NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पुस्तकें
भारत
राजनीति
प्रधानमंत्री वीपी सिंह के जीवन के रहस्यों को खोलती पत्रकार संतोष भारतीय की किताब!
वीपी सिंह की राजनैतिक यात्रा को लेखक-पत्रकार संतोष भारतीय ने काफी नजदीक से परखा था। वीपी सिंह के राजनीतिक जीवन पर संतोष भारतीय ने "वी. पी. सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गाँधी और मैं" नाम से एक किताब लिखी है, जो इसी साल प्रकाशित हुई है।
सतीश भारतीय
16 Nov 2021
V.P. Singh, Chandrashekhar, Sonia Gandhi aur Main

वी.पी. सिंह का पूरा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह था। वह राजीव गाँधी के बाद साल 1989 में भारत के आठवें प्रधानमंत्री बने।  उनका कार्यकाल महज एक साल का रहा। साल 1989 से लेकर 1990 के बीच तक के उनके राजनीतिक जीवन में बहुत अधिक चढा़व-उतार आये। उनकी राजनैतिक यात्रा को लेखक-पत्रकार संतोष भारतीय ने काफी नजदीक से परखा था। वीपी सिंह के राजनीतिक जीवन पर संतोष भारतीय ने "वी. पी. सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गाँधी और मैं" नाम से एक किताब लिखी है, जो इसी साल प्रकाशित हुई है।

संतोष भारतीय अपनी किताब के जरिए बताते हैं कि मेरा परिचय वी.पी.सिंह से लखनऊ में हुआ था। कांग्रेस ने उन्हें जून 1980 को उत्तरप्रदेश से मुख्यमंत्री पद के लिए चुन लिया था। उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी थीं। इसके बाद से वी.पी.सिंह और मेरा संबंध एक मुख्यमंत्री और पत्रकार का रहा। 

उन दिनों रविवार के अखबारों में सत्ता की कमियाँ दिखाने वाली और डाकूओं के आतंक संबधी मेरी और दूसरे पत्रकारों की खूब रिपोर्ट छपती थी। उन रिपोर्टों से वी.पी. सिंह और उनकी सरकार काफी परेशान हो गयी। फिर होना क्या था? एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वी.पी.सिंह ने घोषणा कर दी कि अगर डाकुओं द्वारा एक भी हत्या हुई तो वह त्यागपत्र दे देंगे. फिर उसके बाद वी.पी.सिंह के भाई सी.एस.पी. सिंह जो हाई कोर्ट के जज थे, उनको और उनके बेटे को डाकुओं द्वारा मार दिया गया। 

लेकिन वह उन्हें न्याय नहीं दिला पाये। उसके बाद कानपुर में दो बच्चों सहित 11 लोगों की हत्या डाकूओं ने फिर कर दी। फिर मैनपुरी जिले में 8 से 10 सशस्त्र व्यक्तियों के गिरोह ने एक महिला और बच्चे सहित चार लोगों की हत्या कर दी। ऐसी घटनाओं से आहत और परेशान होकर वी. पी. सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र की घोषणा कर दी।

इसके बाद जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी तो फिर राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार ने वी.पी.सिंह को वित्त मंत्री के रूप में चयनित किया। उन दिनों राजीव गांधी आदर्श प्रधानमंत्री के रूप में अपनी छाप छोड़ना चाहते थे, उन्होंने वी.पी. सिंह से कहा "निर्भीक होकर न्याय पूर्ण तरीके से काम कीजिए आप किसी के दबाव में मत आइए"।

जब वी.पी. सिंह ने वित्त मंत्रालय चलाया तो वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले संगठन डी.आर.आई. और आयकर विभाग उद्योगपतियों के पीछे पड़ गए, जिससे उनके काले कारनामे सामने आने लगे। वी.पी. सिंह ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक युद्ध छेड़ दिया। 

लेखक संतोष भारतीय की किताब आगे बताती है कि एक बार जब वी.पी. सिंह के इशारे पर डी.आर.आई ने तय किया कि धीरूभाई अंबानी के यहां छापा डालना है तो इसकी भनक लगते ही धीरूभाई अंबानी को पैरालिसिस का अटैक हो गया।

इस घटना ने धीरुभाई अंबानी को वी.पी.सिंह का सबसे बड़ा दुश्मन बना दिया। वी.पी.सिंह की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से उस समय उद्योग जगत काफी परेशान था। देश के पूंजीपति उन्हें वित्त मंत्रालय के पद से हटाना चाहते थे। अब यहां से वी.पी.सिंह के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई। अचानक ही 23 जनवरी 1987 को राजीव गांधी ने पाकिस्तान से खतरे का हवाला देते हुए उन्हें वित्त मंत्रालय से हटाकर रक्षा मंत्रालय सौंप दिया। वी.पी.सिंह का रक्षा मंत्रालय में जाना हथियार माफियाओं के लिए संकट का कारण बन गया। फिर उन्होंने पाकिस्तान की सीमा पर सैन्य अभ्यास शुरू किया तो मिलिट्री इंटेलिजेंस ने बताया कि पाकिस्तान की हमला करने की कोई योजना नहीं है। तब वे चौंक गए। उन्हें लगा उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश हो रही है और फिर उन्होंने रक्षामंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया।

दूसरी ओर उसी दौरान अभिनेता अमिताभ बच्चन और प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की मित्रता के देश में चर्चे हो रहे थे। लेखक संतोष भारतीय ने पुस्तक में बताया है कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे, उस समय विशेष अतिथि के रूप में रूस के राष्ट्रपति जैसे लोग भारत आते थे। ऐसे वक्त पर राजीव गाँधी अमिताभ बच्चन को अवश्य बुलाते थे। अमिताभ बच्चन से "मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है" जैसे गाने पर डांस करने को कहते थे। उन्हें यह डांस करना पड़ता था। राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन के मित्रतापूर्ण संबंधों की वजह से धीरे-धीरे जनता में यह शोर मचने लगा गया कि अमिताभ राजीव गाँधी का पैसा मैनेज करते हैं।

एक वक्त ऐसा आ गया कि अमिताभ बच्चन मीडिया के हमलों और वी.पी.सिंह के संभावित हमलों के संशय से संसद से त्यागपत्र देना चाहते थे। 

पुस्तक में आगे जिक्र किया गया है कि 16 अप्रैल 1987 को स्वीडिश रेडियो ने बोफ़ोर्स सौदे में घोटाले और कमीशन का खुलासा किया तो देश में स्थिति यह बन गयी कि एक तरफ आवाम भ्रष्टाचार के खिलाफ लिये गये फैसलों से वी. पी. सिंह को भ्रष्टाचार जांचने की मशीन मानने लगी तो दूसरी ओर आवाम राजीव गांधी सरकार का बगैर नाम लिए यह मानने लगी कि यह सरकार भ्रष्ट है। सरकार ने हथियारों की खरीद में दलाली की है। हालांकि बोफोर्स तोप हथियार सौदे में 64 करोड़ की दलाली राजीव गांधी सरकार ने ली थी या नहीं यह आज तक साबित नहीं हुआ। 

इसके बाद पुस्तक से ज्ञात होता है कि 22 मई 1987 के दिन वी. पी. सिंह और राजीव गांधी की मुलाकात हुई। इन दोनों के बीच जो बातचीत हुयी, उससे राजीव गाँधी इतने क्रोधित हो गये कि उन्होंने पास रखी टेबल पर जोर से हाथ पटक दिया।  

उस मुलाकात ने राजीव गाँधी और वी. पी सिंह के बीच न सिर्फ राजनीतिक युद्ध छेड़ दिया, अपितु वी.पी. सिंह के लिए प्रधानमंत्री पद के संघर्ष की राह भी खोल दी। अब यहाँ से वी.पी. सिंह कई जनसभाओं को संबोधित करने में जुट गए। वह भारत के विभिन्न राज्यों का भ्रमण करने लगे। उन्हें विद्याचरण शुक्ल, रामधन व सतपाल मलिक जैसे आदि राजनीतिक लोगों का साथ मिलने लगा। इसके बाद 2 अक्टूबर 1987 को अपने सहयोगियों की सहायता से उन्होंने एक अलग मोर्चा गठित कर लिया। 

कुछ समय बाद इलाहाबाद उप चुनाव आ गया। उस दौरान राजीव गाँधी से एक मुलाकात में अमिताभ की माँ तेजी बच्चन ने यह कहा कि अमिताभ संसद से इस्तीफा नहीं देगें, बशर्ते आप उन्हें विदेश मंत्री बनाएं यह सुनकर राजीव गांधी, तेजी और अमिताभ बच्चन का चेहरा ताकते रह गए। फिर हुआ वही जिसका राजीव गांधी को डर था, इलाहाबाद उप चुनाव में कांशीराम की सहायता से वी.पी. सिंह कांग्रेस के सुनील शास्त्री को हराकर विजयी हुए, उन्हें लगभग 52% वोट मिले।

किताब में आगे पता चलता है कि राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स घोटाले के आरोपों का असर इस कदर हावी था कि बस कंडक्टर एक रुपए की टिकट के बाकी पैसे यात्रियों को लौटाते नहीं थे। कह देते थे कि बोफोर्स में 7 प्रतिशत का कमीशन सरकार ले रही है तो हमें 10% कमीशन लेने का अधिकार है। बोफोर्स मामले के इसी प्रश्न ने राजीव गाँधी को 1989 के लोकसभा चुनाव में पराजित कर दिया। इस चुनाव में राजीव सरकार को 197 सीटें प्राप्त हुईं और वी.पी. सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें प्राप्त हुईं। वहीं भाजपा और वामदलों का समर्थन वी.पी. सिंह के मोर्चे के लिए पहले से ही तय था। इस चुनाव में भाजपा के 86 सांसद व वामदलों के 52 सांसदो ने वी.पी. सिंह को समर्थन देकर कम ही समय के लिए मगर देश का प्रधानमंत्री बना दिया और वह 1990 तक देश के पीएम रहे। फिर 1996 में विपक्षी नेताओं के आग्रह के बाद भी उन्होंने पीएम पद स्वीकार नहीं किया। 27 नवम्बर 2008 को विश्वनाथ प्रताप सिंह का निधन हो गया। 

किताब आगे बताती है कि वह जीवन की आखिरी सांस तक गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों, वंचितों, किसानों व झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए संघर्ष करते रहे। 10 प्रतिशत आरक्षण गरीब सवर्णों के लिए वे भी करना चाहते थे। लेकिन तब उनकी सरकार गिर गई। प्रधानमंत्री कार्यालय में यह प्रस्ताव पड़ा रह गया, जिसे अब सरकार ने कार्यान्वित किया है। 

लेखक संतोष भारतीय अपनी इस पुस्तक में यह भी बताते हैं कि मेरी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक की यात्रा में मुझे वी.पी. सिंह जैसा ईमानदार व्यक्ति मिला ही नहीं था। मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध वही खड़ा हो सकता है, जिसके दामन पर कोई दाग न हो।

Vishwanath Pratap Singh
VP SIngh
Journalist Santosh Bhartiya
Chandrashekhar
sonia gandhi

Related Stories


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License