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शिक्षा
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राजनीति
ऑनलाइन पढ़ाई के मामलें में सबकुछ ‘all is well’ नहीं है मुख्यमंत्री जी...
शिक्षा विभाग से एक सवाल आता है कि क्या बच्चे ऑनलाइन जुड़ पाए उसमें दो विकल्प होते हैं ‘हां’ और ‘न’। यदि किसी कक्षा में 50 बच्चे हैं और वाट्सएप ग्रुप से केवल 10 ही बच्चे जुड़ पाए तो ‘हां’ वाले विकल्प को चुनना शिक्षक की मजबूरी हो जाती है। इससे सही स्थिति सामने नहीं आ पाती
सरोजिनी बिष्ट
06 Aug 2020
ऑनलाइन पढ़ाई
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : GSTV

" केवल ऑनलाइन पढ़ाई का फरमान जारी भर कर देना ही काफी नहीं, हमारे पास न तो स्मार्ट फोन, कम्प्य़ूटर और लैपटॉप की सुविधा है, न ही हमें इनका ज्ञान है, स्कूल कहता है वाट्सएप से जुड़िए ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़िए क्यूंकि सरकार का आदेश है, लेकिन हमारी भी मज़बूरी है चार महिने बीत गए हमारे बच्चे पढ़ नहीं पा रहे, अगर हम किसी तरह एक अदद स्मार्ट फोन का इंतजाम कर भी लें तो उसमें नेट भरवाने की समस्या फिर नेटवर्क की भी समस्या....अभी तक किताबें भी नहीं मिली। सरकार ने तो बस स्कूलों को आदेश देकर अपना फ़र्ज़ पूरा मान लिया इसके बाद यह जानने समझने की कोशिश भी नहीं हो रही कि बच्चे पढ़ भी पा रहे हैं कि नहीं, अब  सरकार ही बताए हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा"  यह कहना था शांति (बदला हुआ नाम) का। शांति लखनऊ स्थित मलेश्यमऊ गांव की रहने वाली है और घरेलू कामगार है। उसके परिवार के चार बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। शांति बताती है कि मिड डे मील का अनाज और पैसा तो मिल रहा है जो कि सही है, लेकिन इस समय हमारे बच्चों को किताबों की भी जरूरत है ताकि वे अपने स्तर से कुछ तो पढ़ लें ।

शांति ने बिल्कुल सही कहा कि सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाई का फरमान जारी भर कर देने से अपने कर्तव्य को पूरा मान लिया लेकिन गरीब अभिभावकों के पास न तो आधारभूत सुविधाएं हैं, न समझ तो आदेश की पूर्ति कैसे हो। लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ सरकार यह नरेटिव स्थापित करती नजर आ रही है कि सब कुछ ठीक से चल रहा है, ऑनलाइन पढ़ाई में कहीं कोई दिक्कत नहीं, सरकारी स्कूलों के गरीब बच्चे भी बकायदा ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं यानी "all is well" लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू कुछ और ही है, जिसे समझने के लिए हमने अलग अलग जिलों के शिक्षकों, अभिभावकों,शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता से कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बात की।  जिसमें शिक्षकों की ओर से यह बात सामने आई कि इस सिस्टम में दिक्कत कहां पेश आ रही है, अभिभावकों ने अपनी आर्थिक हालातों का हवाला देकर मौजूदा शिक्षा प्रणाली से न जुड़ पाने की बात कही तो वहीं शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता इस बिंदू पर एकमत दिखे कि जब हर तरह से ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली फेल है तो सरकार को इसे ईमानदारी से स्वीकार करते हुए इसे तत्काल भाव से रद्द करते हुए सत्र को शून्य घोषित कर देना चाहिए और पढ़ाई से वंचित इन बच्चों के लिए कोई ऐसा अल्पकालिक कोर्स बनाना चाहिए कि जब भी स्कूल खुले तो ये बच्चे इस अल्पकालिक कोर्स को ही पूरा करके अगली कक्षा में प्रवेश पा सकें।

सबसे पहले इस स्टोरी की शुरुआत करते हैं दस वर्षीय देवराज और चौदह वर्षीय उसके बड़े भाई संजीत से...........

पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाला दस साल का देवराज खुश है कि उसे अब अपने दोस्तों के साथ भरपूर खेलने को मिल जाता है। उसने अपनी दिनचर्या भी बना ली है कब उठना कब खाना खाना है और कब कब खेलना है लेकिन इस दिनचर्या के बीच उसकी पढ़ाई एकदम नदारद है, क्यूंकि देश की पूरी शिक्षा प्रणाली इस समय ऑनलाइन सिस्टम पर निर्भर है और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले देवराज जैसे गरीब बच्चे इस सिस्टम का हिस्सा कतई नहीं। देवराज मिर्जापुर जिले के रिकशांखुर्द गांव का रहने वाला है। देवराज की तरह ही चौदह वर्षीय उसका बड़ा भाई संजीत भी संसाधन की कमी की वजह से पिछले चार माह से अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहा। संजीत सातवीं कक्षा का छात्र है।

बच्चों की पढ़ाई रुक जाने से देवराज और संजीत के माता पिता बहुत परेशान है। वे कहते हैं कि नई कक्षा का सत्र शुरू हुए चार महीने बीत गए लेकिन हमारे जैसे गरीबों के बच्चे अभी तक नई क्लास का एक अक्षर तक नहीं पढ़ पाए हैं क्यूंकि हमारे पास जरूरत के हिसाब सुविधाएं नहीं। जब हमने उनसे कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई न सही बच्चे घर पर नियमित स्वयं पढ़ने की दिनचर्या बना लें ताकि पढ़ाई का अभ्यास न छूटे तो इस पर देवराज की मां संतरा देवी ने बताया कि इस साल अभी तक स्कूल से किताबें तक नहीं मिल पाई हैं , जब किताबें ही नहीं तो पढ़ाई भला कैसे हो।

देवराज और संजीत की तरह ही लखनऊ के रामरहीम नगर हरदासी खेड़ा की रहने वाली चौदह साल की लक्ष्मी और उसके छोटे बहन भाई आकाश और पूजा की भी पढ़ाई रुकी हुई है।  न तो ऑनलाइन पढ़ाई ही शुरू हो पाई न ही किताबें मिल पाई। लक्ष्मी की मां मंजू देवी ने बताया कि पहले लक्ष्मी बगल के ही एक प्राईवेट स्कूल में जाती थी। आर्थिक तंगी की वजह से इस साल उसका दाखिला आठवीं कक्षा में सरकारी स्कूल में कराना पड़ा लेकिन सत्र शुरू हो जाने के बावजूद हमारे बच्चे पढ़ नहीं पा रहे। मंजू कहती हैं कि किताबें ही नई क्लास की मिल जाती तो हमारे बच्चे खुद से पढ़ लेते लेकिन अभी तक किताबें भी नहीं मिल पाई।

 झूठे साबित होते सरकार के दावे

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब राज्य के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से अति उत्साहित होकर यह कहते नजर आए कि ऑनलाइन पढ़ाई का यह सिस्टम इतना कारगर है कि अन्य दिनों में भी यानी जब करोना काल खत्म हो जाए उसके बाद भी कम से कम सप्ताह में दो दिन ऑनलाइन कक्षाएं चलें और बाकी चार दिन ही बच्चे स्कूल जाएं। अपने इस बयान के जरिए कहीं न कहीं वे यह जताने की कोशिश करते नजर आए कि न केवल प्राईवेट बल्कि सरकारी स्कूलों के बच्चे भी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली से जुड़ चुके हैं और सब सुचारू रूप से संचालित हो रहा है, लेकिन जबअपनी पड़ताल में हमने कई जिलों ( लखनऊ, बाराबंकी, बस्ती, गोंडा, मिर्जापुर, इलाहाबाद, लखीमपुर खीरी, सीतापुर आदि) के सरकारी स्कूल के शिक्षकों और अभिभावकों से संपर्क किया तो सच कुछ और ही था जो सरकार के दावों के एकदम विपरीत।  एक तरफ सरकार का यह प्रचार है कि, चिंता की बात नहीं कोई भी बच्चा इस समय पढ़ाई से वंचित नहीं लेकिन सच्चाई बेहद भयावह है जो सरकार के दावे को सिरे से ख़ारिज करती है और वह यह कि इस समय सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ऑनलाइन शिक्षा के अभाव में नए सत्र की पढ़ाई से न केवल एकदम कट चुके हैं बल्कि कई जिलों के बच्चों के हाथ में तो अभी तक किताबें तक नहीं पहुंच पाई है।

भ्रमित करते आंकड़े

अब सवाल यह उठता है कि आख़िर सरकार सब कुछ बेहतर होने का दावा किया, आधार पर कर रही है, इस पर जब कुछ जिलों के टीचरों से हमारी बात हुई कि क्या कभी प्रशासन या शिक्षा विभाग की ओर से कोई पड़ताल नहीं होती कि आखिर कितने बच्चे वाट्सएप ग्रुप से जुड़ पाए या नहीं जुड़ पा रहे या फिर यदि अभी तक ऑनलाइन पढ़ाई सुचारू रूप से नहीं हो पा रही तो आखिर क्यूं नहीं हो पा रही है।  इस पर उनका कहना था कि पड़ताल होती है लेकिन सब कुछ कम्प्यूटराईज्ड होता है यानी शिक्षा विभाग से एक सवाल आता है कि क्या बच्चे ऑनलाइन जुड़ पाए उसमें दो विकल्प होते हैं "हां" और "न" के यदि किसी कक्षा में पचास बच्चे हैं और वाट्सएप ग्रुप से केवल दस ही बच्चे जुड़ पाए तो "हां" वाले विकल्प को चुनना उनकी मज़बूरी हो जाती है लेकिन कितने बच्चे जुड़े हैं बाकी क्यूं नहीं जुड़ पाए ऐसे सवाल नहीं होते जिससे सही सही स्थिति से अवगत नहीं करा पाते और सरकार के पास यह आंकड़ा दर्ज हो जाता है कि फलां जिले के ब्लॉक के बच्चे सम्पूर्ण रूप से ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़ चुके हैं जबकि तस्वीर कुछ और ही होती है।

क्या कहते हैं शिक्षक और अभिभावक

जब कुछ सरकारी टीचरों से बात हुई कि राज्य सरकार के आदेश के बावजूद आप लोग क्यों नहीं वॉट्सएप ग्रुप बनाकर बच्चों को पढ़ाई की ओर प्रेरित कर रहे तो हर किसी का यही कहना था कि उनकी तरफ से कोशिश पूरी है लेकिन जब अभिभावक संसाधन की कमी होने की बात कहकर अपने हालात सामने रखते हैं तो हमारे लिए भी यह मज़बूरी हो जाती है कि आखिर इनकी समस्या का समाधान क्या है। नाम न छापने की शर्त में इलाहाबाद जिले के प्रतापगढ़ ब्लॉक की एक सरकारी टीचर ने हमें बताया कि उनकी क्लास में सौ बच्चे हैं पर वॉट्सएप ग्रुप में मुश्किल से पच्चीस बच्चे ही जुड़ पाए हैं वो भी कई कोशिशों के बाद। उनके मुताबिक सबसे बड़ी समस्या यही है कि सरकार ने आदेश तो दे दिया हम टीचर अभिभावकों से संपर्क करके वॉट्सएप ग्रुप में उनके बच्चों को शामिल करने का आग्रह भी कर रहे हैं लेकिन जो इन गरीब अभिभावकों की समस्या है कि किसी के पास स्मार्ट फोन नहीं तो कहीं नेट पैक नहीं ये समस्या भी अपने आप में वाजिब है फिर जब हमारे सामने अभिभावक यह समस्या रखते हैं तो हम भी कुछ न कर पाने के स्तर तक विवश हो जाते हैं और पढ़ाई की यह श्रृंखला यहीं टूट जाती है।  तो वहीं जब कई  अभिभावकों से इस बाबत बात हुई तो उनका यही कहना था कि इस ऑनलाइन पढ़ाई के लिए जो साधन होने चाहिए जब उनके पास है ही नहीं तो कैसे वे इस सिस्टम से जुड़ पाएंगे।

लेकिन इस पूरी दुविधा के बीच हमने इन टीचरों को इस बात के लिए भी खासा चिंतित होते देखा कि सरकारी स्कूलों में आने वाले जिन बच्चों को एक एक अक्षर पढ़ाने और पढ़ाई की ओर उनकी अधिक से अधिक रुचि विकसित करने में उन्हें एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है जब ये बच्चे यूं ही पूरा साल पढ़ाई से वंचित रह जाएंगे और अगले साल बिना कुछ पढ़े ही उन्हें अगली क्लास में प्रमोट कर दिए जाएंगे तो पढ़ाई का यह गैप इन बच्चों के बौद्धिक विकास को खासा प्रभावित करेगा। बस्ती जिले के बस्ती सदर ब्लॉक में कार्यरत एक सरकारी स्कूल के टीचर ने बताया कि अब  मिड डे मील का अनाज और पैसा बच्चों तक पहुंचाने का काम शुरू हो जाएगा  कुछ समय बाद यूनिफॉर्म भी वितरित किए जाएंगे किताबें भी दी जाएगी लेकिन पढ़ाई का सवाल तो जस का तस रह जाएगा।

क्या कहते हैं सामाजिक कार्यकर्ता
 
लखीमपुर जिले के पलियाकला ब्लॉक की रहने वाली आरती राय सालों से ग्रामीण क्षेत्र में गरीब परिवारों बीच काम करने वाली एक सामाजिक कार्यकर्ता है। उन्होंने बताया कि उनका जिले के कई गांवों में आना जाना लगा रहता है और वे ऐसे कई परिवारों को जानती हैं जिनके बच्चे गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं लेकिन इस समय उनकी पढ़ाई एकदम बन्द है यहां तक कि उनके हाथों में अभी तक नये सत्र की किताबें तक नहीं आ पाई है जबकि आधा साल गुजर गया। आरती जी कहती हैं कि वैसे वर्चुअल क्लासेज वास्तविक क्लासेज का स्थान नहीं ले सकती दिक्कतें कई तरह कि हैं और खासकर ग्रामीण क्षेत्र में तो और ज्यादा पर बावजूद इसके हमें कुछ तो उन बच्चों के हित में सोचना होगा को इस समय पूरी तरह से पढ़ाई से कट चुके हैं।

उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों को भी ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़ना है, केवल ऐसा आदेश दे देने भर से सब कुछ अच्छा नहीं होने वाला बल्कि काम उसके आगे करने की सख्त जरूरत है या तो सरकार वास्तविक धरातल पर काम करते हुए सचमुच इन गरीब बच्चों के लिए ठोस योजना बनाए या अपनी इस कमी को स्वीकार करे कि ऑनलाइन पढ़ाई की उसकी योजना उस हद तक सफल नहीं हो पा रही जितना जोर शोर से प्रचारित किया गया। उन्होंने कहा कि हम देख रहे हैं कि सब कुछ बढ़िया से मैनेज करने की जिम्मेवारी  शिक्षकों और अभिभावकों पर छोड़ कर सरकार यह मान बैठी है कि बच्चे पढ़ रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि संसाधनों और नेट के अभाव के चलते गरीब बच्चे नहीं पढ़ पा रहे तो सरकार को इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि संसाधनों के अभाव में वे हर बच्चे तक सुचारू रूप से पढ़ाई नहीं पहुंचा पा रहे लेकिन सरकार इस सच्चाई को स्वीकार करना नहीं चाहती ।            

लखनऊ की जानी मानी शिक्षाविद् और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रह चुकीं रूपरेखा वर्मा जी से जब इस गंभीर मसले पर बात हुई तो उन्होंने सबसे पहले तो ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को ही सिरे से ख़ारिज किया। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा बच्चों पर गैरजरूरी बोझ के अलावा और कुछ नहीं । उनके मुताबिक जब बड़े बड़े शहरों में ही नेटवर्क इशू के चलते कई बार पढ़ाई बाधित हो रही है तो हम यह कैसे मान लें कि छोटे शहरों, ग्रामीण और दूर दराज के इलाकों में सब कुछ सुचारू तौर पर चलेगा ऐसे में सरकार ऑनलाइन पढ़ाई का आदेश देकर केवल खानापूर्ति ही कर रही है जबकि वास्तविकता से वह भी वाक़िफ है। उन्होंने कहा कि बजाय इस अर्थहीन ऑनलाइन शिक्षा का बोझ बच्चों पर डालने के दूसरे विकल्पों पर काम करना चाहिए और यदि सरकार सचमुच बच्चों की पढ़ाई को लेकर संजीदा है तो उसे ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर देने की बजाय बच्चों के लिए कोई ऐसा अल्पकालिक कोर्स बनाना चाहिए जिसे बच्चे स्कूल खुलने के बाद उस कोर्स के माध्यम से अपने  पढ़ाई के गैप को भर सके।
 
इसमें दो राय नहीं कि जब से पूरे देश में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली लागू हुई है तब से सरकार की ओर से एक मिथ ही पेश किया जा रहा है कि मौजूदा हालात में भी देश का हर विद्यार्थी शिक्षा से अछूता नहीं, अगर छात्र स्कूल तक नहीं जा पा रहा तो स्कूल स्वयं उस तक पहुंच रहा है लेकिन सरकार का गढ़ा हुआ यह मिथ तब धाराशायी हो जाता है जब हम देखते हैं कि विद्यार्थियों का एक बहुत बड़ा वर्ग पढ़ाई से पूरी तरह कट चुका है तो क्या ऐसे में सरकार को वास्तविक स्थिति को स्वीकार करते हुए इस गैजरूरी बोझ के बदले दूसरे विकल्पों पर काम नहीं करना चाहिए जैसा की रूपरेखा वर्मा जी ने बताया। हम जानते हैं कि सरकार भी हर किसी को संसाधनों से लैस नहीं कर सकती फिर तकनीकी समस्याएं हैं सो अलग तो ऐसी क्या मज़बूरी है कि को स्थिति संभव नहीं हो पा रही उसका एक हव्वा खड़ा कर दिया जा रहा है और इस मिथ का सबसे बड़ा खामियाजा गरीब बच्चों को भुगतना पर रहा है।

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