NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
रेलवे समेत देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूरों का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन
रेलवे के निजीकरण के ख़िलाफ़ लाखों रेलवे मज़दूर–कर्मचारी पूरे देश में पिछले 7 दिनों से आन्दोलन कर रहें हैं। प्रदर्शन में यूपी, राजस्थान, बिहार, दिल्ली, उड़ीसा सहित कई राज्यों के जोन, डिवीजन और उत्पादन इकाइयों, रेलवे स्टेशन, वर्कशॉप इत्यादि के कर्मचारी शामिल हैं।
अनिल अंशुमन
20 Aug 2020
रेलवे समेत देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूरों का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन

सोशल मीडिया में शिद्दत के साथ उठाया जा रहा सवाल कि देश के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के खिलाफ पूरे देश में निरंतर जारी मजदूरों व उनके संगठनों के विरोध को मुख्यधारा की मीडिया ने सिरे से गायब कर रखा है, काफी सही प्रतीत होता है। क्योंकि सोशल मीडिया में प्रायः हर दिन ही सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यरत मजदूर–कर्मचारियों के अपने संस्थानों से लेकर सड़कों के प्रतिवाद की खबर अथवा उसका वीडियो वायरल होता ही रहता है।

लेकिन तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया के नकारात्मक रवैये को देखकर यही प्रतीत होता है मानो उसने अघोषित सेंसर कर रखा हो। सूत्रों के अनुसार यह सब केंद्र की वर्तमान सरकार के ही निर्देशों और तथाकथित गाईड लाइन से अंजाम दिया जा रहा है। ताकि मजदूरों के विरोध की कोई भी आवाज़ व्यापक जनता के बीच किसी भी सूरत में नहीं जा सके।
mazdur protest 03.jpg
मसलन, रेलवे के निजीकरण के खिलाफ लाखों रेलवे मजदूर–कर्मचारी पूरे देश में पिछले 7 दिनों से आन्दोलन कर रहें हैं लेकिन इसकी कोई खबर मीडिया देश के लोगों को पता ही नहीं चलने दे रही है। हालाँकि तब भी आन्दोलन की ख़बरें सोशल मीडिया पर निरंतर वायरल हो रहीं हैं।

उन्हीं ख़बरों के अनुसार 18 अगस्त को झारखण्ड व बिहार समेत देश के कई राज्यों में ‘एंटी प्राइवेटाईजेशन डे’ के तहत ‘सार्वजनिक उपक्रम बचाओ-देश बचाओ’ तथा ‘रेल बचाओ-देश बचाओ’ का सफल प्रतिवाद अभियान चलाया गया।

जिसमें देश के सभी आन्दोलनकारी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों से जुड़े मजदूर–कर्मचारी संगठनों और अन्य यूनियनों के बैनर तले विभिन्न सेक्टरों के हजारों मजदूरों ने मोदी सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को राष्ट्र व जन विरोधी करार देते हुए आक्रोश प्रकट किया।

rail wirodh 8.jpg

18 अगस्त के ‘रेल बचाओ, देश बचाओ’ अभियान के तहत ईस्ट सेन्ट्रल रेलवे इम्प्लाईज़ फेडरेशन तथा कई अन्य रेल मजदूर संगठनों के आह्वान पर ईसीआर के विभिन्न रेल मंडलों में मजदूर–कर्मचारियों ने अपने कार्यस्थलों पर संगठित विरोध किया।

ईसीआर के बिहार स्थित दानापुर मंडल मुख्यालय, सोनपुर मंडल के बेगुसराय, समस्तीपुर मंडल के रक्सौल–दरभंगा जंक्शनों के अलावे मुगलसराय के चंदौली–कर्मनाशा व मिर्ज़ापुर समेत कई अन्य स्टेशनों पर रेल मजदूर–कर्मचारियों नेप्रतिवाद अभियान को सफल बनाया।

जिसकी खबर या तो इक्के दुक्के अखबारों के अन्दर के पन्नों में सिमटी रही अथवा पूरे तौर पर सेंसर कर दी गई। इसी क्रम में देश स्तर पर गठित देश ‘ निजीकरण विरोधी आन्दोलन समिति’ द्वारा चलाये जा रहे हस्ताक्षर अभियान की खबर भी सेंसर ही दिख रही है। क्योंकि इस हस्ताक्षर अभियान को देश के व्यापक और आम लोगों में ले जाकर ये बताया जा रहा है कि इस हस्ताक्षर–पत्र के माध्यम से देश के प्रधान मंत्री के समक्ष 9 सूत्री मांगें पेश कर उन्हें संबोधित कर कहा गया है कि –

माननीय प्रधान मंत्री जी, क्या हम वह आखिरी पीढ़ी बन जायेंगे जिसने सरकारी रेलगाड़ी में सफ़र किया है? क्योंकि हाल ही में आपकी केंद्र सरकार ने भारतीय रेलवे का निजीकरण किये जाने के तहत 109 रेल रूटों पर 151 निजी ट्रेनें चलाने का फैसला लिया है। रेलवे के ऐसे 17 सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्रों में 100 % एफडीआई करने का भी ऐलान किया है जिनमें–तेज़ गति से चलनेवाली ट्रेन परियोजनाएं, उनका रख रखाव, डीजल और बिजली चालित इंजन–कोच और वैगन निर्माण के सभी कारखानों समेत मालवाहक रेल लाइनें और रेलवे स्टेशनों को पूरी तरह से निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जाएगा।

जिसपर अमल की शुरुआत काफी तेज़ी से होने भी लगी है। हजारों रेलवे स्कूल और अस्पतालों को तेज़ी से बंद किया जा रहा है और रेलवे कॉलोनियों और ज़मीनों को भी निजी हाथों में बेचने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।                                                                      

माननीय महोदय, भारतीय रेलवे को इस देश की जीवन रेखा माना जाता है। जिस पर लाखों लोगों की जीविका और आवागमन निर्भर है। साथ ही यह देश का रोज़गार उपलब्ध करानेवाला सबसे बड़ा सार्वजनिक उपक्रम है।

ऐसे में रेलवे को निजी हाथों में सौंप देने से व्यापक आम जनता का सामान्य आवागमन न सिर्फ महंगा और असुविधाजनक हो जाएगा बल्कि लाखों कार्यरत मजदूरों–कर्मचारियों और इसमें रोज़गार पानेवाले बेरोज़गार युवाओं के लिए विनाशकारी क़दम होगा।

निजी ट्रेनों के परिचालन की घोषणा बाद रेलवे ने आनन फानन देश की सभी रेल मंडल प्रबंधकों को पत्र जारी कर लगभग 9 लाख कार्यरत कर्मचारियों की छंटनी का आदेश दिया है। इसके अलावे अबतक जिन महिलाओं, बच्चों–बुजुर्गों और विकलांगों को विशेष रियायत मिलती थी, सब ख़त्म कर दीं जायेंगी।


दुनिया की चौथी इस विशाल संरचना पर निजी कंपनियों को मनमाना मुनाफ़ा कमाने का अधिकार दे देना, पूरी तरह से गैर लोकतान्त्रिक और देश की आम जनता के साथ धोखा है। अतः भारतीय रेलवे के निजीकरण के फैसले को तुरंत वापस लिया जाय।


देखना है कि देश के आम लोग इसपर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। 18 अगस्त के देशव्यापी प्रतिवाद के जरिये रेल ट्रेड यूनियनों और मजदूरों ने जारी बयान में केंद्र सरकार पर खुला आरोप लगाया है कि पिछले 18 अक्टूबर 2019 को उसके द्वारा घोषित 100 डे एक्शन प्लान दरअसल देश के लोगों के लिए एक झांसा था।

दरअसल यह कवायद रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की सुनियोजित शुरुआत था। आज जब देश के सारे लोग कोरोना महामारी आपदा से जूझ रहें हैं और सरकार इसका नाजायज़ फायदा उठाते हुए देश कि जनता और रेलवे कर्मचारियों को धोखा देकर सरकार ने रेलवे को बेचना शुरू कर दिया है।

सीटू झारखण्ड के प्रदेश महासचिव प्रकाश विप्लव तथा एक्टू महासचिव शुभेंदु सेन द्वारा जारी बयान के अनुसार 18 अगस्त को ‘एंटी प्राइवेटाईजेशन डे’ के तहत झारखण्ड के मजदूरों का प्रतिवाद कोयला–इस्पात– बिजली– हेवी इंजीनियरिंग तथा बैंक व बीमा के अलावे भी कई अन्य क्षेत्रों में काफी प्रभावपूर्ण रहा।

ट्रेड यूनियनों ने भी अपने वक्तव्य में कहा है कि उनकी लड़ाई महज किसी सरकार की जन विरोधी नीतियों के ही खिलाफ नहीं है बल्कि देश की संप्रभुता और आज़ाद अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए है। इसलिए हमारी ये लड़ाई अब आर–पार की हो गयी है। इस अवसर पर उन्होंने देश की अन्य मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियनों से भी अपील की है कि वे राष्ट्रहित से जुड़े इन महत्वपूर्ण सवालों पर संवेदनशीलता दीखाएँ और चुप रहकर हो रहे महाअपराध के भागिदार न बनें।

indian railways
Rail workers
modi sarkar
workers protest
trade unions

Related Stories

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

दक्षिण अफ्रीका में सिबन्ये स्टिलवाटर्स की सोने की खदानों में श्रमिक 70 दिनों से अधिक समय से हड़ताल पर हैं 

मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

ट्रेड यूनियनों की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, पंजाब, यूपी, बिहार-झारखंड में प्रचार-प्रसार 

मध्य प्रदेश : आशा ऊषा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन से पहले पुलिस ने किया यूनियन नेताओं को गिरफ़्तार

झारखंड: हेमंत सरकार की वादाख़िलाफ़ी के विरोध में, भूख हड़ताल पर पोषण सखी

अधिकारों की लड़ाई लड़ रही स्कीम वर्कर्स

2021 : जन प्रतिरोध और जीत का साल


बाकी खबरें

  • अनिल जैन
    भाजपा-विरोध की राजनीति पर राहुल गांधी ने गहरी चोट पहुंचाई है
    19 May 2022
    भाजपा के ख़िलाफ़ एक व्यापक और मज़बूत विपक्षी मोर्चा बने, इसके लिए विपक्ष में सबसे बड़ी और अखिल भारतीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस ही नेतृत्वकारी पहल कर सकती है। लेकिन राहुल के बयान से लगता है कि वे ऐसे…
  • भाषा
    भाजपा में शामिल हुए पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़
    19 May 2022
    भाजपा मुख्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में जाखड़ ने केंद्र की सत्ताधारी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु : विकलांग मज़दूरों ने मनरेगा कार्ड वितरण में 'भेदभाव' के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया
    19 May 2022
    विकलांग मज़दूरों को तय 4 घंटों की जगह 8 घंटे तक काम करने पर मजबूर किया जाता है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    डीवाईएफ़आई ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया
    19 May 2022
    कोलकाता में हुई डीवाईएफ़आई की राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में 26 राज्यों के 450 डेलीगेट शामिल हुए।
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी अपडेट : ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी अदालत को सौंपी गयी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे कल तक कार्यवाही रोकने को कहा
    19 May 2022
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थानीय अदालत को इस मामले में कोई भी आदेश पारित करने से बचना चाहिए। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे मामले पर शुक्रवार की दोपहर तीन बजे सुनवाई होगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License