NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायाधीशों की संख्या बढ़ना, लैंगिग समानता के लिए एक उम्मीद है
न्यायपालिका में लैंगिग समानता का मुद्दा बीते काफी समय से सुर्खियों में रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार 3 महिलाओं का जस्टिस पद के लिए शपथ लेना ऐतिहासिक है।
सोनिया यादव
01 Sep 2021
सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायाधीशों की संख्या बढ़ना, लैंगिग समानता के लिए एक उम्मीद है
फ़ोटो साभार:  National Herald

"कभी कोई महिला भारत की मुख्य न्यायाधीश नहीं रही, न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने से यौन हिंसा से जुड़े मामलों में अधिक संतुलित और सशक्त दृष्टिकोण होगा।”

ये बातें बीते साल अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के राखी जमानत आदेश के खिलाफ महिला वकीलों द्वारा दायर एसएलपी में अपने लिखित सबमिशन में कहीं थी। उन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार कम होने पर भी चिंता व्यक्त की थी साथ ही सुप्रीम कोर्ट सहित न्यायपालिका के सभी स्तरों पर महिलाओं का अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की ओर ध्यान आकर्षित किया था। हालांकि अब सालभर बाद तस्वीर थोड़ी बदलती जरूर नज़र आ रही है।

आपको बता दें कि मंगलवार, 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार 3 महिलाओं ने जस्टिस पद की शपथ ली। ये हैं जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस बीएम त्रिवेदी।

जस्टिस कोहली जहाँ तेलंगाना हाईकोर्ट की चीफ़ जस्टिस थीं। वहीं जस्टिस नागरत्न कर्नाटक हाईकोर्ट, तो जस्टिस त्रिवेदी गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस रहीं हैं।

17 अगस्त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इन जजों की नियुक्ति की सिफ़ारिश की थी। उसके बाद, राष्ट्रपति ने 26 अगस्त, 2021 को इन नामों पर अपनी मुहर लगाई थी। इसी के साथ अब सुप्रीम कोर्ट में 4 महिला जज शामिल हैं। कुल 33 जजों में 4 महिला जजों का शामिल होना अपने आप में ऐतिहासिक है। शुरू से सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की भागीदारी देखें तो अब यह 11 की संख्या तक पहुंच गई है।

पहली बार किसी महिला के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने की संभावना है!

सुप्रीम कोर्ट में जजों के कुल स्वीकृत 34 पदों में अब 33 पद भर चुके हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना वरिष्ठता के हिसाब से साल 2027 में भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस बन सकती हैं। जस्टिस नागरत्ना के पिता जस्टिस ईएस वेंकटरमैया भी 1989 में चीफ जस्टिस बने थे। यह भी अपने आप में ऐतिहासिक है क्योंकि भारतीय न्यायपालिका में यह पहली बार होगा जब पिता के बाद दूसरी पीढ़ी में कोई बेटी चीफ जस्टिस बनेगी। निश्चित तौर पर ये अपने आप में बड़ी और गर्व करने वाली बात है।

मालूम हो कि इस साल की शुरुआत में भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे शरद बोबडे ने उच्च न्यायालय में एडहॉक न्यायाधीशों के नियुक्ति संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि समय आ गया है जब भारत में कोई महिला मुख्य न्यायाधीश बने। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट की महिला वकीलों की एसोसिएशन ने उच्च न्यायिक व्यवस्था में महिला न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की मांग के साथ दाख़िल की थी। एसोसिएशन ने अदालत को यह भी बताया था कि देश के सर्वोच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायालयों में मौजूद न्यायाधीशों में महज 11 प्रतिशत महिलाएँ हैं।

अपने ऑब्जर्वेशन में जस्टिस बोबडे ने कहा था, "हमें ध्यान है कि न्याय व्यवस्था में महिलाओं की ज़रूरत है। हम इसे अच्छी तरह लागू कर रहे हैं। हमारे नज़रिए में कोई बदलाव नहीं आया है, हमें केवल अच्छे लोग चाहिए।"

गौरतलब है कि भारत में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना 1950 में हुई थी। यह 1935 में बनाए गए फ़ेडरेल कोर्ट की जगह स्थापित हुआ था। इसके बाद से अब तक 48 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई महिला भारत की चीफ जस्टिस नहीं बनी है।

शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सहित आठ न्यायाधीशों की व्यवस्था थी। हालाँकि संविधान ने भारतीय संसद को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने का अधिकार दिया हुआ था। जब सुप्रीम कोर्ट में मामले की संख्या बढ़ने लगी, तो 1956 में इसे आठ से बढ़ाकर 11 किया गया। इसके बाद 1960 में इसे 14 किया गया। 1978 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 18 हुई है, जिसे 1986 में 26 किया गया। 2009 में इनकी संख्या 31 की गई और 2019 में सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सहित 34 न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई।

न्यायालयों में इतनी कम महिला न्यायाधीश

अब तक केवल आठ महिलाओं को भारतीय की सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया था। 1989 में जस्टिस फ़ातिमा बीवी सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं।

मौजूदा समय में इन नई नियुक्तियों से पहले सुप्रीम कोर्ट के 34 न्यायाधीशों में जस्टिस इंदिरा बनर्जी अकेली महिला थी। देश भर के 25 उच्च न्यायालयों में केवल एक तेलंगाना हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के तौर पर महिला न्यायाधीश हिमा कोहली थीं, जो अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं। इन उच्च न्यायालयों में कुल 661 न्यायाधीश हैं और इनमें लगभग 72 महिलाएँ हैं। मणिपुर, मेघालय, बिहार, त्रिपुरा और उत्तराखंड की उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं हैं।

बता दें कि न्यायपालिका में लैंगिग समानता का मुद्दा बीते काफी समय से सुर्खियों में रहा है। आबादी में पुरुष और महिलाओं का अनुपात क़रीब 50-50 प्रतिशत है और यह उच्च न्यायिक व्यवस्था में भी दिखना चाहिए इसके लिए कई याचिकाएं भी दाखिल हुई हैं। लेकिन वास्तविकता में आज भी लोग इस पेशे को जेंडर से अलग करके नहीं देख पाते जिस कारण महिलाओं के लिए इस क्षेत्र में आना और अपनी जगह बनाना मुश्किल है।

1923 में लीगल प्रैक्टिशनर (वीमेन) एक्ट के ज़रिए महिलाओं को वकालत करने की अनुमति दी गई। इससे पहले वकालत के पेशे को केवल पुरुषों का पेशा माना जाता था। रेगिना गुहा, सुधांशु बाला हाज़रा और कॉर्नेलिया सोराबजी नाम की तीन महिलाओं ने इसे चुनौती दी थी।

रेगिना गुहा ने अपनी क़ानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1916 में याचिकाकर्ता के तौर पर नामांकन के लिए आवेदन दिया। यह उस वक़्त अपने आप में अनोखा मामला था। उनके आवेदन को कोलकाता हाईकोर्ट भेजा गया। बाद में इस मामले को 'फर्स्ट पर्सन केस' के तौर पर जाना गया।

लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 के तहत महिलाएँ याचिकाकर्ता नहीं हो सकती थीं और इस तरह से महिलाएँ पूरी तरह से इस पेशे से बाहर थीं। गुहा की याचिका को पाँच जजों की बेंच ने सुना और सर्वसम्मति से ख़ारिज कर दिया।

लंबे संघर्ष के बाद महिलाओं को मिला वकालत का अधिकार

1921 में सुधांशु बाला हाज़रा ने रेगिना गुहा की तरह ही कोशिश की। उन्होंने पटना हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता होने के लिए आवेदन दिया। इसे 'सेकेंड पर्सन केस' के तौर पर जाना जाता है। सुधांशु बाला हाज़रा के मामले में पटना हाईकोर्ट की बेंच ने महिलाओं के वकालत करने के पक्ष में विचार रखे, लेकिन कोलकाता हाईकोर्ट के फ़ैसले को नज़ीर मानते हुए हाज़रा का आवेदन रद्द कर दिया। हालाँकि इससे पहले ब्रिटेन की अदालत ने सेक्स डिस्क्वालिफिकेशन रिमूवल एक्ट, 1919 को पारित कर दिया था, जिसके चलते क़ानूनी पेशे में महिलाओं के आने का रास्ता खुल गया था।

साल 1921 में ही कोर्नेलिया सोराबजी ने इलाहाबाद में याचिकाकर्ता के रूप में नामांकन के लिए याचिका दाख़िल की और फ़ैसला उनके पक्ष में आया। इस तरह से वे भारत की पहली महिला वकील बनीं।

इसके बाद लीगल प्रैक्टिशनर्स (वीमेन) एक्ट, 1923 में लागू हुआ और इस क़ानून ने कलकत्ता हाईकोर्ट और पटना हाईकोर्ट के फ़ैसले को निरस्त कर दिया। इस क़ानून ने लैंगिक आधार पर वकालत में होने वाले भेदभाव पर पाबंदी लगा दी और महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया। अब जब वक्त बदल गया है और महिलाएं अच्छे फैसलों के साथ आगे बढ़ रही हैं तो ऐसे में देखना होगा कि न्यायपालिका में महिलाओं की तस्वीर बदलने में और कितना समय लगेगा।

Supreme Court
Gender Equality
Justice B V Nagarathna
Justice Hima Kohli
Justice Bela Trivedi
women empowerment

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल


बाकी खबरें

  • श्रुति एमडी
    ‘तमिलनाडु सरकार मंदिर की ज़मीन पर रहने वाले लोगों पर हमले बंद करे’
    05 Apr 2022
    द्रमुक के दक्षिणपंथी हमले का प्रतिरोध करने और स्वयं को हिंदू की दोस्त पार्टी साबित करने की कोशिशों के बीच, मंदिरों की भूमि पर रहने वाले लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। 
  • भाषा
    श्रीलंका में सत्ता पर राजपक्षे की पकड़ कमज़ोर हुई
    05 Apr 2022
    "सरकारी बजट पर मतदान के दौरान गठबंधन के पास 225 सांसदों में से 157 का समर्थन था, लेकिन अब 50 से 60 सदस्य इससे अलग होने वाले हैं। इसके परिणामस्वरूप सरकार न सिर्फ दो-तिहाई बहुमत खो देगी, बल्कि सामान्य…
  • विजय विनीत
    एमएलसी चुनाव: बनारस में बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी के आगे दीन-हीन क्यों बन गई है भाजपा?
    05 Apr 2022
    पीएम नरेंद्र मोदी का दुर्ग समझे जाने वाले बनारस में भाजपा के एमएलसी प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल ऐलानिया तौर पर अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेताओं, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर आरोप जड़ रहे हैं कि वो…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: आज दूसरे दिन भी एक हज़ार से कम नए मामले 
    05 Apr 2022
    देश में कोरोना से पीड़ित 98.76 फ़ीसदी यानी 4 करोड़ 24 लाख 96 हज़ार 369 मरीज़ों को ठीक किया जा चुका है। और एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 0.03 फ़ीसदी यानी 12 हज़ार 54 रह गयी है।
  • मुकुल सरल
    नफ़रत की क्रोनोलॉजी: वो धीरे-धीरे हमारी सांसों को बैन कर देंगे
    05 Apr 2022
    नज़रिया: अगर किसी को लगता है कि ये (अ)धर्म संसद, ये अज़ान विवाद, ये हिजाब का मुद्दा ये सब यूं ही आक्समिक हैं, आने-जाने वाले मुद्दे हैं तो वह बहुत बड़ा नादान है। या फिर मूर्ख या फिर धूर्त। यह सब यूं…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License