NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अस्पताल न पहुंचने से ज़्यादा अस्पताल पहुंचकर भारत में मरते हैं लोग!
भारत में हॉस्पिटल में घटिया स्वास्थ्य सुविधा मिलने की वजह से हॉस्पिटल में ना पहुंचने के मुकाबले तकरीबन 2 गुना अधिक मौतें होती हैं।
अजय कुमार
20 Feb 2021
अस्पताल न पहुंचने से ज़्यादा अस्पताल पहुंचकर भारत में मरते हैं लोग!
Image courtesy: India Today

आर्थिक सर्वे भारत सरकार की एक सरकारी रिपोर्ट है। हर साल रिपोर्ट सेहतमंद अंग्रेजी में जारी होती है और बीमार हिंदी में। भाषा और विचार पूरी तरह से सरकारी होता है। लेकिन आर्थिक सर्वे के आंकड़े और ऑब्जरवेशन पढ़कर भारत की सामाजिक आर्थिक सच्चाई का भी अंदाजा लगता है। इसी लिहाज से आर्थिक सर्वे खंड 1 में भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ा एक अध्याय है, जिसमें भारत की मौजूदा स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर उकेरने वाले तमाम तरह के आंकड़े और ऑब्जरवेशन हैं। तो चलिए सरकारी भाषा को छोड़कर थोड़े सब पठनीय और आम जुबान के लहजे में उन आंकड़ों और ऑब्जरवेशन से रूबरू होते हैं।

* भारत सरकार का आर्थिक सर्वे कहता है कि इलाज पर किए जाने वाले खर्च के चलते लोगों की कमर टूट जाती है। लोग गरीबी में धंस जाते हैं। भारत में औसतन एक व्यक्ति की जेब से इलाज का 60 फ़ीसदी हिस्सा खर्च होता है। अगर स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत सरकार की तरफ से जीडीपी का 3 फ़ीसदी खर्च किया जाने लगे तो एक व्यक्ति की तरफ से इलाज का 30 फ़ीसदी हिस्सा ही खर्च करना पड़ेगा। यानी लोगों की जेब पर कम भार पड़ेगा। इकोनॉमिक सर्वे की सलाह के बावजूद भी साल 2021-2022 के बजट की हकीकत यह है कि कुल जीडीपी का केवल 0.54 फ़ीसदी बजट के लिए आवंटित किया गया है।

* स्वास्थ्य क्षेत्र में सूचनाओं का असंतुलन है। इसलिए बाजार को नियंत्रित और विनियमित करना बहुत मुश्किल काम है। अपनी विशेषज्ञता की वजह से डॉक्टर किसी भी रोग की ज्यादा जानकारी रखता है। मरीजों के पास कुछ भी जानकारी नहीं होती है। इस तरह से स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉक्टर और मरीज के बीच सूचनाओं की एक असंतुलनकारी दुनिया बनती है।

जहां हमेशा डॉक्टर और अस्पताल इस भूमिका में होता है कि मरीज को अपने हिसाब से नचा सकें। यहीं पर स्वास्थ्य क्षेत्र की सबसे कमजोर कड़ी पनपती है।

कई सारे विशेषज्ञ इसे ही स्वास्थ्य क्षेत्र की दुनिया में होने वाले भ्रष्टाचार का कारण मानते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी मरीज को त्वचा की बीमारी है तो वह बाजार से किसी स्किन क्रीम को लाकर आजमा सकता है। अगर वह ठीक तो अच्छी बात, नहीं तो वह दूसरे स्किन क्रीम से आजमाइश करेगा। इस तरह से स्किन क्रीम से जुड़े उत्पादकों के बीच अपने ग्राहकों को लेकर एक तरह की चिंता रहेगी। लेकिन यही चिंता हर्ट सर्जरी का मरीज डॉक्टरों और अस्पतालों में पैदा नहीं कर सकता। क्योंकि मरीज को हार्ट सर्जरी के बारे में कुछ भी पता नहीं है, वह त्वचा की बीमारी की तरह अंदाजा नहीं लगा सकता कि उसके साथ क्या हुआ? ऐसे में मरीज अस्पताल और डॉक्टर की साख पर ही निर्भर रहता है। ठीक यही हाल मानसिक बीमारी से जुड़ी दुनिया में होता है। और ठीक यहीं पर स्वास्थ्य क्षेत्र की सबसे कमजोर कड़ी ऐसा माहौल बना देती है कि जहां डॉक्टर और अस्पताल का ईमान बहक जाता है और भ्रष्टाचार पनपने लगता है।\ 

* स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रोडक्ट यानी उत्पाद के बारे में भी ग्राहकों की जानकारी शून्य होती है। जब उत्पाद के बारे में खरीदने वाले को कुछ भी जानकारी नहीं होती है तो उत्पादक उत्पाद की क्वालिटी बहुत निम्न स्तर पर ले कर चला जाता है। ब्रांडिंग की वजह से उत्पाद बाजार में बिक तो जाता है, लेकिन इसका असर आम लोगों को सहना पड़ता है। 

* स्वास्थ्य क्षेत्र और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के बावजूद भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के मामले में स्थिति बहुत खराब है। स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के मामले में लोअर और लोअर मिडिल आमदनी वाले 180 देशों के बीच भारत की 145 वीं रैंकिंग है। नेपाल पाकिस्तान और अफ्रीका के कुछ देश ही भारत से इस मामले में पीछे हैं।

* भारत में अस्पतालों तक पहुंच पाने वाले लोगों की दर केवल तीन से चार फ़ीसदी है। यानी जितने लोगों को अस्पताल में भर्ती होना चाहिए, उनमें से केवल तीन से चार फ़ीसदी लोग ही अस्पतालों तक पहुंच पाते हैं. मध्यम आय वाले देश में यह दर 8 से 9 फ़ीसदी है। और विकसित देशों में यह दर 13 से 17 फ़ीसदी है। यानी भारत में जरूरत के मुताबिक अस्पतालों की संख्या बहुत कम है और लोगों की जेब में पैसा इतना कम है कि वह अस्पतालों में भर्ती होने का खर्चा उठा नहीं पाते।

* भारत में 17 फ़ीसदी लोगों की कुल आमदनी का 10 फ़ीसदी से अधिक और तकरीबन 4 फ़ीसदी लोगों की कुल आमदनी का 25 फ़ीसदी से अधिक का हिस्सा उनके स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों पर खर्च होता है। इस संदर्भ में भारत की स्थिति दूसरे देशों के मुकाबले सबसे बुरी है।

* संसद में जब भी सवाल पूछा जाता है कि स्वास्थ्य की इतनी अनदेखी क्यों की जा रही है तो सरकार सवाल टरका देती है। इसकी वजह यह है कि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है। स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्चे में तकरीबन 66 फ़ीसदी खर्चा राज्यों की तरफ से किया जाता है। और जहां तक स्वास्थ्य को बजट में प्राथमिकता देने की बात है तो पूरी दुनिया 189 देशों के बीच भारत का 179वां स्थान है। यानी राज्य सरकारों द्वारा बजट तो पेश किया जाता है लेकिन स्वास्थ्य पर प्राथमिकता नमक के बराबर भी नहीं दी जाती।

* भारत का कोई भी राज्य में अपनी कुल जीडीपी का 3 फ़ीसदी से अधिक स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च नहीं करता है। साल 2017 के आंकड़ों के मुताबिक भारत के अधिकतर राज्य (तकरीबन 10) अपने कुल जीडीपी से 1 फीसदी से कम स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करते हैं।

* विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर दस हजार की आबादी पर तकरीबन 44 स्वास्थ्य कर्मी (डॉक्टर, नर्स और सब मिलाकर) होने चाहिए। लेकिन भारत में यह आंकड़ा महज 23 स्वास्थ्य कर्मी के आस पास पहुंचता है। भारत के तकरीबन 14 राज्य में हर 10 हजार की आबादी में 23 से भी कम स्वास्थ्य कर्मी है। केवल केरल राज्य में हर 10 हजार की आबादी पर 42 डॉक्टर और 65 स्वास्थ्य कर्मी है। नहीं तो भारत का कोई भी ऐसा राज्य नहीं है जहां पर हर 10 हजार की आबादी में तकरीबन 40 स्वास्थ्य कर्मी हों। अधिकतर राज्य में 10 हजार की आबादी पर 10 से कम डॉक्टर हैं। इस मामले में सबसे बुरी स्थिति झारखंड, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की है।

* भारत के 74% मरीज प्राइवेट अस्पताल की ओपीडी में भर्ती होकर इलाज करवाते हैं। 65% मरीज प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती होकर इलाज करवाते हैं। यह संख्या इतनी बड़ी इसलिए है क्योंकि सरकारी अस्पताल बहुत कम है। सरकारी अस्पतालों में लंबी-लंबी लाइने लगती हैं। इलाज का दिन कई महीने के इंतजार के बाद आता है। दिल्ली का एम्स बनारस का सर सुंदरलाल बहुगुणा अस्पताल इसके गवाह हैं।

* देश के 20 फ़ीसदी डॉक्टर ही सरकारी अस्पताल में है। बाकी सारे डॉक्टर सरकारी अस्पताल से बाहर अपनी दुकान लगाकर बैठे हैं।

* जैसा कि पहले ही बताया था कि स्वास्थ्य क्षेत्र में मरीज और डॉक्टर के बीच सूचनाओं का असंतुलन होता है। और यही वह वजह होती है जिसके कारण मरीज का जमकर शोषण भी होता है। इसीलिए प्राइवेट क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाएं सरकारी क्षेत्र से हर बीमारी के मामले में महंगी है। कैंसर का इलाज प्राइवेट क्षेत्र में सरकारी क्षेत्र के मुकाबले तीन गुना महंगा है। हृदय रोग का इलाज 6 गुना महंगा है। चोटों का इलाज तकरीबन 5 गुना महंगा है।

* सरकारी अस्पताल में भर्ती हो कर इलाज करवाने पर औसतन ₹6000 का खर्च आता है लेकिन वहीं पर अगर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती होकर इलाज करवाया जाए तो औसतन ₹34000 का खर्च आता है। जैसे बुखार में कोई सरकारी अस्पताल में भर्ती हो जाए तो तकरीबन ₹3000 में निपटकर चला आएगा। लेकिन अगर प्राइवेट अस्पताल में बुखार के लिए भर्ती होना पड़ा तो आज तक तकरीबन ₹15000 खर्च हो जाते हैं। टीबी का इलाज अगर सरकारी अस्पताल में ₹5000 में हो जा रहा है, तो प्राइवेट अस्पताल में यह खर्चा 50 हजार से ऊपर जा सकता है। इसी तरह तमाम तरह की बीमारियों में सरकारी अस्पताल और प्राइवेट अस्पताल के खर्च में जमीन आसमान का अंतर है।

* और सबसे जरूरी बात जो स्वास्थ्य क्षेत्र के भ्रष्टाचार की पोल खोलता है वह यह है कि भारत में सबसे अधिक मौतें हॉस्पिटल में न पहुंचने की वजह से नहीं होती। बल्कि हॉस्पिटल में पहुंचकर घटिया स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने की वजह से होती हैं। हॉस्पिटल में न पहुंचने की वजह से होने वाली मौतों के मुकाबले भारत में हॉस्पिटल में पहुंचकर घटिया स्वास्थ्य सुविधा मिलने की वजह से तकरीबन 2 गुना अधिक मौत होती हैं। और इस मामले में भारत अपने पड़ोसी मुल्कों से ज्यादा बुरे हाल में है।

health care facilities
health sector in India
Public Health Care
union budget
GDP
government hospitals
Health Budget

Related Stories

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना महामारी अनुभव: प्राइवेट अस्पताल की मुनाफ़ाखोरी पर अंकुश कब?

बिहार में फिर लौटा चमकी बुखार, मुज़फ़्फ़रपुर में अब तक दो बच्चों की मौत

मध्यप्रदेश: सागर से रोज हजारों मरीज इलाज के लिए दूसरे शहर जाने को है मजबूर! 

शर्मनाक : दिव्यांग मरीज़ को एंबुलेंस न मिलने पर ठेले पर पहुंचाया गया अस्पताल, फिर उसी ठेले पर शव घर लाए परिजन

यूपी चुनाव : माताओं-बच्चों के स्वास्थ्य की हर तरह से अनदेखी

यूपी चुनाव: बीमार पड़ा है जालौन ज़िले का स्वास्थ्य विभाग

उत्तराखंड चुनाव 2022 : बदहाल अस्पताल, इलाज के लिए भटकते मरीज़!

महामारी से नहीं ली सीख, दावों के विपरीत स्वास्थ्य बजट में कटौती नज़र आ रही है

बजट 2022-23: कैसा होना चाहिए महामारी के दौर में स्वास्थ्य बजट


बाकी खबरें

  • food
    रश्मि सहगल
    अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?
    18 May 2022
    कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि आज पहले की तरह ही कमोडिटी ट्रेडिंग, बड़े पैमाने पर सट्टेबाज़ी और व्यापार की अनुचित शर्तें ही खाद्य पदार्थों की बढ़ती क़ीमतों के पीछे की वजह हैं।
  • hardik patel
    भाषा
    हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया
    18 May 2022
    उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे गए त्यागपत्र को ट्विटर पर साझा कर यह जानकारी दी कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
  • perarivalan
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया
    18 May 2022
    उम्रकैद की सज़ा काट रहे पेरारिवलन, पिछले 31 सालों से जेल में बंद हैं। कोर्ट के इस आदेश के बाद उनको कभी भी रिहा किया जा सकता है। 
  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना मामलों में 17 फ़ीसदी की वृद्धि
    18 May 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 17 फ़ीसदी मामलों की बढ़ोतरी हुई है | स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में 24 घंटो में कोरोना के 1,829 नए मामले सामने आए हैं|
  • RATION CARD
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    योगी सरकार द्वारा ‘अपात्र लोगों’ को राशन कार्ड वापस करने के आदेश के बाद यूपी के ग्रामीण हिस्से में बढ़ी नाराज़गी
    18 May 2022
    लखनऊ: ऐसा माना जाता है कि हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत के पीछे मुफ्त राशन वित
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License