NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड सरकार ने निजी कंपनियों से किया एमओयू करार, उठ रहे हैं कई बड़े सवाल
दिल्ली के होटल ताज़ में दो दिनों तक चले इस निवेश सम्मलेन के आखिरी दिन देश की कई दिग्गज निजी कंपनियों के साथ 10 हज़ार करोड़ निवेश पर सहमति बनी।
अनिल अंशुमन
30 Aug 2021
झारखंड सरकार ने निजी कंपनियों से किया एमओयू करार, उठ रहे हैं कई बड़े सवाल

हमारे देश की सियासत में अब यह स्थायी रिवाज़ ही बन गया है कि कोई सत्ताधारी दल जब विपक्ष में बैठा होता है तो वो जिस मुद्दे के विरोध का झंडा बुलंद किए रहता है, सत्तासीन होते ही उसी एजेंडे को लागू करने को अपना राजधर्म बना लेता है।

28 अगस्त को देश की राजधानी में स्थित होटल ताज़ में हेमंत सोरेन सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘निवेशक सम्मलेन’ (इन्वेस्टर समिट) का आयोजन किया। जिसमें मुख्यमंत्री ने ‘झारखण्ड की औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति 2021’ को जारी करते हुए, कई निजी कंपनियों के साथ दर्जनों एमओयू करार किये, जिसे लेकर सरकार को समर्थन दे रहे नागरिक समाज ने विरोध शुरू कर दिया है।

सनद हो कि ये वही हेमंत सोरेन हैं जो विपक्ष में रहते हुए पूर्व की सरकारों द्वारा निजी कंपनियों से किये गए एमओयू का मुखर विरोध किया करते थे। तब वे इसे प्रदेश के आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन की लूट की साजिश बताया करते थे और, सारे एमओयू रद्द करने की मांग किया करते थे। लेकिन आज वही हेमंत सोरेन बड़ी निजी कंपनियों से हाथ मिला रहे हैं।

इसी निवेशक सम्मेलन में डालमिया कंपनी के साथ हुए एमओयू के पश्चात् मुख्यमंत्री कार्यालय ने अपने ट्वीट में कहा “जैसे हमारे बीच टाटा स्टील समूह के लोग हैं, डालमिया ग्रुप भी हमारे लिए नया नहीं है. आप सभी झारखंड परिवार का हिस्सा हैं. हम चाहते हैं कि हमारा परिवार और आगे बढ़े ताकि राज्य की समृद्धशाली पहचान देश दुनिया के सामने आये.” इसी कंपनी के ख़िलाफ़ कुछ ही दिन पहले झामुमो की उड़ीसा इकाई ने आदिवासियों को समर्थन दिया था।

उड़ीसा के सुन्दरगढ़ जिला स्थित राजगांगपुर में इसी कंपनी की सीमेंट फैक्ट्री के विस्तारीकरण के लिए ज़मीन अधिग्रहण किया जा रहा है। जिसका विरोध वहाँ के आदिवासी समुदाय कर रहे हैं, संघर्षरत आदिवासियों को  झामुमो का पुरज़ोर समर्थन मिला हुआ है।

इस ज़मीन अधिग्रहण के लिए प्रशासन द्वारा बुलायी गई जन सुनवाई के विरोध में आदिवासी-मूलवासियों का साथ देने के लिए उनकी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष व बहन भी पहुंची थीं, लेकिन उन्हें, कई पार्टी नेताओं के साथ होटल में नज़रबंद कर दिया गया था, जिसका विरोध खुद हेमंत सोरेन ने भी किया था। लेकिन वे अब उसी डालमिया कंपनी को झारखंड के लिए बुला रहे हैं।

संभवतः यह पहला मौक़ा है जब मीडिया ने हेमंत सोरेन सरकार द्वारा निजी कॉर्पोरेट कंपनियों से किए गए एमओयू करार करने पर इतना पुलकित होकर तारीफों के पुल बांधे हैं। होटल ताज़ में दो दिनों तक चले इस निवेश सम्मलेन के आखिरी दिन शनिवार को देश की कई दिग्गज निजी कंपनियों के साथ 10 हज़ार करोड़ निवेश पर सहमति बनी।

हेमंत सोरेन ने यह भी दावा किया कि इससे प्रदेश के 20 हज़ार युवाओं को प्रत्यक्ष और एक से डेढ़ लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिलेगा। साथ ही उन्होंने औद्योगिक घरानों का आभार जताते हुए यह भी कहा कि आपके ही सुझाव से झारखण्ड में उद्योग को लेकर अपग्रेडेड इंडस्ट्रियल पॉलिसी बनी है।

दो दिवसीय मीट के आयोजन के पहले ही दिन हेमंत सोरेन ने स्पष्ट रूप से घोषणा की कि “हम माइंस और मिनरल से आगे सोचना चाहते हैं। झारखण्ड में ज़मीन की कमी नहीं है लेकिन दुर्भाग्य से हमें सिर्फ खनन, कोयला और लौह अयस्क वाला ही राज्य समझा गया. पिछले 20 वर्षों में पूर्व की सरकारों ने भी इसी के इर्द गिर्द अपनी सारी नीतियां बनायीं हैं.”

इसे लेकर अब प्रदेश में अन्दर ही अन्दर सियासी सरगर्मी और चर्चाएँ शुरू हो गयी हैं लेकिन अभी तक विपक्षी दल भाजपा के किसी नेता या प्रवक्ता की कोई टिप्पणी या प्रतिक्रिया नहीं आई है। हां, सरकार को समर्थन दे रहे नागरिक समाज के वरिष्ठ जन, झारखंडी मामलों के जानकारों और आदिवासी बुद्धिजीवियों में प्रतिक्रिया के स्वर बढ़ने लगे हैं।

जाने-माने अर्थशास्त्री डा. रमेश शरण ने झारखण्ड सरकार के इस क़दम को झारखंडी जनआकांक्षाओं के विपरीत बताते हुए कहा “प्रदेश में विकास के नाम पर पिछली सरकारों वाली गलती ही फिर से दुहरायी जा रही है. ज़रूरत है कि राज्य में बंद पड़ीं सैंकड़ों छोटे-उद्योग की ईकाइयों को फिर से खड़ा किया जाए और  राज्य की अपनी आय व्यवस्था को पटरी पर लाया जाए। ना कि निजी कंपनियों को ही मुनाफा कराने को प्रमुखता दी जाए। इसके पूर्व की सरकारों ने भी इसी प्रकार से मनमाने सैकड़ों एमओयू किये लेकिन उनमें से एक को भी अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।

डा. रामदयाल मुंडा समेत कई विशेषज्ञों द्वारा प्रदेश में सम्यक विकास को लेकर बार-बार सुझाव दिया जाता रहा है कि झारखंड में वनोत्पाद से जुड़े लघु-कुटीर उद्योगों का जाल बिछाने जैसे कार्यों को प्राथमिकता दी जाए। जिससे यहां की वन-संपदाओं का सही उपयोग के साथ-साथ अनेकों लोगों के लिए स्थायी स्वरोजगार के अवसर भी पैदा किये जा सकते हैं।

निवेश के नाम पर निजी कंपनियों को लाना, जिनका लक्ष्य ही होता है कम से कम श्रमशक्ति लगाकर अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना, उनसे रोज़गार के अवसर पैदा करने मामला कब का दिवास्वप्न साबित हो चुका है।

झारखंड मामलों के विशेषज्ञ और हेमंत सोरेन सरकार के पैरोकार रहे वरिष्ठ एडवोकेट रश्मि कात्यायन ने कहा कि दिल्ली ताज़ होटल में राजकीय समारोह कर निजी उद्योग घरानों और कॉर्पोरेट कंपनियों के एमओयू करार की पूरी कवायद ‘पुरानी शराब की बोतल पर नया लेबल’ लगाने जैसा ही है।

यह झारखंड का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि पिछली सरकारों की तर्ज़ पर ही हेमंत सोरेन सरकार भी झारखंडी आत्मा से कटे हुए नौकरशाहों की चौकड़ी के चश्मे से विकास का काम करना चाह रही है. जबकि हेमंत सोरेन ये भली भांति जानते हैं कि जिस झारखण्ड राज्य के गठन की लड़ाई में उनके पिता को अगुवा नायकत्व का दर्जा हासिल है, उसमें जल,जंगल, ज़मीन और खनिज प्राकृतिक संसाधनों की संगठित लूट और दोहन पर रोक का मुद्दा केंद्रीय सवालों में रहा है।

पिछली सरकारों द्वारा किये गए सभी एमओयू करार से यहाँ के लोगों को विस्थापित होने का जो खतरा दिख रहा था, अब वही ख़तरा फिर से लोगों की परेशानी का कारण बनेगा। वैसे भी हेमंत सोरेन सरकार की अब तक की भूमिका से लोग काफी क्षुब्ध हो रहे हैं, कहीं ऐसा न हो कि सरकार का यह नया क़दम लोगों के भरोसे को और अधिक कमज़ोर बना दे।

Jharkhand
Jharkhand government
Hemant Soren
MOU agreement
private companies

Related Stories

झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार

झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध

झारखंड : हेमंत सरकार को गिराने की कोशिशों के ख़िलाफ़ वाम दलों ने BJP को दी चेतावनी

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

झारखंड की खान सचिव पूजा सिंघल जेल भेजी गयीं

झारखंडः आईएएस पूजा सिंघल के ठिकानों पर छापेमारी दूसरे दिन भी जारी, क़रीबी सीए के घर से 19.31 करोड़ कैश बरामद

खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं

आदिवासियों के विकास के लिए अलग धर्म संहिता की ज़रूरत- जनगणना के पहले जनजातीय नेता

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण

झारखंड: पंचायत चुनावों को लेकर आदिवासी संगठनों का विरोध, जानिए क्या है पूरा मामला


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License