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झारखंड: सत्ता से बेख़ौफ़ कार्टूनिस्ट बशीर अहमद का जाना...
कार्टूनिस्ट-कार्यकर्ता बशीर अहमद का 8 अगस्त को निधन हो गया। वे ऐसे सामाजिक जन सरोकारों के कलाकार रहे जिन्हें झारखंड राज्य गठन के आन्दोलनकारी समाज ने राइटर और फाइटर कहकर संबोधित किया।
अनिल अंशुमन
12 Aug 2020
 Jharkhand: Dismissed cartoonist Bashir Ahmed from power .

आम तौर पर कार्टून विधा के हुनरमंद कलाकार राज-समाज के हर दायरे पर अपनी पैनी नज़र रखते हुए अपनी कार्टून कला के ज़रिये व्यवस्था जनित स्थितियों – विसंगतियों को लेकर नागरिक समाज को आगाह करते हैं। परन्तु कुछ ऐसे भी हरफ़नमौला व्यक्तित्व के कलाकार होते हैं जो न सिर्फ अपनी कला–कार्टूनों से समाज को आगाह–जागरूक करते हैं बल्कि ज़मीनी स्तर भी पर सक्रिय होकर यथास्थितियों में सकारात्मक बदलाव के लिए प्रयासरत दीखते हैं।

झारखंड कि राजधानी रांची स्थित हिन्दपीढ़ी मुहल्ला निवासी जनाब बशीर अहमद ऐसे ही सामाजिक जन सरोकारों के कलाकार रहे। जिन्हें झारखंड राज्य गठन के आन्दोलनकारी समाज ने राइटर और फाइटर कहकर संबोधित किया।

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1980 के दशक से ही झारखंड राज्य गठन के साथ साथ जल – जंगल – ज़मीन के आंदोलनों के नेतृत्व की अगली कतार में शामिल रहते हुए अपनी कला के विविध रूपों जरिये आन्दोलनों को मुखर स्वर देने का काम पूरी हुनरमंदी के साथ किया । इसीलिए उन्हें राइटर और फाइटर दोनों कहा जाता था ।       

इनके उतकृष्ट राजनितिक कार्टूनों को देखकर कई अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित जाने माने फिल्मकार-निर्देशक मेघनाथ जी ने उन्हें झारखंड के आर.के लक्ष्मण की उपाधि से नवाज़ा था। 8 अगस्त को कोरोना आपदा काल की चपेट में आकर हार्ट अटैक के कारण अचानक ही सबको अलविदा कह गए। चंद दिनों से वे कुछ अस्वस्थ चल रहे थे जिसका इलाज़ भी हो रहा था। 65 वर्षीय बशीर अहमद जी झारखंड अलग राज्य गठन के आन्दोलनों में फ्रंट लाइन सक्रिय युवा टीम के अगुवाकर्मी, सामाजिक संगठक और आन्दोलनधर्मी कलाकार रहे। हर आन्दोलन के बैनर–पोस्टर लिखने से लेकर भव्य-आकर्षक दीवाल लेखन को लेकर सभी उनके आन्दोलन के कायल रहे। प्रदेश के दुर्गम सुदूर गांवों से लेकर आज की राजधानी रांची के हर आन्दोलनों और सामाजिक अभियानों के वरिष्ठ अगुवा सहकर्मी रहे। ’80 के दशक में चल रहे झारखंड राज्य गठन आन्दोलन के दौर में तत्कालीन सरकार के राज्य–दमन का सामना कर रहे अनगिनत नेताओं और युवा कार्यकर्त्ताओं के लिए उनका घर–परिवार हरवक्त पनाह का स्थल रहा। इस करण अक्सर पुलिस आकर छापा भी मारा करती थी। कई बार उन्हें गिरफ्तार भी होना पड़ा था।

झारखंड आन्दोलन के सबसे पहले छात्र-युवा संगठन आजसू के संस्थापक कोर टीम के महत्वपूर्ण भागीदार रहते हुए झारखंड के डॉ. रामदयाल मुंडा व वीपी केशरी सरीखे अगुवा बौद्धिक जमात के बेहद चहेते कलाकार रहे।

उनके बनाए कार्टून स्थापित अखबारों से लेकर अनगिनत पत्र –पत्रिकाओं में काफी लोकप्रिय हुए। अनगिनत वामपंथी–लोकतान्त्रिक और सामाजिक जन संगठनों के अभियानों–आन्दोलनों के सांस्कृतिक प्रचार–प्रसार के संचालक भी रहे। झारखंड राज्य आन्दोलन के तमाम उतर चढ़ावों के बीच भी वे अपने आन्दोलनकारी व बौद्धिक युवा टीम के साथियों के साथ निरंतर डटे रहे । लेकिन राज्य गठन के उपरांत जब उन्होंने देखा कि अलग राज्य को लेकर देखे गए सारे सपने धूल धूसरित किये जा रहें हैं तो जननायक कॉमरेड महेंद्र सिंह की क्रन्तिकारी वामपंथी धारा से प्रभावित होकर एक बार फिर से सामाजिक जन अभियानों के सेनानी बन गए। हालाँकि वर्तमान सत्ताधारी दलों (भाजपा छोड़) के कई वरिष्ट और प्रमुख नेताओं के भी वे चहेते रहे लेकिन उनकी सोच व साक्रियाता प्रदेश के वामपंथी दलों के साथ ही रही। जल–जंगल–ज़मीन के तथा राज्य में विस्थापन – पलायन – भूख – बेकारी – गरीबी जैसे सवालों को मुख्यधारा कि मीडिया में स्वर देने हेतु कई छोटे बड़े अखबारों से भी जुड़े। लेकिन स्वतंत्र और वैकल्पिक मीडिया निर्माण के प्रयासों के तहत सामाजिक जन पत्रिका ‘जनहक़’ की कोर टीम के सदस्य के बतौर उल्लेखनीय कार्य किया।

भाजपा राज द्वारा झारखंड को गुजरात की भांति साम्प्रदायिकता की प्रयोगशाला बनाने की साजिशों के खिलाफ जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय मोर्चा ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम की झारखंड ईकाई के गठन में महत्वपूर्ण केन्द्रक की भूमिका निभायी। साथ ही वामपंथी दलों व कई सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर झारखंड में अल्पसंख्यकों और आदिवासियों पर हो रहे हमलों, मॉब लिंचिंग और सत्ता प्रायोजित सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ कई बड़े अभियान चलाये। तीन वर्ष पूर्व ही ओपन हार्ट सर्जरी कराने के बावजूद अपनी शारीरिक कार्यक्षमता की सीमा से भी आगे बढ़कर सक्रिय भूमिका निभाते रहे।

राज्य के भाजपा शासन द्वारा प्रदेश के कई स्थापित सामाजिक कार्यकत्ताओं – अन्दोलनकर्मियों पर थोपे गए देशद्रोह जैसे फर्जी मुकदमों के खिलाफ हुए जन अभियानों में केन्द्रीय भूमिका निभाई। इस कारण सरकार के इशारे पर प्रशासन ने उनपर राज्य में दंगा भड़काने का संगीन मुकदमा कर दिया।

वाम नेता महेंद्र सिंह के क्रान्तिकारी विचारों व आन्दोलनों से प्रेरित होकर 2019 में अपने कई साथियों के साथ भाकपा माले में शामिल हो गए। पार्टी ने भी उनकी बहुमुखी प्रतिभा–सांगठनिक कौशल और विचार सक्रियता को महत्व देते हुए वरिष्ट आन्दोलनकारी का सम्मान दिया।

उक्त सक्रियताओं के बीच भी अपनी कार्टून विधा की कला सक्रियता को उन्होंने कभी कमज़ोर नहीं होने दिया। उनका मानना था कि एक चित्रकार को सबसे पहले एक आम नागरिक के तौर पर अपनी सामाजिक सरोकार की सक्रियता से कभी नहीं अलग रहना चाहिए।  

कोरोना आपदा काल व लॉकडाउन में मोदी राज द्वारा जनता को महासंकट में असहाय बनाकर धकेल दिए जाने की अमानवीयता ने उन्हें इस क़दर उद्वेलित किया कि लम्बे अरसे के बाद एक बार फिर से अपनी कार्टून कला को सक्रिय कर दिया।                                                             

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झारखंड के साथ साथ पूरे देश में कोरोना आपदा के फैलने देने और हर दिन बढ़ते पीड़ितों की दुर्दशा पर तल्ख टिप्पणी से भरे उनके कार्टून हर दिन सोशल मीडिया में आने लगे। जिसे कई अखबारों और वेबसाइटों ने भी प्रमुखता के साथ नियमित रूप से प्रकाशित किया।

केंद्र के निर्देश पर गोदी मीडिया द्वारा तबलीगी ज़मात और उनके निवास मुहल्ला हिन्दपीढ़ी को कोरोना संक्रमण का मुख्य ज़िम्मेवार ठहराकर मुस्लिम समाज के खिलाफ सत्ता प्रायोजित कवायदों का मुखर होकर विरोध किया। इस पर बनाए उनके दर्जनों कार्टून पूरे प्रदेश के साथ साथ राष्ट्रिय स्तर पर भी चर्चित हुए ।   

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अपनी मौत से चंद दिनों पूर्व तक अपने कार्टूनों के जरिये उन्होंने कोरोना महामारी रोकने में विफल और ‘आपदा को अवसर में बदलने’ का नारा देकर अपने जन विरोधी एजेंडों को खुलकर लागू कर रही वर्तमान केंद्र सरकार की कारगुजारियों पर निरंतर तल्ख़ टिपण्णी करते रहे।           

लॉकडाउन बंदी और उसके बाद तथाकथित अनलॉक बंदी से त्रस्त और बदहाल जनता की पीड़ा और विक्षोभ को निरंतर मुखर स्वर दिया।

11 अगस्त को भाकपा माले, एआईपीएफ़, आदिवासी बुद्धिजीवी मंच समेत कई अन्य वामपंथी, सामाजिक और सामाजिक संगठनों द्वारा रांची के अंजुमन हॉल में आयोजित ‘बशीर स्मृति’ कार्यक्रम के माध्यम से झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार से उन्हें विशेष सम्मान देने की भी मांग की गयी। शोक व्यक्त करने वालों में भाकपा माले, सीपीएम, सीपीआई व मासस के वाम नेताओं के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, कई पुरस्कारों से सम्मानित चर्चित फिल्मकार श्रीप्रकाश, आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के प्रेमचन्द मुर्मू , आन्दोलनकारी दयामनी बारला, झारखंड बार काउन्सिल के एडवोकेट ए के राशिदी, हॉफमैन लॉ नेटवर्क के फादर महेंद्र पीटर तिग्गा, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता मंडल के एजाज़ खान , पूर्व राज्य आदिवासी सलाहकार समिति सदस्य रतन तिर्की समेत कई अन्य महत्वपूर्ण लोग शामिल हुए । जाने माने अर्थशाश्त्री ज्यां द्रेज़ व वरिष्ठ फिल्मकार मेघनाथ तथा चर्चित झारखंड आन्दोलनकारी नेता सूर्य सिंह बेसरा समेत कईयों के भेजे शोक सन्देश भी पढ़े गए।

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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सभी वक्ताओं ने वर्तमान कि चुनौतिपूर्ण संकट की स्थिति में बशीर अहमद जैसे सामाजिक आन्दोलनकारी और जनपक्षधर कार्टूनिस्ट के असामयिक निधन को लोकतंत्र और सामाजिक साझी एकता के लिए अपूर्णीय क्षति बताया। बशीर जी की दृढ़ मान्यता रही कि जब तक संघर्ष है, वामपंथ ज़रूर रहेगा।

Jharkhand
Bashir Ahmed passed away
cartoonist

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