NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत बहुसंख्यकवाद राजनीति की चपेट में
भारत मे कई प्रकार के अल्पसंख्यक हैं जैसे धार्मिक, जातिगत, वर्णात्मक, वैचारिक एवं रंग के अनुसार, फिर भी भारत का संविधान उनको समानता का अधिकार देता है, लेकिन आज भारत की इसी सुंदरता पर हमला है।
अकरम क़ादरी
02 Sep 2020
India in the grip of majoritarian politics

वैश्विक स्तर पर इस समय अधिकतर देश बहुसंख्यकवाद की राजनीति से ग्रस्त हैं। बहुसंख्यकवाद की राजनीति को समझने के लिए सबसे पहले 'बहुसंख्यकवाद' क्या है इसको समझना आवश्यक है। इसके तहत किसी भी देश या समाज का एक ऐसा बड़ा यानी बहुसंख्यक तबक़ा जो धर्मगत, जातिगत, वर्ग, वर्ण, रंग या फिर विचारधारा के स्तर पर सामान हो और यदि देश की सत्ता उसके ही हाथ में हो और इसके बावजूद देश के दूसरे तबक़े जो अल्पसंख्या में हैं उनको लेकर इस तबक़े की मानसिकता ऐसी हो कि ये लोग हमारे संप्रदाय व राष्ट्र के विरोधी हैं तो वैश्विक फ़लक पर इसी भाव को बहुसंख्यकवाद की राजनीति कहते हैं। सियासत में इनमें से किसी भी समानता को साथ लेकर चलते हुए राजनीति करने को बहुसंख्यकवाद की राजनीति कहना अनुचित नही होगा ।

अगर इस राजनीति के प्रादुर्भाव (शुरुआत) पर नज़र डालें तो हम देखते हैं कि यह राजनीति नेहरू के बाद शुरू हुई है जब लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री रहते हुए कई धार्मिक कार्यक्रमों में अपनी मौजूदगी दिखाई लेकिन उस समय इस पर ज़्यादा चर्चा नहीं हुई लेकिन नेहरू ने जब देश को सेक्युलर देश के रूप में संविधान के अनुसार पाया तो उन्होंने किसी भी धार्मिक प्रकार के अनुष्ठान में जाने से मना कर दिया क्योंकि वो इस देश को धर्मवाद से बचाना चाहते थे और धर्म एवं धार्मिक अनुष्ठान को निजी और व्यक्तिगत रखना चाहते थे जिसकी कानून भी इजाज़त देता है।

इसी कड़ी में कुछ वर्षों बाद तथाकथित सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन ने देश मे अंदरूनी तौर पर यह कार्य किया और जनता को इस रूख़ पर मोड़ने का प्रयास किया लेकिन कहीं पर तो वो कामयाब हुए तो कहीं पर उनको कामयाबी नहीं मिली। 

देश मे इसकी अप्रत्यक्ष शुरुआत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई जब राजीव गांधी ने कहा कि अगर कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती में हलचल तो होती ही है। इसके द्वारा उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या के परिणामस्वरूप जो दिल्ली या उसके आसपास सिख विरोधी दंगे हुए एवं उससे उत्पन्न हुए आपसी तनाव को इशारों में उचित ठहरा दिया जिससे बहुसंख्यक लोगों में यह सन्देश गया कि जो उन्होंने किया है वो सही है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वो बहुसंख्यक लोगो को एकसाथ करके राजनीति करना चाहते थे ताकि उनका वोट बैंक बना रहे।

इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए 1989 के चुनाव की शुरुआत भी राजीव गांधी ने अयोध्या से की जहां से देश की जनता में यह सन्देश गया कि राजीव गांधी बहुसंख्यकवाद की राजनीति को आगे बढ़ा रहे है

लेकिन इससे पहले 1960 के दशक के जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी का निर्माण अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जी ने 80 के दशक में ही कर लिया था और उन्होंने अपनी पितृसंस्था आरएसएस के अनुसार निखालिस बहुसंख्यकवाद की राजनीति को फ़रोग़ दिया। इसी कड़ी में आडवाणी जी ने 1990 में पूरे देश मे रथयात्रा का बिगुल फूंक दिया जिसमें उन्हें कामयाबी भी मिली क्योंकि देश अंदरूनी तौर पर कांग्रेस के सौजन्य से और कुछ संगठनों के द्वारा उस तरफ मुड़ चुका था। साथ ही आडवाणी जी ने इसको वक़्त की नज़ाकत समझते हुए मुद्दा भुनाना प्रारम्भ भी कर दिया जिसके बाद से भारतीय राजनीति कुछ उठा पटक चलती रही।

कांग्रेस टूटती रही, बनती रही, लेकिन इसी बीच दूसरे मोर्चे बनते रहे जो संविधान और लोकतंत्र को मज़बूत करना चाहते थे। लेकिन स्थितियों से बदलती तस्वीर को कुछ अलग ही मंजूर था। भाजपा का एक सॉफ्ट चेहरा दूसरे कट्टर चेहरे के माध्यम से राजनीति को मैनेज करने का प्रयास करता रहा जिसके समर्थन से सरकार भी बनी लेकिन कुछ समय बाद कांग्रेस ने अच्छी वापसी की और दूसरे कार्यकाल में उसको कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भृष्टाचार, बेरोज़गारी एवं घोटाले जैसे मुद्दों पर घेर लिया लेकिन तफ्तीश के बाद बहुत जगह यह झूठ पाया गया और जब तक कांग्रेस का खेत भाजपा नाम की चिड़िया चुग चुकी थी। इधर बहुसंख्यकवाद की राजनीति के मुद्दे को लेकर भाजपा दूसरे मुद्दे को साथ लेकर चल रही थी जो मुद्दे इन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाये थे उन्होंने उत्प्रेरक का कार्य किया और भाजपा सरकार भारी बहुमत से सत्ता में आई इस चुनाव को जीतने के लिए उन्होंने हिंदुत्व के चेहरे को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा भी बनाया इससे उनकी जीत आसान हो गयी और यही वो मुद्दें हैं जिन पर वर्तमान सरकार काम कर रही है।

भाजपा के इस क़दम से बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा मिल रहा है आज अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकार है और अन्य राज्यों में भी भाजपा के लोग इसी मुद्दे पर काम कर रहे हैं।

इस बहुसंख्यक राजनीति  जिसकी शुरुआत कांग्रेस ने की थी फ़िलहाल उसका मज़ा वर्तमान सरकार उठा रही है। इस पार्टी के प्रवक्ताओं की मीडिया डिबेट (जिसका मैं समर्थन नहीं करता) और उनकी सोशल मीडिया देखें तो वो केवल बहुसंख्यक को ही तरजीह देते हैं जिसका लाभ भी उनको वोट बैंक निर्मित करने में होता है और चुनाव के वक़्त वोट की सौगात भी हाथ लगती है। 

बहुसंख्यक राजनीति वैश्विक स्तर पर हो रही है और उनको उसका लाभ भी हो रहा है लेकिन भारत में बहुसंख्यकवाद की राजनीति तो हुई साथ ही अल्पसंख्यकों को दरकिनार भी किया गया लेकिन उनके मूल अधिकार छीनने की जुगत अभी तक नहीं हुई थी क्योंकि यह देश वसुधैव कुटुम्बकम का अनुयायी रहा है लेकिन कुछ वर्षों से इस बहुसंख्यकवाद की राजनीति ने देश में घृणा, नफ़रत के बीज ऐसे बोए हैं कि मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा भी एकतरफ़ा ही नज़र आता है साथ ही गम्भीर मामलों की भी सही पड़ताल को नकार कर बहुसंख्यकवाद की राजनीति को परोक्ष और अपरोक्ष रूप से मीडिया डिबेट के माध्यम से आगे बढ़ाता है।

इस सबसे निश्चित ही देश की एकता, अखण्डता और संप्रभुता को आज बहुत बड़ा खतरा है। भारत मे कई प्रकार के अल्पसंख्यक हैं जैसे धार्मिक, जातिगत, वर्णात्मक, वैचारिक एवं रंग के अनुसार, फिर भी भारत का संविधान उनको समानता का अधिकार देता है उनके मानवीय मूल्यों की रक्षा करता है जो कि भारतीय लोकतंत्र की सुंदरता का परिचायक है।

 (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

majoritarianism
BJP
RSS
Congress
Atal Bihari Vajpayee
lk advani
rajeev gaandhi
Indian media

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License