NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कोविड-19
भारत
राजनीति
झारखंड  :  क्या पिछली सरकार की ग़लत कार्यशैली से बचेगी हेमंत सोरेन सरकार? 
झारखंड के सहायक पुलिसकर्मी अपने स्थायीकरण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। 18 सितंबर को इनके द्वारा जुलूस निकालने की योजना थी। पुलिस ने इनके जुलुस को रोककर उनपर बेवजह लाठी चार्ज किया और अश्रु गैस के गोले छोड़े।
अनिल अंशुमन
22 Sep 2020
झारखंड

‘झारखंड लैंड म्यूटेशन बिल 2020’ पास करने जैसे कई अन्य विवादास्पद फैसलों के कारण सोरेन सरकार को व्यापक झारखंडी जन समूह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विरोध का स्वर तब और बढ़ गया जब 18 सितम्बर को राजधानी में अपनी नौकरी के स्थायीकरण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे सहायक पुलिस कर्मियों पर लाठी चार्ज हो गया। 

भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने ‘ झारखंड लैंड म्यूटेशन बिल 2020 ’ लाये जाने और इस लाठी चार्ज के खिलाफ ट्वीट कर कहा कि -  पिछली सरकार की गलती न दुहराए हेमंत सोरेन सरकार। गलत नाप के जूते से पैर कटेगा ही। 

झारखंड विधान सभा के जारी मॉनसून सत्र में भी इस मामले पर काफी हंगामा हुआ। इस बार इसका जिम्मा विपक्ष में बैठी भाजपा के विधायकों ने बखूबी संभाल रखा है। 

pol. mov. 3.jpg

21 सितम्बर को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने सहायक पुलिसकर्मियों पर हुए पुलिस दमन पर विरोध जताते हुए उनकी मांगों के समर्थन में हंगामा शुरू कर दिया। जिसपर सत्ता पक्ष के विधायकों ने अपना कड़ा ऐतराज़ जताते हुए सदन को अस्थिर करने का आरोप लगाया। 

बाद में मुख्यमंत्री ने विपक्ष के हंगामे को गलत बताते हुए अपने जवाब में कहा कि सहायक पुलिसकर्मियों की मांगों के प्रति उनकी सरकार की सोच साकारत्मक है। इसीलिए उन्हें समझाने के लिए बार बार सरकार के प्रतिनिधि गए भी लेकिन हर बार उनके जाने के बाद विपक्ष (भाजपा) के नेता वहाँ मंडराने लगते हैं और उन्हें उकसाते हैं। 

सहायक पुलिसकर्मियों को अपनी मांगों के लिए उनकी सरकार या विधान सभा घेरने की बजाये पिछली सरकार के मंत्रियों को घेरने की ज़रूरत है जिन्होंने झूठे आश्वासन देकर उन्हें बहाल किया है। 

pol. mov. 2.jpg

अपने वक्तव्य के बहाने केंद्र सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र की हिटलरशाही आज तक नहीं रुकी है।  पत्र आया है कि डीवीसी के बकाये का भुगतान राज्य की सरकार ने नहीं किया तो केंद्र से मिलनेवाले कम्पंशेसन से ही वह राशी काट ली जायेगी। जबकि यह गलती उन्हीं की पार्टी की पिछली सरकार ने की थी जिसे आज उनकी सरकार के मत्थे मढ़ा जा रहा है।  इसके खिलाफ उनकी सरकार हर स्तर अपने अधिकार की लड़ाई जारी रखेगी। 

पिछले कई दिनों से राजधानी के मोरहाबादी मैदान में झारखंड प्रदेश के विभिन्न जिलों से सहायक पुलिसकर्मी अपने स्थायीकरण की मांग को लेकर आंदोलन में डटे हुए हैं। ‘ वर्दी - ए- इन्साफ आंदोलन ’ के बैनर तले ये सभी 12 सितम्बर को अपने अपने जिलों से पैदल चलकर यहाँ पहुंचे हुए हैं। जो इस बात से काफी दुखी और आक्रोशित हैं कि खुद उनके विभाग के ही लोगों ने रांची पहुँचने से रोकने के लिए रिजर्व की गयी उनकी सभी गाड़ियों को रोक लिया। 18 सितम्बर को मोरहाबादी मैदान से निकलनेवाले उनके जुलुस को भी निकलने से रोककर उनपर बेवजह लाठी चार्ज करते हुए अश्रु गैस के गोले छोड़े गए। कई महिला सहायक पुलिसकर्मियों ने तो मीडिया को रो रोकर बताया कि कल तक पुलिस के जिन लेगों के हम सहयोगी रहे , आज वही हमपर लाठियां बरसा रहें हैं। 

इस घटना को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या यह सरकार भी पिछली सरकार की भांति अपनी मांगों के लिए होनेवाले आंदोलन का जवाब लाठी दमन से देगी। 

pol. mov. 1.jpg

चर्चा है यह भी कि जब ये लोग शांतिपूर्ण ढंग से जुलुस निकालना चाह रहे थे और पूरी तरह से अनुशासित भी थे तो किसके आदेश से बेवजह लाठी चार्ज करायी गयी। इस बाबत सोशल मीडिया में तो आशंका जताई जा रही है कि राज्य के पुलिस, प्रशासन से लेकर विभिन्न विभागों में बैठे भाजपा समर्थक अफसर  जान बूझकर ऐसी घटनाएं करवा रहें हैं ताकि हेमंत सरकार बदनाम हो जाए। 

आंदोलनकारी सहायक पुलिस कर्मियों ने बताया कि 2017 में नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सली हिंसा से निपटने के नाम पर रघुवर दास सरकार ने इन सभी जिलों में स्थानीय युवा–युवतियों को लेकर ढाई हज़ार से भी अधिक सहायक पुलिसकर्मियों की बहाली की थी . जिन्हें 10000 रु. प्रतिमाह के अनुदान वेतन के साथ तीन वर्षों के अनुबंध पर रखते समय ये भी आश्वासन दिया गया था कि आगे चलकर बेहतर कार्य प्रदर्शन के आधार पर स्थायी नियुक्ति कर दी जायेगी। लेकिन इसी साल के अगस्त माह में अनुबंध समाप्त हो जाने से हमारा वेतन बंद हो चुका है और इस लॉकडाउन बंदी में हम परिवार समेत दाने - दाने को मोहताज़ हो गए हैं. 

आंदोलन में शामिल एक पुलिसकर्मी ने दर्द भरे लहजे में मीडिया से यहाँ तक कह दिया कि हम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से आते हैं , सरकार अगर दुबारा बहाल नहीं करेगी तो भूखों मरने से बेहतर होगा कि मजबूरन हमें नक्सली संगठन में ही शामिल होना पड़ जाएगा। जिसके लिए गांव गाँव में उन्होंने पोस्टर भी साट दिया है और अब  हमारे घरवालों को धमका रहें हैं। 

 इस प्रकरण में भाजपा नेताओं द्वारा हेमंत सरकार के खिलाफ की जा रही घेरेबंदी पर आम टिका टीप्पणियों में भाजपा व उनके नेताओं से भी पूछा जा रहा है कि   अपने शासन काल में हर आंदोलन का जवाब सिर्फ लाठी गोली और झूठे मुकदमों से देनेवाले , आज किस मुंह से दमन का विरोध कर रहें हैं ?    

वैसे , राज्य में छाये कोरोना महामारी संक्रमण के संकटों के बीच बढ़ती विधि व्यवस्था समस्या के साथ - साथ ब्लॉक से लेकर सभी विभागों में जड़ जमाया बेलगाम भ्रष्टाचार व विभिन्न योजनाओं में मची सरकारी लूट तथा ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को राशनकार्ड व समुचित अनाज नहीं मिलने जैसी अनगिनत जटिल समस्याओं का समुचित निराकरण नहीं होना , गंभीर चुनौती बनी हुई है . जिनसे सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे भेदभाव जैसे मामलों का हवाला देकर नहीं टाला जा सकता है.  क्योंकि अब कहा जाने लगा है कि वर्तमान सरकार से प्रदेश की जनता ने जो उम्मीदें बांध रखी है कि यह सरकार पिछली सरकार की गलत कार्यशैली नहीं अपनाएगी और समस्याओं का समय रहते समुचित निदान करेगी हेमंत सोरेन सरकार को हर स्तर पर व्यवहार में उन्हें पूरा कर के तो दिखाना ही होगा।

Jharkhand
Jharkhand government
Hemant Soren
Assistant policeman
Jharkhand Land Mutation Bill 2020
JHARKHAND POLICE
BJP
Jharkhand Legislative Assembly
monsoon session
COVID-19
CPIML

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

दिल्लीः एलएचएमसी अस्पताल पहुंचे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया का ‘कोविड योद्धाओं’ ने किया विरोध

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License