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झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!
जगह-जगह हड़ताल के समर्थन में प्रतिवाद सभाएं कर आम जनता से हड़ताल के मुद्दों के पक्ष में खड़े होने की अपील की गयी। हर दिन हो रही मूल्यवृद्धि, बेलगाम महंगाई और बेरोज़गारी के खिलाफ भी काफी आक्रोश प्रदर्शित किया गया। 
अनिल अंशुमन
29 Mar 2022
Bharat Bandh

सार्वजनिक क्षेत्र के विविध उद्योगों, पावर सेक्टर और कई छोटी-बड़ी खनन परियोजनाओं से भरे-पूरे क्षेत्र के रूप में चर्चित झारखंड प्रदेश में इस बार भी देश की केंद्रीय ट्रेड यूनियनों एवं मजदूर-कर्मचारी संगठनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर 28-29 मार्च की दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल काफी प्रभावकारी  रही, जिसका नजारा और प्रभाव हड़ताल के पहले दिन की मीडिया ख़बरों से दिखा भी।

मौजूदा केंद्र सरकार की मजदूर-कर्मचारी विरोधी नीतियों, देश के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों व बैंक-बीमा इत्यादि क्षेत्रों के निजीकरण के साथ साथ निजी-कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथों देश की संपदा बेचे जाने के खिलाफ मजदूर-कर्मचारियों ने इस बार भी पूरी एकजुटता के साथ अपना विरोध प्रदर्शित किया।

हड़ताल की पूर्व संध्या पर राजधानी रांची समेत राज्य के कई कोलियरियों व मजदूर इलाकों में जोशपूर्ण मशाल जुलूस निकालकर आम लोगों से हड़ताल को सफल बनाने की अपील की गयी। कई इलाकों में संयुक्त ट्रेड यूनियनों के नेता-कार्यकर्ताओं द्वारा प्रचार जत्थे निकाल कर नुक्कड़ सभाएं भी की गयीं।   

इस बार भी सभी वामपंथी दलों के अलावा किसान-छात्र-युवा संगठनों ने मजदूर-कर्मचारियों के राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सक्रिय समर्थन में कई स्थानों पर प्रतिवाद मार्च निकाले व सड़क जाम कर सभाएं कीं। जगह-जगह हड़ताल के समर्थन में प्रतिवाद सभाएं कर आम जनता से हड़ताल के मुद्दों के पक्ष में खड़े होने की अपील की गयी। हर दिन हो रही मूल्यवृद्धि, बेलगाम महंगाई और बेरोज़गारी के खिलाफ भी काफी आक्रोश प्रदर्शित किया गया। 

तथापि गोदी मीडिया ने हर बार की भांति इस बार भी हड़ताल से होने वाले आर्थिक नुकसानों के आंकड़ों को ही अपने समाचारों में प्रमुखता देते हुए हड़ताली मजदूर-कर्मचारियों के खिलाफ नकारात्मक छवि परोसने में कोई कमी नहीं की। बैंकों व डाक विभागों के निजीकरण से आमजन को होने वाले नुकसान के मसले को गायब कर सिर्फ पैसों के लेन-देन और एटीएम् में रुपये ख़त्म हो जाने इत्यादि को ही ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ बनाए रखा, जो दूसरे दिन की हड़ताल की ख़बरों में भी बदस्तूर जारी रहेगी। 

हड़ताल को लेकर इसमें शामिल सभी केन्द्रीय वामपंथी ट्रेड यूनियनों, वाम दलों और मीडिया के बयानों-समाचारों के अलावा भी हड़ताल का प्रभाव प्रायः हर क्षेत्र में देखा गया। 

दो दिवसीय हड़ताल के पहले दिन 28 मार्च से ही प्रदेश के विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों, प्रतिष्ठानों और बैंक-बीमा जैसे वित्तीय संस्थानों में हड़ताल का व्यापक असर रहा। एसबीआई को छोड़ अधिकाँश बैंकों में ताले लटके रहे।

झारखंड स्थित कोल इंडिया की सभी इकाइयों- सीसीएल, बीसीसीएल और ईसीएल की अधिकाँश कोलियरियों में कोयला के उत्पादन से लेकर डिस्पैच और ट्रांसपोर्टिंग का काम पूरी तरह ठप्प रहा।कोल इंडिया की ही अनुषंगी ईकाई सीएमपीडीआई में भी शत प्रतिशत हड़ताल होने का दावा किया गया है।

बोकारो स्टील में स्थायी मजदूरों का एक ही तबका हड़ताल में शामिल रहा, लेकिन ठेका कामगारों का अधिकांश हिस्सा हड़ताल में सक्रियतापूर्वक शामिल हुआ। वहीं, रांची के हटिया स्थित देश का पहला ‘मातृ उद्योग’ कहे जानेवाले भारी उद्योग संस्थान एचईसी की तीनों इकाइयों में मिला जुला ही असर रहा। एक यूनिट में हड़ताली मजदूरों और हड़ताल में नहीं शामिल होने वाले कामगारों में थोड़ी झड़प भी हो गयी। संस्थान के प्रबंधन ने हड़ताल को विफल बताया, वहीं मजदूर यूनियन के नेताओं ने हड़ताल सफल होने का दावा किया। 

राज्य के बीमा सेक्टर और डाकघरों में हड़ताल के कारण किसी भी प्रकार के करोबारी कामकाज नहीं हो सके। कोल्हान के सभी बीमा कार्यालय और डाकघरों में काम काज पूरी तरह से ठप्प रहा। वहीँ रांची, हजारीबाग, बोकारो व धनबाद इत्यादि बड़े शहरों के अधिकांश कार्यालयों में आम दिनों की अपेक्षा सभी काम काज लगभग बंद रहे।                                                                                              

पावर सेक्टर में केवल दामोदर घाटी निगम में ही हड़ताल का प्रभाव दिखा। एनटीपीसी के कहलगांव और फरक्का थर्मल पावर को झारखंड के ललमटिया कोयला खदान में भी हड़ताल के कारण खनन व डिस्पैच का काम नहीं होने से सारा काम ठप्प रहा। हजारीबाग स्थित टंडवा पवार प्लांट तथा इसके कोयला आपूर्ति हेतु बड़कागाँव इलाका स्थित कोलियरी में अपेक्षाकृत हड़ताल का प्रभाव कम रहा।

निर्माण और परिवहन क्षेत्र में जहाँ असंगठित क्षेत्र के मजदूर काम करते हैं, वहां अधिकांश मजदूर हड़ताल में शामिल हुए। वहीं जमशेदपुर के औद्योगिक क्षेत्रों में विशेषकर आदित्यपुर, गम्हरिया और चिड़ियाँ इन्सलरी में अधिकांश मजदूर हड़ताल पर रहे। कई इलाकों के पत्थर खनन और बीड़ी उद्योग क्षेत्र के मजदूरों के भी हड़ताल में शामिल होने की ख़बरें आई हैं। वहीं गिरिडीह जिला के बगोदर में मोटर कामगार यूनियन से जुड़े कर्मियों ने हड़ताल को शत प्रतिशत सफल बनाते हुए प्रतिवाद मार्च निकालकर बगोदर बस स्टैंड में सभा की, जिसमें वक्ताओं ने बेलगाम महंगाई और बेरोज़गारी के लिए भजपा सरकार की जन विरोधी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया।

झारखंड के सेल्स प्रमोशन एम्प्लोयीज़ के अधिकांश कर्मियों के हड़ताल में शामिल होने की खबर है।

एक ओर, राज्य व केंद्र सरकार के कर्मचारियों की हड़ताल में आंशिक भागीदारी देखने को मिली है तो दूसरी ओर, राज्य में कार्यरत दो लाख से भी अधिक स्कीम वर्करों का अधिकांश हिस्सा हड़ताल में पूरा सक्रीय दिखा। कई जिला और अनुमंडल मुख्यालयों में रसोइया, अनागंबाड़ी, सहिया-सेविका व मनरेगा कामगार संगठनों इत्यादि के बैनर तले कई स्थानों पर धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम जारी हैं।  

ठेका कामगार और किसान संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी जगह-जगह हड़ताल के समर्थन में विभिन्न सेक्टरों और सड़कों पर प्रतिवाद मार्च निकालकर सभाएं कीं। 

राजधानी में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान करने वाली सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और श्रम संगठनों के प्रतिनिधियों ने 28 मार्च को रांची के सैनिक बाज़ार परिसर से प्रतिवाद मार्च निकाला, जो शहर की ह्रदयस्थली अलबर्ट एक्का चौक पर जाकर प्रतिवाद सभा में तब्दील हो गया। मार्च में सभी वामपंथी दलों के नेता-कार्यकर्ताओं ने भी भागीदारी निभाई और प्रतिवाद सभा को संबोधित किया। जिसमें भाकपा-माले के राज्य सचिव मनोज भक्त व सीपीआई के भुवनेश्वर मेहता के अलावा सीटू के प्रकाश विप्लव तथा एक्टू के शुभेंदु सेन सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने संबोधित किया।

29 मार्च को राजभवन से मार्च निकालकर जन सभा की गयी।

मजदूर हड़ताल को लेकर सोशल मीडिया में कुछेक चर्चाएं बिलकुल ध्यान देने योग्य हैं, जिनमें से एक चर्चा फिर से काफी वायरल हुई है कि मौजूदा केंद्र सरकार की मजदूर-कर्मचारी विरोधी व निजीकरण की नीतियों के खिलाफ हो रहे आंदोलनों में शामिल मजदूर-कर्मचारियों की एक विशाल आबादी क्यों चुनाव के समय अपना कीमती वोट इसी सरकार वाली पार्टी को दे देती है और ये सिलसिला कब तक जारी रहेगा? निस्संदेह फिलहाल यह सवाल एक यक्ष प्रशन जैसा ही बना हुआ है।

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