NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
झारखंड: अब आदिवासियों को भी मिलेगा अलग धर्म कोड!
सनद हो कि पिछले कई दशकों से झारखंड के आदिवासी समुदाय व उनके संगठन अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर निरंतर आवाज़ उठाते रहें हैं। सत्ताधारी दलों ने भी हमेशा इसे अपने चुनवी मुद्दों में शामिल भी किया लेकिन इससे राजनीति ही अधिक की गयी। 
अनिल अंशुमन
13 Nov 2020
झारखंड

सचमुच 11 नवंबर 2020  का दिन झारखंड के आदिवासियों के लिए एक विशेष महत्व का दिन माना जाएगा, क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार ने इस दिन विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया। जिससे प्रदेश भर के आदिवासियों की वर्षों पुरानी मांग पूरी हुई है।                                            

झारखंड प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में बसे आदिवासी समुदाय के लोग कालांतर से अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग करते रहें हैं। जिसके लिए वे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और विभिन्न सरकारों को ज्ञापन और मांग पत्र देकर आवाज़ उठाते रहें हैं। इसके लिए कई बार दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर राज्यों की राजधानियों में सड़कों पर उतरकर आंदोलन भी करते रहें हैं।   

आदिवासी सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों का ये हमेशा कहना रहा है कि देश में समय समय पर होनेवाली जनगणना अथवा अन्य सरकारी सर्वेक्षणों में उन्हें हिन्दू अथवा ‘अन्य’ के खाते में डाल दिये जाने से उनकी स्वतंत्र अस्तित्व और अस्मिता पर लगातार कुठाराघात हो रहा है।

यहाँ तक कि उनके सरनेम में हिन्दू समुदायों के ‘देवी, कुमारी, कुमार’ जैसे टाइटिल डालकर उनकी अपनी विशिष्ठ पहचान को खत्म किया कर उनकी सामाजिक छवि हिन्दू अथवा अन्य में की जा रही है।             

आदिवासी संगठनों एक्टिविस्टों का सवाल  है कि देश के सभी धार्मिक आस्था वाले समुदाय, संप्रदाय के लोगों के लिए उनका अलग वैधानिक कोड निर्धारित है। तो आदिवासी समुदाय के लोगों को ये वैधानिक दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा है? जबकि देश के संविधान तक में आदिवासी समुदायों के विशेष संरक्षण के लिए पाँचवी अनुसूची के तहत कई विशेषाधिकार प्रावधान दिये गए हैं।

                                                  

सरना आदिवासी धर्म कोड प्रस्ताव के सवाल पर बुलाये गए झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में सरकार द्वारा लाये गए प्रस्ताव को पूरे सदन ने सर्वसम्मति से पारित करते हुए मुख्यमंत्री से कहा कि झारखंड सरकार भी केंद्र की सरकार से जल्द से जल्द आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की मांग करे। 

प्रस्ताव पारित होने के उपरांत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सदन को संबोधित करते हुए आश्वस्त किया कि ये बात अब पूरे देश में गूँजेगी। यह आदिवासियों के वजूद का सवाल है। जिसे बचाने के लिए आदिवासी समाज के लोग लगातार संघर्ष कर रहें हैं। सदन से पारित हुए इस प्रस्ताव का संदेश पूरे देश में जाएगा। देश भर के आदिवासी एकसूत्र में बंधेंगे। वे केंद्र सरकार तक अपनी बात पहुंचाएंगे लेकिन इस पर राजनीति नहीं बल्कि चर्चा होनी चाहिए। वे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी से विशेष तौर पर बात करेंगे।

इस विशेष सत्र में बोलते हुए भाजपा विधायक ने कॉंग्रेस पर आरोप लगाया कि 1871, 1951 तक जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड कॉलम था लेकिन 1961 कॉंग्रेस की सरकार ने इसे हटा दिया था।                          

आदिवासी विधायक बंधु तिर्की ने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए आदिवासी शब्द हटाकर सिर्फ सरना रखने पर ज़ोर दिया।

भाकपा माले विधायक ने कहा कि यह विषय आदिवासियों की पहचान,अस्तित्व और आस्था से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ एक संवेदनशील मामला है। क्योंकि झारखंड समेत पूरे देश से आदिवासियों की जनसंख्या लगातार घटती जा रही है जो कि गंभीर चिंता का विषय है। झारखंड सरकार को इसपर जल्द पहल लेने की आवश्यकता है।

झारखंड प्रदेश के ईसाई धर्म प्रमुख कॉर्डिनल पी टोपनो ने कहा कि हम भी चाहते हैं कि प्रकृति पूजक आदिवासी सरना धर्म कोड की मांग कर रहें हैं तो इन्हें यह ज़रूर मिलना चाहिए। लेकिन इसका इस्तेमाल ईसाई आदिवासियों की आदिवसीयत पर सवाल उठाने के लिए नहीं होना चाहिए।                          

झारखंड विधानसभा से सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव लिए जाने पर राजधानी समेत प्रदेश के अनेकों इलाकों में आदिवासी समुदाय और संगठनों के लोगों ने अपने अपने पारंपरिक वेश भूषा में मंदार नगाड़े बजाते हुए सड़कों पर स्वागत जुलूस भी निकाले।                         

सनद हो कि पिछले कई दशकों से झारखंड के आदिवासी समुदाय व उनके संगठन अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर निरंतर आवाज़ उठाते रहें हैं। सत्ताधारी दलों ने भी हमेशा इसे अपने चुनवी मुद्दों में शामिल भी किया लेकिन इससे राजनीति ही अधिक की गयी । 

खासकर भाजपा व संघ परिवार ने तो लगातार भ्रामक प्रचार चलाकर आदिवासी समुदाय को वनवासी कहकर हिन्दू समाज का अंग बताने की कोशिश की। यहां तक कि झारखंड का नाम बदलकर वनांचल रखने की भी कवायद की गयी लेकिन आदिवासियों के प्रबल विरोध के कारण यह सफल नहीं हो सकी। 

रघुवर दास के शासन काल में तो सरकार के द्वारा कतिपय छद्म आदिवासी संगठन खड़े कर सरना सनातन  की जोरदार मुहिम चलाकर जगह जगह सरना बनाम ईसाई का सामाजिक,सांप्रदायिक विवाद खड़ा करने की कोशिशें की गईं। 

जिससे कई स्थानों पर काफी समय तक सामाजिक तनाव भी बन गए थे। भाजपा शासन ने ईसाई संगठनों पर आदिवासियों के धर्मांतरण किए जाने का आरोप लगाते हुए धर्मांतरण विरोधी विशेष कानून तक बना दिया। लेकिन रघुवर सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद से ये अभियान थोड़ा कमजोर हो गया है लेकिन अभी भी बदस्तूर जारी है।

उक्त विवाद ने देश के भर आदिवासियों में तब और अधिक उद्वेलित कर दिया था जब छत्तीसगढ़ के भाजपा राज में वनवासी कल्याण समिति के चिंतन शिविर को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कह दिया कि धर्म कोड की मांग करनेवाले देशद्रोही, अलगाववादी हैं। जिसका जोरदार प्रतीकार करते हुए आदिवासी संगठनों ने कहा था कि ये संघ द्वारा आदिवासी समुदाय को तोड़ने की मनुवादि साजिश है।

आदिवासी धर्म प्रकृति धर्म है लेकिन पूर्व से ही संघवादियो, मनुवादियों ने इसे तोड़कर हिन्दू धर्म में विलय कर देने का प्रयास करते रहें हैं। साथ ही साफ तौर कहा कि अपनी रूढ़ि, परंपरा , रीति,रिवाज और विशिष्ट संस्कृति होने के कारण आदिवासी कहीं से भी हिन्दू नहीं हैं।         

आदिवासी धर्म कोड के सवाल पर झारखंड बुद्धिजीवी मंच के नेतृत्वकर्त्ता मण्डल के प्रेम सीएचएनडी मुरमु ने साफ कहा कि देश के किसी भी समाज / समुदाय के लोग किसी भी धर्म विशेष को अपना सकते हैं लेकिन सरना धर्म में आदिवासी छोड़कर कोई दूसरा शामिल हो ही नहीं सकता है।                        

एक सवाल पर आदिवासी बुद्धिजीवी और एक्टिविस्टों में ये बहस ज़रूर रही है कि पहले आदिवासियों को उनके अस्तित्व के मूलाधार जल, जंगल,ज़मीन का राजनीतिक अधिकार चाहिए अथवा पहले धर्म कोड।

इस सवाल पर झारखंड जन संस्कृति मंच के युवा आदिवासी एक्टिविस्ट और भाषाकर्मी गौतम मुंडा का भी यही मानना है वर्तमान केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा कारपोरेटपरस्त नीतियाँ लागू कर आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के खिलाफ आदिवासियों को अपने अधिकारों का संघर्ष ज़्यादा ज़रूरी है। क्योंकि यह सीधे अस्तित्व पर ही खुला हमला है और जब अस्तिव ही नहीं बचेगा तो अस्मिता भी कैसे सुरक्षित रहेगी !    

बहरहाल पहले अस्तित्व की लड़ाई ज़रूरी है कि अस्मिता (पहचान) का सवाल प्रमुख है। इसका फैसला आदिवासी समुदायों के लोगों पर ही छोड़ना उचित होगा। लेकिन जनगणना जैसे मामलों में देश भर के आदिवासी समुदायों के लिए एक अलग कोड / कॉलम का होना उनका लोकतान्त्रिक हक़ तो बनता ही है। 

उनकी इस मांग को हिन्दू, मुसलमान  की सियासी राजनीति की भांति ईसाई सरना विवाद अथवा आदिवासी भी हिन्दू हैं का रंग दिया जाना देश के लोकतन्त्र और हमारी बहुरंगी सामाजिक संस्कृतियों की अनेकता में साझी एकता पर ही कुठराघात ही माना जाएगा।

Jharkhand
aadiwasi
tribals
Tribals Religion code
Tribal social organization

Related Stories

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण

अमित शाह का शाही दौरा और आदिवासी मुद्दे

झारखंड: पंचायत चुनावों को लेकर आदिवासी संगठनों का विरोध, जानिए क्या है पूरा मामला

बाघ अभयारण्य की आड़ में आदिवासियों को उजाड़ने की साज़िश मंजूर नहीं: कैमूर मुक्ति मोर्चा


बाकी खबरें

  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    संतूर के शहंशाह पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में निधन
    10 May 2022
    पंडित शिवकुमार शर्मा 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर बजाना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में 1955 में किया था। शिवकुमार शर्मा की माता जी श्रीमती उमा दत्त शर्मा स्वयं एक शास्त्रीय…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ग़ाज़ीपुर के ज़हूराबाद में सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर पर हमला!, शोक संतप्त परिवार से गए थे मिलने
    10 May 2022
    ओमप्रकाश राजभर ने तत्काल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम, गाजीपुर के एसपी, एसओ को इस घटना की जानकारी दी है। हमले संबंध में उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा के…
  • कामरान यूसुफ़, सुहैल भट्ट
    जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती
    10 May 2022
    आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    मछली पालन करने वालों के सामने पश्चिम बंगाल में आजीविका छिनने का डर - AIFFWF
    10 May 2022
    AIFFWF ने अपनी संगठनात्मक रिपोर्ट में छोटे स्तर पर मछली आखेटन करने वाले 2250 परिवारों के 10,187 एकड़ की झील से विस्थापित होने की घटना का जिक्र भी किया है।
  • राज कुमार
    जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप
    10 May 2022
    सम्मेलन में वक्ताओं ने उन तबकों की आज़ादी का दावा रखा जिन्हें इंसान तक नहीं माना जाता और जिन्हें बिल्कुल अनदेखा करके आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। उन तबकों की स्थिति सामने रखी जिन तक आज़ादी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License