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अमीरों को दी गई छूट और 'अनलॉक' के बावजूद रोज़गार में नहीं हो रहा है सुधार
कृषि क्षेत्र ने अपने भीतर दस लाख अतिरिक्त कामग़ारों को समाहित कर लिया है, लेकिन फिर भी बेरोज़गारी दर 11 फ़ीसदी पर है। CMIE के अनुमानों के हिसाब से लॉकडाउन के पहले की तुलना में अब भी करीब़ 3 करोड़ लोगों के पास रोज़गार नहीं है।
सुबोध वर्मा
10 Jul 2020
 रोज़गार में नहीं हो रहा है सुधार

जून, 2020 में भारत में औसत बेरोज़गारी दर 11 फ़ीसदी दर्ज की गई। यह आंकड़े ''सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE)'' के हालिया सैंपल पर आधारित हैं। भारत में ''श्रम सहभागिता दर (लेबर पार्टिशिपेशन रेट)'' 40.3 फ़ीसदी मापी गई है। यह तो रोज़गार के भारत में मौजूदा आंकड़े ही हैं।

अप्रैल और मई में बेरोज़गारी दर बहुत ऊंचाई पर पहुंच गई थी, उसकी तुलना में 11 फ़ीसदी का आंकड़ा बड़ी गिरावट है। लेकिन अब भी यह चिंताजनक है। अप्रैल-मई में जो बेरोज़गारी दर बढ़ी थी, वह बिना योजन बनाए और बुरी तरह लागू किए गए लॉकडाउन का नतीजा थी। लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह रुक गई। पर लॉकडाउन से महामारी पर काबू नहीं पाया जा सका, कोरोना के मामलों में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है। महामारी और इससे निपटने के तरीकों ने पूरी दुनिया में रोज़गार पर बहुत बुरा असर डाला।

आशा की जा रही थी कि एक जून से जैसे ही अनलॉक 1.0 चालू होगा, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रोज़गार में भी उछाल आएगा। एक हद तक ऐसा हुआ भी (नीचे चार्ट देखें), लेकिन अब जिस स्तर पर बेरोज़गारी दर थम चुकी है, वह बहुत चिंता वाली बात है। पिछले साल बेरोज़गारी दर सात से आठ फ़ीसदी थी। अब यह 11 फ़ीसदी पर थम चुकी है। CMIE के पिछले हफ़्ते के आंकड़ों के मुताबिक़, महामारी से प्रभावित भारत में अब यह ‘न्यू नार्मल’ बन सकता है।

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सबसे ज़्यादा काम कृषि क्षेत्र में

इस बीच कुल रोज़गार प्राप्त लोगों की संख्या में भी 3 करोड़ की बड़ी गिरावट आई है। यह गिरावट लॉकडाउन लागू होने के पहले वाले बेरोज़गारी के आंकड़ों से तुलना में है। नीचे चार्ट देखें। इस साल फरवरी में CMIE के अनुमानों के हिसाब से 40.6 करोड़ लोगों के पास रोज़गार था। अप्रैल और मई में इस आंकड़े में बहुत ज़्यादा गिरावट आई। लेकिन जून में यह सुधरकर 37.4 करोड़ पर आ गया। लेकिन अब भी तीन करोड़ भारतीय ऐसे हैं, जिनके पास कुछ महीने पहले तक रोज़गार था।

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रोज़गार प्राप्त लोग

ऐसा अनुमान है कि लॉकडाउन के बाद, रोज़गार प्राप्त लोगों की संख्या में जो बड़ी गिरावट हुई थी और उसके बाद जून के महीने में जो उछाल आया है, उसकी वजह कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों का काम पर वापस लौटना है। 2019-20 में कृषि क्षेत्र में औसत रोज़गार 11.1 करोड़ था। जून, 2020 में इस आंकड़े में बड़ा उछाल आया और यह 13 करोड़ हो गया। मतलब कृषिगत कार्यों में दो करोड़ अतिरिक्त लोगों को संलग्न किया गया है।

इस साल जल्दी आए मानसून की वजह से खरीफ़ की बुआई के वक़्त के जल्दी नज़दीक आने से कृषि क्षेत्र को इतने बड़े पैमाने पर लोगों की जरूरत पड़ी। लेकिन यह बढ़त इस क्षेत्र में जरूरत से ज़्यादा लोगों के लगे होने की ओर भी इशारा करता है। बेरोज़गार हो चुके लोगों को जैसा भी कृषि कार्य मिल रहा है, वे कर रहे हैं। या फिर कुछ लोग अपने परिवार का ही हाथ बंटा रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि इस काम से उन्हें कुछ अतिरिक्त आय होने वाली है। जितनी आय होती थी, अब उसके ज़्यादा छोटे हिस्से होंगे। इसका मतलब हुआ कि पहले से ही कृषि क्षेत्र में कम मज़दूरी पर काम कर रहे लोगों की आय भी कम ही बनी रहेगी। बल्कि इसमें कटौती भी हो सकती है। किसी एक काम में जब ज़्यादा लोग लगे हों, तब ऐसा ही होता है। इसलिए कृषि क्षेत्र के रोज़गार में आया यह उछाल दरअसल प्रछन्न बेरोज़गारी ही है। यह न तो सतत् है, न ही इससे लोगों को बड़ा फायदा होता है।

CMIE के आंकड़ों में जहां रोजग़ार वृद्धि बताई गई है, उनमें छोटा व्यापार, उद्यमी और दैनिक भत्ता कमाने वाले मज़दूर शामिल हैं। यह सभी वर्ग प्रमुखत: स्वरोज़गार में संलग्न लोग हैं या फिर इन्हें शारीरिक काम करने के लिए दैनिक वेतन पर रखा जाता है। यह स्वाभाविक था कि यह लोग सबसे जल्दी काम पर लौटेंगे, क्योंकि यह लोग अकेले ही अपने घर के आसपास काम कर रहे थे। इन्हें जल्दी काम मिलने की भी जरूरत थी।

लेकिन वैतनिक कर्मचारियों के मामले में, CMIE के अनुमान भयावह तस्वीर पेश करते हैं। भारत की कुल 40.4 करोड़ की श्रमशक्ति में से 8.6 करोड़ लोग नियमित वेतनभोगी हैं। इनमें फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर सेवा क्षेत्र और ऑफिस में काम करने वाले कर्मी शामिल हैं। लॉकडाउन में इनमें से 1.76 करोड़ कर्मचारियों की अप्रैल में नौकरी चली गई थी। इससे एक बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी। इसके बावजूद तथाकथित अनलॉक 1.0 में इस वर्ग को काम पर वापस लगाने के लिए कुछ खास कोशिशें नहीं हुईं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आसान बैंक कर्ज जैसे उपायों ने छोटे एवम् लघु उद्योंगों या बड़ी फैक्ट्रियों और उत्पादन शुरू करने के लिए प्रेरित नहीं किया। CMIE अनुमानों के हिसाब से फिलहाल इन बेरोज़गार वैतनिक कर्मचारियों में से केवल 39 लाख ने ही काम पर वापसी की है। अभी करीब 1.4 करोड़ लोगों का लौटना बाकी है।

लोग काम न करने का विकल्प चुन रहे हैं

बढ़ती महामारी और इससे निपटने में सरकार की अक्षमता के साथ-साथ अपने घर के आसपास लोगों के लिए अच्छी नौकरियां उपलब्ध न होने के चलते बहुत सारे लोग निराश हो गए हैं और उन्होंने खुद को श्रमशक्ति से अलग कर लिया है। इनमें एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का है, जिन्हें सबसे ज़्यादा तकलीफ़ उठानी पड़ी। यह लेबर पार्टिसिपेशन रेट या श्रम सहभागिता दर में आई गिरावट से भी पता चलता है। यह दर वह आबादी होती है, जो काम कर रही है या काम करने की इच्छुक है। दूसरे शब्दों में कुल रोज़गार में लगे और बेरोज़गार लोगों का अनुपात पूरी आबादी से श्रम सहभागिता दर कहलाता है।

जैसा नीचे चार्ट दिखाता है, LPR पिछले साल और इस साल के शुरुआती महीनों में 43 फ़ीसदी पर बरकरार थी। लेकिन लॉकडाउन के बाद इस साल अप्रैल में यह 35.6 फ़ीसदी पर आ गई। अब जून में यह सुधरकर 40 फ़ीसदी हो गई है, लेकिन यह अब भी पिछले साल के स्तर से कम है।

श्रम सहभागिता

इसका मतलब यह हुआ कि श्रम करने लायक आबादी का एक बड़ा हिस्सा (करीब़ 2.5 फ़ीसदी या दो करोड़ लोग) लॉकडाउन में काम खोने के बाद, रोज़गार ढूंढना भी बंद कर चुका है। यह बेरोज़गार लोगों की भी एक बड़ी संख्या है।

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निवेश और रोज़गार बढ़ाने की आश में अमीरों को प्रोत्साहन और फायदा पहुंचाने वाली सरकारी नीतियां स्पष्ट तौर पर असफल हो चुकी हैं। अब सरकार की तरफ से अपने कदमों को सुधारने का भी कोई विचार दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए अब भारत में तनाव भरा वक़्त जारी रहेगा। एक तरफ लोग महामारी से लड़ेंगे, तो दूसरी तरफ उन्हें अपनी कम होती आया और आजीविका के लिए संघर्ष करना होगा।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Job Situation Continues to Be Grim Despite ‘Unlock’ and Govt’s Concessions to Rich

Jobless rate
Lockdown
COVID-19
Nationwide Lockdown
Labour Participation Rate
Centre for Monitoring Indian Economy
unemployment rate
Salaried Employees
Unorganised Sector

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