NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अफ़ग़ानिस्तान को पश्चिमी नजर से देखना बंद करे भारतीय मीडिया: सईद नक़वी
''अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने से पहले अमेरिका की जासूसी संस्था सीआईए प्रमुख ने तालिबान नेता बगदादी से मुलाकात की थी। उनके बीच में आपस में क्या तय हुआ वह हम नहीं जानते। वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान की कमजोर और तालिबान की बर्बर छवि प्रचारित कर यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि बिना अमेरीकी मदद के वहाँ शान्ति सम्भव नहीं है।''- पत्रकार सईद नक़वी
विनीत तिवारी, हरनाम सिंह
04 Sep 2021
सईद नक़वी

''सन 1947 में हम आजाद जरूर हुए लेकिन अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने शुरू से ही हम पर और हमारी विदेश नीति पर यह दबाव बनाए रखा कि कहीं हम सही अर्थों में लोकतांत्रिक और समाजवादी देश न बन जाएँ। नेहरू के युग और बाद की कॉंग्रेस में भी विदेश नीति को स्वतंत्र बनाने की थोड़ी बहुत समझदारी और चाहत मौजूद थी, जो भाजपा सरकार के आने के बाद पूरी तरह साम्राज्यवादी देशों के हितों के सामने गिरवी रख दी गई। यही वजह है कि आज तक न तो हमारा मीडिया स्वतंत्र है और न ही हम अपने पड़ौसी मुल्कों के साथ परस्पर जनहित की नीति अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं।'' विख्यात पत्रकार सईद नक़वी ने जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज दिल्ली द्वारा आयोजित "अफ़ग़ानिस्तान- कल, आज और कल" विषय पर  व्याख्यान देते हुए ये विचार सार रूप में व्यक्त किये।

ये विचार सार रूप में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के बारे में हमें वही समाचार दिखाए जा रहे हैं जो साम्राज्यवाद के स्वामित्व वाली विदेशी समाचार एजेंसियां दिखाना चाहती हैं। भारत का मीडिया सीएनएन, बीबीसी, रायटर, रशियन टीवी आदि विदेशी चैनलों पर निर्भर है। अफ़ग़ानिस्तान हो या पाकिस्तान या बांग्लादेश या नेपाल, हमें इन जगहों की हक़ीक़त तब तक पता नहीं चलेगी, जब तक हम इन देशों की घटनाओं को अमीर देशों के हित साधने वाले स्वार्थी मीडिया की निगाह से देखते रहेंगे। 
 
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने से पहले अमेरिका की जासूसी संस्था सीआईए प्रमुख ने तालिबान नेता बगदादी से मुलाकात की थी। उनके बीच में आपस में क्या तय हुआ वह हम नहीं जानते। वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान की कमजोर और तालिबान की बर्बर छवि प्रचारित कर यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि बिना अमेरीकी मदद के वहाँ शान्ति सम्भव नहीं है।
 
अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में बीस वर्षों तक अपनी फौजें लगाए रखीं और अमेरिका दावा करता है कि उसने वहाँ अरबों डॉलर का निवेश किया। वो निवेश कहाँ है? वहाँ अस्पताल, स्कूल या रोजगार ऐसे ठिकाने कहाँ हैं जिनसे कहा जा सके कि वो निवेश विकास के लिए था। जिस अशरफ गनी की सरकार को अफ़ग़ानिस्तान में बचाए रखने के लिए अमेरिका की देखा-देखी भारत सरकार भी आमादा थी, वो अशरफ गनी अपने देश की जनता को छोड़कर करीब एक सौ सत्तर करोड़ डॉलर लेकर भाग गया।
 
उन्होंने विभिन्न सूत्रों के हवाले से बताया कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की कट्टर इस्लामिक छवि का निर्माण करने की परियोजना 1970 के दशक से ही शुरू हो गई थी। जिसका खुलासा एडवर्ड सईद ने अपनी पुस्तक में किया है। तालिबान को तैयार करने में और कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने में अमेरिका ने पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किया और जो अफ़ग़ान भारत के लिए खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गाँधी) और रवींद्रनाथ ठाकुर के "काबुलीवाला" की तरह भोले-भाले मेहनतकश और सूफी इस्लाम को मानने वाले समझे जाते थे, जो भारत को अपना दूसरा घर मानते थे उन्हें कट्टर तालिबानी बर्बर लोगों की पहचान दे दी गई। आज भी अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिक भारत के प्रति स्नेह एवं सम्मान का भाव रखते हैं लेकिन दुनिया के साम्राज्यवादी देश लोगों के बीच आपस में नफरत पैदा करके ज़हर की फसल बोना चाहते हैं। इस उहापोह की स्थिति में भी बॉलीवुड के सितारे अमिताभ बच्चन हों या कोई और, उनकी फिल्में देखी जाती रहीं। मैंने खुद एक हिंदुस्तानी होने के नाते वहाँ के आम लोगों की मोहब्बत हासिल की जब मैं वहाँ गया था। 
 
सईद नक़वी ने कहा कि साम्राज्यवादी शस्त्र उद्योग को अपना माल खपाने के लिए टारगेट चाहिए, अफ़ग़ानिस्तान का संघर्ष इसी नीति का परिणाम है। आज इसमें एक तरफ अमेरिका, फ्रांस, पाकिस्तान और टर्की अपने मुनाफे की आशा देखकर शामिल हैं, वहीं रूस, चीन, ईरान भी अमेरीकी साम्राज्यवाद को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी जड़ें नहीं जमाने देंगे। तालिबान भले ही कट्टरवादी इस्लाम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत किये जा रहे हैं लेकिन वे हैं तो अफ़ग़ान ही और वे भी इन अंतरराष्ट्रीय सियासी चालों को समझ रहे होंगे। पहले उन्हें जमने दीजिये, सरकार बनाने दीजिये, देखिए कि वे किस तरह पश्तून, हज़ारा, ताज़िक और अन्य समुदायों के लोगों के साथ पेश आते हैं तब उनके बारे में कोई राय कायम करना मुनासिब होगा।
 
अपने खास किस्सागोई के अंदाज़ लेकिन पूरे तथ्यों एवं संदर्भों के साथ सैयद नक़वी ने कहा कि अमेरीकी साम्राज्यवाद की सियासी रणनीति अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की बेहतरी में नहीं है बल्कि इस पूरे इलाके को अस्थिर रखने में है और हमारे देश के हुक्मरान इसमें अपने देश के संदर्भ में हिन्दू-मुसलमान की साम्प्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं।
 
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के मामले में अपनी विदेश नीति की असफलता को छिपाने के लिए वे अलीगढ़ का नाम हरीगढ़ करके और साम्प्रदायिक मुद्दे उठाकर के पहले उत्तर प्रदेश का चुनाव फिर 2024 का चुनाव जीतने की कोशिश में लगेंगे। इस पूरी स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत पूरे क्षेत्र में अकेला पड़ जाएगा क्योंकि चीन अपनी विकास और गरीबी हटाओ परियोजनाओं के जरिये इलाके में अपना असर बढ़ाता जाएगा। अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका विगत बीस वर्षों से जमा हुआ है। उसे क्या मालूम नहीं था कि आतंकवादी खुरासान में जमे हुए हैं। लेकिन उसने कुछ नहीं किया। 
 
वापस भारत की विदेश नीति और अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर आते हुए उन्होंने कहा कि भारत की आज़ादी का विधेयक पहले ब्रिटेन की संसद में पास हुआ था। ज़ाहिर है कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद स्वतंत्रता आंदोलन की वजह से भारत को आज़ाद करने के लिए तो मजबूर हुआ लेकिन वो कभी नहीं चाहता था कि यहाँ पूँजीवाद की व्यवस्था खत्म होकर समाजवाद आ जाये। इसलिए जब पहली बार दुनिया में वोट के जरिये केरल में समाजवादी सरकार आई तो उसे गिराने के लिए सीआईए ने भी केरल की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन प्रायोजित करवाये। इस महामारी के दौरान पूरी तरह खोखली साबित हो चुकी पूँजीवादी व्यवस्था का वर्चस्व बनाये रखने के लिए अमेरीकी साम्राज्यवाद अब देशों के भीतर और देशों के बीच में लड़ाईयाँ जारी रखना चाहता है। इसके दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं लेकिन हमारा मीडिया वही दिखाता है जो उनका मीडिया दिखाना चाहता है। हमारे अपने देश का कोई ब्यूरो न्यूयॉर्क, लंदन छोड़कर, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, यहाँ तक कि नेपाल तक में मौजूद नहीं है जो हमारे देश की नज़र से हमें उन देशों के गाँवों, शहरों में रहने वाले लोगों के हाल-अहवाल बताए। आज हालात यह है कि विदेशी मुल्कों के राजनीतिज्ञों से मिलना तो दूर, हम अपने देश के ही प्रधानमंत्री से ही नहीं मिल सकते।
 
बाद में हुए सवाल-जवाब के सत्र में इप्टा के महासचिव राकेश (लखनऊ), मुशर्रफ अली (उत्तर प्रदेश), जयप्रकाश गूगरी, जसबीर सिंह चावला (इंदौर), प्रो. अर्चिष्मान राजू (बंगलौर) आदि ने सवाल रखे। शुरुआत में जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के निदेशक प्रो. अजय पटनायक (जेएनयू, दिल्ली) ने कहा कि हम सत्तर के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में हुई घटनाओं के बारे में सुनते थे कि अमेरिका वहाँ हस्तक्षेप कर रहा है जबकि सोवियत संघ सहयोग लेकिन बाद के दशकों में साम्राज्यवादी प्रचार ने इस तथ्य को लगभग उलट दिया और अब कहा जाने लगा है कि अमेरिका ने सहयोग किया था और सोवियत संघ ने हस्तक्षेप। 
 
जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट की वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. जया मेहता ने कहा कि सोवियत संघ के विघटन के बाद सईद नक़वी ने फिदेल कास्त्रो का एक लंबा साक्षात्कार लिया था जिसमें फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि सही और गलत का फैसला कामयाबी और नाकामयाबी से नहीं होता। अध्यक्षीय सम्बोधन देते हुए अंत में योजना आयोग के पूर्व सदस्य और जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष एस पी शुक्ला ने कहा कि गाँधी और सीमांत गाँधी ने देशों के बीच परस्पर मानवीय सम्बन्ध बढ़ाने का जो ख्वाब देखा था, उसे सरकार ने पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया। फिर भी इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन और चौहत्तर साल की आज़ादी ने हमें कुछ ऐसे मौके जरूर दिए हैं जहाँ हम इंसानियत के मूल्यों पर फिर से दावा कर सकते हैं और जनांदोलन खड़ा कर सकते हैं। हमें उस विरासत को आगे कैसे ले जाना है इसके बारे में हम जल्द ही सईद नक़वी  जी से उनके विचार सुनेंगे और उन पर अमल करेंगे।

Afghanistan
TALIBAN
America
Indian media

Related Stories

डराये-धमकाये जा रहे मीडिया संगठन, लेकिन पलटकर लड़ने की ज़रूरत

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

लखनऊ में नागरिक प्रदर्शन: रूस युद्ध रोके और नेटो-अमेरिका अपनी दख़लअंदाज़ी बंद करें

‘दिशा-निर्देश 2022’: पत्रकारों की स्वतंत्र आवाज़ को दबाने का नया हथियार!

क्या पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के लिए भारत की संप्रभुता को गिरवी रख दिया गया है?

सीमांत गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष: सभी रूढ़िवादिता को तोड़ती उनकी दिलेरी की याद में 

मृतक को अपमानित करने वालों का गिरोह!

कृषि कानून वापसी पर संसद की मुहर, लेकिन गोदी मीडिया का अनाप-शनाप प्रलाप जारी!

मीडिया का ग़लत गैरपक्षपातपूर्ण रवैया: रनौत और वीर दास को बताया जा रहा है एक जैसा

भारत ने खेला रूसी कार्ड


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License