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भारत
राजनीति
घर वापसी से नरसंहार तक भारत का सफ़र
भारत में अब मुस्लिम विरोधी उन्माद चरम पर है। 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से इसमें लगातार वृद्धि हुई है।
पार्थ एस घोष
24 Jan 2022
Translated by महेश कुमार
genocide
Image Courtesy: Aljazeera

कुछ दिन पहले तक बहुत से भारतीय ग्रेगरी स्टैंटन के बारे में नहीं जानते थे। एक अमेरिकी प्रोफेसर जो नरसंहार के अध्ययन का माहिर हैं, स्टैंटन ने 1994 में हुए रवांडा नरसंहार की पांच साल पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी और जिसमें करीब 800,000 अल्पसंख्यक तुत्सी, बहुसंख्यक हुतु मिलिशिया के हाथों मारे गए थे। आज, कई शिक्षित भारतीय भारत के संबंध में स्टैंटन के निराशाजनक पूर्वानुमान पर चर्चा कर रहे हैं, और कहे रहे हैं कि जहां तक मुस्लिम अल्पसंख्यकों का संबंध है, वह भी रवांडा जैसे नरसनहार की ओर बढ़ रहा है। अमेरिकी होने के नाते, स्टैंटन खतरे को नियंत्रित करने के लिए अपनी सरकार से भारत पर राजनयिक दबाव डालने के लिए कह रहे हैं कि कहीं बहुत देर न हो जाए। 

सवाल यह नहीं है कि स्टैंटन कुछ बढ़ा-चढ़ा कर कर रहे हैं, या क्या रवांडा की स्थिति का भारत के साथ तुलना करना उसे बहुत अधिक तूल देना है। भारत रवांडा से 110 गुना अधिक आबादी वाला देश है। भारत का 14 प्रतिशत मुस्लिम अल्पसंख्यक खुद रवांडा की पूरी आबादी से बड़ा है: जो 12.5 मिलियन के मुक़ाबले 200 मिलियन है। सवाल बल्कि हमें यह पूछना चाहिए कि क्या यह शर्मनाक नहीं है कि एक ऐसा देश जो कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है, और जो खुद को विश्वगुरु बनाने के लिए मशाल लिए घूमता है, उसने अपने आचरण के माध्यम से खुद को कटघरे में खड़ा कर दिया है। हिन्दुस्तानी हुकूमत तमाम तरह के झूठों का इस्तेमाल करके खुद को बरी करने की कोशिश कर सकता है। यह अपने अंध-भक्तों को भी चकमा देने में भी सफल हो सकता है, लेकिन विश्व समुदाय से कुछ भी छिपा नहीं है, जिसके सामने भारत दिन-प्रति-दिन हंसी का पात्र बनता जा रहा है।

भारत में अब मुस्लिम विरोधी उन्माद चरम पर है। 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से इसमें लगातार वृद्धि हुई है, जैसा कि मैंने पहले भी अपने मासिक कॉलम में इस वेबसाइट पर लिखा है। लेकिन 17-19 दिसंबर 2021 को हरिद्वार (उत्तराखंड) में जो हुआ, वह बेशर्मी के मामले में अभूतपूर्व था। कट्टर हिंदू मण्डली के बीच, लाखों मुसलमानों को मारने और मुस्लिम-मुक्त हिंदू भारत बनाने के लिए, पुराने जमाने की तलवारें नहीं, बल्कि सबसे नए हथियारों को उठाने का एक खुला आह्वान किया गया था। इस मण्डली को धर्म संसद कहा जा रहा है,  जो अपने आप में एक विडंबना है। यह बात तुरंत सामने आती है कि सबसे प्रसिद्ध विश्व धर्म संसद 1893 में शिकागो में आयोजित की गई थी, जहां हिंदू भिक्षु, स्वामी विवेकानंद ने वह भाषण दिया था, जो यकीनन उनका सबसे प्रसिद्ध भाषण था।

संसद को संबोधित करते हुए, स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म की महिमा पर चर्चा नहीं की थी। इसके बजाय, उन्होंने समझाया कि इस संसद का सार सभी धर्मों के प्रति एकसमान सम्मान दिखाना है। शास्त्रों का हवाला देते हुए, उन्होंने अपने श्रोताओं की कल्पनाओं को आवाज़ देते  कहा कि: 'जिस तरह विभिन्न धाराओं के स्रोत अलग-अलग स्थानों से होते हुए समुद्र में मिल जाते हैं, ए खुदा ऐसे ही मनुष्य भी अलग-अलग रास्ते से होते हुए अपनी अलग-अलग प्रवृत्तियों के माध्यम से, फिर भले ही वे अलग दिखाई देते हैं, टेढ़े या सीधे हों, सब तेरी शरण में चले जाते हैं!'

विवेकानंद की उस समावेशी दृष्टि के विपरीत, हिंदू महानता पर दिए उद्घोषों ने उनकी सोच को उल्टा कर दिया। एक कट्टर समूह द्वारा की गई बकवास को कटु या हिंसक आलोचना के रूप में नजरअंदाज करने का लुत्फ नहीं उठाया जा सकता है, वह इसलिए क्योंकि इस सभा में जाने-माने बीजेपी/आरएसएस चेहरों की मौजूदगी थी और जिससे पता चलता है कि मण्डली में जो कहा गया, वह उससे कहीं अधिक था। उत्तराखंड पुलिस ने एक प्राथमिकी दर्ज करने और मण्डली के कुछ नेताओं को हिरासत में लेने में जितना समय लगया, वह राज्य की मिलीभगत का एक और संकेत था।

इस पूरे प्रकरण में मोदी और उनकी सरकार की रहस्यपूर्ण चुप्पी ने अपनी ही कहानी कह दी। बेशक, कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है और आम तौर पर किसी राष्ट्रीय नेता या केंद्र सरकार से टिप्पणी की जरूरत नहीं होनी चाहिए। लेकिन हरिद्वार में जो हुआ वह असाधारण था। इसने भारतीय संविधानवाद के प्रमुख बुनियादी सिद्धांतों पर प्रहार किया था। इसलिए यह एक ऐसा पल था जिसमें एक राष्ट्रीय नेता को कदम बढ़ाने और पहल करने की जरूरत थी। आखिर मोदी हिंदू हृदय सम्राट हैं। उनका एक छोटा सा बयान इस किस्म की बकवास को तुरंत खारिज कर देता और भारतीय संविधान की गरीमा को बचाय जा सकता। 

चूंकि भारतीय प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पहले से ही विवादों से घिरे हुए हैं, इसलिए उनकी बातों पर जोर देने का कोई मतलब नहीं है। मैं इसके बजाय किसी और चीज का उल्लेख करना चाहूंगा। लेकिन इससे पहले मैं यह बता दूं कि भारत की लोकतांत्रिक साख, जो कभी तीसरी दुनिया का ताज थी, पिछले कुछ समय से कमज़ोर हो गई है। संसद में महत्वपूर्ण विधेयकों पर पर्याप्त चर्चा के बिना उन्हे ऐसे ही पारित किया जा रहा है, भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से अब पूरी तरह से राजसत्ता के अधीन हैं, पर्याप्त न्यायिक सुरक्षा उपायों के बिना देशद्रोह कानूनों के तहत अभूतपूर्व संख्या में लोगों पर मुक़दमे दर्ज़ किए जा रहे हैं, आयकर, प्रवर्तन निदेशालय, और सीबीआई के छापे आम हो गए हैं, और यह सूची और आगे बढ़ती जा रही है। इस किस्म की परेशान करने वाली मुस्लिम-विरोधी नफ़रत फैलाना एक दलदल है - एक महत्वपूर्ण दलदल, जो केवल दलदल ही है।

उग्र हिंदू फ्रिंज, जो विशेष रूप से मुस्लिम विरोधी और सामान्य रूप से अल्पसंख्यक विरोधी है, को यह महसूस करने की जरूरत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से भारतीय प्रवासियों की विदेशी मुद्रा आय पर निर्भर है, जो संयुक्त अरब अमीरात, कतर, ओमान और कुवैत जैसे मुस्लिम-बहुल देशों और ईसाई बहुल देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीयन यूनियन में लाभकारी रूप से कार्यरत हैं। आइए हम उनके संबंधित बहुमत की तुनुकमिज़ाजी को ज़मानत के रूप में न लें।

हाल ही में, हिंदुओं और बौद्धों के बीच भी एक भेद पैदा करने वाली, हिंदू दक्षिणपंथियों में पैदा हुई एक नई प्रवृत्ति पर ध्यान देने की जरूरत है। सम्राट अशोक (सी॰ 268-सी॰ 232 ईसा पूर्व), जो धम्म (बौद्ध धर्म) की पवित्रता के प्रचार के लिए जाने जाते हैं और जिनकी भारतीय इतिहास में भूमिका अशोक चक्र के माध्यम से स्वीकार की जाती है, जो भारत के ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक दोनों पर अंकित है, उसे क्रूर और हिंदू विरोधी के रूप में चित्रित किया जा रहा है। उनके साम्राज्य के विस्तार का श्रेय उनके द्वारा हिंदू बहुसंख्यकों के नरसंहार को बताया जाता है। अगर यह खतरनाक पौधा पेड़ बन जाता है, तो जापान, म्यांमार और श्रीलंका के साथ लंबे समय तक चलने वाले तनाव के दौर से इंकार नहीं किया जा सकता है।

हाल ही में एक घटना हुई है, जो हरिद्वार गाथा के मामले में एक दिलचस्प उप-पाठ प्रस्तुत करता है। पुलिस हिरासत में जो मुख्य आरोपी हैं उनमें एक सैयद वसीम रिज़वी हैं जिन्हे घर वापसी का साथी माना जा रहा है। हाल ही में हिंदू धर्म में परिवर्तित होने के बाद, उन्होंने जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी नाम अपना लिया, वे अपने धर्मांतरण से पहले उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। त्यागी/रिज़वी ने हाल ही में 6 दिसंबर 2021 को हुई हरिद्वार हिंदू संसद से सिर्फ 13 दिन पहले धर्म परिवर्तन किया था। धर्म परिवर्तन यती नरसिंहानंद गिरि महाराज की उपस्थिति में हुआ, जिन्हें त्यागी/रिज़वी के साथ उनके मुस्लिम विरोधी बयानों में कटुता के लिए गिरफ्तार किया गया है। 

दिलचस्प बात यह है कि सबसे पहले त्यागी/रिजवी को गिरफ्तार किया गया और इसे पुलिस और मीडिया ने बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था। और फिर भी, यति नरसिंहानंद के अलावा किसी भी हिंदू घर वापसी गिरोह के प्रति विरोध का एक शब्द भी नहीं कहा गया था। क्या त्यागी/रिज़वी उनके लिए वह दुर्लभ और कीमती पकड़ नहीं है, जो एक मुसलमान होकर 'पुन’ परिवर्तित' हो गया और अपने मूल हिंदू धर्म में लौट आया है? शायद, नटखट अंदाज़ में ही सही, घर वापसी पर रोना रोने के बावजूद, यह संभव है कि यह वापसी सवर्ण हिंदुओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई हो - क्या वे एक पूर्ववर्ती मुस्लिम को अपनी उच्च जाति के हिंदू पाले में स्वीकार कर सकते हैं? आखिरकार, त्यागी एक गर्वित और शक्तिशाली उच्च जाति हैं जो इस तरह के पर्दे के पीछे से प्रवेश की सराहना नहीं कर सकते हैं। भारत में पानी दिन पर दिन गहरा होता जाता है।

अनुलेख/पुनश्च: स्वतंत्रता से पहले, पंडित जवाहरलाल नेहरू अंग्रेजों की खुली अवहेलना करते वक़्त, भारत माता की जय के नारे के साथ दर्शकों के बीच अपने भाषणों को विराम देते थे। इंदिरा गांधी भी नियमित रूप से अपने भाषणों को इसी तरह समाप्त करती थीं। इन दिनों भाजपा/आरएसएस ने इस नारे को बेतुके तरीके से इस्तेमाल किया है। अब इस किस्म रिपोर्टें आम हैं कि कैसे मुसलमानों को भारत माता की जय बोलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इस प्रथा का देशभक्ति से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन यह मुसलमानों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का एक तरीका बन गया है।

2019 के आम चुनावों में अपनी जीत के बाद, नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अहमदाबाद में एक विजय रैली को संबोधित किया था। उन्होंने इकट्ठी हुई भीड़ को भारत माता की जय का नारा लगाने का आदेश दिया, और अपने श्रोताओं को इतनी तेज आवाज़ में बोलने का आह्वान किया ताकि आवाज़ पश्चिम बंगाल को बहुत दूर तक हिला दे। भाजपा ने उस राज्य में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और दो साल बाद विधानसभा चुनावों में फिर से प्रदर्शन की उम्मीद कर रही थी। धार्मिक-राजनीतिक खेल-कूद के इस रंगमंच में पीछे नहीं रहने के मामले में, पश्चिम बंगाल की नेता ममता बनर्जी ने मोदी और शाह को समान रूप से जोर की आवाज़ में जवाब दिया: जय हिंद, जय बांग्ला, वह उन्होने अपने विशिष्ट बंगाली लहजे में कहा। उनकी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भाजपा को बुरी तरह हरा दिया, और यह एक और अन्य दिन की कहानी बन गई। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे गए लिंक पर क्लिक करें।

India’s Journey from Ghar Wapsi to Genocide

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