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कानपुर: गैंगरेप पीड़िता के पिता की मौत ने फिर पुलिस-प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है!
ये कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिस प्रशासन सवालों के घेरे में है। इससे पहले भी कई मामलों में पुलिस द्वारा आरोपियों को बचाने का ट्रेंड देखने को मिला है। जाहिर है यूपी पुलिस सूबे की सरकार को रिपोर्ट करती है। ऐसे में कानून व्यवस्था से जुड़े हर मामले की जिम्मेदारी भी प्रदेश सरकार की बनती है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
11 Mar 2021
कानपुर: गैंगरेप पीड़िता के पिता की मौत ने फिर पुलिस-प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है!
Image Courtesy : Times of India

यूं तो उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था अक्सर ही सुर्खियों में रहती है लेकिन कानपुर दुष्कर्म मामले में अब पुलिस आरोपी भी बन गई है। कानपुर में बुधवार, 10 मार्च को गैंगरेप पीड़िता के पिता की संदिग्ध मौत के बाद शुरुआत में पुलिस में इसे हादसा बताने की कोशिश की। लेकिन जब मामले ने तूल पकड़ा तो कन्नौज के दरोगा देवेंद्र यादव के खिलाफ ही हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया।

बता दें कि बुधवार को गैंगरेप पीड़िता के पिता को एक ट्रक ने टक्कर मार दी थी। जिसके बाद अस्पताल ले जाते ही उनकी मौत हो गई थी। पुलिस तब दबाव में आई जब आक्रोशित परिजनों और ग्रामीणों ने हाईवे जाम कर दिया। परिजनों का आरोप था कि यह हादसा नहीं बल्कि हत्या है।

पुलिस का क्या कहना है?

इस संबंध में न्यूज़ 18 की खबर के मुताबिक डीआईजी कानपुर ने कहा कि गैंगरेप के दोनों आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही पिता की मौत मामले में दरोगा देवेंद्र यादव के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है। मामले की जांच गहनता से की जा रही है। किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा। हालांकि इससे पहले पुलिस ने इस मामले में हादसा यानी एक्सीडेंट का मामला दर्ज किया था।

बुधवार सुबह एक वीडियो के जरिये बयान में कानपूर पुलिस प्रमुख डॉ. प्रीतिंदर सिंह ने बताया था, “जब (पीड़िता का) मेडिकल परिक्षण चल रहा था तब उसके पिता चाय पीने के लिए बाहर निकले थे। उस समय हमें मालूम चला कि उनका एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया है। उन्हें कानपुर के एक अस्पताल ले जाया गया लेकिन वे दम तोड़ चुके थे। हमने एक्सीडेंट का मामला दर्ज कर लिया है और जांच चल रही है।”

मालूम हो कि गैंगरेप मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी व दरोगा के बेटे डिप्पु यादव व उसके साथी गोलू को पहले ही गिरफ्तार कर लिया था।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक शहर के सजेती इलाके की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक 13 साल की बच्ची के साथ सोमवार, 8 मार्च को सामूहिक बलात्कार की खबर सामने आई थी। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में कन्नौज जिले में बतौर सब इंस्पेक्टर तैनात पुलिसकर्मी देवेंद्र यादव के दो बेटों समेत तीन लोगों पर छात्रा के सामूहिक बलात्कार का आरोप है।

पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) ब्रजेश श्रीवास्तव ने बताया कि लड़की सोमवार को मवेशियों के लिए चारा लाने गई थी तब उसे आरोपियों ने अगवा कर लिया और किसी अज्ञात स्थान पर ले गये जहां उन्होंने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। लड़की ने किसी तरह घर पहुंचकर आपबीती परिवार वालों को सुनाई, जिसके बाद परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

परिजनों ने लगाए पुलिस पर आरोपियों से मिलीभगत के आरोप

ज्ञात हो कि जिस अस्पताल में पीड़िता को मेडिकल के लिए लाया गया था। उसी अस्पताल के बाहर छात्रा के पिता की एक ट्रक दुर्घटना में मौत के बाद परिवार ने हत्या की बात कहते हुए आरोपियों के साथ पुलिस की मिलीभगत होने का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि जबसे गैंगरेप का मामला दर्ज हुआ है, तबसे उन्हें आरोपियों के परिवार द्वारा धमकाया जा रहा है और पुलिस इसमें उनका साथ दे रही है।

एनडीटीवी के अनुसार पीड़िता के बाबा ने बुधवार सुबह पत्रकारों से कहा कि उनके बेटे की हत्या हुई है और पुलिस भी इसमें शामिल है। इससे पहले पीड़िता के परिवार के एक और सदस्य ने बताया था कि उन्हें धमकियां मिल रही हैं।

इस परिजन ने बताया था, “जैसे ही हमने शिकायत दर्ज करवाई, मुख्य आरोपी के बड़े भाई ने धमकाना शुरू कर दिया, उसने हमसे कहा कि बचके रहना, मेरे पिता सब इंस्पेक्टर हैं।”

गौरतलब है कि ये कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिस प्रशासन सवालों के घेरे में है। इससे पहले भी कई मामलों में पुलिस द्वारा आरोपियों को बचाने का ट्रेंड देखने को मिला है। जाहिर है यूपी पुलिस सूबे की सरकार को रिपोर्ट करती है। ऐसे में कानून व्यवस्था से जुड़े हर मामले की जिम्मेदारी भी प्रदेश सरकार की बनती है।

उन्नाव का माखी कांड हो या हाथरस का मामला या फिर बदायूं और अब कानपुर। राज्य में सरकार भले ही ‘न्यूनतम अपराध’ और ‘बेहतर कानून व्यवस्था’ का दावा करती हो लेकिन हक़ीक़त में प्रदेश में महिलाओँ के खिलाफ अपराध की सूरत और पीड़िता के प्रति पुलिस के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है।

आरोपियों को बचाने का ट्रेंड

आपको याद होगा उन्नाव मामले में यूपी पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर को सम्मान देकर संबोधित किया था। जब पत्रकारों की ओर से इस पर टोका गया, तो पुलिस का कहना था कि विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आरोपी हैं, दोषी नहीं। और इसलिए यूपी पुलिस ने सेंगर की गिरफ्तारी से अपना पल्ला भी झाड़ लिया था।

जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों ने पूछा था कि पॉक्सो एक्ट में पीड़िता के बयान के बाद आरोपी को गिरफ्तार करने का प्रावधान है तो इस मामले को अलग तरह से क्यों ट्रीट किया जा रहा है। इसके जवाब में तब के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने कहा था, “17 अगस्त को जब पहली बार इस मामले की शिकायत की थी तो उसमें विधायक जी का नाम नहीं था। ऐसे में आप लोग बताएं कि उन्हें किस आधार पर रोका जा सकता है।”

महिला के चरित्र और दुष्कर्म पर सवाल

हाथरस मामले की बात करें तो खुद प्रदेश के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने मीडिया स्टेटमेंट में कहा था कि युवती के साथ रेप नहीं हुआ। उन्होंने रेप की खबरों को भ्रामक बताकर सख्त कार्रवाई की बात कही थी।

एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने कहा था, “फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट से भी यह साफ जाहिर होता है कि उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ। सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने और जातीय हिंसा भड़काने के लिए कुछ लोग तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं।”

इतना ही नहीं तमाम बीजेपी के प्रवक्ता और खुद आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने पीड़िता की पहचान तक उज़ागर कर दी थी, ये कहते हुए कि दलित युवती के साथ बलात्कार नहीं हुआ है। जो कानूनन गलत है, लेकिन इसके बावजूद न तो सरकार ने और न ही प्रशासन ने इस पर कोई कार्रवाई की।

शिकायत न लिखकर मामले को टरकाने का आरोप

बदायूं मामले में भी पीड़िता के बेटे ने आरोप लगाया था कि शिकायत के बावजूद पुलिस ने आरोपी महंत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस बलात्कार की घटना को हादसा बताने की कोशिश में लगी रही।

महिला के परिजनों का आरोप था कि पुलिस पहले तो उन्हें टरकाती रही, और कुएं में गिरने को ही मौत की वजह बताती रही। दो दिन तक शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया। जब यह मामला मीडिया में उछला, तब कहीं जाकर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया और उसके बाद 5 जनवरी को पोस्टमार्टम कराया गया, जिसमें बलात्कार और शरीर पर गंभीर चोटों की पुष्टि हुई।

पीड़ित को प्रताड़ित करने का ट्रेंड

गौरतलब है कि बात सिर्फ एक या दो मामले की नहीं है। हर उस मामले की है जिसमें पुलिस और सिस्टम की लापरवाही का कथित तौर पर एक ट्रेंड सेट होता दिखाई देता है। जहां पीड़ित के प्रति संवेदनहीनता और प्रताड़ित करने का नया चलन चल पड़ा है। 

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