NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत के सामने नौकरियों का बड़ा संकट: पिछले साल छिन गईं 1.7 करोड़ नौकरियाँ
सितंबर 2020 से अब तक 90 लाख नौकरियाँ जा चुकी हैं, लेकिन सरकार अब भी इस तरीके से व्यवहार कर रही है, जैसे सबकुछ बहुत ही सही चल रहा हो।
सुबोध वर्मा
18 Jan 2021
भारत के सामने नौकरियों का बड़ा संकट: पिछले साल छिन गईं 1.7 करोड़ नौकरियाँ

लॉकडाउन हटने के बाद भारत की अर्थव्यवथा में सुधार की खुशफहमी भरी बातों में बड़ा झोल नजर आ रहा है। “सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE)” सर्वे के हालिया आंकड़ों के मुताबिक़, दिसंबर 2019 से तुलना में आज देश में 1.7 करोड़ कम लोगों के पास रोज़गार है। कुल रोज़गार प्राप्त लोगों की संख्या सितंबर, 2020 के 39.8 करोड़ के आंकड़े से घटकर 38.9 करोड़ रह गई है। यह बताती है कि तीन महीनों में 90 लाख लोगों के हाथ से नौकरियां जा चुकी हैं। (नीचे चार्ट देखिए)

बल्कि 2020-21 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में रोज़गार में पिछले वित्तवर्ष में इसी अवधि की तुलना में 2.8 फ़ीसदी की कमी आई है। इसी पैमाने पर, 2020-21 की पहली तिमाही में आई बड़ी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में 2.6 फ़ीसदी की सिकुड़न दर्ज की गई थी। मतलब तीसरी तिमाही में दूसरी तिमाही से ज़्यादा गिरावट आई है।

दिसंबर 2020 में बेरोज़गारी दर 9.1 फ़ीसदी थी, यह सितंबर (6.7 फ़ीसदी) से और पिछले साल दिसंबर (7.1 फ़ीसदी) से ज़्यादा थी। दिसंबर में शहरी बेरोज़गारी में बड़ा उछाल आया है। यह नवंबर में 6.2 फ़ीसदी से बढ़कर दिसंबर में 9.2 फ़ीसदी पहुंच गई है।

नौकरियाँ जाने का ख़ामियाज़ा युवा, शिक्षित और वेतनभोगियों को भोगना पड़ा

इस बुरी स्थिति में और भी ज़्यादा भयावह गहराईयां मौजूद हैं। जनसंख्या के विभिन्न हिस्सों के लोगों की नौकरियां जाने के अलग-अलग विश्लेषण से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में ज़्यादा नौकरियां युवा कामग़ारों, महिलाओं और वेतनभोगी कर्मचारियो से छिनी हैं। भारत में महिलाओं की रोज़गार दर हमेशा कम रही है। ऐसा लगता है कि पिछले साल लॉकडाउन और आर्थिक गिरावट से पैदा हुई बेरोज़गारी का बड़ा ख़ामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ा है। हालांकि कुल श्रमशक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ़ 11 फ़ीसदी ही है, लेकिन जितनी नौकरियां गई हैं, उनमें से 52 फ़ीसदी नौकरियां महिलाओं की थी। 

दूसरे जनसांख्यकीय-आर्थिक वर्ग वह हैं, जिन्हें विकास का इंजन माना जाता था। युवा लोगों में चालीस साल से कम उम्र के लोगों के बीच, 2019-20 की इस साल से तुलना के मुताबिक, इस साल 2.17 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं। इस समूह में जो लोग 30 से 39 साल की उम्र के बीच थे, उन पर सबसे ज़्यादा बुरा असर पड़ा। 40 साल से कम उम्र के जिन लोगों की नौकरियां गईं, उनमें “30 से 39 साल की उम्र” वर्ग की हिस्सेदारी 48 फ़ीसदी रही, जबकि देश की कुल श्रमशक्ति में इनकी हिस्सेदारी सिर्फ़ 23 फ़ीसदी है। 40 साल से ज़्यादा उम्र के कामग़ारों और कर्मचारियों ने इसी अवधि में 72 लाख नौकरियां हासिल कीं।

कुल रोज़गार में 21 फ़ीसदी वैतनिक कर्मचारी हैं, लेकिन पिछले साल इस समूह में 71 फ़ीसदी नौकरियां चली गईं। इसी तरह उच्च शिक्षा प्राप्त कर्मचारी (ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट) कुल रोज़गार का केवल 13 फ़ीसदी हिस्सा हैं, लेकिन इस समूह में 65 फ़ीसदी लोगों की नौकरियां चली गईं। CMIE का अनुमान है कि इन उच्च शिक्षित लोगों में से 95 लाख की नौकरियां चली गईं।

नौकरियों की अनिश्चित्ता वाली स्थिति

इसके बाद बचता क्या है? भारत में कृषि और दूसरे क्षेत्रों की बड़ी अनौपचारिक श्रमशक्ति खुद को बचाए रखने में कामयाब रही। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था। उनके पास कोई बचत नहीं थी, ना ही सुरक्षा का कोई आवरण था। किसी भी स्थिति में कम पैसे पर रहने के अलावा उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था। यह लोग लॉकडाउन में सबसे ज़्यादा परेशान हुए, क्योंकि सरकार ने किसी भी तरह की आर्थिक मदद देने से हाथ खड़े कर दिए थे। और उनका काम अचानक लॉकडाउन की घोषणा के बाद ठप पड़ गया। लेकिन उनकी बेहद अनिश्चित स्थिति के बावजूद उन्हें काम ढूंढने के लिए मजबूर होना पड़ा। भले ही इससे उन्हें किसी भी मात्रा में पैसा मिले। इनमें से कई लोग कृषि कार्यों में लग गए, पहले खरीफ़ की फसल के दौरान और उसके बाद रबी की फसल में इन्होंने हाथ बंटाया।

जैसा CMIE बताता है, इसका मतलब यह हुआ कि भारत की श्रमशक्ति की मूल प्रवृत्ति में बदलाव आया है। यह बदलाव कई मायनों में बुरा साबित हुआ है। रोज़गार के पुराने स्त्रोतों से अब वेतन-भत्ता कम मिल रहा है और यह पहले से कहीं ज़्यादा अनिश्चित हो चुका है। युवा लोगों और महिलाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं, अब पहले से कहीं ज़्यादा आय में अनिश्चित्ता आई है।

बदतर हालात आना अभी बाकी

क्या यह सब सिर्फ़ महामारी की वजह से है? सभी संकेत इस कड़वी सच्चाई की तरफ इशारा करते हैं कि एक सिकुड़ती अर्थव्यवस्था में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पैसे खर्च करने से जो बिना तर्क और खुल्ला इंकार किया गया है, जबकि इस खर्च से आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ती और अर्थव्यवस्था में विस्तार होता, वह खर्च का इंकार इन भयावह घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है। कुप्रबंधित लॉकडाउन ने इसमें और योगदान ही दिया है। कॉरपोरेट को करों में कटौती और दूसरी सुविधाएं देने की सरकार की प्रवृत्ति ने भी इसे तेज किया है।

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बुरी बात यह है कि सरकार इससे कोई सीख लेने और खुद में बदलाव लाने के बजाए, देश की बिखरती अर्थव्यवस्था में इस ज़हर की मात्रा और तेज कर रही है। सार्वजनिक क्षेत्रों के लगातार निजीकरण, कठोर कृषि कानूनों को वापस ना लेने का सरकार का अड़ियल रवैया इसी मूर्खता का उदाहरण हैं। इन सभी चीजों से एक दिशा में इशारा होता है कि अभी भारत के लोगों के लिए और भी ज़्यादा दुख आना बाकी है। बशर्ते सरकार को अपने क्रियाकलापों में बदलाव लाने के लिए मजबूर ना कर दिया जाए, इस देश के साहसी किसान यही करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

India Faces Grim Jobs Crisis: 1.7 crore Jobs Lost in Past Year

unemployment
Job Losses
CMIE
Lockdown Impact
Economic Downturn
Women’s Employment

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

ज्ञानव्यापी- क़ुतुब में उलझा भारत कब राह पर आएगा ?

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी


बाकी खबरें

  • putin
    एपी
    रूस-यूक्रेन युद्ध; अहम घटनाक्रम: रूसी परमाणु बलों को ‘हाई अलर्ट’ पर रहने का आदेश 
    28 Feb 2022
    एक तरफ पुतिन ने रूसी परमाणु बलों को ‘हाई अलर्ट’ पर रहने का आदेश दिया है, तो वहीं यूक्रेन में युद्ध से अभी तक 352 लोगों की मौत हो चुकी है।
  • mayawati
    सुबोध वर्मा
    यूपी चुनाव: दलितों पर बढ़ते अत्याचार और आर्थिक संकट ने सामान्य दलित समीकरणों को फिर से बदल दिया है
    28 Feb 2022
    एसपी-आरएलडी-एसबीएसपी गठबंधन के प्रति बढ़ते दलितों के समर्थन के कारण भाजपा और बसपा दोनों के लिए समुदाय का समर्थन कम हो सकता है।
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 8,013 नए मामले, 119 मरीज़ों की मौत
    28 Feb 2022
    देश में एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 1 लाख 2 हज़ार 601 हो गयी है।
  • Itihas Ke Panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    रॉयल इंडियन नेवल म्युटिनी: आज़ादी की आखिरी जंग
    28 Feb 2022
    19 फरवरी 1946 में हुई रॉयल इंडियन नेवल म्युटिनी को ज़्यादातर लोग भूल ही चुके हैं. 'इतिहास के पन्ने मेरी नज़र से' के इस अंग में इसी खास म्युटिनी को ले कर नीलांजन चर्चा करते हैं प्रमोद कपूर से.
  • bhasha singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    मणिपुर में भाजपा AFSPA हटाने से मुकरी, धनबल-प्रचार पर भरोसा
    27 Feb 2022
    मणिपुर की राजधानी इंफाल में ग्राउंड रिपोर्ट करने पहुंचीं वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह। ज़मीनी मुद्दों पर संघर्षशील एक्टीविस्ट और मतदाताओं से बात करके जाना चुनावी समर में परदे के पीछे चल रहे सियासी खेल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License