NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
नज़रिया
भारत
राजनीति
भारत में लोकतंत्र व संविधान का भविष्य CAA विरोधी आंदोलन की सफलता पर निर्भर
जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में आई है वह हमारे लोकतंत्र व संविधान को कमजोर करने में लगी हुई है। इस सरकार का रवैया पूरी तरह से तानाशाही है।
संदीप पाण्डेय
09 Feb 2020
CAA Protest
फाइल फोटो

केन्द्र और उत्तर प्रदेश की सरकार ने जिस प्रकार से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की प्रकिया के विरोध में हुए आंदोलन का दमन किया व आम जनता के साथ अत्याचार किया और उसके माध्यम से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की, आम मुस्लिम महिलाएं अपने बच्चों के साथ सड़क पर निकल आईं और शांतिपूर्ण धरनों पर बैठने के लिए बाध्य हुईं। इसलिए शहीन बाग़ के शुरू हुए इस आंदोलन और उसकी प्रेरणा से दिल्ली में करीब दो दर्जन जगहों पर, कोलकाता, अहमदाबाद, इलाहाबाद, लखनऊ, कानपुर, आदि देश में अन्य सैकड़ों जगहों पर जो महिलाओं के धरने लगातार चल रहे हैं उसके लिए नरेन्द्र मोदी, अमित शाह व योगी आदित्यनाथ खुद जिम्मेदार हैं।

योगी आदित्यनाथ ने हाल में सम्पन्न दिल्ली चुनाव की सभाओं में कहा कि उन्हें शहीन बाग़ में चल रहे धरने के कारण अपनी सभाओं में पहुंचने में देरी हुई। क्या योगी कबूल कर रहे हैं कि दिल्ली की हरेक सड़क अब शहीन बाग़ होकर ही गुजरती है?

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में आई है वह हमारे लोकतंत्र व संविधान को कमजोर करने में लगी हुई है। इस सरकार का रवैया पूरी तरह से तानाशाही है और यह कोई फैसला लेने के पहले अपने सांसदों के बीच भी बहस नहीं कराती और संसद में पूर्ण बहुमत का फायदा उठाते हुए मनमाने फैसले देश की जनता के ऊपर थोप देती है।

इसलिए ऐसी विचित्र परिस्थिति उत्पन्न हुई है कि कानून बनने के बाद भाजपा नेताओं को जनता को समझाने के लिए जाना पड़ रहा है। किंतु जब सरकार ने लोगों की नागरिकता पर ही सवाल खड़ा किया तो लोगों को अपने अस्तित्व की लड़ाई हेतु सड़क पर आना पड़ा। खासकर मुस्लिम महिलाओं को लगा कि अपनी नागरिकता सिद्ध न कर पाने की स्थिति में जेलनुमा डिटेंशन केन्द्र में जाने से तो अच्छा है कि सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ी जाए।

खतरा सबसे ज्यादा मुसलमानों पर है किंतु असम में यह भी देखा गया कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की प्रकिया से छूटे 19 लाख लोगों में 14 लाख हिंदू हैं तो इससे सभी को खतरा है, खासकर उन सभी के लिए जिनके पास अपने बाप-दादा की सम्पत्ति के कोई दस्तावेज नहीं होंगे। यदि कोई हिंदू इस राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर रह जाता है तो वह कैसे साबित कर पाएगा कि वह बंग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान से आया था? फर्जी दस्तावेज बनाने की एक होड़ लगेगी और भ्रष्टाचार के नए अवसर पैदा हो जाएंगे जिसका फायदा उठाएंगे दलाल, अधिकारी-कर्मचारी व नेता और पिसेगी जनता।

ऐसा प्रतीत होता है कि बिना सोचे समझे सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने की दृष्टि से यह कानून बना दिया गया है। देखा जाए तो जिनको पाकिस्तान से भारत आना था वे ज्यादातर लोग आ चुके हैं और जिन्हें यहां से पाकिस्तान जाना था वे भी जा चुके हैं। अब जो मुस्लिम हिंदुस्तान में रह रहे हैं और जो हिंदू व सिक्ख पाकिस्तान या बंग्लादेश में रह रहे हैं वे अपनी मर्जी से रह रहे हैं।

वैसे भी यह कितनी अजीब बात है कि भारत की सरकार अपने देशवासियों की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रही है, देश में लोग अभी भी भूख से मर रहे हैं और तमाम सरकारी दावों के बावजूद शौचालय की बात तो दूर रहने के लिए घर तक नहीं है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और हमारी सरकार बंग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम नागरिकों की जिम्मेदारी भी लेना चाहती है।

बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में अपनी रोजी रोटी के लिए आए लोगों के लिए सबसे सरल उपाय था कि उनको इस देश में बिना नागरिकता दिए काम करने का अधिकार दे दिया जाता जैसा कि बहुत सारे देशों में प्रावधान है। बंग्लादेश की राष्ट्रपति शेख हसीना ने ठीक ही कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की कोई जरूरत ही नहीं थी।

खुशी की बात है कि नागरिक अब भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देश को बांटने के प्रयासों के खिलाफ एक हो गए हैं। हरेक धरने पर नारे लग रहे हैं 'हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई’’ और पूरा माहौल आजादी के आंदोलन जैसा हो गया है। आजादी के आंदोलन के बड़े नेताओं की तस्वीरें हरेक धरने पर लगी हैं। दिल्ली में खुरेजी में रोहित वेमुला की भी तस्वीर लगी है जिसकी बलि वर्तमान सरकार के फासीवादी तरीकों ने ले ली। कुछ समझदार महिलाओं ने, जैसे दिल्ली के चांदबाग में, फातिमा शेख व सावित्री बाई फूले की तस्वीरें लगाई हैं जिन्होंने भारत में पहली बार लड़कियों व दलितों की शिक्षा के लिए काम किया।

आमतौर पर इस्लामिक संगठनों जैसे जमात-ए-इस्लामी में महिलाओं को बैठकों में पर्दे के पीछे रखा जाता है और मंच पर तो वे कदापि दिखाई नहीं देतीं। किंतु किसी ने शायद यह उम्मीद भी नहीं की होगी कि हिंदुस्तान में इतनी जल्दी यह दिन आ जाएगा जब सभा में जहां तक नजर जाए सिर्फ मुस्लिम औरतें ही दिखाई देती हैं और मंच पर भी वही हैं।

मंच का संचालन भी मुस्लिम नवयुवतियां कर रही हैं और आदमी किनारे खड़े हैं या सहयोगी भूमिका निभा रहे हैं। जो महिलाएं इन धरनों में शामिल हो रही हैं वे राजनीतिक सभाओं की तरह सिर्फ भीड़ बढ़ाने नहीं आई हैं। वे बकायदा आज़ादी के नारे लगा रही हैं इसके बावजूद कि योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जो आजादी के नारे लगाएगा उसके खिलाफ देश-द्रोह का मुकदमा दर्ज होगा

कुछ लोग इस बात से परेशान हैं कि धरनों पर सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही क्यों दिखाई पड़ रही हैं। इसमें शेष समुदायों की महिलाएं क्यों नहीं आ रहीं? 26 जनवरी, 2020 को वाशिंगटन डी.सी. में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिकता संशोधन अधिनियम व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सना कुतुबुद्दीन ने कहा कि जैसे अमरीका में नागरिक अधिकारों की लड़ाई मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में काले लोगों को लड़नी पड़ी थी उसी तरह आज भारत में लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई भारतीय मुसलमान को लड़नी पड़ेगी।

आमतौर पर यह माना जाता है कि इस्लाम आक्रामक धर्म है और हिंदू मानते हैं कि उनका धर्म तो सारी दुनिया को शांति का संदेश देता है। किंतु जिस तरह से दिल्ली में हिंदुत्व की विचारधारा के प्रभाव में कुछ नवजवानों ने हाथ में बंदूकें लहराते हुए गोली चलाई तो हिन्दुत्व की छवि आक्रमक और मुस्लिम महिलाओं की छवि गांधी के रास्ते चलने वाली अहिंसक आंदोलनकारी व शांति के दूत की बनी है। कहना न होगा कि आज हिंदू धर्म को सबसे बड़ा खतरा शायद हिंदुत्व की राजनीति से ही खड़ा हो गया है।

(संदीप पाण्डेय प्रख्यात समाजसेवी और सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Constitution of India
democracy
save constitution
Save Democracy
CAA
NRC
Protest against CAA
Narendra modi
Amit Shah
BJP
Communalism
Secularism
Yogi Adityanath
Assam NRC
hindu-muslim
Constitutional right
Religion Politics

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License