NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मोदी जी के नए भारत में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को या 5 अगस्त को? 
कटाक्ष: इस स्वतंत्रता ने हमें दिया ही क्या है, अंगरेजी राज से आजादी के सिवा। संस्कृत तो संस्कृत, हिंदी तक को राष्ट्रभाषा बनाने की इजाजत नहीं मिली। न मनुस्मृति को संविधान बनाने की इजाजत मिली और न सावरकर को राष्ट्रपिता बनाने की। और तो और इतनी भी इजाजत नहीं मिली कि इतिहास में करैक्शन कर के राणा प्रताप से अकबर को पिटवा दें।
राजेंद्र शर्मा
14 Aug 2021
मोदी जी के नए भारत में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को या 5 अगस्त को? 
Image courtesy : TOI

लोककल्याण मार्ग पर सुबह-सुबह एक भाषण उड़ता मिला। किसने लिखा, किस के लिए लिखा, नहीं पता, पर इतना तय है कि यह भाषण लाल किले से सुनने को नहीं मिलेगा। पर भाषण सुनाने का मौका भी है और दस्तूर भी, सो दम साध के भाषण सुनिए।

भाइयो, बहनो,

स्वतंत्रता के चौहत्तर साल हो गए। साल भर बाद, पचहत्तर साल हो जाएंगे। तब हम सब बड़ी धूम-धाम से स्वतंत्रता का अमृृत महोत्सव मनाएंगे। बल्कि हम कोई एक साल इंतजार थोड़े ही करने वाले हैं। हम तो अभी से उत्सव शुरू कर देेंगे और साल भर उत्सव ही मनाएंगे। उत्सव की वैसे भी हमारे देश का मूड ठीक करने के लिए इस समय कुछ ज्यादा ही जरूरत है। कोरोना-वोरोना के चक्कर में एंटी-नेशनलों ने इतनी ज्यादा नेगेटिविटी फैला दी है कि उसे तो कोई साल भर लंबा अमृत महोत्सव ही कम कर सकता है। सरकार ने ‘मूंदेहु आंख कहूं कछु नाहीं’ का बाबा तुलसीदास का फार्मूला आजमा कर देख लिया, मौतों को घटाकर, आक्सीजन की कमी से हुईं मौतों को मिटाकर, गंगा के शववाहिनी बनने से आंख चुराकर, देख लिया। 

मजाल है जो नेगेटिविटी इत्ती सी कम हुई हो। खुद भागवत जी ने ‘जो चले गए, वो मुक्त हो गए’ का दर्शन पिलाकर भी देख लिया। पर नेगेटिविटी कम नहीं हुई। उल्टे लोगों ने इसकी रट लगाना और शुरू कर दिया कि तब तुम और तुम्हारी सरकार कहां सो रहे थे...? आदरणीयों के साथ तुम-तड़ाक! अब तो अमृत महोत्सव ही इस नेगेटिविटी को घटाएगा। सो हम तो जमकर उत्सव मनाएंगे। साल भर उत्सव मनाएंगे। इतना उत्सव मनाएंगे, इतना उत्सव मनाएंगे कि यह कहने वालों के मुंह खुले के खुले रह जाएंगे कि न हमारे पुरखे स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हुए थे और न हमारी नजरों में स्वतंत्रता का कोई मोल है। मुंह खुला का खुला रह जाए या सिल जाए, बात तो एक ही है--आवाज नहीं निकलेगी!

मैं तो सोचता हूं कि उत्सव शुरू करने के लिए 15 अगस्त तक भी इंतजार क्यों करना? चौबीस घंटे ही रहते हैं तो भी इंतजार क्यों करना? चौबीस घंटे पहले ही शुरू करते हैं। स्वतंत्रता दिवस शिफ्ट नहीं कर सकते हैं तो क्या हुआ, स्वतंत्रता दिवस से पहले एक और दिवस तो जोड़ सकते हैं। जैसे ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस।’ ठीक भी है। स्वतंत्रता बाद में आयी, विभाजन पहले। स्वतंत्रता दिवस भी बाद में आएगा, ‘विभीषिका स्मृति दिवस’ पहले। एक्स्ट्रा उत्सव का उत्सव और विभीषिका के स्मरण का स्मरण। चौहत्तर साल में स्वतंत्रता की कद्र घट गयी है इसकी शिकायत करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे। पर इसकी बात कोई नहीं करना चाहता कि हम विभाजन के घावों को भूलते जा रहे हैं। विभाजन के घावों का विस्मरण अब और नहीं। एकदम नहीं। विभीषिका स्मरण के उत्सव से कुरेद-कुरेदकर हम विभाजन के घावों को ताजा करेंगे। विभाजन के घावों को ताजा करेंगे, तभी तो विभाजन के अधूरे काम को पूरा करेंगे, उधर जिन्ना के इस्लामी पाकिस्तान के जवाब में, इधर गोलवालकर का हिंदू भारत बल्कि हिंदूस्थान। लेकिन, वह जरा बाद में। उससे पहले घावों को ताजा कर के तलवार बनाएंगे, तभी तो यूपी-उत्तराखंड में भगवा सरकार बचा पाएंगे। आखिर, फर्जी घावों से कोई कब तक काम चला सकता है?

युवाओं का देश क्या पचहत्तर साल पुरानी स्वतंत्रता से ही संतुष्ट हो सकेगा! हर्गिज नहीं। और हम क्यों हों संतुष्ट इस पुरानी-धुरानी स्वतंत्रता से। इस स्वतंत्रता ने हमें दिया ही क्या है, अंगरेजी राज से आजादी के सिवा। हिंदुओं को अपने देश में रहने की आजादी नहीं दी। रामलला को अपने जन्मस्थान पर मंदिर बनवाकर उसमें रहने तक की इजाजत इतनी मुश्किल से मिली है कि पूछो ही मत। संस्कृत तो संस्कृत, हिंदी तक को राष्ट्रभाषा बनाने की इजाजत नहीं मिली। न मनुस्मृति को संविधान बनाने की इजाजत मिली और न सावरकर को राष्ट्रपिता बनाने की। और तो और इतनी भी इजाजत नहीं मिली कि इतिहास में करैक्शन कर के राणा प्रताप से अकबर को पिटवा दें। गोडसे को ऑफीशियली देशभक्त बनाने का तो सवाल ही कहां उठता है। ब्राह्मïणों को अपने जाति-धर्म का पालन करने की आजादी नहीं मिली। कारोबारियों को ज्यादा से ज्यादा कमाई की, उद्योगपतियों को मजदूरों को जी-भरकर निचोडऩे तक की स्वतंत्रता नहीं मिली। हर चीज में कोटा, हर चीज का परमिट, हर चीज पर अंकुश यह स्वतंत्रता भी कोई स्वतंत्रता है, लल्लू!

सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता मिली, पर वह भी कितनी? राज तो मिला, लेकिन राजा नहीं मिला। पश्चिमी पढ़ाई के चक्कर में गांधी-नेहरू-आंबेडकर ने मिलकर भांजी मार दी। बेचारे गोलवालकर कहते ही रह गए कि चक्रवर्ती राजा बनाओ, हमें राजगुरु बनाओ, पर किसी ने सुनी ही नहीं। अंगरेजों की तरह, राजा को बड़ा सा महल तो दे दिया, पर राष्ट्रपति का नाम देकर उससे राजगद्दी छीन ली। पर जिस पीएम को राजगद्दी दी, उसे भी कौन सी स्वतंत्रता मिली! पांच साल पर चुनाव तो देखा भी जाए, पर गले में संसद की हर वक्त की किचकिच का पट्टा डाल दिया और सिर पर संविधान का पालन कराने की तलवार देकर सुप्रीम कोर्ट को बैठा दिया। ऐसे भी कोई राज होता है भला! पर अब और नहीं। पचहत्तर साल के बाद और नहीं। अमृत महोत्सव के बाद और नहीं। मोदी के नये भारत में और बिल्कुल नहीं। मोदी जी नये भारत में, नयी स्वतंत्रता भी लाएंगे। असली स्वतंत्रता। सिर्फ अंगरेजों के राज से नहीं, हर चीज से स्वतंत्रता। राज्य की संविधान से, राजा की संसद से, कारोबारियों की टैक्स-वैक्स से और भगवाधारियों की कानून से स्वतंत्रता। स्वतंत्रता-2। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के साथ, स्वतंत्रता-2 का काउंटडाउन भी शुरू होता है। हां! इस पर पब्लिक से भी सुझाव आमंत्रित हैं कि पचहत्तर के बाद, छहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस गिना जाए या स्वतंत्रता-2 का एक-दो वगैरह? स्वतंत्रता दिवस, आगे भी 15 अगस्त का ही चलाया जाए या 5 अगस्त कर दिया जाए, राम जन्मभूमि मंदिर  भूमि पूजन और जम्मू-कश्मीर मुक्ति दिवस? और अगले पंद्रह अगस्त के बाद, झंडा फहराने के बाद वाला भाषण लाल किले से ही हो या कहीं और से? वैसे लाल किला भी अब मुगलों वाला नहीं रह गया है--अब तो डालमिया का लाल किला है, थैंक्स टु मोदी जी! 

( इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

Narendra modi
new india
sarcasm
75th Independence day

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License