 1 डॉक्टर होना चाहिए।
  • एम. के. भद्रकुमार
    कीव में झूठी खबरों का अंबार
    05 Apr 2022
    प्रथमदृष्टया, रूस के द्वारा अपने सैनिकों के द्वारा कथित अत्याचारों पर यूएनएससी की बैठक की मांग करने की खबर फर्जी है, लेकिन जब तक इसका दुष्प्रचार के तौर पर खुलासा होता है, तब तक यह भ्रामक धारणाओं अपना…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License